Delhi Temperature: दिल्ली में कहीं 45, तो कहीं 49 डिग्री क्यों आ जाता है तापमान, क्या रेकॉर्ड करने में ही झोल है?

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Delhi Temperature: दिल्ली में कहीं 45, तो कहीं 49 डिग्री क्यों आ जाता है तापमान, क्या रेकॉर्ड करने में ही झोल है?

Delhi Temperature: दिल्ली में कहीं 45, तो कहीं 49 डिग्री क्यों आ जाता है तापमान, क्या रेकॉर्ड करने में ही झोल है?

विशेष संवाददाता, नई दिल्लीः जलवायु परिवर्तन पर आधारित अधिकांश रिपोर्ट में राजधानी को बढ़ती गर्मी से निपटने के लिए अभी से तैयार रहने को कहा गया है। पिछले कुछ दशकों में राजधानी पर बढ़ती गर्मी का असर साफ महसूस भी हुआ है। लेकिन इसके बावजूद राजधानी गर्मी से निपटने के लिए अभी तक की दौड़ में पिछड़ती दिखाई दे रही है। एक्सपर्ट के अनुसार इसकी एक वजह राजधानी का बेस स्टेशन सफदरजंग होना भी है। जब भी राजधानी में कोई प्लान तैयार होता है तो उसमें यहां के तापमान को बेस स्टेशन के आधार पर तैयार किया जाता है। लेकिन हकीकत यह है कि राजधानी के करीब 80 प्रतिशत लोग इस समय सफदरजंग से अधिक गर्मी झेल रहे हैं।

आईएमडी के पिछले कुछ हफ्तों के डाटा बता रहे हैं कि बेस स्टेशन सफदरजंग के मुकाबले राजधानी के करीब 10 से 11 स्टेशनों में कहीं अधिक तापमान रहता है। तापमान में कई बार दो से पांच डिग्री तक का अंतर भी दिखाई देता है। ऐसे में सफदरजंग के आधार पर प्लानिंग करना और उसे बेस स्टेशन मानना सही नहीं है।

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इस सीजन के सबसे गर्म दिन की बात करें तो बीते रविवार को सफदरजंग का तापमान 45.6 डिग्री दर्ज हुआ। लेकिन इसी दिन नजफगढ़ ओर मंगेशपुर का अधिकतम तापमान 49 डिग्री के ऊपर दर्ज किया गया। पूरी दिल्ली में सिर्फ मयूर विहार का तापमान उक्त दिन सफदरजंग से कम रहा। इसके बाद सोमवार को भी तापमान में कुछ इसी तरह का अंतर दिखा। मयूर विहार को छोड़ दें तो सभी जगह पर तापमान सफदरजंग से अधिक दर्ज किया गया। सोमवार को सफदरजंग का तापमान 42.4 डिग्री रहा लेकिन वहीं पांच स्टेशनों का तापमान 44 डिग्री से भी अधिक रहा।

मौसम विभाग के अधिकारी के अनुसार सफदरजंग स्टेशन में तापमान मरकरी थर्मामीटर से मापा जाता है। इसके रिजल्ट में वेरिएशन की संभावना काफी कम रहती है। राजधानी में ज्यादातर मौसम के स्टेशन ऑटोमेटिक हैं। इन स्टेशन में बाई-मेटल का इस्तेमाल होता है। जिसमें एरर की अधिक संभावना है। वहीं सफदरजंग और पालम राजधानी के सबसे पुराने स्टेशनों में शामिल हैं। यहां का पुराना डाटा भी मौसम विभाग के पास उपलब्ध है। जिसके आधार पर तापमान के बढ़ने, जलवायु परिवर्तन के असर और मौसम में हो रहे बदलावों का आकलन किया जा सकता है।

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गौरतलब है कि राजधानी के पांच मौसम स्टेशन मैन्युअल हैं। इनमें सफदरजंग, पालम, लोदी रोड, रिज और आया नगर शामिल हैं। यहां पर मौसम विभाग के अधिकारी विभिन्न उपकरणों की मदद से रीडिंग लेते हैं। लेकिन वहीं अन्य स्टेशन नजफगढ़, मयूर विहार, स्पोर्ट्स कांप्लेक्स, मंगेशपुर, जाफरपुर और पीतमपुरा ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन हैं। इसमें तापमान व डाटा अपने आप रेकार्ड होता है। राजधानी में ऑटोमेटिक वेदर सिस्टम साल 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान लगाए गए थे।

स्काईमेट के वाइस प्रेजिडेंट महेश पलावत के अनुसार एक वेदर स्टेशन किसी भी शहर का बेस स्टेशन नहीं हो सकता। अब स्थितियां आ गई हैं कि जब अधिक से अधिक स्टेशनों के आधार पर पूरे शहर की एक तस्वीर सामने आए। इससे छोटे लेवल पर भी मौसम में हो रहे बदलावों के बारे में जानकारी मिल सकेगी और एक्सट्रीम वेदर के लिए प्लानिंग करने में मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि सफदरजंग का स्टेशन काफी हरे भरे हिस्से में बना हुआ है। लेकिन यदि अब राजधानी का जिक्र करें तो यहां 70 प्रतिशत आबादी ऐसी जगहों पर है जहां हरियाली नहीं है और वह पूरी तरह कंकरीट का जंगल बन चुका है। यही वजह है कि इन इलाकों में तापमान सफदरजंग की तुलना में अधिक रहते हैं। इन लोगों पर गर्मी के बढ़ते प्रभाव का सबसे ज्यादा असर है।

वहीं ग्रीनपीस के कैंपेन मैनेजर अविनाश चंचल के अनुसार राजधानी में जब इतने स्टेशन लगाए गए हैं तो प्लानिंग भी उसी हिसाब से होनी चाहिए। कम से कम आठ से 9 स्टेशनों के एवरेज के आधार पर राजधानी के लिए क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान तैयार होना चाहिए। अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को भी इसी हिसाब से तैयार करना चाहिए। जिसमें सिर्फ सफदरजंग का आकलन नहीं बल्कि अन्य स्टेशन भी शामिल हों।

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