Donbas: यूक्रेन की ‘थाली’ है डोनबास…कट गया तो भुखमरी की कगार पर आ जाएगी पूरी दुनिया! h3>
कीव : यूरोप का पूर्वी हिस्सा इस वक्त तनाव से जूझ रहा है। दो महीनों से रूस और यूक्रेन के बीच जंग चल रही है। इस लड़ाई का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण ग्लोबल सप्लाई चेन है जो बुरी तरह प्रभावित हो चुकी है। अब यह युद्ध अपने दूसरे दौर में प्रवेश कर रहा है। रूसी सेना कीव से पीछे हट रही है और अब उसका टारगेट पूर्वी यूक्रेन का डोनबास इलाका है। वह इस क्षेत्र पर कब्जा करके इसे क्रीमिया से जोड़ना चाहती है, जिस पर पहले ही 2014 में रूस कब्जा कर चुका है। लेकिन अगर डोनबास पर रूस का कब्जा होता है तो यह पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक बात होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन को उसके सबसे उपजाऊ इलाके और प्रमुख निर्यात केंद्र से काटने से वैश्विक खाद्य निर्यात पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनियाभर में खाद्य वस्तुओं के दामों को बढ़ा दिया है जो इस युद्ध के वैश्विक प्रभावों में सबसे प्रमुख है। अह रूस का फोकस पूर्वी यूक्रेन के सैन्य अभियान पर है। डोनबास में सैनिकों की संख्या बढ़ रही है और पुतिन यूक्रेन के बंदरगाह शहर मारियुपोल पर ‘जीत’ का दावा कर चुके हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यूक्रेनी बंदरगाहों और बड़े पैमाने पर उपजाऊ भूमि पर रूस का कब्जा यूक्रेन के खाद्य निर्यात पर दीर्घकालिक असर डालेगा जो पूरी दुनिया में महसूस किया जाएगा। डोनबास ‘यूक्रेन की थाली’ है जहां से खाद्य वस्तुएं पूरी दुनिया में पहुंचती हैं।
यूक्रेन की फूड सप्लाई के बिना कई देशों में आ सकती है भुखमरी
यूक्रेनियन एग्रीबिजनेस क्लब के डायरेक्टर रोमन स्लेस्टोन ने कहा कि इस गैप को भरने के लिए कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है। यूक्रेन की फूड सप्लाई के बिना कई देशों में भुखमरी, भूख से दंगे और पलायन का खतरा पैदा हो जाएगा। 2021 में यूक्रेन बाजार में 10 फीसदी हिस्सेदारी के साथ गेहूं निर्यात करने वाला छठा सबसे बड़ा देश था। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यूक्रेन धान और सूरजमुखी के बीज निर्यात करने वाले दुनिया के प्रमुख देशों में है।
अफ्रीका में हर तीसरी रोटी यूक्रेनी गेहूं की
ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक अफ्रीका और मिडिल ईस्ट में खाई जाने वाली हर दूसरी से तीसरी रोटी यूक्रेनी गेहूं से बनी होती है। 2021 में 47 देशों में भूख का स्तर बेहद उच्च दर्ज किया गया था। अनुमान है कि यूक्रेन का युद्ध 2022 में इस आंकड़े को 60 तक पहुंचा सकता है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन इस युद्ध को खत्म करने के लिए अपनी पूर्वी हिस्से के क्षेत्र रूस को नहीं देगा। उन्होंने कहा कि देश कड़े प्रतिरोध की तैयारी कर रहा है।
बंदरगाहों पर भी मंडरा रहा कब्जे का खतरा
अल जजीरा की खबर के अनुसार अमेरिकी कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि अगर यूक्रेन लुहान्स्क, डोनेट्स्क, जारोरिज्का और खेर्सोंस्का को खो देता है तो यह अपने कृषि उत्पादन का लगभग एक-चौथाई हिस्सा गंवा देगा। विश्लेषकों ने कहा कि दक्षिण में बंदरगाहों पर कब्जा फसल की कमी को जन्म देगा जिसके परिणामस्वरूप खाद्य कीमतों में तेजी से बढ़ोत्तरी होगी। पिछले हफ्ते रूस ने कहा था कि उसने मारियुपोल पर कब्जा कर लिया है जो एक प्रमुख निर्यात केंद्र है। इसके अलावा खेरसॉन और माइकोलाइव पर भी कब्जा का दावा रूसी सेना की तरफ से किया जा रहा है।
Ukraine-Russia War: यूक्रेन के मारियुपोल को कब्जा कर, क्यों जीत का जश्न मना रहे हैं पुतिन ?
सड़क और रेल मार्ग से घट गया है निर्यात
काला सागर में तैनात रूसी युद्धपोत से डरकर कमर्शियल जहाजों ने अपना रास्ता बदल लिया है। किसान पश्चिमी सीमाओं तक माल की ढुलाई के लिए सड़क और रेल मार्ग अपना रहे हैं लेकिन इससे निर्यात की मात्रा बेहद कम हो गई है। स्लेस्टोन ने कहा कि सूरजमुखी के बीजों का निर्यात 15 से फीसदी तक घट गया है। वैश्विक बाजार के लिए यह मात्रा पर्याप्त नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन की इकोनॉमिस्ट मोनिका टोथोवा ने अल जजीरा को बताया कि युद्ध से पहले 90 फीसदी चीजों का निर्यात काला सागर और आज़ोव सागर में बंदरगाहों के माध्यम से हो रहा था। अगर यूक्रेन पानी से निर्यात करने में सक्षम नहीं हुआ तो वैश्विक बाजार की कीमतों पर दबाव बढ़ेगा।
यूक्रेन पर रूसी हमले ने दुनियाभर में खाद्य वस्तुओं के दामों को बढ़ा दिया है जो इस युद्ध के वैश्विक प्रभावों में सबसे प्रमुख है। अह रूस का फोकस पूर्वी यूक्रेन के सैन्य अभियान पर है। डोनबास में सैनिकों की संख्या बढ़ रही है और पुतिन यूक्रेन के बंदरगाह शहर मारियुपोल पर ‘जीत’ का दावा कर चुके हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यूक्रेनी बंदरगाहों और बड़े पैमाने पर उपजाऊ भूमि पर रूस का कब्जा यूक्रेन के खाद्य निर्यात पर दीर्घकालिक असर डालेगा जो पूरी दुनिया में महसूस किया जाएगा। डोनबास ‘यूक्रेन की थाली’ है जहां से खाद्य वस्तुएं पूरी दुनिया में पहुंचती हैं।
यूक्रेन की फूड सप्लाई के बिना कई देशों में आ सकती है भुखमरी
यूक्रेनियन एग्रीबिजनेस क्लब के डायरेक्टर रोमन स्लेस्टोन ने कहा कि इस गैप को भरने के लिए कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है। यूक्रेन की फूड सप्लाई के बिना कई देशों में भुखमरी, भूख से दंगे और पलायन का खतरा पैदा हो जाएगा। 2021 में यूक्रेन बाजार में 10 फीसदी हिस्सेदारी के साथ गेहूं निर्यात करने वाला छठा सबसे बड़ा देश था। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यूक्रेन धान और सूरजमुखी के बीज निर्यात करने वाले दुनिया के प्रमुख देशों में है।
अफ्रीका में हर तीसरी रोटी यूक्रेनी गेहूं की
ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मुताबिक अफ्रीका और मिडिल ईस्ट में खाई जाने वाली हर दूसरी से तीसरी रोटी यूक्रेनी गेहूं से बनी होती है। 2021 में 47 देशों में भूख का स्तर बेहद उच्च दर्ज किया गया था। अनुमान है कि यूक्रेन का युद्ध 2022 में इस आंकड़े को 60 तक पहुंचा सकता है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन इस युद्ध को खत्म करने के लिए अपनी पूर्वी हिस्से के क्षेत्र रूस को नहीं देगा। उन्होंने कहा कि देश कड़े प्रतिरोध की तैयारी कर रहा है।
बंदरगाहों पर भी मंडरा रहा कब्जे का खतरा
अल जजीरा की खबर के अनुसार अमेरिकी कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि अगर यूक्रेन लुहान्स्क, डोनेट्स्क, जारोरिज्का और खेर्सोंस्का को खो देता है तो यह अपने कृषि उत्पादन का लगभग एक-चौथाई हिस्सा गंवा देगा। विश्लेषकों ने कहा कि दक्षिण में बंदरगाहों पर कब्जा फसल की कमी को जन्म देगा जिसके परिणामस्वरूप खाद्य कीमतों में तेजी से बढ़ोत्तरी होगी। पिछले हफ्ते रूस ने कहा था कि उसने मारियुपोल पर कब्जा कर लिया है जो एक प्रमुख निर्यात केंद्र है। इसके अलावा खेरसॉन और माइकोलाइव पर भी कब्जा का दावा रूसी सेना की तरफ से किया जा रहा है।
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सड़क और रेल मार्ग से घट गया है निर्यात
काला सागर में तैनात रूसी युद्धपोत से डरकर कमर्शियल जहाजों ने अपना रास्ता बदल लिया है। किसान पश्चिमी सीमाओं तक माल की ढुलाई के लिए सड़क और रेल मार्ग अपना रहे हैं लेकिन इससे निर्यात की मात्रा बेहद कम हो गई है। स्लेस्टोन ने कहा कि सूरजमुखी के बीजों का निर्यात 15 से फीसदी तक घट गया है। वैश्विक बाजार के लिए यह मात्रा पर्याप्त नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन की इकोनॉमिस्ट मोनिका टोथोवा ने अल जजीरा को बताया कि युद्ध से पहले 90 फीसदी चीजों का निर्यात काला सागर और आज़ोव सागर में बंदरगाहों के माध्यम से हो रहा था। अगर यूक्रेन पानी से निर्यात करने में सक्षम नहीं हुआ तो वैश्विक बाजार की कीमतों पर दबाव बढ़ेगा।