CM गहलोत ने SC-ST वर्ग को साथ लाने के लिए खेला मास्टरस्ट्रोक, जानिए क्या है 1000 करोड़ के फंड का फार्मूला h3>
रामस्वरूप लामरोड़,जयपुर: प्रदेश सरकार की ओर से सौगातों को पिटारा खोलने का सिलसिला जारी है। वहीं विकास कार्यों में भी तेजी लाई जा रही है। अब राजस्थान में अनुसूचित जाति, जनजाति और आदिवासी क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सरकार विकास की गारंटी देने वाली है। इसके लिए राज्य सरकार ने बुधवार 23 मार्च को एससी-एसटी विकास निधि विधेयक विधानसभा में पारित किया गया। इस विधेयक के सर्वसम्मति से पारित होने के बाद यह कानून बन जाएगा और फिर अनुसूचित जाति-जनजाति और आदिवासी क्षेत्रों में विकास योजनाओं को धरातल पर लागू करना अनिवार्य हो जाएगा। सदन में बिल पेश करने के साथ ही सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए 500 करोड़ रुपए और अनुसूचित जनजाति के लिए 500 करोड़ रुपए कुल 1000 रुपए का फंड अलग से रखे जाने का प्रावधान किया गया है।
अफसरों की जिम्मेदारी तय नहीं, ऐसे में लाभ पर संदेह
राज्य सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए विधेयक लाकर करोड़ों लोगों को खुश तो कर दिया, लेकिन फिलहाल इसे धरातल पर लागू करना आसान नहीं है। आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए फंड बनाने की घोषणा के साथ कार्य करने की अनिवार्यता कर दी गई है, लेकिन अगर किसी सरकारी योजनाओं का लाभ आदिवासी समाज के लोगों तक नहीं पहुंच पाया तो विभागीय अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी।
फिलहाल संदेह बरकरार
इसके बारे में स्पष्ट नहीं किया गया है। यानी नए विधेयक के साथ ही अफसरों की जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। इस वजह से फिलहाल अगर यह विधेयक कानून बन भी जाएगा तो आदिवासी क्षेत्र के लोगों को इसका पूरा लाभ मिल पाएगा। इस पर संदेह बरकरार है।
वोट बैंक हासिल करने का फार्मूला तो नहीं!
आदिवासी क्षेत्रों की विकास योजनाओं में कार्य की आनिवार्यता का विधेयक पेश करने पर प्रदेश में सियासी चर्चाएं छिड़ गई है। लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक और मास्टर स्ट्रोक खेला है। आगामी वर्ष में होने वाले विधानसभा चुनावों के देखते हुए राज्य सरकार यह विधेयक लेकर आई है। चूंकि प्रदेश में 32 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति और जनजाति की है।
200 में से 59 सीटों पर अनुसूचित जाति और जनजाति की
प्रदेश की 200 में से 59 सीटों पर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का पूरा प्रभाव है। हालांकि एससी और एसटी समाज हमेशा से कांग्रेस का वोट बैंक रहा है लेकिन पिछले दिनों पांच राज्यों में हुए चुनावों में एससी-एसटी वोट बैंक टूट गया था। ऐसे में माना जा रहा है, इन वोटों को साधने के लिए गहलोत सरकार ने यह नया दांव खेला है।
राजस्थान के विधायक ने भरे सदन में बोला- हां हम कांग्रेस के गुलाम
अफसरों की जिम्मेदारी तय नहीं, ऐसे में लाभ पर संदेह
राज्य सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए विधेयक लाकर करोड़ों लोगों को खुश तो कर दिया, लेकिन फिलहाल इसे धरातल पर लागू करना आसान नहीं है। आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए फंड बनाने की घोषणा के साथ कार्य करने की अनिवार्यता कर दी गई है, लेकिन अगर किसी सरकारी योजनाओं का लाभ आदिवासी समाज के लोगों तक नहीं पहुंच पाया तो विभागीय अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी।
फिलहाल संदेह बरकरार
इसके बारे में स्पष्ट नहीं किया गया है। यानी नए विधेयक के साथ ही अफसरों की जिम्मेदारी तय नहीं की गई है। इस वजह से फिलहाल अगर यह विधेयक कानून बन भी जाएगा तो आदिवासी क्षेत्र के लोगों को इसका पूरा लाभ मिल पाएगा। इस पर संदेह बरकरार है।
वोट बैंक हासिल करने का फार्मूला तो नहीं!
आदिवासी क्षेत्रों की विकास योजनाओं में कार्य की आनिवार्यता का विधेयक पेश करने पर प्रदेश में सियासी चर्चाएं छिड़ गई है। लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक और मास्टर स्ट्रोक खेला है। आगामी वर्ष में होने वाले विधानसभा चुनावों के देखते हुए राज्य सरकार यह विधेयक लेकर आई है। चूंकि प्रदेश में 32 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति और जनजाति की है।
200 में से 59 सीटों पर अनुसूचित जाति और जनजाति की
प्रदेश की 200 में से 59 सीटों पर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का पूरा प्रभाव है। हालांकि एससी और एसटी समाज हमेशा से कांग्रेस का वोट बैंक रहा है लेकिन पिछले दिनों पांच राज्यों में हुए चुनावों में एससी-एसटी वोट बैंक टूट गया था। ऐसे में माना जा रहा है, इन वोटों को साधने के लिए गहलोत सरकार ने यह नया दांव खेला है।
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