Centre vs Delhi govt : एलजी या सीएम, दिल्ली में सर्विसेज किसके हाथ में हो, अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच तय करेगी h3>
नई दिल्ली : दिल्ली में सर्विसेज किसके कंट्रोल में हो इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बेंच ने संवैधानिक पीठ को रेफर कर दिया है। दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच सर्विसेज के कंट्रोल को लेकर विवाद है। अब संवैधानिक बेंच यह तय करेगी कि दिल्ली में सर्विसेज का कंट्रोल किसके हाथ में रहेगा। दिल्ली बनाम केंद्र मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सीजेआई एनवी रमण की अगुआई वाली बेंच के सामने केंद्र ने दलील दी थी कि मामले को संवैधानिक पीठ में रेफर किया जाना चाहिए। हालांकि, दिल्ली सरकार ने केंद्र की इस दलील का जोरदार विरोध किया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने ये कहते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया कि जो भी फैसला होगा वह जल्द होगा।
क्या है मामला?
दरअसल सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को जो फैसला दिया था उसमें दिल्ली में एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज किसके कंट्रोल में होगा इस मामले में दोनों जजों का मत अलग था। लिहाजा इस मामले में फैसले के लिए तीन जजों की बेंच का गठन करने के लिए मामले को चीफ जस्टिस को रेफर कर दिया गया था। चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने मामले में सुनवाई का फैसला किया था। इसी बीच केंद्र ने कहा कि इस मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया जाए।
एलजी को ज्यादा अधिकार देने वाले कानून को भी दिल्ली ने दी है चुनौती
दिल्ली सरकार ने एलजी को ज्यादा अधिकार दिए जाने के केंद्र सरकार के 2021 के कानून को भी चुनौती दी थी। वो मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने पेंडिंग है। शीर्ष अदालत उस याचिका पर भी सुनवाई कर रही है जिसमें दिल्ली सरकार ने एलजी को ज्यादा अधिकार दिए जाने वाले कानून को चुनौती दे रखी है। केंद्र सरकार ने उस कानून को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने जो फैसला दिया था उसके उलट यह कानून बनाया गया है जिसके तहत एलजी को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। याचिका में जीएनसीटीडी ऐक्ट (गवर्नमेंट ऑफ नैशनल कैपिटल टेरिटेरी ऑफ दिल्ली एमेंडमेंट ऐक्ट) 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। दिल्ली सरकार ने ऐक्ट की धारा-21, 24, 33 व 44 को निरस्त करने की मांग की है।
कोर्ट में केंद्र और दिल्ली सरकार की दलीलें
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सर्विसेज से संबंधित मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर करते हुए कहा कि इस मामले में लिमिटेड सवाल को रेफर किया गया है। इसके तहत सर्विसेज पर कंट्रोल किसका है इस मुद्दे को संवैधानिक बेंच देखेगी। दरअसल संवैधानिक बेंच ने जब अनुच्छेद-239 एए की व्याख्या की थी तब इस मुद्दे को नहीं देखी थी। इसलिए इस मुद्दे को संवैधानिक बेंच रेफर किया जा रहा है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि इस मामले को संवैधानिक बेंच रेफर किया जाना चाहिए ताकि संविधान के अनुच्छेद-239 एए के मामले में व्यापक व्याख्या हो सके। वहीं दिल्ली सरकार की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि तीन जज सुने या फिर पांच जज मामले की सुनवाई करें। सवाल ये नहीं है कि क्यों नहीं बल्कि सवाल यह है कि क्यों मामला रेफर हो? सिंघवी ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2018 में फैसला दिया था। अगर कोई संदेह है तो मौजूदा बेंच को देखना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल ने दलील रखी कि पिछले फैसले में संवैधानिक बेंच ने इस मामले में जो मुद्दा है उस पर कोई रोड मैप नहीं दिया था।
4 जुलाई 2018 का क्या था सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे अगर कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे उस पर अमल करेंगे यानी खुद कोई फैसला नहीं लेंगे। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने राजधानी दिल्ली में प्रशासन के लिए एक पैरामीटर तय किया है। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद-239 एए की व्याख्या की थी।
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दरअसल सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को जो फैसला दिया था उसमें दिल्ली में एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज किसके कंट्रोल में होगा इस मामले में दोनों जजों का मत अलग था। लिहाजा इस मामले में फैसले के लिए तीन जजों की बेंच का गठन करने के लिए मामले को चीफ जस्टिस को रेफर कर दिया गया था। चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने मामले में सुनवाई का फैसला किया था। इसी बीच केंद्र ने कहा कि इस मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर कर दिया जाए।
एलजी को ज्यादा अधिकार देने वाले कानून को भी दिल्ली ने दी है चुनौती
दिल्ली सरकार ने एलजी को ज्यादा अधिकार दिए जाने के केंद्र सरकार के 2021 के कानून को भी चुनौती दी थी। वो मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने पेंडिंग है। शीर्ष अदालत उस याचिका पर भी सुनवाई कर रही है जिसमें दिल्ली सरकार ने एलजी को ज्यादा अधिकार दिए जाने वाले कानून को चुनौती दे रखी है। केंद्र सरकार ने उस कानून को सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने जो फैसला दिया था उसके उलट यह कानून बनाया गया है जिसके तहत एलजी को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। याचिका में जीएनसीटीडी ऐक्ट (गवर्नमेंट ऑफ नैशनल कैपिटल टेरिटेरी ऑफ दिल्ली एमेंडमेंट ऐक्ट) 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। दिल्ली सरकार ने ऐक्ट की धारा-21, 24, 33 व 44 को निरस्त करने की मांग की है।
कोर्ट में केंद्र और दिल्ली सरकार की दलीलें
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सर्विसेज से संबंधित मामले को संवैधानिक बेंच को रेफर करते हुए कहा कि इस मामले में लिमिटेड सवाल को रेफर किया गया है। इसके तहत सर्विसेज पर कंट्रोल किसका है इस मुद्दे को संवैधानिक बेंच देखेगी। दरअसल संवैधानिक बेंच ने जब अनुच्छेद-239 एए की व्याख्या की थी तब इस मुद्दे को नहीं देखी थी। इसलिए इस मुद्दे को संवैधानिक बेंच रेफर किया जा रहा है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि इस मामले को संवैधानिक बेंच रेफर किया जाना चाहिए ताकि संविधान के अनुच्छेद-239 एए के मामले में व्यापक व्याख्या हो सके। वहीं दिल्ली सरकार की ओर से पेश अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि तीन जज सुने या फिर पांच जज मामले की सुनवाई करें। सवाल ये नहीं है कि क्यों नहीं बल्कि सवाल यह है कि क्यों मामला रेफर हो? सिंघवी ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2018 में फैसला दिया था। अगर कोई संदेह है तो मौजूदा बेंच को देखना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल ने दलील रखी कि पिछले फैसले में संवैधानिक बेंच ने इस मामले में जो मुद्दा है उस पर कोई रोड मैप नहीं दिया था।
4 जुलाई 2018 का क्या था सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एलजी स्वतंत्र तौर पर काम नहीं करेंगे अगर कोई अपवाद है तो वह मामले को राष्ट्रपति को रेफर कर सकते हैं और जो फैसला राष्ट्रपति लेंगे उस पर अमल करेंगे यानी खुद कोई फैसला नहीं लेंगे। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने राजधानी दिल्ली में प्रशासन के लिए एक पैरामीटर तय किया है। शीर्ष अदालत ने अनुच्छेद-239 एए की व्याख्या की थी।
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