BISHCOTEX पर लगे आरोपों की जांच में अनियमितता सामने आई: फेडरेशन की संपत्तियां किराए पर लगी, रेंट के बारे में किसी को जानकारी नहीं – Patna News h3>
बिहार स्टेट हैंडलूम विभर्स को-ऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड (बिश्कोटेक्स) पर लगे कई तरह के आरोपों की जांच की गई है। यह एक मल्टीस्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटी है।
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जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि बिश्कोटेक्स की परिसंपत्तियों के दुरुपयोग संघ के अध्यक्ष और प्रबंधन निदेशक की ओर से किया गया है।
डीएम की ओर से बनाई गई जांच कमेटी ने साफ शब्दों में लिखा है कि ‘प्रथम दृष्टया वित्तीय अनियमितता परिलक्षित होती है।’
पड़ताल में हुआ खुलासा
NEWS4SOCIALने बिश्कोटेक्स की पड़ताल की। पटना के राजेन्द्र नगर स्थित वैशाली चौक के पास स्थित 41कट्ठे में बिश्कोटेक्स का भवन में पहुंचा। यहां एक भवन में इसका कार्यालय है। कार्यालय से वैशाली चौराहा की तरफ बढ़ेंगे तो एक मैरेज हॉल चलाने के लिए भाड़े पर जमीन दी गई है, इससे आगे चार मंजिला भवन है जिसका नाम हैंडलूम भवन है,भवन पर इसका नाम भी लिखा है।
इसमें ग्राउंड फ्लोर पर इंडियन गैस की एजेंसी है। फर्स्ट फ्लोर पर पटना के प्रसिद्ध न्यूरो डॉक्टर विनय कारक की क्लिनिक है। ग्राउंड फ्लोर में पैथोलॉजी सेंटर और दवा दुकानें भी दिखती हैं। इस चौक का नाम वैशाली चौक है, यह किसी जमाने में चौराहे के पास ‘वैशाली सिनेमा घर’ हुआ करता था
परिसर के अंदर कई गाड़ियां कबाड़ मे ंतब्दील हो गई।
ऑफिस में कोई अधिकारी नहीं दिखे
बिश्कोटेक्स पर लगे आरोपों की जांच करने वाले टीम में पटना के कार्यपालक दंडाधिकारी, जिला उद्योग केन्द्र पटना के महाप्रबंधक,पटना जिला सहकारिता पदाधिकारी और पटना अपर जिला दंडाधिकारी (आपूर्ति ) हैं। इस अफसरों ने यह रिपोर्ट 28 दिसंबर 2024 को पटना डीएम को दी है। NEWS4SOCIALरिपोर्टर बिश्कोटेक्स के राजेन्द्र नगर स्थित कार्यालय पहुंचे तो शुक्रवार को कोई भी अफसर मौजूद नहीं थे। प्रधान लिपिक शिवनंदन प्रसाद ने कैमरे पर कुछ भी बोलने से मना किया।
प्रधान लिपिक ने ऑफ कैमरा बताया कि बिहार सरकार ने 1960 में 41 कट्ठा जमीन कॉपरेटिव के लिए दी। 1948 में कॉपरेटिव बनी। मकसद था हैंडलूम (हस्तकरघा) को बढ़ावा देना। पहले इसका ऑफिस एग्जीबिशन रोड में हुआ करता था। 1990 में यह ऑफिस राजेन्द्र नगर लाया गया। वे बताते हैं कि 1983 में एक नोटिफिकेशन किया गया और कॉपरेटिव बना। इसके डायरेक्टर हस्तकरघा एवं रेशम होते थे। अब यहां बिहार सरकार के कोई पदाधिकारी नहीं बैठते हैं।
बिल्डिंग के नीचे वाली दुकान किराए पर दी गई है।
पटना में कहीं खुली नहीं दिखी दुकान
NEWS4SOCIALकी पड़ताल में यह भी पता चला कि इसकी कोई दुकान पटना पटना में नहीं है। राजेन्द्र नगर में हैंडलूम भवन में एक दुकान है। वहां पहुंचने पर दुकान बंद दिखी। एक दर्जी बाहर कपड़े सिलता हुआ दिखा। दूसरी दुकान पटना रेलवे जंक्शन के बाहर है, वह दुकान भी बंद दिखी। वहां भी एक दर्जी दुकान के बाहर कपड़े सिलता हुआ दिखा। कभी-कभी दुकान खुलती है।
दर्जी ने बताया कि स्टाफ की कमी की वजह से नियमित दुकान नहीं खुलती है। बिहार के सिगोड़ी (पालीगंज के पास), बिहारशरीफ, भागलपुर आदि जगहों से बुनकरों के कपड़े मंगवाकर बेचे जाते हैं। इससे जुड़े पांच रिजनल हस्तकरघा सहयोग संघ हैं जो मधुबनी, सीवान, भागलपुर, बिहारशरीफ और रांची (धुरवा) में हैं।