Babaul Supriyo Quits Politics: क्या बीजेपी में बाबुल सुप्रियो की नहीं चल रही थी या मंत्री पद छिनना अखर गया? समझिए

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Babaul Supriyo Quits Politics: क्या बीजेपी में बाबुल सुप्रियो की नहीं चल रही थी या मंत्री पद छिनना अखर गया? समझिए


Babaul Supriyo Quits Politics: क्या बीजेपी में बाबुल सुप्रियो की नहीं चल रही थी या मंत्री पद छिनना अखर गया? समझिए

नई दिल्ली
पश्चिम बंगाल के आसनसोल से बीजेपी सांसद और मशहूर सिंगर बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से संन्यास का ऐलान किया है। वह केंद्रीय मंत्री भी रह चुके थे। 7 जुलाई को मोदी मंत्रिपरिषद में बदलाव और विस्तार से ठीक पहले उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। अभी जुलाई बीता भी नहीं कि उन्होंने अचानक राजनीति को अलविदा कह दिया। इसका ऐलान उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट में किया है। दो-दो बार केंद्रीय मंत्री रह चुके शख्स का अचानक राजनीति से ‘मोहभंग’ क्यों हो गया? क्या उन्हें बीजेपी में वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे? क्या मंत्री पद छिनने की वजह से उन्होंने ऐसा फैसला किया या कोई और कारण है? आइए ऐसे ही तमाम सवालों और पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं।

सुप्रियो ने खुद क्या वजह बताई है ‘संन्यास’ की?
आगे बढ़ने से पहले यह देख लेते हैं कि बाबुल सुप्रियो ने राजनीति से अपने ‘संन्यास’ के पीछे खुद क्या वजह बताई है। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, ‘राजनीति और समाज सेवा एक साथ मुमकिन नहीं है…पिछले कुछ दिनों में मैंने अमित शाह और जेपी नड्डा से मुलाकात की और उन्हें इस बारे में बताया कि मैं क्या सोच रहा हूं…उनके प्यार की वजह से मैं यह हिमाकत नहीं कर पाया कि उन्हें बता दूं कि मैं क्या करूंगा लेकिन मैंने बहुत पहले यह फैसला कर लिया था।’ यहां उनका इशारा संभवतः हालिया पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के वक्त की ओर है। सुप्रियो ने आगे लिखा, ‘उस वक्त अगर मैं यह करता तो ऐसा लगता कि मैं सौदेबाजी कर रहा हूं।’

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अटकलें जो सच साबित हुईं
बाबुल सुप्रियो ने भले ही अचानक राजनीति से संन्यास का ऐलान किया लेकिन उनका यह फैसला चौंकाने वाला नहीं था। पिछले कुछ दिनों से ऐसी अटकलें लग रही थीं जो उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स से उठ रही थीं। उनके हाल के फेसबुक पोस्ट्स इस ओर इशारा कर रहे थे। ऐसे ही एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, ‘मैंने कभी सबको खुश करने के लिए राजनीति नहीं की। यह मेरे लिए संभव नहीं है और मैंने कभी ऐसा करने का प्रयास भी नहीं किया इसलिए मैं सबके लिए अच्छा नहीं बन पाया।’ एक और पोस्ट में उन्होंने लिखा, ‘मुझे अच्छा रिस्पॉन्स तभी मिलता है, जब मैं राजनीति से हटकर गानों के बारे में पोस्ट करता हूं। कई पोस्ट के जरिए मुझसे राजनीति से दूर रहने की गुजारिशें की गई हैं, जो मुझे गहराई से इस बारे में सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं।’

मैं एक महीने के भीतर अपना सरकारी घर छोड़ दूंगा। मैं संसद सदस्य पद से भी इस्तीफा दे रहा हूं।

राजनीति से संन्यास के ऐलान के बाद बाबुल सुप्रियो

तो क्या सचमुच बहुत पहले ही ले लिया था संन्यास का फैसला?
फेसबुक पोस्ट में बाबुल सुप्रियो ने दावा किया है कि वह बहुत पहले ही राजनीति से तौबा का मन बना चुके थे, बस इसलिए हिचक रहे थे कि लोग गलत मतलब न निकालने लगें, उसे सौदेबाजी के लिए कोई पैंतरा न समझने लगें। तो क्या सचमुच वह राजनीति से संन्यास का फैसला काफी पहले ही ले चुके थे, जैसा कि वह दावा कर रहे हैं? सच्चाई को उनसे बेहतर कोई नहीं जान सकता लेकिन कई बातें उनके दावे पर सवाल उठाती हैं। राजनीति से संन्यास का मन बना रहा कोई मौजूदा सांसद भला विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए क्यों तैयार होगा? आसनसोल से लगातार दूसरी बार सांसद बाबुल सुप्रियो ने टॉलीगंज सीट से हालिया पश्चिम बंगाल विधानसभा का चुनाव लड़ा था। पूरे जोश से लड़ा था। हालांकि, वह विधानसभा चुनाव हार गए।

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क्या बीजेपी में वह सम्मान नहीं मिला जिसके हकदार थे?
तो अब सवाल उठता है कि बाबुल का राजनीति से अचानक ‘मोहभंग’ क्यों हो गया। क्या बीजेपी में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे? इसका जवाब हां तो नहीं लगता है। बाबुल सुप्रियो 2014 में पहली बार सांसद बने और पहली ही बार में केंद्र में मंत्री भी बन गए। 2019 में जब नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बने तो बाबुल सुप्रियो भी उनकी टीम में शामिल रहे। यह जरूर हो सकता है कि उनकी महत्वाकांक्षा इससे कहीं और ज्यादा की रही हो जो शायद पूरी होती नहीं दिखने से सियासत से ही उनका मन उचट गया।

मंत्री पद छिनने से नाराजगी तो वजह नहीं?
7 जुलाई को मोदी मंत्रिपरिषद में बदलाव और विस्तार से पहले बाबुल सुप्रियो को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। तब उनके फेसबुक पोस्ट में मंत्री पद छिनने का दर्द छलका भी था। उन्‍होंने तब लिखा था- ‘ मुझे इस्तीफा देने के लिए कहा गया था और मैंने दे दिया… बंगाल से मंत्रिमंडल में शामिल होने जा रहे नए साथियों को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं। मैं अपने लिए जरूर दुखी हूं पर उन लोगों के बहुत खुश हूं।’ तब से ही वह राजनीतिक गतिविधियों से एक तरह से दूरी बना लिए थे। ऐसी अटकलें लगने लग गई थीं कि वह शायद टीएमसी का दामन थाम सकते हैं।

बीजेपी की पश्चिम बंगाल यूनिट से अनबन
बाबुल सुप्रियो के राजनीति से संन्यास के पीछे एक संभावित वजह पश्चिम बंगाल बीजेपी से उनका अनबन भी हो सकती है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष से उनके खराब रिश्ते तो जगजाहिर रहे हैं। 2020 में एंटी-सीएए प्रोटेस्ट के दौरान घोष ने जब यह कहा था कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को गोली मार देनी चाहिए तब बाबुल ने उनके बयान को गैरजिम्मेदार बताकर निंदा की थी।

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2017 में तो बाबुल सुप्रियो ने ट्वीट कर यहां तक दावा किया था कि दिलीप घोष ने उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र आसनसोल में पार्टी के कामकाज में दखल न देने को कहा है। दरअसल, तब सुप्रियो के एक करीबी बीजेपी पार्षद इमैनुअल वीलर ने टीएमसी में शामिल हो गए थे। वीलर को आसनसोल में ‘बपी’ के नाम से जाना जाता है। वह पार्टी के जिला नेतृत्व से नाखुश थे और सुप्रियो से अपना दर्द भी बयां किया था। जब सुप्रियो ने इसे लेकर दिलीप घोष से बात की तो उन्हें कथित तौर पर अपमानित होना पड़ा था। तब उन्होंने ट्वीट किया था, ‘दिलीप दा ने मुझसे कहा है कि संगठन को चलाना किसी सांसद या विधायक का काम नहीं है। इसलिए मैं अब संगठन के काम में कोई दखल नहीं दूंगा। आप अपना काम करते रहिए। मैं आपके साथ हूं, साथ रहूंगा।’

क्या लोकसभा सदस्यता से देंगे इस्तीफा?
राजनीति से संन्यास के ऐलान के बाद अब सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वह लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देंगे। बाबुल सुप्रियो ने यह भी ऐलान किया है कि वह एक महीने में खुद को मिले सरकारी आवास को छोड़ देंगे और लोकसभा की सदस्यता से भी इस्तीफा देंगे। यानी बंगाल के सियासी कुरुक्षेत्र में जल्द ही उपचुनाव के रूप में बीजेपी और टीएमसी का एक और सियासी संग्राम देखने को मिलने वाला है।

कहीं टीएमसी तो नहीं होंगे शामिल?
बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी में भगदड़ जैसी स्थिति थी लेकिन नतीजों के बाद अब कुछ-कुछ ऐसी ही भगदड़ बीजेपी में देखने को मिल रही है। तो क्या बाबुल सुप्रियो आने वाले दिनों में टीएमसी में शामिल होंगे? खुद उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में साफ किया है कि वह टीएमसी, सीपीएम या किसी पार्टी में नहीं जा रहे। संन्यास का मतलब यह नहीं कि वह बीजेपी छोड़ किसी और पार्टी में शामिल हो जाएं। लेकिन सियासत में कुछ भी मुमकिन है, ‘संन्यास’ के बाद वापसी भी। कभी बीजेपी के बड़े नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री रहे शंकर सिंह वाघेला को ही देख लीजिए। बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राजनीति से संन्यास ले लिया। कहा कि किसी भी पार्टी का झंडा नहीं ढोउंगा। लेकिन अब वह कांग्रेस में वापसी के लिए बेचैन दिख रहे हैं। इसी साल फरवरी में उन्होंने यहां तक कहा कि अगर सोनिया गांधी उन्हें कहती हैं तो वह बिना किसी शर्त के कांग्रेस में आने को तैयार हैं।



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