पहले ये था फिल्म ‘शोले’ का नाम, बाद में इसलिए बदला गया टाइटल

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पहले ये था फिल्म ‘शोले’ का नाम, बाद में इसलिए बदला गया टाइटल

नई दिल्ली: 45 साल पहले यानी 1975 में 15 अगस्त को एक कल्ट फिल्म रिलीज हुई थी. बाद के सालों में उस फिल्म को 21वीं सदी की बेहतरीन फिल्म का दर्जा मिला. शेखर कपूर जैसे दिग्गज निर्देशक ने यहां तक कहा कि हिंदी फिल्मों के सफर को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है, ‘शोले (Sholay)’ से पहले आई फिल्में और ‘शोले’ के बाद आई फिल्में. फिल्म ‘शोले’ से जुड़े यूं तो कई हजार किस्से और किंवदंतियां हैं. इनमें से कुछ सही हैं तो कुछ फेक. वैसे जितने लोगों ने यह फिल्म थियेटर में देखी है, उससे सात सौ गुना ज्यादा लोग टीवी पर देख चुके हैं. नई पीढ़ी भी इस फिल्म के सभी अहम किरदारों जैसे वीरू, जय, ठाकुर, गब्बर सिंह, सांबा, बसंती, सूरमा भोपाली से परिचित हैं.

क्या था इस फिल्म का पहले नाम
साल 1973 की बात है. सलीम-जावेद फिल्म स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर मशहूर हो चुके थे. वे दोनों कुछ समय तक सिप्पी फिल्म के राइटिंग डिपार्टमेंट में साथ में नौकरी करते थे, महीने में 750 रुपए पगार पर. सलीम और जावेद मिलकर उनके लिए दो बड़ी फिल्में ‘अंदाज’ और ‘सीता और गीता’ लिख चुके थे. उन दोनों को लगता था के उन्हें कम पैसे मिलते हैं. एक दिन दोनों ने नौकरी छोड़ दी और साथ में एक जोड़ी की तरह फिल्म लिखने का फैसला किया. उनकी लिखी फिल्म ‘जंजीर’ की शूटिंग शुरू हो चुकी थी. उनके दिमाग में सैंकडों आइडिया थे और कुछ बनी-बनाई स्क्रिप्ट.

तैयार स्क्रिप्ट थी मजबूर फिल्म की, आइडिया था फिल्म ‘अंगारे’ का. वे दोनों रमेश सिप्पी के पिता जीपी सिप्पी को अपना स्क्रिप्ट सुनाने उनके ऑफिस पहुंचे. जीपी सिप्पी को ‘मजबूर’ की कहानी पसंद आई.सबसे अच्छी बात थी कि उसका स्क्रिप्ट तैयार था. पर उन्होंने कहा कि इस समय वे कुछ बड़ा काम करना चाहते हैं. 70 एमएम की शाहकार फिल्म बनाना चाहते हैं. सलीम ने चार लाइन में लिखी ‘अंगारे’ की कहानी सुना दी. इस कहानी के ज्यादातर किरदार उन्होंने अपनी असली जिंदगी से लिए थे. सलीम के पिता इंदौर में पुलिस में काम करते थे. सलीम ने पुलिसवालों की जिंदगी और अपराधियों को करीब से देखा था. वीरू और जय उनके क्लासमेट का नाम था. ठाकुर का किरदार उन्होंने अपने ससुर (पत्नी सलमा के पिता) पर बेस किया. उनके पापा उस समय के एक डाकू की कहानी बताते थे, जिसका उन दिनों आतंक था. गब्बर सिंह नाम का डाकू अपने दुश्मनों के कान और नाक काट लेता था. इस पर बेस थी ‘अंगारे’ की कहानी. जीपी सिप्पी को यह चार लाइन की कहानी पसंद आ गई. उन्होंने फौरन कह दिया कि वे इस पर फिल्म बनाएंगे. उन्होंने एडवांस भी दे दिया.

ठाकुर के रोल के लिए पहली पसंद थे दिलीप साहब
जैसे ही सिप्पी साहब से प्रोजेक्ट ओके हुआ, सलीम दिलीप कुमार से मिलने उनके घर पहुंचे. दिलीप कुमार को कहानी पसंद तो आई, पर ठाकुर का रोल नहीं जंचा. सलीम बहुत दुखी हो गए. जावेद ने कहा कि ‘जंजीर’ में प्राण बहुत अच्छा रोल कर रहे हैं. उन्हें ठाकुर का रोल देना चाहिए. सलीम को ‘जंजीर’ वाले अमिताभ जय के रोल के लिए जंच गए. वीरू के रोल के लिए शत्रुघ्न सिन्हा का नाम प्रपोज हुआ. अमिताभ, जया और हेमा मालिनी को साइन करने के बाद सिप्पी ठाकुर की भूमिका के लिए धर्मेंद्र के पास पहुंचे. जब धर्मेंद्र को पता चला कि फिल्म में वीरू की जोड़ी बसंती के साथ है तो उन्होंने कहा कि वे ठाकुर का नहीं, वीरू का रोल करेंगे. बाद में सिप्पी ने ठाकुर के रोल के लिए संजीव कुमार को साइन किया. डैनी डेंग्जोग्पा के मना करने के बाद गब्बर के रोल के लिए लगभग नए कलाकार अमजद खान का नाम फाइनल हुआ.

उन्हीं दिनों सिप्पी साहब को लगा कि इस फिल्म के लिए ‘अंगारे’ सही टाइटल नहीं है. सलीम-जावेद ने बहुत सोच कर नाम रखा ‘शोले’. यह टाइटल एक साथ सबको पसंद आ गया.

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