Explainer: क्यों बढ़ रहा है आपका हवाई किराया, यहां जानिए असली वजह

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Explainer: क्यों बढ़ रहा है आपका हवाई किराया, यहां जानिए असली वजह

Explainer: क्यों बढ़ रहा है आपका हवाई किराया, यहां जानिए असली वजह

नई दिल्ली: देश में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा हाल के दिनों में काफी महंगी हो चुकी है। कुछ घरेलू रूट्स पर हवाई किराया जनवरी के मुकाबले दोगुना से भी अधिक बढ़ चुका है। कोरोना काल में हवाई यात्रा पर सबसे ज्यादा असर पड़ा था लेकिन महामारी का प्रकोप कम होने के साथ ही एयर ट्रैफिक पटरी पर लौट रहा है। इसके साथ ही किराए में भी खासी बढ़ोतरी हो रही है। भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में हवाई किराया काफी बढ़ चुका है। हवाई किराए में अचानक हुई इस बढ़ोतरी के कई कारण हैं। इसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में तेजी का सबसे ज्यादा योगदान है। भारत में इस साल अब तक एटीएफ की कीमत में दस बार बढ़ोतरी हो चुकी है।

जनवरी में दिल्ली से पटना रूट (Delhi-Patna route) पर न्यूनतम हवाई किराया 2,100 रुपये था जो अब बढ़कर 4,799 रुपये हो चुका है। यानी इसमें दोगुना से ज्यादा तेजी आई है। इसी तरह दिल्ली-मुंबई रूट (Delhi-Mumbai route) पर न्यूनतम हवाई किराया 2,800 रुपये से बढ़कर 5534 रुपये पहुंच चुका है। दिल्ली-बागडोगरा रूट (Delhi-Bagdogra) पर जनवरी में न्यूनतम हवाई किराया 2,800 रुपये था जो अब बढ़कर 5,289 रुपये हो गया है।

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एटीएफ की कीमत में उछाल
इस साल देश में जेट फ्यूल यानी एटीएफ (ATF) की कीमत में 61.7 फीसदी तक बढ़ोतरी हो चुकी है। एक जनवरी 2022 से एटीएफ का भाव 46,938 रुपये प्रति किलोलीटर बढ़ा है। एक जनवरी से जेट फ्यूल का दाम 76,062 रुपये प्रति किलोलीटर से बढ़कर 1.23 लाख रुपये प्रति किलोलीटर हो गया है।
किसी भी एयरलाइन की कुल लागत में करीब 40 फीसदी हिस्सा फ्यूल का होता है। एटीएफ की कीमतें भी बढ़ने से एयलाइन कंपनियों पर बोझ बढ़ गया। एटीएफ पर 11 फीसदी एक्साइज ड्यूटी है और साथ ही राज्य भी एक से 30 फीसदी तक वैट लगाते हैं। यह वजह है कि एयरलाइन कंपनियां बढ़ी हुई लागत का बोझ हवाई किराए में बढ़ोतरी के जरिए यात्रियों पर डाल रही हैं।

यूक्रेन पर रूस के हमले से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमत में तेजी आई है। 2019 में विमानन कंपनियों की कुल लागत में जेट फ्यूल का योगदान 27 फीसदी था जो अब बढ़कर 38 फीसदी हो गया है। सस्ती विमानन कंपनियों के लिए तो यह 50 फीसदी तक हो सकता है। अमेरिका में इस साल अब तक जेट फ्यूल की कीमत में 80 फीसदी से अधिक तेजी आ चुकी है। एशिया की अधिकांश एयरलाइंस जेट फ्यूल हेज नहीं करती हैं। इसका मतलब है कि जेट फ्यूल की कीमत में बढ़ोतरी का उन पर ज्यादा असर होता है।

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स्टाफ की कमी
अधिकांश देशों ने कोरोना से जुड़ी पाबंदियों को खत्म कर दिया है लेकिन विमानन कंपनियों अपने पूरे बेड़े का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। फिलहाल उन्होंने ऐसे विमानों को सेवा में लगाया है जिनमें तेल की कम खपत होती है। इनमें A350 और 787 Dreamliners शामिल हैं। इसका सबसे ज्यादा असर एशिया में देखने को मिल रहा है। इस इलाके से सबसे बड़े मार्केट चीन में अब तक लॉकडाउन की स्थिति है। महामारी के दौरान कई कंपनियों ने अपने नेटवर्क में कटौती की थी और अब उन्हें नए सिरे से इसे तैयार करना पड़ रहा है।

कोरोना महामारी के कारण एविएशन सेक्टर पर सबसे ज्यादा असर पड़ा। इस कारण सैकड़ों की संख्या में पायलट, फ्लाइट अटेंडेंट्स, ग्राउंड हैंडलर्स और कई दूसरे स्टाफ की नौकरी छूट गई। ट्रैवल गतिविधियां तेजी से पटरी पर लौट रही हैं लेकिन कंपनियों के पास पर्याप्त संख्या में स्टाफ नहीं हैं। सिंगापुर के चांगी एयरपोर्ट को दुनिया का सबसे बेस्ट एयरपोर्ट माना जाता है। यहां 6,600 से अधिक कर्मचारियों की जरूरत है। नौकरी छोड़कर गए कई लोगों को दूसरी जगह नौकरी मिल गई है। वे अब ऐसी नौकरी में वापस नहीं आना चाहते हैं जहां ज्यादा खतरा है।

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घाटे की भरपाई
एविएशन में भारी पूंजी लगती है और मार्जिन कम रहता है। कोरोना ने विमान कंपनियों की मुश्किलों को बढ़ा दिया था। तीन साल में उन्हें 200 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हुआ। Cathay Pacific Airways Ltd. का हॉन्ग कॉन्ग से लंदन के बीच इकॉनमी क्लास का रिटर्न टिकट 5,360 डॉलर का है जो कोरोना से पहले के मुकाबले पांच गुना अधिक है। हवाई किराया बढ़ने से उन्हें अपने नुकसान की भरपाई करने का मौका मिला है। अभी यह तय नहीं है कि हवाई किराए में कब कमी आएगी क्योंकि कई लोग इतना किराया देने के लिए तैयार हैं।

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