EPFO का PF पर हाई रिटर्न एक बड़ा रहस्य! जानिए दरों में कटौती कितनी सही कितनी गलत..

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EPFO का PF पर हाई रिटर्न एक बड़ा रहस्य! जानिए दरों में कटौती कितनी सही कितनी गलत..

EPFO का PF पर हाई रिटर्न एक बड़ा रहस्य! जानिए दरों में कटौती कितनी सही कितनी गलत..

नई दिल्ली: हर महीने अपने वेतन (Salary) का एक हिस्सा बचत के रूप में पीएफ (PF) में जमा करवाने वाले लोगों को झटका लगा है। देश में ऐसे कर्मचारियों की संख्या करीब छह करोड़ है। सरकार ने इन लोगों की पीएफ जमा पर ब्याज दर (Interest Rate on PF) को 8.5 फीसद से घटाकर 8.1 फीसद कर दिया है। हालांकि, इसके बावजूद पीएफ अभी भी सबसे अधिक रिटर्न देने वाले सुरक्षित निवेश विकल्पों (Safe Investment Options) में से एक है। यहां एक सवाल जो अधिकतर लोगों के मन में उठ सकता है, वह यह है कि आखिर सरकार को कर्मचारियों की भविष्य निधि के ब्याज पर कैंची चलाने की क्या जरूरत आन पड़ी। आइए थोड़ा विस्तार से समझते हैं।

ईपीएफओ के पास है 16 लाख करोड़ का कॉर्पस
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) देश का सबसे बड़ा सेवानिवृत्ति कोष प्रदाता (Retirement Corpus Provider) है। इसके पास करीब 16 लाख करोड़ रुपये का कॉर्पस है। ईपीएफओ की स्थापना साल 1952 में हुई थी। कई सारे कर्मचारी हर महीने अपनी बेसिक सैलरी और डीए का 12 फीसद अपने ईपीएफ खाते ( EPF Account) में डालते हैं। कर्मचारी के नियोक्ता द्वारा भी इतना ही योगदान ईपीएफ खाते में किया जाता है। नियोक्ता के योगदान का एक हिस्सा कर्मचारी पेंशन स्कीम (EPS) में भी जाता है।

पिछले दो वर्षों से नहीं हुआ था बदलाव
सरकार ने पिछले दो वर्षों से पीएफ पर ब्याज दरों को बरकरार रखा था। जबकि महामारी के दौर में हर जगह जमा पर ब्याज दरें घट रही थीं। रेपो रेट (Repo Rate) में गिरावट के साथ ही बैंकों ने जमाओं पर रिटर्न काफी कम कर दिया था। वित्त वर्ष 2020 और 2021 में ईपीएफ पर ब्याज दर 8.5 फीसद थी। कई वर्षों की न्यूनतम ब्याज दर के बावजूद यह अपने समकक्ष निवेश विकल्पों की तुलना में काफी अधिक थी। अन्य निवेश विकल्पों की बात करें तो एफडी पर 5 से 6 फीसद और पीपीएफ (PPF) जैसी स्मॉल सेविंग स्कीम्स पर 7 से 8 फीसद ब्याज दर की पेशकश की जा रही थी।

निवेश का बेहतर विकल्प है ईपीएफ
ईपीएफ स्कीम आम तो आम-गुठलियों के भी दाम जैसी योजना है। यहां ब्याज पर टैक्स में छूट मिल रही है और प्री-टैक्स रिटर्न 12 फीसद तक जा सकता है। इस तरह यहां रिटर्न सुरक्षित तो है ही, इक्विटी जैसा उच्च भी है। साथ ही निवेशक यहां डेट में निवेश जैसा आनंद ले सकते हैं। अब किसी को और क्या चाहिए?

ईपीएफओ कैसे दे देता है उच्च रिटर्न?
लेकिन यहां सवाल यह है कि ईपीएफओ (EPFO) के पास आखिर इतना पैसा आता कहां से है कि बिना किसी जोखिम के निवेशक को बढ़िया रिटर्न दे देता है। इसका सीधा सा जवाब यह है कि ईपीएफओ भले ही निविशकों को सुरक्षित रिटर्न दे रहा हो, लेकिन खुद काफी जोखिम ले रहा है। हाल ही में मार्च 2020 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में ईपीएफओ के लिए तब मुश्किल खड़ी हो गई थी, जब साल की शुरुआत में शेयर बाजार काफी गिर गया था। हालांकि, साल के आखिरी हिस्से में बाजार में आई रिकवरी ने बात संभाल ली और इपीएफओ पूरा 8.5 फीसद रिटर्न निवेशकों को एक साथ क्रेडिट कर पाया।

90 फीसद से अधिक निवेश डेट में

ईपीएफओ के कॉर्पस का 90 फीसद से अधिक डेट इन्वेस्टमेंट्स (Debt investments) में है। यह अधिकतर सरकारी इंस्ट्रूमेंट्स में है। यहां निवेश तो काफी सुरक्षित होता है, लेकिन रिटर्न कम है। ईटीएफ (ETF) के जरिए इक्किटी में किया गया निवेश ही ईपीएफओ के ओवरऑल रिटर्न को सुधारता है। हालांकि, 2015-16 में इस निवेश को 5 फीसद बढ़ाकर 15 फीसद तक करने का फैसला लिया गया था।

क्या कहती है 2021 की वार्षिक रिपोर्ट
अगर हम 31 मार्च 2021 को ईपीएफओ के कॉर्पस की बात करें, तो ईपीएफओ का करीब 92 फीसद कॉर्पस डेट इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश किया गया था। संगठन द्वारा जारी वर्ष 2021 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, ईपीएफओ ने केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों, राज्य विकास ऋण और पीएसयू के जरिए डेट इंस्ट्रूमेंट्स में 14,46,321 करोड़ रुपये और इक्विटी ईटीएफ्स में 1,22,986 करोड़ रुपये निवेश किये हुए थे। इस तरत ईपीएफओ का कुल निवेश 15,69,307 करोड़ रुपये था।

डेट इन्वेस्टमेंट पर कम रिटर्न चिंता का विषय

ईपीएफओ को डेट इन्वेस्टमेंट पर कम रिटर्न मिलना चिंता का एक प्रमुख कारण है। ईपीएफओ लगातार उच्च ब्याज दर दे रहा है, जबकि उसे डेट में निवेश से कम रिटर्न मिलता है। वित्त वर्ष 2020 में ईपीएफओ को डेट इन्वेस्टमेंट से करीब 7.5 फीसद का रिटर्न मिला है। वहीं, वित्त वर्ष 2021 में यह रिटर्न 6.87 फीसद रहा है। यह रिटर्न ईपीएफओ द्वारा निवेशकों को दिये गए 8.5 फीसद के ब्याज से काफी कम है।

स्वयं को मिले रिटर्न से अधिक ब्याज दे रहा ईपीएफओ

अगर हम पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े देखें तो ईपीएफओ के पोर्टफोलियो मैनेजर्स ने जितना रिटर्न लाकर दिया है, उससे अधिक की पेशकश संगठन ने कर्मचारियों से की है। आइए ईपीएफओ की वार्षिक रिपोर्ट में बताए गए कुछ आंकड़ों पर नजर डालते हैं।

वर्ष ईपीएफ राशि पर ब्याज दर ईपीएफओ के पोर्टफोलियो मैनेजर्स द्वारा लाया गया रिटर्न
2015-2016 8.80% 8.35% (जुलाई 2015 से मार्च 2016 के दौरान)
2016-2017 8.65% 8.02 (जुलाई 2015 से मार्च 2017)
2017-2018 8.55% 7.96 (जुलाई 2015 से मार्च 2018)
2018-2019 8.65% 8.55%
2019-2020 8.50% करीब 7.5%
2020-2021 8.50% 6.87%

बेचनी पड़ी इक्विटी ईटीएफ यूनिट्स
ब्याज दरों व रिटर्न के बीच के इस अंतर को भरने के लिए ईपीएफओ को 2020 में अपना कुछ इक्विटी ईटीएफ निवेश बेचना पड़ा है। हालांकि ब्याज के भुगतान के लिए इक्विटी बेचना कोई गलत नहीं है, लेकिन कितनी इक्विटी बेची, इसका कोई आंकड़ा नहीं है। ईपीएफ को इक्विटी में निवेश से कितना फायदा हुआ, यह भी स्पष्ट नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि ब्याज दर के अंतर को पूरा करने के लिए क्या ईटीएफ यूनिट्स की सेलिंग पर्याप्त थी या ईपीएफओ को कर्मचारियों के नियमित योगदान में से भी कुछ हिस्सा लेना पड़ा।

अंडरफंडेड होने का डर
लगातार उच्च ब्याज दरों की पेशकश से ईपीएफओ के अंडरफंडेड होने का डर भी पैदा हो गया था। अगर ईपीएफओ सरकार समर्थित नहीं हो, तो इस तरह के लेनदेन को पोंजी स्कीम भी माना जा सकता है। लेकिन ईपीएफओ कोई पोंजी स्कीम नहीं है। यह भारत में करोड़ों कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है। ऐसे में ईपीएफओ का लंबे समय तक जिंदा रहना जरूरी है। इसमें अगर कोई रोड़ा हो सकता है, तो वह उच्च ब्याज दरों की भरपाई के लिए लगातार इक्विटी ईटीएफ की सेलिंग है।

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