Explained: संसद के उच्च और निम्न सदन में क्या अंतर है, कैसे चुने जाते हैं इनके सदस्य, जानिए सबकुछ h3>
नई दिल्ली: राज्यसभा चुनावों में असम, त्रिपुरा और नागलैंड की एक-एक सीटों पर जीत हासिल करने के बाद इतिहास में पहली बार उच्च सदन (Upper House Of Parliament) में बीजेपी (BJP) के सदस्यों का आंकड़ा 100 पर पहुंच गया। 1990 के बाद बीजेपी पहली पार्टी बन गई है जिसने यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। उच्च सदन में बीजेपी की सेंचुरी के बाद संसद के उच्च सदन और निम्न सदन के बीच का अंतर जानने की उत्सुकता बढ़ी है। संसद के इन सदनों के सदस्यों का चुनाव कैसे होता है? दोनों सदनों के सदस्यों का कार्यकाल कितना होता है। इन दोनों सदनों के बीच के फर्क को हम इस एक्सप्लेनर के जरिए समझाने का प्रयास कर रहे हैं।
दोनों के बीच का मुख्य अंतर क्या है?
भारतीय संसद दो सदनों और राष्ट्रपति से मिलकर बनी है। राज्यसभा को उच्च सदन कहा जाता है तो वहीं लोकसभा को निम्न सदन कहते हैं। इन दोनों सदनों में मुख्य अंतर यह है कि लोकसभा के सदस्यों का चुनाव भारत की जनता मतदान के जरिए करती है,जबकि राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव विभिन्न राज्यों की विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष होता है जबकि राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है लोकसभा को भंग किया जा सकता है। जबकि राज्यसभा कभी भंग नहीं होती, यह एक स्थाई सदन है
दोनों सदनों में कितने सदस्य हैं?
संसद के दोनों सदनों में कुल सदस्यों की संख्या 790 है। लोकसभा सदस्यों की कुल संख्या 545 है जिसमें 543 निर्वाचित और 2 मनोनित सांसद होते हैं। वहीं राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 245 है जिसमें 233 निर्वाचित और 12 मनोनीत सांसद होते हैं।
कौन दिलाता है शपथ?
राज्यसभा के सदस्य राज्यसभा के सभापति के समक्ष शपथ लेते हैं। राज्य सभा का पदेन सभापति उपराष्ट्रपति होता है। राज्यसभा के सदस्य उपराष्ट्रपति के समक्ष शपथ लेते हैं।उधर लोकसभा के सदस्यों को शपथ प्रोटेम स्पीकर द्वारा दिलाई जाती है। नव निर्वाचित लोकसभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और प्रोटेम स्पीकर को शपथ भी राष्ट्रपति ही दिलाता है।
राज्यसभा में ऐसे होती है वोटिंग
राज्यसभा चुनाव में विधायक हर सीट के लिए अलग-अलग वोट नहीं डाल सकते हैं। वोटिंग के समय हर विधायक को एक सूची दी जाती है, जिसमें उसे राज्यसभा प्रत्याशियों के लिए अपनी पहली पसंद, दूसरी पसंद, तीसरी पसंद आदि लिखनी होती है। इसके बाद एक फॉर्मूले की मदद से तय किया जाता है कि कौन सा प्रत्याशी जीता। किसी प्रत्याशी को राज्यसभा सीट जीतने के लिए कितने विधायकों का वोट चाहिए, इसके लिए राज्य की कुल विधानसभा सीटों में जितनी सीटों पर राज्यसभा चुनाव होना है उससे एक अधिक से भाग देते हैं और जो फल आता है उसमें एक जोड़ देते हैं।
उदाहरण से समझिए वोटिंग का फॉर्मूला
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दोनों के बीच का मुख्य अंतर क्या है?
दोनों सदनों में कितने सदस्य हैं?
संसद के दोनों सदनों में कुल सदस्यों की संख्या 790 है। लोकसभा सदस्यों की कुल संख्या 545 है जिसमें 543 निर्वाचित और 2 मनोनित सांसद होते हैं। वहीं राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 245 है जिसमें 233 निर्वाचित और 12 मनोनीत सांसद होते हैं।
कौन दिलाता है शपथ?
राज्यसभा के सदस्य राज्यसभा के सभापति के समक्ष शपथ लेते हैं। राज्य सभा का पदेन सभापति उपराष्ट्रपति होता है। राज्यसभा के सदस्य उपराष्ट्रपति के समक्ष शपथ लेते हैं।उधर लोकसभा के सदस्यों को शपथ प्रोटेम स्पीकर द्वारा दिलाई जाती है। नव निर्वाचित लोकसभा के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और प्रोटेम स्पीकर को शपथ भी राष्ट्रपति ही दिलाता है।
राज्यसभा में ऐसे होती है वोटिंग
राज्यसभा चुनाव में विधायक हर सीट के लिए अलग-अलग वोट नहीं डाल सकते हैं। वोटिंग के समय हर विधायक को एक सूची दी जाती है, जिसमें उसे राज्यसभा प्रत्याशियों के लिए अपनी पहली पसंद, दूसरी पसंद, तीसरी पसंद आदि लिखनी होती है। इसके बाद एक फॉर्मूले की मदद से तय किया जाता है कि कौन सा प्रत्याशी जीता। किसी प्रत्याशी को राज्यसभा सीट जीतने के लिए कितने विधायकों का वोट चाहिए, इसके लिए राज्य की कुल विधानसभा सीटों में जितनी सीटों पर राज्यसभा चुनाव होना है उससे एक अधिक से भाग देते हैं और जो फल आता है उसमें एक जोड़ देते हैं।
उदाहरण से समझिए वोटिंग का फॉर्मूला
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