Congress Chintan Shivir: कांग्रेस के चिंतन शिविर में गांधी फैमिली के 400 वफादार, क्या झीलों के शहर में धुलेगी कांग्रेस की चिंता?

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Congress Chintan Shivir: कांग्रेस के चिंतन शिविर में गांधी फैमिली के 400 वफादार, क्या झीलों के शहर में धुलेगी कांग्रेस की चिंता?

Congress Chintan Shivir: कांग्रेस के चिंतन शिविर में गांधी फैमिली के 400 वफादार, क्या झीलों के शहर में धुलेगी कांग्रेस की चिंता?

उदयपुर: पूरे गाजे-बाजे के साथ कांग्रेस पार्टी राजस्थान के झीलों के शहर उदयपुर में चिंतन शिविर में जुट गई है। इस बैठक में पार्टी को मजबूत करने से लेकर बदलाव को लेकर चर्चा होगी। कांग्रेस को खस्ताहाल स्थिति से निकालने के लिए टॉप लीडरशिप तीन दिन मंथन करेंगे। इस बैठक के जरिए कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं के साथ-साथ विपक्ष को भी बड़ा संदेश देने की कोशिश करेगी। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या झीलों के शहर में आयोजित इस बैठक में कांग्रेस की चिंता चिंतन शिविर से दूर होगी? पार्टी के अंदर विरोध से जूझ रही गांधी फैमिली के लिए ये शिविर इतना आसान नहीं होने वाला है। उसे बीजेपी के साथ-साथ पार्टी के भीतर के विरोध से भी लड़ना होगा।

कांग्रेस के 400 वफादारों से बदलेगी तस्वीर?

कांग्रेस के 400 पुराने नेता उदयपुर पहुंच चुके हैं। माना जा रहा है कांग्रेस के ये पुराने दिग्गज अपनी पुरानी धुन से पार्टी को आगे बढ़ाने की रणनीति बताएंगे। ऐसे में चिंतन में आए चुने हुए नेताओं से कांग्रेस लीडरशिप में बदलाव की उम्मीद करना बेमानी होगी। ये ऐसे नेता हैं जो लीडरशिप के लिए जयकारा लगाएंगे। क्योंकि इसके लिए उन्हें पार्टी का टिकट और पद मिलना तय होगा। यहां तक कि वे ये भी कहेंगे कि गांधी-वाड्रा लीडरशिप का कोई विकल्प नहीं है। इस शिविर की टाइमिंग भी काफी अहम है। पार्टी संगठन का चुनाव कुछ महीने बाद होने हैं। अगस्त-सितंबर में कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना जाना है। नया अध्यक्ष अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी ने नए महासचिवों और कांग्रेस वर्किंग कमिटी के साथ चार्ज संभालेंगे।
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टाइमिंग की स्टोरी समझिए
दरअसल, कांग्रेस लीडरशिप का चिंतिन शिविर को संगठन चुनाव के खत्म होने से पहले कराने के तीन कारण हैं। पहला, मार्च में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में 0-5 से पराजित होने के बाद पार्टी रणनीतिक रूप से सेल्फ डिफेंस की तैयारी करना है। इसका मकसद पार्टी में बदलाव करने की मांग करने वालों और क्षेत्रीय दलों को ये बताना है कि कांग्रेस आगे बढ़ने को लेकर काफी गंभीर है।

बिना विरोध सब सुलझा लेगी कांग्रेस!
दूसरा, कांग्रेस 400 वफादार नेताओं के साथ भविष्य के प्लान को आराम से अनुमोदन करवा सकती है। यहां बिना किसी विरोध के कांग्रेस अपने प्लान को आगे बढ़ा सकती है। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव से लेकर CWC की बैठक पर विरोध होने की उम्मीद नहीं है। तीसरा, उदयपुर एक्शन प्लान के जरिए कांग्रेस 2024 के मिशन की तैयारी जुटने का प्लान बनाएगी। इस बैठक के जरिए पार्टी में चल गुटबाजी से लेकर पांच विधानसभा चुनावों में हार पर मंथन की मांगों को दरकिनार कर दिया जाएगा।
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गांधी फैमिली के करिश्मा का क्या होगा?
देश में इस वक्त महंगाई और रोजर्मरा की चीजों के बढ़ते दामों से लोग हलकान हैं। इस तरह के मौके किसी भी विपक्षी दलों के लिए सत्ता पक्ष को घेरने का एक बड़ा मौका होता है। लेकिन इन सबके बाद भी असलियत ये है कि कांग्रेस जबतक अपने कोर मुद्दे का हल नहीं निकालती तबतक वह इसपर मजबूती के साथ आगे नहीं बढ़ सकती है। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी से टकराने के लिए कांग्रेस न केवल खुद आगे बढ़ना होगा बल्कि विपक्षी दलों के साथ साझेदारी को लेकर भी देखना होगा। कांग्रेस को अपनी लीडरशिप पर उठे भंवर पर गंभीर चिंतन करने की जरूरत है। 2014 चुनावों से गांधी-वाड्रा लीडरशिप का करिश्मा धूमिल ही हुआ है।

पार्टी को नुकसान, पर बदला कुछ नहीं
कांग्रेस में पिछले तीन साल से कोई चुनी हुई लीडरशिप नहीं है क्योंकि राहुल गांधी ने 2019 लोकसभा चुनाव में हार के बाद अध्यक्ष पद छोड़ दिया था। इसके बाद से भले ही कांग्रेस को नुकसान हुआ हो लेकिन यथास्थिति ही बनाए रखी गई है।

तो बस दिखावा है चिंतन शिविर?
इस बैठक में एकबार बड़े मुद्दे को किनारे लगा दिया जाएगा तो बाकी सब औपचारिकता भर रह जाएगी। बैठक में संगठन में बदलाव और चुनाव को लेकर रटी-रटाई बातें आएंगी। परिवारवाद राजनीति के पर करतने की बातें होंगी। देश युवाओं से जुड़ने पर जोर, आदि, आदि। कुछ ऐसा ही कांग्रेस के पिछले तीन चिंतन शिविर में हो चुका है।

चौथा चिंतिन शिविर, कांग्रेस के लिए मुश्किलें और भी हैं
उदयपुर का चिंतन शिविर थोड़ा अलग है। पंचमढ़ी में 1998, शिमला में 2003 और जयपुर में 2013 में हुए चिंतिन शिविर में ये चर्चा हुई थी कि बीजेपी से कैसे मुकाबला किया जाए और कांग्रेस कैसे वापसी करे। उदयपुर में मामला थोड़ा अलग है। यहां पार्टी के अंदर संगठनात्मक चुनाव का मुद्दा है। गांधी परिवार को पार्टी में बदलाव करने की मांग करने वालों से चुनौती मिल रही है। इस चिंतन शिविर में कांग्रेस के लिए सारी चीजें आसान हो सकती हैं लेकिन कांग्रेस सतरंगी मुश्किलों से कैसे सामना कर पाती है ये देखने वाला होगा।

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