Booster Dose : कोविशील्ड या कोवैक्सीन, कौन सी बूस्टर डोज अच्छी है? क्या कहते हैं एक्सपर्ट

53
Booster Dose : कोविशील्ड या कोवैक्सीन, कौन सी बूस्टर डोज अच्छी है? क्या कहते हैं एक्सपर्ट


Booster Dose : कोविशील्ड या कोवैक्सीन, कौन सी बूस्टर डोज अच्छी है? क्या कहते हैं एक्सपर्ट

नई दिल्ली
अपने देश में भी अब गंभीर बीमारियों से पीड़ित बुजुर्गों और कुछ अन्य लोगों को कोरोना वैक्सीन की बूस्टर डोज लगने लगी है। ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना पॉजिटिव होने पर इन बुजुर्गों की तबीयत ज्यादा खराब नहीं होगी और मौत का खतरा न्यूनतम होगा। हालांकि क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर की प्रोफसर गगनदीप कांग कहती हैं कि अगर दो डोज और टीकाकरण से भी पूरी तरह से संक्रमण रुकता नहीं है तो ऐसे में प्रीकॉशनरी डोज के क्या फायदे हैं? अब तक भारत में इस बात के साक्ष्य नहीं हैं कि वैक्सीन की क्षमता घट रही है।

इजरायल की दो स्टडीज दिसंबर 2021 में द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुईं। इसमें बताया गया कि फाइजर/बायोएनटेक (कोमिरनेटी) वैक्सीन की बूस्टर डोज ने संक्रमण को 10 गुना कम कर दिया और कोविड-19 से मौतें 90 प्रतिशत तक कम हुईं। यूके हेल्थ सिक्योरिटी एजेंसी ने भी डेटा जारी कर बताया कि छह महीने के बाद दी गई बूस्टर डोज से अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आती है। पहले यह आंकड़ा 55 प्रतिशत था जो बढ़कर 88 प्रतिशत हो गया। यहां एमआरएनए वैक्सीन और वायर-वेक्टर्ड एस्ट्राजेनेका वैक्सीन मिक्स करके बूस्टर लगाया गया। ऐसे में सब जगह हर किसी को बूस्टर डोज देने का कोई औचित्य नहीं दिखता है लेकिन कुछ प्रमुख मसले हैं जिसे भारत के संदर्भ में आगे विचार करने की जरूरत है।

पहला, इजरायल में टीका लगवा चुके लोगों में पहले से ही गंभीर मामले और मौतें कम हो रही थीं। इसके बाद बूस्टर टीकाकरण ने प्रतिदिन 50 साल की उम्र से अधिक एक लाख लोगों में 2.98 से घटाकर 0.16 कर दिया। इस तरह से देखें तो मौतें रोकने की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। इजरायल की आबादी 90 लाख से भी कम है और भारत की तुलना में उसके पास 50 साल से अधिक उम्र लोगों का प्रतिशत ज्यादा है। भारत के लिए, पहली दो खुराक के चलते मृत्यु से बचाव की तुलना में बूस्टर डोज का महत्व समझने की जरूरत है।

कोरोना थर्ड वेव पर भविष्यवाणी! दिल्ली में रोज आ सकते हैं 60,000 केस, पीक का टाइम भी जान लीजिए
दूसरा, इजरायल में बड़ी तादाद में उसकी एडल्ट पॉपुलेशन का टीकाकरण हो चुका है और उसे डेल्टा वेरिएंट से निपटना है। भारत में जून 2021 में टीकाकरण कार्यक्रम के वास्तव में व्यापक रूप से शुरू होने से पहले ही पहली और दूसरी लहर के दौरान कम से कम आधी आबादी संक्रमित हो चुकी थी। ऐसे में ओमीक्रोन और दूसरे वेरिएंट आने पर भारतीय आबादी के लिए इसके क्या मायने हैं? हम जानते हैं कि संक्रमण होने से एक उच्च स्तर की सुरक्षा वेरिएंट के खिलाफ मिल जाती है और हाल के डेटा से पता चलता है कि ओमीक्रोन वेरिएंट से डेल्टा खत्म हो सकता है। इसका क्या यह मतलब है कि बुजुर्ग और ज्यादा जोखिम वाले भारतीयों को भी बूस्टर की जरूरत कम है? यह निश्चित रूप से उन लोगों में संभव है जिनके भीतर इम्युनिटी है वह संक्रमण और टीकाकरण के गठजोड़ से हो सकती है। लेकिन हम जानते हैं कि जिन लोगों में संक्रमण के लक्षण नहीं हैं उनमें एंटीबॉडी का रिस्पांस लक्षण दिखाई देने वाले लोगों की तुलना में कम होता है।

कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों का घर में इलाज संभव, Molnupiravir कोई ‘जादुई दवा’ नहीं: AIIMS डॉक्टर
अब सवाल यह है कि प्रीकॉशनरी डोज की घोषणा के बाद भारत को बूस्टर पर क्या सोचना चाहिए। पहला, संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन प्रोटेक्शन में गिरावट को लेकर डेटा भारत से उपलब्ध नहीं है ऐसे में हमें ऐसा सिस्टम और संबंधित स्टडीज पर फोकस करना चाहिए जो टीका लगवाए और बूस्टर लगवाए लोगों में संक्रमण की मॉनिटरिंग करे। दूसरा, हम गंभीर बीमारियों और मौत से बचाव भी देख सकते हैं लेकिन यह काफी धीमी है। आमतौर पर देखा जाता है कि स्वस्थ युवा आबादी को गंभीर बीमारियों और मौत का खतरा कम रहता है अगर उन्होंने टीका नहीं लगवाया हो लेकिन यह भी साफ हो चुका है वैक्सीनेशन से वह जोखिम भी कम हो जाता है। ऐसे में यह अनिश्चित है कि इस आबादी को को बूस्टर लगने के बाद क्या लंबे समय तक सुरक्षा मिलेगी।

School Open Close News : क्या 17 जनवरी से खुल जाएंगे स्कूल? देखिए आपके राज्य में कब तक पाबंदी, क्या है मूड
भारत में बूस्टर की चर्चा के बीच यह बात हो रही है कि किसे और कब दिया जाए, इस पर विचार करने की जरूरत है कि किस वैक्सीन को बूस्टर के तौर पर इस्तेमाल किया जाए। अबतक की स्टडी से पता चलता है कि ओमीक्रोन वेरिएंट अब तक एक या दो खुराक ले चुके लोगों की एंटीबॉडी को चकमा देकर संक्रमित कर रहा है। हां, टी-सेल की प्रतिक्रिया बताती है कि जिन लोगों ने दो डोल ले रखी है उनमें वेरिएंट को पहचानने की क्षमता काफी कम घटती है। जब तीसरी डोज बूस्टर के तौर पर दी जाएगी तो ज्यादा वेरिएंट को पहचानने की क्षमता और मात्रा बढ़ेगी।

पहली खुराक में दिए गए वैक्सीन के प्लेटऑर्म से अलग वैक्सीन का इस्तेमाल का अच्छा परिणाम दिखता है, जबतक कि सभी तीनों डोज mRNA वैक्सीन की न हो। mRNA टीकों का ज्यादा अस्थायी साइड इफेक्ट मिलता है, ऐसे में इनका बूस्टर के तौर पर इस्तेमाल सदाबहार या हमेशा के लिए नहीं कहा जा सकता।

भारत के संदर्भ में, उसी वैक्सीन को आगे भी बूस्टर के तौर पर जारी रखने का सुझाव दिया जाना चाहिए। AIG इंस्टिट्यूट की एक छोटी सी स्टडी बताती है कि बूस्टर के लिए मिक्सिंग डोज लाभकारी हो सकती है। यूके की स्टडी बताती है कि ऐस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) वैक्सीन एंटीबॉडीज में 3.25 गुना वृद्धि करती है जबकि नोवावैक्स 8.75 गुना बढ़ती है और फाइजर-बायोएनटेक 24.48 गुना बढ़ाती है, जो जल्द ही भारत में उपलब्ध हो सकती है। कोविशील्ड या कोवैक्सीन लगवा चुके लोगों में जल्द से जल्द इसका असर देखना चाहिए।

अंग्रेजी में पूरा लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

corona-vaccine

फाइल फोटो



Source link