Bihar Politics: सीएम नीतीश ने क्यों की जेडीयू नेताओं संग बैठक, कहीं कांग्रेस-RJD-लेफ्ट का दबाव तो वजह नहीं

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Bihar Politics: सीएम नीतीश ने क्यों की जेडीयू नेताओं संग बैठक, कहीं कांग्रेस-RJD-लेफ्ट का दबाव तो वजह नहीं

Bihar Politics: सीएम नीतीश ने क्यों की जेडीयू नेताओं संग बैठक, कहीं कांग्रेस-RJD-लेफ्ट का दबाव तो वजह नहीं

पटना : एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कांग्रेस-आरजेडी और वाम दल अलग-अलग वजहों से नाराज हैं। इन सबके बीच सीएम नीतीश अलग ही प्लानिंग में लगे हैं। नीतीश कुमार पूर्व विधायकों के साथ बैठक कर रहे हैं। इतना ही नहीं अगली बैठक पूर्व पार्षदों के साथ होनी है। रविवार को नीतीश कुमार ने तमाम पूर्व विधायकों के साथ मुलाकात की। इसमें उन्होंने इलाके का हाल जाना और ये समझने की कोशिश की कि आखिर इलाके में जेडीयू की क्या स्थिति है। ये पूरा घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ जब ऑफर बीजेपी की तरफ से भी भेजा गया हो। नीतीश कुमार के नए दांव से सवाल उठना लाजमी है। ऐसा इसलिए क्योंकि मुख्यमंत्री कब क्या करेंगे उनके बगल वाले भी नहीं जानते। इसलिए बिहार की राजनीति में उनका हर कदम महत्वपूर्ण हो जाता है।

कांग्रेस क्यों है नाराज?

एक तरफ कांग्रेस मंत्रिमंडल विस्तार ना होने की वजह से नाराज है। यह नाराजगी कांग्रेस के विधायक दल के नेता शकील अहमद ने दर्ज करा दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले 8 महीने से मंत्रिमंडल विस्तार की बात कह रहे। यह भी कह रहे कि मंत्रिमंडल विस्तार में कोई परेशानी नहीं है। बार-बार यह भी दोहरा रहे कि जब चाहेंगे तब मंत्रिमंडल विस्तार हो जाएगा। लेकिन जब कोई परेशानी नहीं है तो भी 8 महीने से मंत्रिमंडल के विस्तार का पेंच फंसा क्यों है? ये एक बड़ा सवाल है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने पटना में विपक्षी दलों की बैठक के दौरान ही राहुल गांधी के सामने भी यह बात कही थी। बिहार कांग्रेस चीफ ने कहा था कि उन्हें मंत्रिमंडल विस्तार में दो मंत्री चाहिए। राहुल गांधी के सामने भी नीतीश कुमार ने इस पर सहमति जताई थी। 23 जून की बैठक के बाद भी डेढ़ महीने का वक्त निकल चुका है।

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इधर वामदल भी नाराज!

शिक्षक बहाली में डोमिसाइल नीति को खत्म किए जाने और कटिहार में हुए गोलीकांड के बाद महागठबंधन में शामिल लेफ्ट पार्टियां भी नाराज हैं। वामदल इस घटना के बाद सरकार में रहते हुए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। कटिहार गोलीकांड को सरकार की विफलता बता रहे। इतना ही नहीं कांग्रेस ने भी मोर्चा खोला हुआ है। कांग्रेस कोटे के मंत्री अफाक आलम ने भी नाराजगी के बीच सुर में सुर मिलाया है। उनका कहना है कि बिजली की मांग को लेकर लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई। जिस पर पुलिस ने सीधी फायरिंग की। जिसमें कई लोगों की जान गई। हालांकि जिला प्रशासन सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पुलिस की गोली से हुई मौत से इनकार कर रहा है। मगर बिजली की मांग को लेकर कटिहार में लोगों के प्रदर्शन के साथ वामदल खड़ी नजर आ रही है। इस पर कांग्रेस का साथ भी मिलता नजर आ रहा है। ऐसे में यह समझने वाली बात होगी कि कांग्रेस और वामदलों के इस दबाव को नीतीश कुमार कितना झेल पाएंगे।

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ट्रांसफर पोस्टिंग में अड़ंगे से आरजेडी भी खफा!

बिहार की महागठबंधन सरकार में लगता है सब कुछ ठीक नहीं है। तभी तो नाराजगी जैसे सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ शिक्षा विभाग के मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर 22 दिनों से ऑफिस नहीं आ रहे। उन्होंने खुद को अपने आवास पर बंद कर रखा है। पत्रकारों के कई प्रयास के बावजूद उन्होंने किसी से कोई बात नहीं की। वही भूमि और राजस्व मंत्री आलोक मेहता भी खफा दिख रहे। उनके विभाग के भी ट्रांसफर पोस्टिंग को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रोक दिया। हालांकि तेजस्वी यादव के सामने ही उन्होंने इस ट्रांसफर पोस्टिंग को रोके जाने पर सफाई दे दी। हालांकि, कहीं ना कहीं नीतीश कुमार के इस कदम ने आरजेडी की भी नाराजगी मोल ले ली है। माना जा रहा कि आलोक मेहता ट्रांसफर पोस्टिंग रोके जाने को लेकर नाराज हैं। वो राजनीतिक तौर पर बहुत कम बोलने वालों में से हैं। ऐसे में उनकी चुप्पी सवाल खड़े करती है। नाराजगी का ही नतीजा है कि वह फोन भी नहीं उठा रहे।

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अधिकारियों की मनमानी से भी आरजेडी नाराज

एक तरफ जहां ट्रांसफर पोस्टिंग पर नीतीश कुमार अड़ंगा लगाया, वहीं आरजेडी को अधिकारियों से काम लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों की मानें तो एक तरफ केके पाठक की वजह से प्रोफेसर चंद्रशेखर परेशान हैं तो वहीं भूमि सुधार और राजस्व मंत्री नीतीश कुमार के फैसले की वजह से नाराज हैं। इतना ही नहीं विधायकों के सामने भी अधिकारियों की हनक हावी है। अधिकारी उनकी सुनते नहीं, लिहाजा आरजेडी को अपने काम कराने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा रहा है।

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अपने मन की करते हैं नीतीश!

बिहार महागठबंधन में इतने घमासान हों तो सरकार पर सवाल उठने लाजमी हैं। ऐसा कहा जाता है कि नीतीश कुमार ऐसे नेता हैं जो किसी की सुनते नहीं। राजनीतिक रूप से उन्हें जो सही लगता है वह अपने मन की करते हैं। अब स्थिति यह है कि केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की ओर से उन्हें दोबारा एनडीए में आने का निमंत्रण दिया गया है। सीधे तौर पर अठावले ने कहा कि उन्हें एनडीए में आ जाना चाहिए। उनके जाने के बाद उन्हें ठीक नहीं लग रहा है। इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बैठकें कहीं और ही इशारा कर रही। बिहार की राजनीति को समझने वालों और उनके हर कदम पर निगाह रखने वालों के लिए इन बैठकों का काफी महत्व है। माना जा रहा है जब-जब बिहार में सरकार बदली है तो नीतीश कुमार की ऐसी ही बैठक देखने को मिली है।

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दबाव में तो नहीं आएंगे नीतीश

बिहार के राजनीतिक गलियारों में अब इस बात को लेकर चर्चा तेज है कि नीतीश कुमार ऐसे नेताओं में से तो बिल्कुल भी नहीं जो किसी के भी दबाव में आ जाएं। विपक्षी एकता का मंच खड़ा कर नीतीश कुमार ने अपनी पॉलिटिकल क्षमता का प्रदर्शन कर दिया है। ऐसे में वो कांग्रेस, आरजेडी और वामदल के दबाव में आते नहीं दिख रहे। राजनीतिक गलियारे में इस बात की भी चर्चा है कि जब नीतीश कुमार ने बीजेपी के दबाव को बर्दाश्त नहीं किया तो वह अन्य पार्टियों के दबाव को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करने वाले हैं।

रामदास अठावले के ऑफर पर अब यह कहा जा रहा कि आरजेडी, कांग्रेस और वामदलों ने ज्यादा आंखें तरेरी हैं। उनके लिए फिर बीजेपी के साथ हाथ मिलाना कोई मुश्किल डील नहीं होगा। अगर ऐसा होता है तो नुकसान विपक्षी एकता के मंच का ही होगा। जेडीयू खेमे का यह मानना है कि अगर नीतीश कुमार ऐसा कोई कदम उठाते हैं तो विपक्षी एकता का यह मंच भरभरा कर गिर जाएगा। यह बात नीतीश कुमार बखूबी समझ चुके हैं। इतना ही नहीं बीजेपी भी नीतीश कुमार के राजनीतिक कौशल को समझ चुकी है। बीजेपी की भी कोशिश होगी कि विपक्षी एकता का जो मंच तैयार किया जा रहा है उसे किसी तरीके से गिराया जाए। यह मंच आगे चल के बीजेपी के लिए बहुत नहीं तो थोड़ी मुश्किल जरूर खड़ी करने वाला है।

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