Ghulam Nabi Azad: कश्मीर के आजाद को पद्म भूषण, मोदी सरकार ने फिर दिया बड़ा संदेश, समझिए क्या हैं मायने h3>
हाइलाइट्स
- गणतंत्र दिवस से पहले पद्म पुरस्कारों का ऐलान
- गुलाम नबी आजाद को मिलेगा पद्म भूषण अवॉर्ड
- जम्मू-कश्मीर के कद्दावर कांग्रेसी नेता हैं आजाद
- पीएम मोदी ने संसद से विदाई के दिन की थी तारीफ
श्रीनगर: गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या (Republic Day) पर जम्मू-कश्मीर के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) को पद्म भूषण पुरस्कार (Padma Bhushan 2022) का ऐलान किया गया है। गुलाम नबी आजाद की गिनती कांग्रेस (Congress) के मुखर नेताओं में है। हाल के दिनों में उनकी कांग्रेस से दूरी साफ नजर आती है। वहीं पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) भी संसद में खुलकर उनकी प्रशंसा कर चुके हैं। गुलाम नबी आजाद को ऐसे वक्त में ये नागरिक अवॉर्ड मिल रहा है, जब जम्मू-कश्मीर में चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं। आइए जानते हैं गुलाम नबी आजाद की शख्सियत के बारे में…
गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के जी-23 के नेता हैं। यह कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं का एक समूह है। यह ग्रुप कांग्रेस नेतृत्व शैली और रणनीति में बदलाव की मांग कर रहा है। आजाद इस बात पर अफसोस जताते रहे हैं कि असहमति और पार्टी के संचालन में खामियों को इन दिनों नेतृत्व एक तरह से विद्रोह के रूप में देख रहा है। वह कहते हैं कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में ऐसा नहीं था। हाल ही में आजाद ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘राजनीति में आगे क्या होगा यह कोई नहीं कह सकता। जैसे कोई नहीं जानता कि उसकी मृत्यु कब होगी। राजनीति में आगे क्या होगा इसकी भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता, लेकिन पार्टी बनाने का मेरा कोई इरादा नहीं है।’
गुलाम नबी आजाद के बयान से कांग्रेस में बगावत की अटकलें तेज हो गई थीं। दिसंबर 2021 में जम्मू-कश्मीर के पुंछ में एक जनसभा में कहा, ‘कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में 300 से अधिक सीटें आती नहीं दिखाई पड़ रही हैं। कुछ लोग दावे कर रहे हैं, लेकिन ऐसा मुझे होता नहीं दिख रहा है।’ दरअसल इशारों-इशारों में आजाद ने बड़ी बात कह दी थी। वे बीजेपी सरकार की ओर से 5 अगस्त 2019 को हटाए गए धारा 370 और 35ए पर अपनी बात रख रहे थे। आजाद ने कहा, ‘कुछ लोग धारा 370 को बहाल करने की बात कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए कांग्रेस को 300 से ज्यादा सीटें आनी चाहिए। अगले लोकसभा चुनाव में ऐसा होता हमें नहीं दिख रहा है।’
पिछले साल एक कार्यक्रम में गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि लोगों को नरेंद्र मोदी से सीख लेनी चाहिए। वह देश के प्रधानमंत्री बन गए लेकिन अपनी जड़ों को भूले नहीं हैं। वह खुद को गर्व से चायवाला कहते हैं। मेरे उनके साथ सियासी मतभेद हैं लेकिन पीएम एक जमीनी व्यक्ति हैं। पिछले साल फरवरी में गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा से कार्यकाल खत्म होने पर पीएम मोदी के विदाई भाषण को लोग भूले नहीं हैं। संसद में करीब तीन दशक बिता चुके गुलाम नबी आजाद की विदाई पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद भावुक हो गए थे। पीएम मोदी ने रूंधे गले से आजाद संग बिताए पलों को याद किया और एक वक्त तो रो पड़े।
पीएम मोदी ने खुद के गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए आजाद से जुड़ा एक किस्सा भी संसद में सुनाया था। मोदी ने कहा, ‘एक बार गुजरात के यात्रियों पर आतंकियों ने हमला कर दिया। आठ लोग मारे गए। सबसे पहले मुझे गुलाम नबी जी का फोन आया। और वह फोन…. सिर्फ सूचना देने का नहीं था। उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। फोन पे उस समय प्रणब मुखर्जी साहब डिफेंस मिनिस्टर थे… मैंने फोन किया कि साहब अगर फोर्स का हवाई जहाज मिल जाए डेड बॉडी को लाने के लिए। रात देर हो गई थी। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि आप चिंता न करें। लेकिन रात में फिर गुलाम नबी जी का फोन आया। वह एयरपोर्ट पर थे।’ इस बाद पीएम ने सुबकते हुए आजाद की तरफ इशारा करते हुए आगे कहा, ‘उन्होंने मुझे फोन किया.. जैसे अपने परिवार के सदस्य की चिंता करें, वैसी चिंता।’
मोदी ने गुलाम नबी से आत्मीय संबंधों का एक और किस्सा सुनाते हुए कहा था, ‘मैं एक फ्लोर लीडर्स की मीटिंग कर रहा था तो उसी दिन गुलाम नबी जी का फोन आया। मोदीजी ये तो ठीक हैं, आप करते हैं लेकिन आप एक काम कीजिए। सभी पार्टी लीडर्स की मीटिंग जरूर बुलाइए। मुझे अच्छा लगा कि उन्होंने सभी पार्टी अध्यक्षों के साथ बैठने का मुझे सुझाव दिया और मैंने उस मीटिंग को किया भी। इस प्रकार का संपर्क और उसका मूल कारण है कि आपको दोनों तरफ का अनुभव रहा है। 28 साल कार्यकाल… ये अपने आप में बहुत बड़ी बात होती है।’
पीएम मोदी ने संसद में आजाद की तारीफ करते हुए कहा था, ‘बहुत साल पहले की बात है। मैं यहां सदन में किसी काम से आया था। तब चुनावी राजनीति में नहीं था। मैं और गुलाम नबी आजाद जी ऐसे ही लॉबी में गप्पें मार रहे थे। पत्रकार बराबर नजर लगाए बैठे थे कि ये दोनों का मेल कैसे हो सकता है। हम हंसी-खुशी से बातें कर रहे थे। हम जैसे ही निकले तो पत्रकारों ने घेर लिया। गुलाम नबी जी ने बहुत बढ़िया जवाब दिया और वो हम लोगों के लिए बहुत काम आने वाला है। उन्होंने कहा कि भाई देखिए… आप लोग हमको अखबारों में.. टीवी माध्यमों में लड़ते-झगड़ते देखते हो लेकिन सचमुच में इस छत के नीचे हम जैसा एक परिवार का वातावरण कहीं नहीं होता है।’
हाइलाइट्स
- गणतंत्र दिवस से पहले पद्म पुरस्कारों का ऐलान
- गुलाम नबी आजाद को मिलेगा पद्म भूषण अवॉर्ड
- जम्मू-कश्मीर के कद्दावर कांग्रेसी नेता हैं आजाद
- पीएम मोदी ने संसद से विदाई के दिन की थी तारीफ
गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के जी-23 के नेता हैं। यह कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं का एक समूह है। यह ग्रुप कांग्रेस नेतृत्व शैली और रणनीति में बदलाव की मांग कर रहा है। आजाद इस बात पर अफसोस जताते रहे हैं कि असहमति और पार्टी के संचालन में खामियों को इन दिनों नेतृत्व एक तरह से विद्रोह के रूप में देख रहा है। वह कहते हैं कि इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में ऐसा नहीं था। हाल ही में आजाद ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘राजनीति में आगे क्या होगा यह कोई नहीं कह सकता। जैसे कोई नहीं जानता कि उसकी मृत्यु कब होगी। राजनीति में आगे क्या होगा इसकी भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता, लेकिन पार्टी बनाने का मेरा कोई इरादा नहीं है।’
गुलाम नबी आजाद के बयान से कांग्रेस में बगावत की अटकलें तेज हो गई थीं। दिसंबर 2021 में जम्मू-कश्मीर के पुंछ में एक जनसभा में कहा, ‘कांग्रेस को 2024 के लोकसभा चुनाव में 300 से अधिक सीटें आती नहीं दिखाई पड़ रही हैं। कुछ लोग दावे कर रहे हैं, लेकिन ऐसा मुझे होता नहीं दिख रहा है।’ दरअसल इशारों-इशारों में आजाद ने बड़ी बात कह दी थी। वे बीजेपी सरकार की ओर से 5 अगस्त 2019 को हटाए गए धारा 370 और 35ए पर अपनी बात रख रहे थे। आजाद ने कहा, ‘कुछ लोग धारा 370 को बहाल करने की बात कर रहे हैं, लेकिन इसके लिए कांग्रेस को 300 से ज्यादा सीटें आनी चाहिए। अगले लोकसभा चुनाव में ऐसा होता हमें नहीं दिख रहा है।’
पिछले साल एक कार्यक्रम में गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि लोगों को नरेंद्र मोदी से सीख लेनी चाहिए। वह देश के प्रधानमंत्री बन गए लेकिन अपनी जड़ों को भूले नहीं हैं। वह खुद को गर्व से चायवाला कहते हैं। मेरे उनके साथ सियासी मतभेद हैं लेकिन पीएम एक जमीनी व्यक्ति हैं। पिछले साल फरवरी में गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा से कार्यकाल खत्म होने पर पीएम मोदी के विदाई भाषण को लोग भूले नहीं हैं। संसद में करीब तीन दशक बिता चुके गुलाम नबी आजाद की विदाई पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद भावुक हो गए थे। पीएम मोदी ने रूंधे गले से आजाद संग बिताए पलों को याद किया और एक वक्त तो रो पड़े।
पीएम मोदी ने खुद के गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए आजाद से जुड़ा एक किस्सा भी संसद में सुनाया था। मोदी ने कहा, ‘एक बार गुजरात के यात्रियों पर आतंकियों ने हमला कर दिया। आठ लोग मारे गए। सबसे पहले मुझे गुलाम नबी जी का फोन आया। और वह फोन…. सिर्फ सूचना देने का नहीं था। उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। फोन पे उस समय प्रणब मुखर्जी साहब डिफेंस मिनिस्टर थे… मैंने फोन किया कि साहब अगर फोर्स का हवाई जहाज मिल जाए डेड बॉडी को लाने के लिए। रात देर हो गई थी। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि आप चिंता न करें। लेकिन रात में फिर गुलाम नबी जी का फोन आया। वह एयरपोर्ट पर थे।’ इस बाद पीएम ने सुबकते हुए आजाद की तरफ इशारा करते हुए आगे कहा, ‘उन्होंने मुझे फोन किया.. जैसे अपने परिवार के सदस्य की चिंता करें, वैसी चिंता।’
मोदी ने गुलाम नबी से आत्मीय संबंधों का एक और किस्सा सुनाते हुए कहा था, ‘मैं एक फ्लोर लीडर्स की मीटिंग कर रहा था तो उसी दिन गुलाम नबी जी का फोन आया। मोदीजी ये तो ठीक हैं, आप करते हैं लेकिन आप एक काम कीजिए। सभी पार्टी लीडर्स की मीटिंग जरूर बुलाइए। मुझे अच्छा लगा कि उन्होंने सभी पार्टी अध्यक्षों के साथ बैठने का मुझे सुझाव दिया और मैंने उस मीटिंग को किया भी। इस प्रकार का संपर्क और उसका मूल कारण है कि आपको दोनों तरफ का अनुभव रहा है। 28 साल कार्यकाल… ये अपने आप में बहुत बड़ी बात होती है।’
पीएम मोदी ने संसद में आजाद की तारीफ करते हुए कहा था, ‘बहुत साल पहले की बात है। मैं यहां सदन में किसी काम से आया था। तब चुनावी राजनीति में नहीं था। मैं और गुलाम नबी आजाद जी ऐसे ही लॉबी में गप्पें मार रहे थे। पत्रकार बराबर नजर लगाए बैठे थे कि ये दोनों का मेल कैसे हो सकता है। हम हंसी-खुशी से बातें कर रहे थे। हम जैसे ही निकले तो पत्रकारों ने घेर लिया। गुलाम नबी जी ने बहुत बढ़िया जवाब दिया और वो हम लोगों के लिए बहुत काम आने वाला है। उन्होंने कहा कि भाई देखिए… आप लोग हमको अखबारों में.. टीवी माध्यमों में लड़ते-झगड़ते देखते हो लेकिन सचमुच में इस छत के नीचे हम जैसा एक परिवार का वातावरण कहीं नहीं होता है।’