Ghaziabad: 2020 में ठगी का शिकार, 30 चक्कर लगाए… फ्रॉड की डिटेल निकाली, अब दर्ज हुई FIR
राधाकुंज निवासी कुलदीप अत्री ने बताया कि वह एक कंपनी में डायरेक्टर हैं। 2020 में दोस्त से पता चला कि प्रमोशनल काम कर हर दिन 3 से 4 हजार रुपए कमा सकते हैं। उन्होंने 4 लाख 4 हजार रुपए लगा दिए। कंपनी का पेमेंट गेटवे बिल्कुल एक नामी वैध कंपनी की तरह था। ऐसे में विश्वास कर इतने रुपए जमा कर दिए। कुछ दिन बाद ठगी का पता चला तो पुलिस में शिकायत की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। कुलदीप ने बताया कि इस मामले में पुलिस का व्यवहार काफी खराब था। वे साफ तौर पर कुछ नहीं करना चाहते थे।
इस मामले में पहले उन्होंने शिकायत की, लेकिन जब पुलिस ने कुछ नहीं किया तो खुद ही पहले पीएम पोर्टल और साइबर क्राइम पोर्टल पर शिकायतें डालना शुरू किया। बाद में उन्हें जानकारी हुई कि रुपए बेंगलुरु की समर टाइम नाम की कंपनी के खाते में जमा हुए हैं। इसके बाद उन्होंने अकाउंट का ट्रांजेक्शन किसी तरह हासिल किया। कुलदीप ने बताया कि इतनी जानकारी निकालने के बाद भी पुलिस कार्रवाई के लिए तैयार नहीं थी। थाने और पुलिस अधिकारियों के करीब 30 चक्कर लगाए, फिर भी केस दर्ज नहीं किया गया था।
साइबर सेल से समाधान नहीं, थाने का इंतजार
गाजियाबाद में 2020 में साइबर सेल की शुरुआत की गई थी। टीम ने कुछ अच्छे केस पर काम किया। लेकिन, कई केस लेटलतीफी की वजह से पेचीदा हो गए। साइबर क्राइम के मामलों में थाने अपने हाथ खड़े कर पीड़ितों को कोतवाली स्थित साइबर सेल भेज देते हैं। साइबर सेल एक टोकन नंबर जैसा नंबर देकर पीड़ित को भेज देती है। इसके बाद कोई अधिकारिक रिपोर्ट दर्ज नहीं होती है। जो लोग एफआईआर के चक्कर लगाते हैं तो उनकी शिकायत कई महीनों के बाद दर्ज होती हैं, लेकिन उस पर कार्रवाई नहीं होती। जिले में जल्द ही साइबर थाना बनाने की बात चल रही है। गाजियाबाद हर साल 5 हजार से अधिक साइबर ठगी के मामले सामने आते हैं।