लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान की भरपाई 12 घंटे काम करने से होगी?

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कोरोना वायरस की महामारी को रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन के सख्त निर्देश जारी कर दिए गए थे। जहां सरकार की तरफ से यह अपील की गई थी कि नौकरी करने वाले कर्मचारी की तरफ ऑफिस मालिकों को सहानुभूति दिखाते हुए आपने कर्मचारियों की सैलरी न काटें और उन्हें जॉब से न निकालने की अपील राज्य सरकार के साथ -साथ केंद्र सरकार द्वारा भी की गई थी, लेकिन उसके बाद भी दुनियाभर में करोड़ों लोगों की नौकरियां छिन चुकी है और लोग खाने के लिए भी तरस रहे हैं. भारत में लॉकडाउन का तीसरा दौर चालू है. तीसरे चरण में सरकार ने कुछ नियमों के साथ निजी कंपनियों और फैक्ट्रियों को खोलने के लिए निर्देश जारी किए हैं, लेकिन समस्याएं अब भी कई हैं। कोरोना वायरस के कारण भारत की अर्थवस्था को बड़ा धका पहुंचा है।

इस बीच इनफ़ोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने काम के घंटे बढ़ाने का सुझाव दिया. इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि हफ़्ते में छह दिन काम कराया जाए और सोशल डिस्टेंसिंग के लिए तीन शिफ़्टों में काम शुरू किया जाए। नारायण मूर्ति ने काम के घंटे बढ़ाकर एक हफ़्ते में 60 घंटे करने का भी सुझाव दिया है। लोग इस सुझाव की बड़े स्तर पर आलोचना कर रहे है।

जानकारों के मुताबिक कंपनी अगर इस सुझाब पर विचार कर रही है तो कोरोना महामारी और लॉकडाउन का बहाना देकर काम के घंटे बढ़ाना कामगारों के अधिकारों के ख़िलाफ़ होगा और यह बेशक तोर पर कर्मचारी के साथ शोषण है। खबर यह भी सामने आ रही है की अगर ऐसा होता है तो उसका सबसे बुरा असर असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों और मज़दूर वर्ग पर पड़ेगा, जो कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं या दैनिक मज़दूरी करते हैं. इसी के साथ छोटी कंपनी में काम करने वाले कर्मचारी जो अपनी मज़बूरी के कारण कम वेतन में अधिक काम कर रहे है उनके साथ भी ऐसे नियम लागु होने के बाद बड़े स्तर पर शोषण होने की संभावना है, जो किसी भी लिहाजे से वाजिब नहीं है।

दुनियाभर में काम के घंटों का सामान्य मानक 8 घंटे तय है. दुनिया के कई देशों में कंपनियों में 5 Days वर्किंग (हफ़्ते में पांच दिन काम) यानी हफ़्ते में 40 घंटे काम करने का नियम लागू है और अतिरिक्त घंटे (ओवर टाइम) काम करने पर उनको पैसा दिया जाता है।

नारायण मूर्ति के सुझावों पर सवाल उठाते हुए ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की महासचिव अमरजीत कौर कहती हैं, ”कम वर्कफ़ोर्स का हवाला देकर काम के घंटे बढ़ाना बिल्कुल सही नहीं है. इससे कामगारों पर शारीरिक और मानसिक दबाव बढ़ेगा साथ ही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी बढ़ेंगी. हम चाहते हैं कि फिजिकल डिस्टेंसिंग को अपनाते हुए काम कराया जाए या फिर शिफ़्टों में काम कराया जाए. लेकिन काम के घंटे बढ़ाकर लोगों का शोषण करना सही नहीं है.’

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अगर देश में ऐसा कोई नियम आता भी है तो उसे एक तरफ़ा न होकर कंपनी कर्मचारी दोनों के पक्ष में होना चाहिए, अगर काम करने के घंटे बढ़ाए भी जाते है तो कंपनी को उसके लिए अपने कर्मचारियों को उपयुक्त वेतन दे, कोरोना की महामारी के कारण देशभर की बड़े और लघु उद्योगों के साथ साथ बड़े स्तर नौकरीपेशियो को मार झेलनी पड़ी है, जो इस महामारी के कारन अपनी नौकरी से निकाल दिए गए है उनके भी परिवार है, सरकार को इस विषय पर भी गंभीर चिंतन करने की आवश्यकता है। अगर ऐसा कोई नियम लागू होता भी है तो कर्मचारी का मासिक तोर पर सीधे शोषण होगा और वो ज्यादा प्रोडक्टिविटी देने में सक्षम नहीं होंगे जो कंपनी के लिए भी नुकसान दायक हो सकता , इस तरह से अर्थवयस्था को पहुंची नुकसान की भरपाई नहीं हो पायेगी।