Bhalswa Landfill Height: बढ़ती चली गई भलस्वा में कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई, स्थानीय लोग हो रहे सांस की बीमारियों के शिकार

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Bhalswa Landfill Height: बढ़ती चली गई भलस्वा में कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई, स्थानीय लोग हो रहे सांस की बीमारियों के शिकार

Bhalswa Landfill Height: बढ़ती चली गई भलस्वा में कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई, स्थानीय लोग हो रहे सांस की बीमारियों के शिकार

राजेश पोद्दार, भलस्वा लैंडफिल:भलस्वा लैंडफिल साइट से शुक्रवार को भी धुआं निकलने का सिलसिला जारी रहा, जिसके कारण यहां आसपास रहने वाले लोगों का प्रदूषण से बुरा हाल है। धुआं लगातार उनकी सांसों में भर रहा है। मंगलवार शाम लगी भीषण आग के बाद से फायर ब्रिगेड की गाड़ियां आग पर काबू पाने की लगातार जद्दोजहद कर रही है, लेकिन रुक-रुक कर निकल रही चिंगारी और पिछले चार दिनों से कभी न रुकने वाला धुआं आस-पास बसी आधा दर्जन से अधिक कॉलोनियों के लोगों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस लैंडफिल साइट पर कोई पहली बार आग नहीं भड़की है। सालों से लोग चीखते-चिल्लाते रहे हैं, लेकिन सिविक एजेंसियों ने कूड़े के इस पहाड़ को खत्म करने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किया। श्रद्धानंद कॉलोनी, विश्वनाथपुरी कॉलोनी भलस्वा, स्वरूप नगर एक्सटेंशन, मुकुंदपुर, मुकुंद विहार, भलस्वा डेयरी, जहांगीरपुरी समेत कई कॉलोनियों इस लैंडफिल के धुएं की जद में हैं। इनमें रहने वाले अनगिनत लोगों का कहना है कि हम यह आस छोड़ चुके हैं कि हमें कभी कूड़े के इस पहाड़ से छुटकारा मिलेगा।

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1994 से डंप किया जा रहा कूड़ा
सन् 1994 में कूड़े को यहां लाकर डंप करने का काम शुरू हुआ था। उस वक्त यह दिल्ली के एक बाहरी हिस्से के रूप में जाना जाता था, लेकिन तब एजेंसियों को शायद ही इस बात का इल्म रहा होगा कि आने वाले दिनों में यह लैंडफिल दिल्ली के लिए कितनी बड़ी समस्या बन जाएगी। दिल्ली में कुतुब मीनार को सबसे ऊंची इमारत का दर्जा हासिल है, लेकिन उससे भी अधिक ऊंचाई तक पहुंच चुके इस कूड़े के पहाड़ को खत्म करने को लेकर तमाम सरकारें और एजेंसियां नए-नए दावे हर साल बजट स्तर से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक में करती रही हैं, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

कुछ साल तक महज छोटा-सा कूड़े का ढलाव दिखने वाली यह लैंडफिल साइट देखते ही देखते तीन चोटियों वाला पहाड़ बन गया। कूड़े के तीन अलग-अलग पहाड़ यहां दिखाई दे रहे हैं, जो साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। नॉर्थ एमसीडी लगातार दावे करती रही है कि यहां का कूड़ा खत्म करने के लिए हम करीब 50% कूड़े का कंपोस्ट बना सकते हैं, जबकि 30% कूड़े को रिसाइकल किया जा सकता है। लेकिन वास्तविकता में पिछले 7-8 सालों में कूड़े के पहाड़ की हाइट घटने के बजाय बढ़ती चली गई।

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अंडरग्राउंड वॉटर भी हो चुका जहरीला
एनबीटी की टीम ने शुक्रवार को फिर एक बार श्रद्धानंद कॉलोनी और विश्वनाथ पुरी कॉलोनी का दौरा किया। वहां के अधिकांश लोगों ने कहा कि पिछले कई सालों से यहां पर जमीन से निकलने वाला पानी बेहद काला और जहरीला है, जिसे लोग पीने के लिए इस्तेमाल नहीं करते। ऐसे में यहां पर लोगों ने हैंडपंप लगाने भी बंद कर दिए। स्थानीय निवासी महेंद्र बताते हैं कि आए दिन लोग यहां पर खांसी, अस्थमा… यहां तक कि टीबी जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं। यहां रहने वाले बच्चों तक में कई तरह की बीमारियां देखी जाती हैं। छोटे-छोटे बच्चे सांस फूलने और स्किन प्रॉब्लम सहित दूसरी बीमारियों से ग्रसित हैं।

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