BJP: बीजेपी के 42 साल…इस बार गुजरात और हिमाचल का चुनाव क्यों है साख का सवाल? h3>
अहमदाबाद/शिमला: भारतीय जनता पार्टी (BJP) की उम्र 42 साल हो गई है। इन वर्षों में उसने अर्श से फर्श तक का सफर तय किया। हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में 4 में जीत दर्ज कर बीजेपी ने एक बार फिर विरोधियों को चित कर दिया। अब नजरें गुजरात (Gujarat assembly election) और हिमाचल प्रदेश (Himachal pradesh assembly election) पर हैं। इस साल के अंत में दोनों राज्यों में चुनाव हो सकते हैं। दोनों राज्यों में सरकार तो बीजेपी की ही है। लेकिन इस बार की राह आसान नहीं लग रही। गुजरात और हिमाचल का चुनाव बीजेपी के लिए साख का सवाल बन गया है। लेकिन क्यों?
हिमाचल में लड़ाई में कौन?
बीजेपी हिमाचल प्रदेश में हर हाल में जीत दर्ज करना चाहेगी। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के खाते में 68 में से 44 सीटें आई थीं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इसी राज्य से आते हैं। दूसरी ओर पंजाब में प्रचंड जीत करने के बाद ही आम आदमी पार्टी ने ऐलान कर दिया था कि वे हिमाचल और गुजरात में अपना दावा पेश करेंगे। पार्टी कह चुकी है कि दोनों राज्यों की सभी सीटों पर उनके उम्मीदवार अपनी दावेदारी ठोकेंगे।
आप का दावा है कि पंजाब में जीत के बाद हिमाचल प्रदेश डेढ़ लाख से तीन लाख लोग उनकी पार्टी की सदस्यती ले चुके हैं। जबकि सदस्यता की लगभग इतनी ही कॉपियां फील्ड में हैं। पूर्व डीजीपी आईडी भंडारी को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया है। आईपीएस जगतराम भी आप में हैं। दोनों की ईमानदार अधिकारी की छवि रही है। ऐसे में इस बार लड़ाई दिलचस्प रहने की उम्मीद हैं।
उधर चार राज्यों में मिली जीत के बाद बीजेपी उत्साहित है। हिमाचल से सटे से उत्तराखंड में भी सरकार रिपीट हुई है। लेकिन हिमाचल में पिछले 4 दशक में कोई भी पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में नहीं आई है। राज्य में 1980 के बाद सत्ता की चाबी कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के हाथों रही है। 1980 में ठाकुर रामलाल के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी थी। 1982 में उन्हें आंध्र प्रदेश का गर्वनर बनाया और वीरभद्र सिंह ने सीएम पद की जिम्मेदारी संभाली। 1985 में वीरभद्र फिर सत्ता में आए।
इसके बाद से कोई भी पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं आ पाई है। हर 5 साल में सरकार बदलती रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश में जीत के बाद बीजेपी को विश्वास है हिमाचल का मिथक भी टूटेगा। उत्तर प्रदेश में भी 37 साल बाद कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है। 2022 में बने उत्तराखंड में भी पहली बार सरकार रिपीट हुई है।
उधर पांच राज्यों में मिली हार के बाद कांग्रेस अलर्ट मोड पर है। हिमाचल प्रदेश में उसे 2017 में 21 सीटों पर जीत मिली थी। सोनिया गांधी पार्टी के दूसरे शीर्ष नेताओं के साथ राजधानी दिल्ली में लगातार बैठकें कर रही हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा आप का उठना है। चुनाव से पहले ही आप ने कांग्रेस को बड़ा झटका भी दे दिया है। कांग्रेस नेता विनोद कुमार आप में शामिल हो गए हैं।
गुटबाजी से परेशान बीजेपी
हिमाचल में बीजेपी गुटबाजी से भी परेशान है। एक ओर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का गुट सक्रिय है तो वहीं दूसरी जेपी नड्डा का गुट भी सक्रिय है। इस गुटबाजी का खामियाजा बीजेपी उप चुनाव में भुगत भी चुकी है। जुब्बल कोटखाई विधानसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे, महज 2,644 वोट मिले थे।
जातिगत समीकरण क्या कह रहे?
हिमाचल में अब तक कुल 6 मुख्यमंत्री हुए हैं। इनमें से शांताकुमार ब्राह्मण थे और बाकी 5 मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार, ठाकुर राम लाल, वीरभद्र सिंह, प्रेमकुमार धूमल और अब जयराम ठाकुर सभी क्षत्रिय बिरादरी से आते हैं। ठाकुरी की राज्य में करीब 35 फीसदी आबादी है। दूसरी ओर 25 फीसदी दलित और करीब 18 पर्सेंट ब्राह्मण हैं। ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारी 14 फीसदी के आसपास है। गैर-ठाकुर चेहरे को आगे करके भी आम आदमी पार्टी ताल ठोक सकती है। राज्य की 68 सीटों में से 17 सीटें सुरक्षित (दलितों के लिए) हैं। किन्नौर, लाहौल स्पीति और भरमौर की सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है।
कई रिपोर्ट में बताया दावा किया गया 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में सवर्ण जाति के 56 फीसदी लोगों ने बीजेपी का साथ दिया जबकि 35 फीसदी लोग कांग्रेस के साथ गए थे। 10 फीसदी दूसरे दलों के साथ थे। वहीं राजपूतों की बात करें तो 36 फीसदी ने कांग्रेस और 10 फीसदी ने अन्य दलों को अपना मत दिया था। ओबीसी वोटरों में बीजेपी की पैठ है। पिछले विधानसभा चुनाव में ओबीसी का 48 फीसदी मत बीजेपी के खाते में गया था। दलित वोटों के मामले कांग्रेस और बीजेपी बराबर थी। जबकि मुस्लिम की पहली पसंद कांग्रेस बताई गई जिनके 67 फीसदी कांग्रेस के पक्ष में पड़े।
गुजरात- दांव पर पीएम मोदी और अमित शाह की साख
पांच राज्यों में मिली जीत के बार एक ओर जहां पार्टी कार्यकर्ता जश्न में डूबे थे तो वहीं दूसरी ओर अगले ही दिन देश के प्रधानमंत्री और गुजरात के सीएम रहे नरेंद्र मोदी अहमदाबाद में चुनावी रैली करते हैं। गुजरात नरेंद्र मोदी और अमित शाह, दोनों का गृह राज्य है। ऐसे में गुजरात में जीत या हार को दोनों नेताओं से जोड़कर देखा जाएगा। बीजेपी 1995 से गुजरात की सत्ता में है।
केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद अक्टूबर 2001 में मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने। मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने तक वह 12 साल से ज्यादा समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। तब से कहा जाने लगा कि अब यहां से बीजेपी को हिला नहीं पाएगा। लेकिन अब यह भी कहा जा रहा कि मोदी के दिल्ली जाने के बाद बीजेपी राज्य में कमजोर हुई है। इसके संकेत 2017 के चुनाव से पहले ही मिले थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदीबेन पटेल को प्रदेश का सीएम बनाया गया था। वह मोदी की भरोसेमंद मानी जाती थीं, मगर पाटीदार आंदोलन के कारण उनकी स्थिति कमजोर होती गई।
अहमदाबाद में पीएम मोदी का रोड शो।
2017 विधानसभा चुनाव से पहले आनंदीबेन पटेल ने जून 2016 में इस्तीफा दे दिया था। लेकिन स्वीकार नहीं किया गया। राज्य में इसी साल ऊना में दलितों के खिलाफ हिंसा हुई। इसके बाद अगस्त में उन्होंने फिर इस्तीफा दिया जिसे स्वीकार कर लिया गया। इसके आद प्रदेश की कमान विजय रूपाणी को दी गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन पहले के मुकाबले कमजोर रहा। इससे पहले हुए पांच विधानसभा चुनावों- 1995, 1998, 2002, 2007 और 2012 में प्रदेश की कुल 182 असेंबली सीटों में बीजेपी 115 से 127 सीटों के बीच थी। लेकिन 2017 वह 99 सीटें ही जीत सकी थी। इससे पहले 1990 में बीजेपी ने प्रदेश में 100 से कम सीटें जीती थीं। 2017 में कांग्रेस का प्रदर्शन भी सुधरा और उसने 77 सीटें जीतीं। बीजेपी को जहां लगभग 49 फीसदी मत मिले तो वहीं कांग्रेस को करीब 41 प्रतिशत वोट मिले। ऐसे में लड़ाई कांटे की हुई।
कांग्रेस का काम बिगाड़ेगी आप?
कांग्रेस राज्य में 27 साल से सत्ता से दूर है। माना जाता है कि देहात में कांग्रेस मजबूत है। उधर आप के आने के बाद लड़ाई औद दिलचस्प हुई है। इसके अलावा 20 से ज्यादा छोटे दल भी दावा ठोंक रहे हैं। पंजाब में जीत के बाद आप की नजर अब गुजरात पर है। पार्टी के संयोजक और दिल्ली के सीएम पंजाब के सीएम भगवंत मान के साथ राज्य में रोड शो भी कर चुके हैं। आप ने पंजाब में जीत के सूत्रधार रहे संदीप पाठक को गुजरात में भी जिम्मेदारी सौंपी है।
उधर आप ने यह कहकर बीजपी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं कि उनके आंतरिक सर्वे के अनुसार वे राज्य में 58 सीटें जीत रहे हैं। उन्होंने दावा कि बीजेपी भी इस बात को स्वीकार कर रही है। आप के प्रदेश प्रभारी डॉ. संदीप पाठक ने बताया कि यह सर्वेक्षण पार्टी की अपनी एजेंसी के माध्यम से सही तरीके से किया गया। सर्वे के अनुसार, पार्टी को कांग्रेस से असंतुष्ट ग्रामीण मतदाताओं और शहरी क्षेत्रों में निचले और मध्यम वर्ग के मतदाताओं से वोट मिलने की संभावना है। हम 58 सीटें जीतेंगे. ग्रामीण गुजरात के लोग हमें वोट दे रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में निम्न और मध्यम वर्ग बदलाव चाहता है और वे हमें वोट देंगे।
अहदाबाद में आप की रैली।
गुजरात में आप कांग्रेस की जगह लेने की तैयारी में है। उसकी कोशिश है कि वह गुजरात चुनाव में कम से कम इतनी सीटें हासिल कर ले कि प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा मिल जाए। इसके लिए उसे कांग्रेस से ज्यादा सीटें लानी होंगी। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी गुजरात के पटेल समुदाय, किसान समुदाय, नाराज व्यापारी वर्ग और यूपी-बिहार से गुजरात गए प्रवासियों से संपर्क कर रही है। पार्टी को उम्मीद है कि यह वर्ग उनके लिए मददगार साबित हो सकता है।
पिछले साल हुए नगर निकाय चुनाव से ही आम आदमी पार्टी ने राज्य में धमक बना ली है। 2021 में हुए गुजरात नगर निकाय चुनाव में आप आदमी पार्टी ने सूरत नगर निगम की 120 में से 27 सीटें जीती थीं। इनमें से ज्यादातर सीटें पाटीदार बहुल इलाकों में थीं। वहीं कांग्रेस को पाटीदारों के गढ़ क्षेत्र में ही बुरी तरह से हार मिली थी। गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष हार्दिक पटेल भी इसी पाटीदार समाज से आते हैं लेकिन इस समाज के गढ़ सूरत में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला।
कांग्रेस की नैया कैसे पार होगी?
उधर कांग्रेस रणनीतिकार प्रशांत किशोर के सहारे गुजरात में वापसी करने की जुगत में है। कलह से जूझती पार्टी खुद को फिर से मजबूत करना चाहती है। कांग्रेस पार्टी गुजरात की सत्ता से 27 सालों से बाहर है। 1995 में पार्टी की गुजरात में करारी हार हुई थी, जिसके बाद कांग्रेस कभी सरकार नहीं बना पाई। पिछले चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर हुई थी, लेकिन भाजपा सरकार बनाने में सफल हो गई थी। पार्टी राज्य में बड़े बदलाव के संकेत दे रही है।
कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि अंदरखाने पार्टी नेतृत्व बड़े पाटीदार नेता नरेश पटेल को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की रणनीति बना रहा है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस योजना का अहम हिस्सा हैं। सब ठीक रहा तो जल्द नरेश पटेल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। नरेश पटेल लेउआ पटेलों की कुलदेवी खोडलधाम माता मंदिर को चलाने वाले खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। धार्मिक और समाजिक कामों की वजह से नरेश पटेल पाटीदार समाज में जाना माना नाम तो हैं ही, गुजरात के अन्य समाजों के बीच भी उनकी अच्छी छवि मानी जाती है। नरेश पटेल का खुद का बड़ा व्यापार भी है और पाटीदार समाज के रसूखदारों में उनकी पकड़ भी। ऐसे में वो राजनीतिक तौर पर ही नहीं आर्थिक तौर पर भी बेहद मजबूत हैं।
अगर ऐसा होता है तो भी कांग्रेस के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं होगा। नरेश पटेल राजनीतिक में नए हैं। उन्होंने आज तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है। पंजाब में कैप्टन को हटा कर चन्नी और सिद्धू पर दांव लगाकर कांग्रेस धोखा खा ही चुकी है।
हिमाचल में लड़ाई में कौन?
बीजेपी हिमाचल प्रदेश में हर हाल में जीत दर्ज करना चाहेगी। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के खाते में 68 में से 44 सीटें आई थीं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इसी राज्य से आते हैं। दूसरी ओर पंजाब में प्रचंड जीत करने के बाद ही आम आदमी पार्टी ने ऐलान कर दिया था कि वे हिमाचल और गुजरात में अपना दावा पेश करेंगे। पार्टी कह चुकी है कि दोनों राज्यों की सभी सीटों पर उनके उम्मीदवार अपनी दावेदारी ठोकेंगे।
आप का दावा है कि पंजाब में जीत के बाद हिमाचल प्रदेश डेढ़ लाख से तीन लाख लोग उनकी पार्टी की सदस्यती ले चुके हैं। जबकि सदस्यता की लगभग इतनी ही कॉपियां फील्ड में हैं। पूर्व डीजीपी आईडी भंडारी को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाया है। आईपीएस जगतराम भी आप में हैं। दोनों की ईमानदार अधिकारी की छवि रही है। ऐसे में इस बार लड़ाई दिलचस्प रहने की उम्मीद हैं।
उधर चार राज्यों में मिली जीत के बाद बीजेपी उत्साहित है। हिमाचल से सटे से उत्तराखंड में भी सरकार रिपीट हुई है। लेकिन हिमाचल में पिछले 4 दशक में कोई भी पार्टी लगातार दोबारा सत्ता में नहीं आई है। राज्य में 1980 के बाद सत्ता की चाबी कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी के हाथों रही है। 1980 में ठाकुर रामलाल के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी थी। 1982 में उन्हें आंध्र प्रदेश का गर्वनर बनाया और वीरभद्र सिंह ने सीएम पद की जिम्मेदारी संभाली। 1985 में वीरभद्र फिर सत्ता में आए।
इसके बाद से कोई भी पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं आ पाई है। हर 5 साल में सरकार बदलती रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश में जीत के बाद बीजेपी को विश्वास है हिमाचल का मिथक भी टूटेगा। उत्तर प्रदेश में भी 37 साल बाद कोई पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है। 2022 में बने उत्तराखंड में भी पहली बार सरकार रिपीट हुई है।
उधर पांच राज्यों में मिली हार के बाद कांग्रेस अलर्ट मोड पर है। हिमाचल प्रदेश में उसे 2017 में 21 सीटों पर जीत मिली थी। सोनिया गांधी पार्टी के दूसरे शीर्ष नेताओं के साथ राजधानी दिल्ली में लगातार बैठकें कर रही हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा आप का उठना है। चुनाव से पहले ही आप ने कांग्रेस को बड़ा झटका भी दे दिया है। कांग्रेस नेता विनोद कुमार आप में शामिल हो गए हैं।
गुटबाजी से परेशान बीजेपी
हिमाचल में बीजेपी गुटबाजी से भी परेशान है। एक ओर पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का गुट सक्रिय है तो वहीं दूसरी जेपी नड्डा का गुट भी सक्रिय है। इस गुटबाजी का खामियाजा बीजेपी उप चुनाव में भुगत भी चुकी है। जुब्बल कोटखाई विधानसभा चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे, महज 2,644 वोट मिले थे।
जातिगत समीकरण क्या कह रहे?
हिमाचल में अब तक कुल 6 मुख्यमंत्री हुए हैं। इनमें से शांताकुमार ब्राह्मण थे और बाकी 5 मुख्यमंत्री यशवंत सिंह परमार, ठाकुर राम लाल, वीरभद्र सिंह, प्रेमकुमार धूमल और अब जयराम ठाकुर सभी क्षत्रिय बिरादरी से आते हैं। ठाकुरी की राज्य में करीब 35 फीसदी आबादी है। दूसरी ओर 25 फीसदी दलित और करीब 18 पर्सेंट ब्राह्मण हैं। ओबीसी समुदाय की हिस्सेदारी 14 फीसदी के आसपास है। गैर-ठाकुर चेहरे को आगे करके भी आम आदमी पार्टी ताल ठोक सकती है। राज्य की 68 सीटों में से 17 सीटें सुरक्षित (दलितों के लिए) हैं। किन्नौर, लाहौल स्पीति और भरमौर की सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है।
कई रिपोर्ट में बताया दावा किया गया 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में सवर्ण जाति के 56 फीसदी लोगों ने बीजेपी का साथ दिया जबकि 35 फीसदी लोग कांग्रेस के साथ गए थे। 10 फीसदी दूसरे दलों के साथ थे। वहीं राजपूतों की बात करें तो 36 फीसदी ने कांग्रेस और 10 फीसदी ने अन्य दलों को अपना मत दिया था। ओबीसी वोटरों में बीजेपी की पैठ है। पिछले विधानसभा चुनाव में ओबीसी का 48 फीसदी मत बीजेपी के खाते में गया था। दलित वोटों के मामले कांग्रेस और बीजेपी बराबर थी। जबकि मुस्लिम की पहली पसंद कांग्रेस बताई गई जिनके 67 फीसदी कांग्रेस के पक्ष में पड़े।
गुजरात- दांव पर पीएम मोदी और अमित शाह की साख
पांच राज्यों में मिली जीत के बार एक ओर जहां पार्टी कार्यकर्ता जश्न में डूबे थे तो वहीं दूसरी ओर अगले ही दिन देश के प्रधानमंत्री और गुजरात के सीएम रहे नरेंद्र मोदी अहमदाबाद में चुनावी रैली करते हैं। गुजरात नरेंद्र मोदी और अमित शाह, दोनों का गृह राज्य है। ऐसे में गुजरात में जीत या हार को दोनों नेताओं से जोड़कर देखा जाएगा। बीजेपी 1995 से गुजरात की सत्ता में है।
केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद अक्टूबर 2001 में मोदी पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने। मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने तक वह 12 साल से ज्यादा समय तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। तब से कहा जाने लगा कि अब यहां से बीजेपी को हिला नहीं पाएगा। लेकिन अब यह भी कहा जा रहा कि मोदी के दिल्ली जाने के बाद बीजेपी राज्य में कमजोर हुई है। इसके संकेत 2017 के चुनाव से पहले ही मिले थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदीबेन पटेल को प्रदेश का सीएम बनाया गया था। वह मोदी की भरोसेमंद मानी जाती थीं, मगर पाटीदार आंदोलन के कारण उनकी स्थिति कमजोर होती गई।
अहमदाबाद में पीएम मोदी का रोड शो।
2017 विधानसभा चुनाव से पहले आनंदीबेन पटेल ने जून 2016 में इस्तीफा दे दिया था। लेकिन स्वीकार नहीं किया गया। राज्य में इसी साल ऊना में दलितों के खिलाफ हिंसा हुई। इसके बाद अगस्त में उन्होंने फिर इस्तीफा दिया जिसे स्वीकार कर लिया गया। इसके आद प्रदेश की कमान विजय रूपाणी को दी गई। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन पहले के मुकाबले कमजोर रहा। इससे पहले हुए पांच विधानसभा चुनावों- 1995, 1998, 2002, 2007 और 2012 में प्रदेश की कुल 182 असेंबली सीटों में बीजेपी 115 से 127 सीटों के बीच थी। लेकिन 2017 वह 99 सीटें ही जीत सकी थी। इससे पहले 1990 में बीजेपी ने प्रदेश में 100 से कम सीटें जीती थीं। 2017 में कांग्रेस का प्रदर्शन भी सुधरा और उसने 77 सीटें जीतीं। बीजेपी को जहां लगभग 49 फीसदी मत मिले तो वहीं कांग्रेस को करीब 41 प्रतिशत वोट मिले। ऐसे में लड़ाई कांटे की हुई।
कांग्रेस का काम बिगाड़ेगी आप?
कांग्रेस राज्य में 27 साल से सत्ता से दूर है। माना जाता है कि देहात में कांग्रेस मजबूत है। उधर आप के आने के बाद लड़ाई औद दिलचस्प हुई है। इसके अलावा 20 से ज्यादा छोटे दल भी दावा ठोंक रहे हैं। पंजाब में जीत के बाद आप की नजर अब गुजरात पर है। पार्टी के संयोजक और दिल्ली के सीएम पंजाब के सीएम भगवंत मान के साथ राज्य में रोड शो भी कर चुके हैं। आप ने पंजाब में जीत के सूत्रधार रहे संदीप पाठक को गुजरात में भी जिम्मेदारी सौंपी है।
उधर आप ने यह कहकर बीजपी और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं कि उनके आंतरिक सर्वे के अनुसार वे राज्य में 58 सीटें जीत रहे हैं। उन्होंने दावा कि बीजेपी भी इस बात को स्वीकार कर रही है। आप के प्रदेश प्रभारी डॉ. संदीप पाठक ने बताया कि यह सर्वेक्षण पार्टी की अपनी एजेंसी के माध्यम से सही तरीके से किया गया। सर्वे के अनुसार, पार्टी को कांग्रेस से असंतुष्ट ग्रामीण मतदाताओं और शहरी क्षेत्रों में निचले और मध्यम वर्ग के मतदाताओं से वोट मिलने की संभावना है। हम 58 सीटें जीतेंगे. ग्रामीण गुजरात के लोग हमें वोट दे रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में निम्न और मध्यम वर्ग बदलाव चाहता है और वे हमें वोट देंगे।
अहदाबाद में आप की रैली।
गुजरात में आप कांग्रेस की जगह लेने की तैयारी में है। उसकी कोशिश है कि वह गुजरात चुनाव में कम से कम इतनी सीटें हासिल कर ले कि प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा मिल जाए। इसके लिए उसे कांग्रेस से ज्यादा सीटें लानी होंगी। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी गुजरात के पटेल समुदाय, किसान समुदाय, नाराज व्यापारी वर्ग और यूपी-बिहार से गुजरात गए प्रवासियों से संपर्क कर रही है। पार्टी को उम्मीद है कि यह वर्ग उनके लिए मददगार साबित हो सकता है।
पिछले साल हुए नगर निकाय चुनाव से ही आम आदमी पार्टी ने राज्य में धमक बना ली है। 2021 में हुए गुजरात नगर निकाय चुनाव में आप आदमी पार्टी ने सूरत नगर निगम की 120 में से 27 सीटें जीती थीं। इनमें से ज्यादातर सीटें पाटीदार बहुल इलाकों में थीं। वहीं कांग्रेस को पाटीदारों के गढ़ क्षेत्र में ही बुरी तरह से हार मिली थी। गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष हार्दिक पटेल भी इसी पाटीदार समाज से आते हैं लेकिन इस समाज के गढ़ सूरत में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला।
कांग्रेस की नैया कैसे पार होगी?
उधर कांग्रेस रणनीतिकार प्रशांत किशोर के सहारे गुजरात में वापसी करने की जुगत में है। कलह से जूझती पार्टी खुद को फिर से मजबूत करना चाहती है। कांग्रेस पार्टी गुजरात की सत्ता से 27 सालों से बाहर है। 1995 में पार्टी की गुजरात में करारी हार हुई थी, जिसके बाद कांग्रेस कभी सरकार नहीं बना पाई। पिछले चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर हुई थी, लेकिन भाजपा सरकार बनाने में सफल हो गई थी। पार्टी राज्य में बड़े बदलाव के संकेत दे रही है।
कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि अंदरखाने पार्टी नेतृत्व बड़े पाटीदार नेता नरेश पटेल को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की रणनीति बना रहा है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इस योजना का अहम हिस्सा हैं। सब ठीक रहा तो जल्द नरेश पटेल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। नरेश पटेल लेउआ पटेलों की कुलदेवी खोडलधाम माता मंदिर को चलाने वाले खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। धार्मिक और समाजिक कामों की वजह से नरेश पटेल पाटीदार समाज में जाना माना नाम तो हैं ही, गुजरात के अन्य समाजों के बीच भी उनकी अच्छी छवि मानी जाती है। नरेश पटेल का खुद का बड़ा व्यापार भी है और पाटीदार समाज के रसूखदारों में उनकी पकड़ भी। ऐसे में वो राजनीतिक तौर पर ही नहीं आर्थिक तौर पर भी बेहद मजबूत हैं।
अगर ऐसा होता है तो भी कांग्रेस के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं होगा। नरेश पटेल राजनीतिक में नए हैं। उन्होंने आज तक कोई चुनाव नहीं लड़ा है। पंजाब में कैप्टन को हटा कर चन्नी और सिद्धू पर दांव लगाकर कांग्रेस धोखा खा ही चुकी है।