Bihar Politics : तेजस्वी का ‘मिशन कांग्रेस’ क्यों लग रहा इम्पॉसिबल? राहुल के लिए प्लान है या खुद के लिए?

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Bihar Politics : तेजस्वी का ‘मिशन कांग्रेस’ क्यों लग रहा इम्पॉसिबल? राहुल के लिए प्लान है या खुद के लिए?


Bihar Politics : तेजस्वी का ‘मिशन कांग्रेस’ क्यों लग रहा इम्पॉसिबल? राहुल के लिए प्लान है या खुद के लिए?

हाइलाइट्स:

  • 2024 आम चुनाव के लिए अभी से रणनीति पर मंथन
  • तेजस्वी यादव ने कांग्रेस के लिए एक ‘प्लान’ बनाया है
  • सभी विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने का सुझाव
  • मोदी का विकल्प ढूंढने के लिए शरद पवार ने भी की थी बैठक

जयनारायण पाण्डेय, TNN
लालू यादव के बेटे और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कांग्रेस के लिए एक ‘प्लान’ बनाया है। उन्होंने प्रस्ताव दिया है कि 2024 में पीएम मोदी को हराने के लिए कांग्रेस को विपक्ष के लिए धुरी होना चाहिए। रणनीति के लिए लिहाज से तो ठीक ही लग रहा है। मगर व्यावहारिक राजनीति में कई रोड़े हैं, बिहार से लेकर बाहर तक रास्ते में कई कांटे हैं।

मिशन कांग्रेस पर तेजस्वी और शरद पवार?
सबसे बड़ी बाधा है कि विपक्षी खेमे का नेतृत्व कौन करेगा? अगले चुनाव में पीएम मोदी का विकल्प कौन होगा? चेहरे की लड़ाई इतनी आसान नहीं है। हालांकि कई लोगों को लग रहा है कि ये समयपूर्व तैयारी है। अभी लोकसभा चुनाव में काफी वक्त है। 2024 के आम चुनाव से पहले गंगा में बहुत पानी बहेगा। पिछले हफ्ते राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार ने नरेंद्र मोदी का विकल्प ढूंढने के लिए आठ दलों की बैठक बुलाई थी। माना जा रहा है कि इस दिशा में ये बहुत छोटा कदम है। पवार ने कहा कि अगर कोई वैकल्पिक गठबंधन बनाना है तो कांग्रेस की जरुरत होगी। शिवसेना भी सोचती है कि कांग्रेस के बिना कोई भी विपक्षी गठबंधन अव्यावहारिक है।

वहीं, तेजस्वी यादव ने रविवार को न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा था कि 542 लोकसभा सीटों में से 200 से अधिक जगहों पर बीजेपी का सीधा मुकाबला किसी न किसी क्षेत्रीय दल से है न कि कांग्रेस से। उनके पिता और आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने हमेशा केंद्र में गठबंधन सहयोगी के रूप में कांग्रेस का समर्थन किया है। साथ ही बिहार में बड़े भाई की भूमिका निभाई है।

क्षेत्रीय क्षत्रपों को संभालना सबसे बड़ी चुनौती
भारतीय जनता पार्टी के नाम पर क्षेत्रीय दलों को जुटाना आसान काम नहीं है। ओडिशा में नवीन पटनायक, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, यूपी में अखिलेश यादव और मायावती और दक्षिण भारत में मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप हैं। ये सभी कांग्रेस नेतृत्व (राहुल गांधी) को नरेंद्र मोदी के विकल्प के रूप में पेश करने के नाम पर अपनी चुनावी रोटी सेंकने की अनुमति देंगे, इसमें संदेह है। दूसरी ओर, कांग्रेस भी लोकसभा चुनाव में कम सीटों पर चुनाव लड़ने और क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व को स्वीकर करने के मूड में नहीं होगी।

लेफ्ट ने ‘प्लान तेजस्वी’ पर सुना दी खरी-खरी
बिहार सीपीएम के राज्य सचिव अवधेश कुमार ने कहा कि ‘बिना किसी सहमति के कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।’ उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस को न केवल सार्वजनिक मुद्दों को उठाने में आक्रामक भूमिका निभानी है, बल्कि पहल करते हुए भी दिखना चाहिए। कुछ लोग (पवार) केवल चुनाव देखते हैं लेकिन राष्ट्रीय पार्टी के रूप में कांग्रेस को केंद्र की गलत नीतियों के खिलाफ एक आंदोलन शुरू करना चाहिए, जो लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहा हो। उनके पास इसकी कमी है’ उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस की सफलता दर देखिए, जिसे पिछले साल बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए 75 सीटें दी गई थी। केवल 19 जीत सके’। अवधेश ने कहा कि ‘पहले विपक्षी दलों को लोगों का विश्वास जीतने के लिए एक मंच पर आना चाहिए।’ हालांकि कांग्रेस महासचिव तारिक अनवर ने पटना में कहा कि ‘कांग्रेस कोविड गाइडलाइन प्रतिबंधों के कारण पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इजाफा और अन्य मुद्दों पर सड़कों पर नहीं उतर सकी, क्योंकि पार्टी कोरोना के नियमों का उल्लंघन करना नहीं चाहती थी।

तेजस्वी की प्लानिंग कांग्रेस के लिए का खुद के लिए?
वहीं, तेजस्वी के ‘प्लान कांग्रेस’ को खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने के लिए रणनीति के एक हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि 2019 लोकसभा चुनाव में आरजेडी का खाता भी नहीं खुला था। बीजेपी ने 17, जेडीयू ने 16 और एलजेपी ने 6 सीटें जीती थी। विपक्षी खेमे से कांग्रेस ने मात्र एक सीट (किशनगंज) पर जीत हासिल की थी। अब महागठबंधन में कांग्रेस के अलावा वामपंथी नए सहयोगी हैं। तेजस्वी चाहते हैं कि अगले चुनाव से पहले जमुई के सांसद चिराग पासवान उनकी तरफ आ जाएं। चूंकि चिराग के चाचा पशुपति पारस समेत पांच सांसदों ने पार्टी पर कब्जा कर लिया है। चिराग को पार्टी से बेदखल करने का दावा भी किया है।
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LJP के वोटबैंक पर तेजस्वी की नजर?
चिराग और उनके पिता रामविलास पासवान के नेतृत्व में एलजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में 7.86% वोट हासिल किए थे। तब वो बीजेपी और जेडीयू गठबंधन में शामिल थी। तेजस्वी को लगता है कि चिराग को अपने पाले में करने से उनको फायदा होगा। आरजेडी ने 5 जुलाई को एलजेपी संस्थापक रामविलास पासवान के जन्मदिन को मनाने का भी फैसला किया है। संयोग से उसी दिन राष्ट्रीय जनता दल का स्थापना दिवस भी है। अब जब रामविलास पासवान नहीं रहे, पार्टी के पांच सांसद एनडीए (नीतीश) के समर्थन में आ गए तो चिराग को राज्य सरकार से भाव मिलनेवाला नहीं है। चिराग पासवान और पशुपति पारस दोनों अगले कैबिनेट विस्तार का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद खुला ‘खेल’ होगा।

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जबकि जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को विपक्षी खेमे में चिराग को शामिल होने की पेशकश में कोई राजनीतिक महत्व नहीं दिखता है। उन्होंने कहा कि दोनों को अपने परिवारों के कारण राजनीति में जगह मिली है। रामविलास ने तो राजनीति में जगह बनाने के लिए काफी मेहनत की थी।

ओवैसी के AIMIM को कौन संभालेगा?
बिहार की राजनीति में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को सीमांचल एरिया में नकारा नहीं जा सकता है। 2020 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीती थी। अगले साल यूपी विधानसभा चुनाव में कम से कम 100 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। बिहार में कई राजनीतिक दल ओवैसी के साथ हाथ मिलाने के खिलाफ हैं, भले ही उन्होंने सीमांचल के मुस्लिम वोटों में पैठ बना ली हो।



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