अब डीज़ल नहीं, पानी से दौड़ेगी ट्रेन: बरेली के छात्र गोपाल ने किया कमाल, साथ में तीन छात्राओं का भी अहम योगदान – Bareilly News

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अब डीज़ल नहीं, पानी से दौड़ेगी ट्रेन:  बरेली के छात्र गोपाल ने किया कमाल, साथ में तीन छात्राओं का भी अहम योगदान – Bareilly News

अब डीज़ल नहीं, पानी से दौड़ेगी ट्रेन: बरेली के छात्र गोपाल ने किया कमाल, साथ में तीन छात्राओं का भी अहम योगदान – Bareilly News

बरेली से एक चौंका देने वाली और प्रेरणादायक खबर सामने आई है। गोपाल नाम के छात्र ने इंडियन वाटर ट्रेन का मॉडल तैयार करने में सफलता हासिल की है। गोपाल UPSC की तैयारी कर रहा है। गोपाल को इस तरह के इन्वेंशन करने का शौक है। जिस वजह से उसकी कड़ी मेहनत का नत

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पानी से चलाने वाली वाटर ट्रेन

UPSC की तैयारी कर रहे गोपाल ने इस मॉडल को बनाने में पांच साल का लंबा वक्त लगा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आखिरकार सफलता हासिल की।

क्या है वॉटर ट्रेन?

इस मिनी ट्रेन की खासियत ये है कि यह सिर्फ 250 मिलीलीटर पानी से करीब 50 मीटर तक चल सकती है। जैसे ही पानी इंजन में डाला जाता है, उससे लाइट बनती है जो सबसे पहले लाइट जनरेट करती है और फिर उसी ऊर्जा से ट्रेन दौड़ने लगती है। इसमें डीज़ल या बिजली की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ती। इसका मतलब यह हुआ कि अगर इस तकनीक को बड़े स्तर पर विकसित किया जाए, तो यह पर्यावरण के लिए एक बड़ा तोहफा बन सकती है और रेलवे के संचालन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।

पानी से चलाने वाली वाटर ट्रेन

तीन छात्राओं का साथ

इस प्रोजेक्ट में गोपाल के साथ तीन छात्राओं का भी बड़ा योगदान रहा है। यासमीन अंसारी, क़सीफ़ा और लायबा ये तीनों छात्राएं NEET की तैयारी कर रही हैं और उन्होंने पूरे प्रोजेक्ट में गोपाल का भरपूर साथ दिया। इन छात्राओं ने टेक्निकल प्लानिंग और डिजाइनिंग जैसे हिस्सों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पानी से चलाने वाली वाटर ट्रेन

पेटेंट की ओर कदम

गोपाल ने बताया कि उन्होंने इस मॉडल का पेटेंट कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उनकी उम्मीद है कि सरकार और वैज्ञानिक संस्थान इस इनोवेशन पर ध्यान देंगे और इसे बड़े स्तर पर लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे। उनका कहना है कि यदि सरकार इस तकनीक को अपनाती है, तो यह रेलवे की लागत को काफी हद तक कम कर सकती है।

पानी से चलाने वाली वाटर ट्रेन

पिता के साथ कैंटीन में काम करते हैं गोपाल

गोपाल की पारिवारिक स्थिति भी बेहद साधारण है। उनके पिता इस्लामिया गर्ल्स इंटर कॉलेज में कैंटीन चलाते हैं। गोपाल जब प्रोजेक्ट में व्यस्त नहीं होते, तब अपने पिता का कामकाज संभालते हैं। दिनभर कॉलेज कैंटीन में काम और फिर रात में अपने इनोवेशन पर काम करना यही उनकी दिनचर्या थी। संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी।

पानी से चलाने वाली वाटर ट्रेन

पांच साल और पांच लाख रुपये की मेहनत

गोपाल ने इस ट्रेन को तैयार करने में पांच साल लगाए हैं और लगभग पांच लाख रुपये खर्च किए हैं। इस दौरान उन्हें कई बार नाकामी का सामना करना पड़ा। कई बार मॉडल फेल हुआ, इंजन ने काम करना बंद कर दिया, लेकिन उन्होंने हर बार नई ऊर्जा से काम शुरू किया। स्कूल प्रबंधन और शिक्षकों ने भी इस सफर में छात्रों का पूरा साथ दिया और उनका मनोबल बढ़ाया।

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