जानें कैलाश मंदिर का भव्य इतिहास
हमारे देश की संस्कृति काफी ही विराट और भव्य है। हमारी संस्कृति में ईश्वर की छाप की साथ साथ आधुनिकता भी दिखती है। बहुत से ऐसे कम लोग है जो विराट कैलाश मंदिर के बारे में वाकिफ होंगे। हमारी संस्कृति में ईश्वर के कण देखते है। कैलाश मंदिर संसार में अपने ढंग का अनूठा वास्तु जिसे मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (760-753 ई.) ने निमित्त कराया था. यह एलोरा जिला औरंगाबाद स्थित लयण-श्रृंखला में है. एलोरा की 34 गुफाओं में सबसे अदभुत है कैलाश मंदिर. इस भव्य मंदिर को देखने के लिए भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से लोग आते हैं. ये अपने आप में बहुत ही अजूबा है,
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विशाल कैलाश मंदिर देखने में जितना खूबसूरत है उससे ज्यादा खूबसूरत है इस मंदिर में किया गया काम, इस मंदिर को बनाने में सौ साल से ज्यादा का समय लगा है. अब आप सोच सकते हैं कि इसकी कलाकृति कितनी खूबसूरत होगी, जिसे बनाने में इतना समय लग गया।
आमतौर पर कोई भी मंदिर हो झट से तैयार हो जाता है. उसे बनाने में कम मजदूर लगते हैं, लेकिन एलोरा का ये कैलाश मंदिर सच में भगवान् शिव का स्थान है। इस मंदिर की सबसे ख़ास बात ये है कि इसे हिमालय के कैलाश की तरह रूप दिया गया है. तब के राजा का मानना था कि अगर कोई हिमालय तक नहीं पहुँच पाए तो वो यहीं देवता का दर्शन कर ले.
एलोरा का कैलाश मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं में स्थित है। यह एलोरा के 16वीं गुफा की शोभा बढ़ा रही है. इस मंदिर का शिवलिंग विशालकाय है. यही इसकी सबसे ख़ास बात है।
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इस मंदिर को दो मंज़िला बनाया गया है। यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर को बनाने में कई पीढ़ियों का योगदान रहा. सबने अपने हाथों से इसे अंजाम दिया. दिन-रात काम करके इस मंदिर को बनाया गया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इसके निर्माण में करीब 40 हज़ार टन वजनी पत्थरों को काटा गया था. तब जाकर मंदिर तैयार हुआ.
इस मंदिर के आंगन के तीनों ओर कोठरियां हैं और सामने खुले मंडप में नंदी विराजमान है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी और स्तंभ बने हैं. ये मंदिर के मुख्य आकर्षण में से एक है।देश में ऐसे बहुत से मंदिर और जगह है जो , जो इतने प्रचिलित नहीं है , लेकिन उनका इतिहास काफी ही अनूठा है वो भारतीय संस्कृति को काफी अनूठे अंदाज़ में दर्शाते है।