Akshay Kumar Prithviraj: काबुल से मंगवाए गए कपड़े, अफगानी चांदी से बनी ज्वैलरी, 6 महीने की रिसर्च और फिर दो सालों में तैयार हुए कॉस्ट्यूम! h3>
Akshay Kumar and Manushi Chhillar Prithviraj: अक्षय कुमार इन दिनों अपनी ऐतिहासिक फिल्म पृथ्वीराज को लेकर काफी चर्चा में हैं. फिल्म 3 जून को रिलीज होने जा रही है लिहाजा इसकी स्टार कास्ट रात दिन इसके प्रमोशन में जुटी हुई है. ये एक पीरीयड ड्रामा फिल्म है जिसमें सम्राट पृथ्वीराज की शौर्य गाथा का बखान किया जाएगा. वहीं इस फिल्म को शूट करना इतना आसान नहीं था. क्योंकि किसी भी पीरीयड फिल्म में जरूरी होता है उस फिल्म से ऑडियंस का जुड़ना और ये तभी मुमकिन है जब उस फिल्म में वही पृष्ठभूमि दिखाई जाए और पृथ्वीराज में 900 साल पुराना भारत दिखाने के लिए खूब पसीना बहाया गया.
कॉस्ट्यूम में लगा खूब समय और पैसा
इस फिल्म के लिए 12वीं सदी की दिल्ली, कन्नौज और राजस्थान को दिखाना इतना आसान नहीं था. उस दौर में भारत कैसा था ये दिखाने के लि खूब मेहनत की गई. करोडों की लागत से सेट तैयार करवाए गए और फिर उनमें शूटिंग पूरी की गई. लेकिन सेट से भी ज्यादा परेशानी कॉस्ट्यूम डिजाइन करना. चूंकि फिल्म में अलग अलग प्रांत के लोगों को दिखाया गया था लिहाजा उस दौर में उस प्रांत के लोगों के हिसाब से कॉस्ट्यूम तैयार करना कोई आसान काम नहीं था. लेकिन राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले संजीव राज परमार ने ये कर दिखाया.
2 महीने की रिसर्च और कॉस्ट्यूम बनाने में 2 साल
फिल्म में किसके लिए किस तरह के कपड़े होंगे. किस तरह के आभूषण तैयार किए जाएंगे. उस दौर की पगड़ियां कैसी होनी चाहिए. ये वाकई बहुत ही मेहनत और शोध का विषय था लेकिन धौलपुर के रहने वाले संजीव राज परमार ने ये कर दिखाया. संजीव ने इसके लिए 6 महीने तक खूब रिसर्च की. जगह-जगह घूमे और जानकारी इक्ठ्ठा करने के बाद इस पर काम शुरू कर दिया गया. जयपुर, जोधपुर, मंडोर, बीकानेर से राजपूती पोशाकें तैयार करवाए गए तो वहीं बाडमेर, जैसलमेर, नागौर जैसी जगहों से मोजड़ी और कुछ और कॉस्ट्यूम तैयार करवाना शुरू किया गया. इस पूरे काम में लगभग 2 साल का वक्त लगा.
काबुल से भी मंगवाए गए कपड़े
इस फिल्म में मोहम्मद गौरी के शासनकाल को भी दर्शाया जाना था. लिहाजा इसके लिए जरूरत थी अफगानी साम्राज्य दिखाने की. ऐसे में लोगों की वेशभूषा भी समकालीन होनी थी. इसके लिए खासतौर से काबुल से कपड़ा मंगवाया गया. सिर्फ कपड़े ही नहीं बल्कि अफगानी चांदी मंगाकर उससे उस दौर की ज्वैलरी तैयार करवाई गई. खासतौर से ये मोहम्मद गौरी की कॉस्ट्यूम के लिए किया गया. बाकी अफगान किरदारों के लिए लद्दाख में कपड़े तैयार किए गए थे.
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कॉस्ट्यूम में लगा खूब समय और पैसा
इस फिल्म के लिए 12वीं सदी की दिल्ली, कन्नौज और राजस्थान को दिखाना इतना आसान नहीं था. उस दौर में भारत कैसा था ये दिखाने के लि खूब मेहनत की गई. करोडों की लागत से सेट तैयार करवाए गए और फिर उनमें शूटिंग पूरी की गई. लेकिन सेट से भी ज्यादा परेशानी कॉस्ट्यूम डिजाइन करना. चूंकि फिल्म में अलग अलग प्रांत के लोगों को दिखाया गया था लिहाजा उस दौर में उस प्रांत के लोगों के हिसाब से कॉस्ट्यूम तैयार करना कोई आसान काम नहीं था. लेकिन राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले संजीव राज परमार ने ये कर दिखाया.
2 महीने की रिसर्च और कॉस्ट्यूम बनाने में 2 साल
फिल्म में किसके लिए किस तरह के कपड़े होंगे. किस तरह के आभूषण तैयार किए जाएंगे. उस दौर की पगड़ियां कैसी होनी चाहिए. ये वाकई बहुत ही मेहनत और शोध का विषय था लेकिन धौलपुर के रहने वाले संजीव राज परमार ने ये कर दिखाया. संजीव ने इसके लिए 6 महीने तक खूब रिसर्च की. जगह-जगह घूमे और जानकारी इक्ठ्ठा करने के बाद इस पर काम शुरू कर दिया गया. जयपुर, जोधपुर, मंडोर, बीकानेर से राजपूती पोशाकें तैयार करवाए गए तो वहीं बाडमेर, जैसलमेर, नागौर जैसी जगहों से मोजड़ी और कुछ और कॉस्ट्यूम तैयार करवाना शुरू किया गया. इस पूरे काम में लगभग 2 साल का वक्त लगा.
काबुल से भी मंगवाए गए कपड़े
इस फिल्म में मोहम्मद गौरी के शासनकाल को भी दर्शाया जाना था. लिहाजा इसके लिए जरूरत थी अफगानी साम्राज्य दिखाने की. ऐसे में लोगों की वेशभूषा भी समकालीन होनी थी. इसके लिए खासतौर से काबुल से कपड़ा मंगवाया गया. सिर्फ कपड़े ही नहीं बल्कि अफगानी चांदी मंगाकर उससे उस दौर की ज्वैलरी तैयार करवाई गई. खासतौर से ये मोहम्मद गौरी की कॉस्ट्यूम के लिए किया गया. बाकी अफगान किरदारों के लिए लद्दाख में कपड़े तैयार किए गए थे.
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