Balaji Wafers Success Story: टॉकीज में बेचे चिप्स, होटल में किया काम, आज 4000 करोड़ की कंपनी के हैं मालिक

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Balaji Wafers Success Story: टॉकीज में बेचे चिप्स, होटल में किया काम, आज 4000 करोड़ की कंपनी के हैं मालिक

Balaji Wafers Success Story: टॉकीज में बेचे चिप्स, होटल में किया काम, आज 4000 करोड़ की कंपनी के हैं मालिक

नई दिल्ली: अगर किसी भी चीज के लिए दिल से मेहनत की जाए तो सफलता मिलने में देर नहीं लगती है। छोटी शुरुआत के साथ लंबी उड़ान भरने के इरादे से कई बिजनेसमेन ने खुद को साबित किया है। ऐसी ही एक कंपनी है बालाजी वेफर्स (Balaji Wafers)। यह गुजरात की गलियों से निकलकर फेमस नमकीन ब्रांड (Balaji Wafers) बन चुकी है। इसके फाउंडर चंदूभाई विरानी (Chandubhai Virani) ने कभी हार नहीं मानी। एक साधारण परिवार में जन्मे चंदूभाई विरानी को जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा है। 15 साल की उम्र में, चंदूभाई (Chandubhai Virani) और उनका परिवार अपने पिता की छोटी बचत के सहारे एक नई शुरुआत की उम्मीद में ढुंडोराजी चले गए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चंदूभाई को अपने दो भाइयों, मेघजीभाई और भीखूभाई के साथ नए सिरे से शुरुआत करने के लिए 20,000 रुपये सौंपे गए थे। चंदूभाई (Chandubhai Virani) ने राजकोट में कृषि उत्पादों और कृषि उपकरणों का कारोबार शुरू किया। लेकिन सफलता नहीं मिली। इससे उनके परिवार की परेशानियां और बढ़ गईं।

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पोस्टर चिपकाने से लेकर बेचे चिप्स

चंदूभाई ने गुजारा करने के लिए एक सिनेमा की कैंटीन में काम करने से लेकर पोस्टर तक चिपकाए। थोड़ी सी सैलरी पर फटी सीटों की मरम्मत करने का भी काम किया। कई छोटे-मोटे काम किए। किराया न चुका पाने के कारण उन्हें अपने किराए के घर को भी छोड़ना पड़ गया था। हालांकि चंदूभाई बाद में बकाया चुकाने में कामयाब रहे थे। चंदूभाई को शुरुआती कामयाबी तब मिली जब मेहनत को देखते हुए उन्हें कैंटीन में एक हजार रुपये प्रति माह का कांट्रैक्ट मिला।

ऐसे हुई शुरुआत

चंदूभाई ने अपने शुरुआती दिनों में थिएटर में वेफर्स की मांग देखी। उन्होंने इस मौके को महसूस किया और वेफर इंडस्ट्री में अपनी किस्मत अजमाने का फैसला किया। चंदूभाई ने 10,000 रुपये की छोटी सी पूंजी के साथ अपने आंगन में एक अस्थायी शेड बनाया। इसी में उन्होंने चिप्स के साथ प्रयोग शुरू किया। घर में बने उनके चिप्स को न केवल थिएटर बल्कि बाहर भी काफी अच्छा रिस्पांस मिला। इस सफलता से उत्साहित होकर, चंदूभाई ने साल 1989 में अजी जीआईडीसी, राजकोट में गुजरात की सबसे बड़ी आलू वेफर की स्थापना की। इसे करीब 50 लाख रुपये के बैंक लोन के साथ शुरू किया गया था।

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ऐसे बनी बालाजी वेफर्स

साल 1992 में, चंदूभाई ने अपने भाइयों के साथ मिलकर बालाजी वेफर्स प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की। कंपनी का नाम उनके कमरे में रखी भगवान हनुमान की एक छोटी कांच की मूर्ति से प्रेरित था। इन वर्षों में, बालाजी वेफर्स ने देश भर में चार कारखानों के साथ अपने पोर्टफोलियो का विस्तार किया। कंपनी ने 6.5 मिलियन किलोग्राम आलू और 10 मिलियन किलोग्राम नमकीन के रोजाना प्रोडक्शन का दावा किया। वित्त वर्ष 2011 तक, बालाजी वेफर्स का राजस्व कथित तौर पर 4,000 करोड़ रुपये था।

हजारों लोग कर रहे काम

आज, बालाजी वेफर्स 5,000 व्यक्तियों को रोजगार दे रहा है। इसमें प्रभावशाली 50 प्रतिशत कार्यबल महिलाएं हैं। चंदूभाई की सफलता की कहानी आशा की किरण की तरह काम करती है। यह याद दिलाती है कि मेहतन के दम पर कोई भी शख्स बड़ी से बड़ी ऊंचाईयों तक पहुंच सकता है।

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