सजा भी मुश्किल: मप्र में मृत्युदंड वाले 38 बंदी, पर 1997 के बाद कोई फांसी नहीं – Bhopal News h3>
बचने के रास्ते…
.
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से लेकर सरकार तक के पास लंबित हैं मामले, राष्ट्रपति के पास भी लगा सकते हैं याचिका, कुछ एनजीओ भी करते हैं मदद
भोपाल जिला न्यायालय ने 18 मार्च को 5 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर हत्या करने वाले अतुल निहाले को फांसी की सजा सुनाई है। हालांकि प्रक्रिया ऐसी है कि इस सजा के क्रियान्वयन में लंबा वक्त लग जाता है।प्रदेश की जेलों में मृत्युदंड के 38 बंदी हैं। इनमें करीब 40% नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म के बाद हत्या और पाक्सो के आरोपी हैं। इन्हें सजा सुनाए हुए 10-10 साल तक हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में याचिकाएं लंबित हैं। इनमें सिमी आतंकी भी हैं।
मप्र में आखिरी बार 1997 में जबलपुर जेल में कामता तिवारी को फांसी दी गई थी। उसने पांच साल की बच्ची से दुष्कर्म के बाद उसे चौथी मंजिल से फेंक दिया था। इससे पहले 1996 में इंदौर जेल में बंद उमाशंकर पांडेय को फांसी दी गई थी। उसने अपनी पत्नी और चार बच्चों की हत्या की थी।
रात 12:30 बजे… सुप्रीम कोर्ट ने सुखलाल की फांसी रोकी
2012 में सीहोर जेल के बंदी हत्या के दोषी सुखलाल को फांसी दी जानी थी। जेल में उसे हनुमान चालीसा पढ़ाकर सुलाया गया था। सुबह जेल खुलने से पहले फांसी दी जानी थी, लेकिन एक एनजीओ की याचिका पर रात 12:30 बजे सुप्रीम कोर्ट खुली और सुखलाल की फांसी पर रोक लगा दी गई।
इंदौर के तीन बंदियों की राष्ट्रपति तक ने खारिज की दया याचिका, लेकिन सजा नहीं
इंदौर के तीन बंदियों जितेंद्र सिंह, देवेंद्र और बाबू को 2012 में एक बच्ची के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के आरोप में इंदौर कोर्ट से अप्रैल 2013 में फांसी की सजा सुनाई गई। राष्ट्रपति भी इनकी दया याचिका खारिज कर चुके हैं। लेकिन एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। 1 नवंबर 2018 को जितेंद्र की मृत्युदंड की सजा 20 वर्ष के कारावास में बदल दी गई।
दो मामलों में समझिए…
जेल खुलने से पहले दी जाती है फांसी… मप्र में इंदौर और जबलपुर जेल में फांसी की व्यवस्था है। फांसी का समय सुबह साढ़े चार से पांच के बीच होता है। बंदी को फांसी जेल खुलने से पहले दी जाती है। बंदी का शव डाक्टर के परीक्षण के बाद जेल खुलने से पहले ही फांसी गृह में बने एक दरवाजे से बाहर निकालकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाता है। शव को मुख्य द्वार से बाहर नहीं निकाला जाता है।
कानून.. 90 दिन के अंदर करनी होती है अपील… मृत्युदंड की सजा निचली अदालत द्वारा सुनाई जाने के बाद उसे कन्फर्म करने हाईकोर्ट को भेजा जाता है। बंदी 90 दिन में हाईकोर्ट में अपील कर सकता है। यदि बंदी अपील नहीं करता है तो 90 दिन बाद जेल प्रबंधन हाई कोर्ट को इसकी सूचना देता है। आमतौर पर बंदी द्वारा अपील नहीं करने पर कोई वकील या एनजीओ द्वारा हाईकोर्ट में अपील कर दी जाती है।
जानें… कहां लंबित हैं मामले
- 10 कैदी ऐसे हैं जिनकी अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
- 16 कैदियों की अपील हाइकोर्ट में लंबित है।
- 06 कैदियों की अपील गुजरात सरकार के पास लंबित है। ये सिमी से जुड़े हैं।
- 02 कैदियों की अपील विधिक सहायता केंद्र के माध्यम से मप्र शासन में लंबित है।
- 04 कैदियों की ओर से अभी अपील ही नहीं की गई है।