Bihar Flood: एक तरफ बागमती दूसरी तरफ लखनदेई, बाढ़ में डूबा धान, कमाई का जरिया भैंस भी जख्मी; भीख मांगने की नौबत

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Bihar Flood: एक तरफ बागमती दूसरी तरफ लखनदेई, बाढ़ में डूबा धान, कमाई का जरिया भैंस भी जख्मी; भीख मांगने की नौबत

Bihar Flood: एक तरफ बागमती दूसरी तरफ लखनदेई, बाढ़ में डूबा धान, कमाई का जरिया भैंस भी जख्मी; भीख मांगने की नौबत

Bihar Flood: रंजीत सिंह ने बताया कि बच्चों की पढ़ाई खेती पर निर्भर थी। धान फूट चुके थे। कमाई का दूसरा साधन भैंस अब बीमार हो गई। आगे के दिन कैसे कटेंगे, यह वह नहीं जानते। तटबंध पर सामान और मवेशी के साथ आदमी भी खुले आसमान के नीचे हैं।

Bihar Flood: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले औराई में बागमती और लखनदेई ने सात साल बाद फिर तबाही मचायी है। इस बार बर्बादी पहले से कई गुना ज्यादा है। औराई के चहुंटा में बांध के एक तरफ बागमती तबाही मचा रही है, तो दूसरी ओर उफना चुकी लखनदेई बाढ़ पीड़ितों को डरा रही है। दोनों के बीच फासला बागमती का तटबंध का है, जिसपर हजारों लोगों ने शरण ले रखी है। माल-मवेशी समेत शरण लिये लोग किधर जाएं, यह उनकी समझ से बाहर है।

बाढ़ में डूबा धान, कमाई का जरिया भैंस भी जख्मी

चहुंटा के रंजीत सिंह कहते हैं, रविवार की रात 10 बजे तक पानी की रफ्तार उतनी तेज नहीं थी। महिला, बच्चे और बुजुर्ग सो गए थे। सिर्फ गांव के युवा रतजगा कर रहे थे। रंजीत सिंह थके थे, उनकी आंख लग गई। रात डेढ़ बजे अचानक शोर हुआ। बाढ़ विकराल रूप ले चुका था। नाव के सहारे घर का जो सामान निकाल सकते थे, उन्हें निकाला और तटबंध पर रख आये। दोबारा मवेशियों को लेने आये तो जल्दीबाजी में भैंस का पैर टूट गया, वह बच्चा देने वाली है। उसे संभालने की कोशिश में रंजीत सिंह का भी पैर जख्मी हो गया।

रंजीत सिंह ने बताया कि बच्चों की पढ़ाई खेती पर निर्भर थी। धान फूट चुके थे। कमाई का दूसरा साधन भैंस अब बीमार हो गई। आगे के दिन कैसे कटेंगे, यह वह नहीं जानते। तटबंध पर सामान और मवेशी के साथ आदमी भी खुले आसमान के नीचे हैं। अभी तक पॉलीथीन भी नहीं मिला है, जेसे तानकर धूप और पानी से सुरक्षा हो सके। यही स्थिति चहुंटा के हर परिवार की है। कोई बाहरी मदद नहीं मिल रही है और तबाही सिर पर है। जनप्रतिनिधि फोन से हालचाल पूछ रहे हैं, डर से मौके पर देखने नहीं आ रहे।

यहां न बसने की सलाह दे चले गए कर्मचारी

बभनगामा पश्चिम निवासी मंजूर आलम सहित सैकड़ों लोगों की अलग पीड़ा है। बाढ़ से विस्थापित होकर तटबंध पर पहुंचे मंजूर आलम ने बताया कि बाढ़ की खबर सुन कर्मचारी देवेंद्र कुमार सुबह साढ़े छह बजे ही आये थे। कोई मदद देने की जगह वे बोलकर गये कि आप लोगों को पैसा मिल चुका है तो तटबंध के अंदर क्यों रहते हैं। अब ये कौन बताये कि उन्हें मुआवजा और पुनर्वास की जमीन अब तक नहीं मिली।

जब लोगों ने शिकायत शुरू की तो वे पल्ला झाड़कर बोले कि पूर्वी टोला से घूमकर आता हूं। तब तक आपलोग धीरज रखिये। दो घंटे इंतजार के बाद फिर कॉल की गई तो उन्होंने फोन पर बताया कि अब चहुंटा घाट पर हूं, थोड़ी देर में फोन करता हूं। अब शाम के चार बज गए हैं, वे फोन करना तो दूर, बाढ़ पीड़ितों का फोन रिसीव भी नहीं कर रहे।

बंटाई की खेती तबाह, भीख मांगने की नौबत

पितौझिया की वीणा देवी कती है, सुबह तक सब ठीक था। सोमवार को दिन में पौने एक बजे अचानक घर में पानी घुसने लगा तो बच्चों और पति के साथ बाहर भागकर एनएच पर शरण ली। बताया कि उसके पति हरेंद्र सहनी मजदूर हैं। मजदूरी से समय निकाल कर बंटाई पर कुछ खेती की थी। मजदूरी के बाद बंटाई पर खेती का जोखिम बच्चों की पढ़ाई के लिए ही उठाया। अब खेत में पानी भर गया है और फूटे हुए धान पानी में डूब गये हैं। बच्चों की पढ़ाई तो अब दूर की बात है, उनका पेट कैसे भरा जाये, यह समस्या सबसे बड़ी है। किसी तरह इस बाढ़ में बच्चों की जान बच जाये, यही बड़ी बात है। जियेगा-बचेगा तो पढ़ाई की सोचूंगी। यहां भीख मांगने की नौबत आ गई है।

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