Biggest Natraj Sculpture : रहस्मयी पत्थर का खंभा निकला नटराज की सबसे बड़ी मूर्ति, हजारों साल तक खंडहर में रहा दबा h3>
विदिशा : एमपी के विदिशा जिले में एक रहस्मयी पत्थर का खंभा लगभग 1500 साल पुरानी भगवान शिव की सबसे मूर्तियों (natraj sculpture mystery news) में से एक बन गया है। इसे रहस्मय तरीके से सीधा रखने की जगह जमीन पर छोड़ दिया गया था। महाशिवरात्रि से एक दिन पहले इंटेक के राज्य संयोजक मदन मोहन उपाध्याय ने कहा कि यह दुनिया की सबसे बड़ी नटराज मूर्ति (mystery monolith turns natraj sculpture) है। उन्होंने कहा कि इन खंडहरों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयर्टन स्थल में बदलने की काफी संभावनाएं हैं।
उपाध्याय ने कहा कि इंटेक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज) प्राचीन स्थल का दस्तावेजीकरण पूरा कर लिया है औऱ जल्द ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। यह इलाका गंजबासौदा से 15 किमी और भोपाल से 140 किमी है। इसके साथ ही विदिशा जिला प्रशासन, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग और राज्य पुरातत्व विभाग भी इस समृद्ध विरासत के संरक्षण के लिए काम कर रहा है।
उन्होंने ने बताया है कि नौ मीटर लंबी और चार मीटर चौड़ी विशाल मूर्ति एक ही चट्टान से बनाई गई थी। इंटेक के संयोजक ने कहा कि यह इतना बड़ा है कि इसकी छवि को एक फ्रेम में तब तक कैद नहीं किया जा सका, जब तक कि इंटेक ने ड्रोन का इस्तेमाल नहीं किया, जिससे पहली बार पता चला कि यह एक नृत्य करने वाला शिव की प्रतिमा है।
दरअसल, पिछले एक-दो साल से इंटेक 1059 ईस्वी के आसपास परमार राजा के बसाए शहर उदयपुर की साइट पर काम कर रहा है। उदयपुर के खंडहरों में इतिहास की कई परतें दफन हैं। नटराज की मूर्ति इन खंडहरों से पहले की है। उपाध्याय ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि गांव, महलों, मंदिरों, जलाशयों, गढ़ों, किलेबंदी की दीवार और शहर के द्वार और असंख्या स्मारकों से जुड़े बुनियादी ढांचे, उदयपुर के बारे में बहुत कुछ कहते हैं।
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नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है यह क्षेत्र
उन्होंने कहा कि यह स्थान पूरे मध्यप्रदेश में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के लिए जाना जाता है, जो एक एएसआई संरक्षित स्मारक है जो विशेष रूप से महाशिवरात्रि पर बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है। शिलालेखों में भगवान शिव के नीलकंठेश्वर मंदिर सहित इस स्थान के निर्माण की कथा लिखी गई है, जो अब ग्वालियर संग्रहालय में सुरक्षित है।
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कई राज हैं दफन
वहीं, कुछ हजार हेक्टेयर में फैले इस खंडहर में इतिहास की कई परतें हैं जो अलग-अलग समय के दौरान परमार, गोंड और मराठों सहित विभिन्न राजवंशों के वर्चस्व को दर्शाती है। उपाध्याय ने कहा कि यह रहस्य की बात है कि उदयपुर में नटराज को एक खड़ी शिव मूर्ति के रूप में क्यों स्थापित नहीं किया जा सका, इस पर शोध करने की जरूरत है।
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उपाध्याय ने कहा कि इंटेक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज) प्राचीन स्थल का दस्तावेजीकरण पूरा कर लिया है औऱ जल्द ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। यह इलाका गंजबासौदा से 15 किमी और भोपाल से 140 किमी है। इसके साथ ही विदिशा जिला प्रशासन, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग और राज्य पुरातत्व विभाग भी इस समृद्ध विरासत के संरक्षण के लिए काम कर रहा है।
उन्होंने ने बताया है कि नौ मीटर लंबी और चार मीटर चौड़ी विशाल मूर्ति एक ही चट्टान से बनाई गई थी। इंटेक के संयोजक ने कहा कि यह इतना बड़ा है कि इसकी छवि को एक फ्रेम में तब तक कैद नहीं किया जा सका, जब तक कि इंटेक ने ड्रोन का इस्तेमाल नहीं किया, जिससे पहली बार पता चला कि यह एक नृत्य करने वाला शिव की प्रतिमा है।
दरअसल, पिछले एक-दो साल से इंटेक 1059 ईस्वी के आसपास परमार राजा के बसाए शहर उदयपुर की साइट पर काम कर रहा है। उदयपुर के खंडहरों में इतिहास की कई परतें दफन हैं। नटराज की मूर्ति इन खंडहरों से पहले की है। उपाध्याय ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि गांव, महलों, मंदिरों, जलाशयों, गढ़ों, किलेबंदी की दीवार और शहर के द्वार और असंख्या स्मारकों से जुड़े बुनियादी ढांचे, उदयपुर के बारे में बहुत कुछ कहते हैं।
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वहीं, कुछ हजार हेक्टेयर में फैले इस खंडहर में इतिहास की कई परतें हैं जो अलग-अलग समय के दौरान परमार, गोंड और मराठों सहित विभिन्न राजवंशों के वर्चस्व को दर्शाती है। उपाध्याय ने कहा कि यह रहस्य की बात है कि उदयपुर में नटराज को एक खड़ी शिव मूर्ति के रूप में क्यों स्थापित नहीं किया जा सका, इस पर शोध करने की जरूरत है।