DME अधिग्रहण में गड़बड़ी केसः 2 पूर्व जिलाधिकारियों के फंसने से खौफ में हैं जूनियर अफसर और कर्मचारी h3>
गाजियाबादः दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे (डीएमई) की जमीन अधिग्रहण और फिर उसके मुआवजे में हुई गड़बड़ी के मामले में प्रदेश सरकार के निशाने पर तत्कालीन जिलाधिकारी निधि केसरवानी और विमल शर्मा के आने के बाद अब अधिग्रहण से जुड़े दूसरे अधिकारियों और कर्मचारियों को भी शासन का खौफ सताने लगा है। उन्हें इस बात का डर है कि कहीं इस मामले में उनकी भी संलिप्तता नजर आई तो उनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
डीएमई के लिए 2011-12 में करीब 71 हैक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की गई थी। 2013 में शासन की संस्तुति के बाद स्थानीय जिला प्रशासन ने मुआवजे की राशि तय कर दी थी। इसके बाद 2016 में कुछ किसानों ने तत्कालीन कमिश्नर से शिकायत की कि उन्हें जमीन लेने के एवज में मुआवजे की राशि नहीं मिली। इन शिकायतों के बाद तत्कालीन कमिश्नर प्रभात कुमार ने अधिग्रहण के जुड़ी फाइलों को मंगाकर बारीकी से जांच की थी। जिसमें पाया गया कि जमीन के मुआवजे की राशि तय होने के बाद कुछ अफसरों के परिवार के लोगों और करीबियों ने गैरकानूनी तरीके से जमीन सस्ते में खरीदी और फिर मुआवजे की राशि को बढ़वाकर करोड़ों रुपये का भुगतान ले लिया।
पूर्व डीएम की भूमिका पर उठे सवाल
जांच में तत्कालीन जिलाधिकारी विमल शर्मा और उनके बाद आईं निधि केसरवानी की भूमिका पर सवाल उठे थे। उस समय के एडीएम घनश्याम सिंह समेत कईयों के खिलाफ कार्रवाई की जबकि केसरवानी और विमल शर्मा के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की रिपोर्ट शासन को भेज दी थी। मुख्यमंत्री के स्तर से फिर फाइलों को खंगाला गया वर्तमान में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चल रही निधि केसरवानी के खिलाफ निलंबन की संस्तुति की गई है। वहीं, रिटायर हो चुके विमल शर्मा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
कानून के जानकारों से मांगी रिपोर्ट
सूत्र बताते हैं कि शासन इस मामले में कानून के जानकारों से रिपोर्ट मांगी है। जिसमें पूछा गया है कि इस प्रकरण में किस-किस स्तर के कर्मचारी और अधिकारी शामिल हो सकते हैं और उनके खिलाफ किस प्रकार की कार्रवाई हो सकती है। भूमि अधिग्रहण में अधिकारी से लेकर निचले स्तर के कर्मचारी शामिल होते हैं और उनके हस्ताक्षर भी कराए जाते हैं। ऐसे में वे अधिकारी और कर्मचारी घबराए हुए हैं। इसमें दो कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक कर्मचारी ने बताया कि कई कर्मचारियों से अधिकारियों ने दबाव देकर हस्ताक्षर कराए थे यदि वे फंसे तो वे कैसे साबित कर पाएंगे।
उत्तर प्रदेश की और खबर देखने के लिए यहाँ क्लिक करे – Uttar Pradesh News
पूर्व डीएम की भूमिका पर उठे सवाल
जांच में तत्कालीन जिलाधिकारी विमल शर्मा और उनके बाद आईं निधि केसरवानी की भूमिका पर सवाल उठे थे। उस समय के एडीएम घनश्याम सिंह समेत कईयों के खिलाफ कार्रवाई की जबकि केसरवानी और विमल शर्मा के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की रिपोर्ट शासन को भेज दी थी। मुख्यमंत्री के स्तर से फिर फाइलों को खंगाला गया वर्तमान में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चल रही निधि केसरवानी के खिलाफ निलंबन की संस्तुति की गई है। वहीं, रिटायर हो चुके विमल शर्मा के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
कानून के जानकारों से मांगी रिपोर्ट
सूत्र बताते हैं कि शासन इस मामले में कानून के जानकारों से रिपोर्ट मांगी है। जिसमें पूछा गया है कि इस प्रकरण में किस-किस स्तर के कर्मचारी और अधिकारी शामिल हो सकते हैं और उनके खिलाफ किस प्रकार की कार्रवाई हो सकती है। भूमि अधिग्रहण में अधिकारी से लेकर निचले स्तर के कर्मचारी शामिल होते हैं और उनके हस्ताक्षर भी कराए जाते हैं। ऐसे में वे अधिकारी और कर्मचारी घबराए हुए हैं। इसमें दो कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं। भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक कर्मचारी ने बताया कि कई कर्मचारियों से अधिकारियों ने दबाव देकर हस्ताक्षर कराए थे यदि वे फंसे तो वे कैसे साबित कर पाएंगे।