औरंगाबाद जिले में मंडल कारा की कार्यशैली एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। किशोर न्याय परिषद ने उम्र निर्धारण से जुड़े एक मामले में पखवाड़े के भीतर दूसरी बार मंडल कारा अधीक्षक को शोकॉज नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने इस देरी को न केवल किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन माना है, बल्कि इसे कर्तव्यहीनता और घोर लापरवाही करार दिया है।
लंबे समय से किशोर मंडल कारा में बंद
मामले में किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी सह एसीजेएम सुशील प्रसाद सिंह ने कहा कि विधि-विवादित किशोर को लंबे समय से मंडल कारा में बंद रखा गया है, लेकिन उसकी उम्र निर्धारण रिपोर्ट अब तक नहीं भेजी गई है। यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि उस पर मामला किशोर न्याय बोर्ड में चलेगा या बाल न्यायालय में। यह स्थिति किशोर के हितों के साथ गंभीर खिलवाड़ है।
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‘15 अप्रैल तक कोर्ट में उपस्थित होकर दें स्पष्टीकरण’
कोर्ट ने मंडल कारा अधीक्षक को आदेश दिया है कि वह 15 अप्रैल को स्वयं उपस्थित होकर बताएं कि आखिर उम्र निर्धारण प्रतिवेदन भेजने में इतना विलंब क्यों हो रहा है। कोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर स्पष्टीकरण नहीं मिला, तो मामला राज्य सरकार को अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए भेजा जाएगा। साथ ही इस आदेश की प्रति अपर पुलिस महानिरीक्षक, पुलिस महानिरीक्षक (गृह) और कारा विभाग को भी भेजी गई है।
पहले भी हो चुका है शोकॉज, तब भी नहीं हुआ सुधार
उल्लेखनीय है कि 29 मार्च को भी इसी मामले में कारा अधीक्षक को शोकॉज किया गया था। कोर्ट ने उस समय भी सात दिनों के भीतर स्पष्टीकरण देने और किशोर के पर्यवेक्षण गृह भेजने की प्रक्रिया स्पष्ट करने का आदेश दिया था, लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला। अधिवक्ता सतीश कुमार स्नेही ने बताया कि किशोर न्याय परिषद ने यह कार्रवाई जीआर संख्या-2089/24, जेजेबी वाद संख्या-1052/25 में की है। परिषद ने 16 जनवरी को ही आदेश देकर किशोर का मेडिकल बोर्ड से उम्र निर्धारण कराने को कहा था, लेकिन आदेश के बावजूद अब तक प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया।
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निरीक्षण के दौरान मिले थे 14 संभावित किशोर, सुधार नहीं
इससे पहले किशोर न्याय परिषद की एक टीम ने जेल का निरीक्षण किया था। निरीक्षण में विभिन्न वार्डों में 14 ऐसे किशोर मिले, जो प्रथम दृष्टया नाबालिग प्रतीत होते थे। परिषद ने तब भी सभी संभावित किशोरों को एक साथ एक वार्ड में रखने का आदेश दिया था, लेकिन उस आदेश का पालन भी नहीं हुआ।
कोर्ट की अवमानना और किशोरों के अधिकारों का हनन
कोर्ट ने यह भी कहा है कि आदेशों का अनुपालन न करना न सिर्फ प्रशासनिक मनमानी है, बल्कि न्यायिक आदेश की अवमानना भी है। किशोरों के अधिकारों की रक्षा के लिए समयबद्ध कार्रवाई आवश्यक है। बार-बार के निर्देशों और शोकॉज के बावजूद अगर रिपोर्ट नहीं भेजी जा रही है, तो यह साफ दर्शाता है कि मंडल कारा की व्यवस्था ध्वस्त होती नजर आ रही है।