Bihar News: 135 साल बाद अपनों से मिलने सात समंदर पार से बिहार आया शख्स, अंग्रेज परदादा को ले गए थे वेस्टइंडीज h3>
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परिजनों ने माला पहनाकर स्वागत किया। – फोटो : NEWS4SOCIAL
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कहते हैं अपना खून खींचकर अपनों के पास ले ही आता है। ऐसा ही मामला बिहार के सारण जिले में सामने आया है। 135 साल बाद जब सात समंदर पार वेस्टइंडीज से भारतीय मूल के एक दंपती यहां आए तो सब लोग दंग रह गए। वह अपने परिवार से मिलने आये थे। इनके पूर्वज को अंग्रेज मजदूरी कराने के वेस्टइंडीज लेकर चले गए थे। पूर्वज तो नहीं लौैटे लेकिन यह लोग लौट कर अपने परिजनों से मिलने आ गए। आइए जानते हैं पूरी कहानी…
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सारण जिले के छपरा निवासी चटंकी मियां वर्ष 1890 में जब भारत से वेस्टइंडीज गए थे तो उनके अप्रवासी (इमिग्रेशन) पास पर इनके सहोदर भाई हरभंगी मियां का जिक्र था। जो वेस्टइंडीज के परिवारवायली विशेषज्ञ इमिग्रेशन पास को वेस्टइंडीज के नेशनल आर्काइव से निकाला। जिस पास में बिहार राज्य के सारण जिले के बनियापुर और लशकरीपुर गांव का जिक्र था। उसके बाद अयोध्या के रहने वाले परिवारवायली विशेषज्ञ कृष्णा पाठक को इनके परिवार को खोजने की ज़िम्मेदारी दी गई। हालांकि उसके बाद कृष्णा पाठक ने सारण के अभिलेखागार से चटंकी मियां के भाई हरभंगी मियां के कागजात को निकाला। उसके बाद प्रमाणित हुआ कि चटंकी मियां और हरभंगी मियां दोनों सहोदर भाई थे। इसमें दोनों भाइयों के कागजात में इनके पिता का नाम लंगट मियां दर्ज पाया गया। उसके बाद कृष्णा पाठक ने लहलादपुर प्रखंड के लशकरीपुर गांव आकर स्थानीय बुजुर्गों से इस संबंध में जानकारी प्राप्त की थी। तब जाकर इन दोनों भाइयों का मिलना संभव हुआ है।
135 वर्ष पहले गए थे वेस्टइंडीज
वेस्टइंडीज के त्रिनिदाद एंड टोबैगो शहर में रहने वाले चालीस वर्षीय फाजील जहूर और उनकी पत्नी मेरीन द्वारका जहूर अपने पूर्वजों के गांव लहलादपुर प्रखंड के लशकरीपुर पहुंचे। 1890 में लंगट मियां के पुत्र चटंकी मियां को अंग्रेजों ने ईंख की खेतों में मजदूरी कराने के लिए वेस्टइंडीज लेकर चले गए थे। मजदूरी करने के बाद चटंकी मियां को अंग्रेजी शासन की ओर से दस एकड़ जमीन दिया गया था, ताकि वह अपना जीवन गुजर बसर कर सकें। उसके बाद चटंकी मियां वहीं पर शादी कर घर बसा लिया। वह अपने बेटा, पोता और अन्य पीढ़ियों को भी भारत अपने गांव की यादों के संबंध में बताया करते थे। जिस कारण मिट्टी के जुड़ाव की वजह से उनकी चौथी पीढ़ी को अपने पुरखों की मिट्टी को नमन करने गांव आना हुआ है। फाजील जहूर ने कहा कि हमने अपने जमीन को छू लिया, जिस पर कभी उनके पुरखे सपने देखा करते थे। मैं गांव के हर गली में घूम-घूमकर अपने पूर्वजों के यादों को टटोला। इससे बहुत ही अच्छा और सुखद अहसास मिल रहा है। अब तो हमलोगों का जब भी मन करेगा, तब यहां आते रहेंगे।
परदादा सुनाते थे गांव के किस्से-कहानियां
फाजिल जहूर और मेरीन द्वारका जहूर ने संयुक्त रूप से बताया कि हमारे परदादा गांव के संबध में बहुत सारी बातें किया करते थे। उन्हीं बातों ने फाजुल जहूर को अपने जड़ों से मिलने के लिए प्रेरित किया और गांव में कदम रखते ही पति और पत्नी ने अपने पुरखों की मिट्टी पर लेट कर उसे नमन किया। इस दौरान उनकी आंखें नम हो गईं। शिया वफ्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद अफजल अब्बास के नेतृत्व में गांव वालों ने गर्मजोशी के साथ दंपती का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। उनके चचेरे भाई शमशाद और अफताब के अलावा हसन इमाम, सैयद मो इमाम, समशाद अली, अफताब अली, जया अब्बास, सैयद सोहैल, कमर अब्बास सहित दर्जनों ग्रामीणों ने ढोल, नगाड़े, फुल मालाओं और पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ सभी को गले लगाकर स्वागत किया।
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