शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन: इच्छा के विरुद्ध कार्य हो, तो भी स्वामी की आज्ञा का पालन करना ही पड़ता है सेवक को- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

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शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन:  इच्छा के विरुद्ध कार्य हो, तो भी स्वामी की आज्ञा का पालन करना ही पड़ता है सेवक को- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

शंकराचार्य मठ इंदौर में प्रवचन: इच्छा के विरुद्ध कार्य हो, तो भी स्वामी की आज्ञा का पालन करना ही पड़ता है सेवक को- डॉ. गिरीशानंदजी महाराज – Indore News

सेवक का धर्म सबसे कठिन होता है। भले ही सेवक की इच्छा के विरुद्ध कार्य हो, पर स्वामी की आज्ञा का पालन उसे करना ही पड़ता है। भगवान श्रीराम की सरलता बहुत कुछ सीखने को मिलता है। भगवान राम ने समाज को सिखाया है, कि राजा का दायित्व प्रजा के प्रति कैसा होना च

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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में गुरुवार को यह बात कही।

डॉ. गिरीशानंदजी ने एक दृष्टांत सुनाया- एक बार अयोध्या में राज करते हुए श्रीराम ने यह जानना चाहा कि प्रजा राजा के बारे क्या राय रखती है। पड़ताल करके गुप्तचरों ने श्रीराम को बताया कि लोग आपके बारे में बहुत अच्छा कहते हैं परंतु रावण के यहां रहने के कारण एक संकीर्ण विचारधारा का व्यक्ति माता सीता के बारे में अनुचित शब्दों का प्रयोग कर रहा था। यदि और कोई राजा होता तो उसकी पत्नी को अनुचित कहने वाले को तुरंत फांसी की सजा दे देता, पर भगवान श्रीराम ने राजधर्म की मर्यादा का पालन करते हुए अपनी प्रिय पत्नी गर्भवती सीता का ही त्याग कर दिया।

लोगों ने तो माता सीता को भी नहीं छोड़ा

महाराजश्री ने कहा कि लक्ष्मण को प्रात: होते ही आदेश दिया कि सीता को वन में छोड़कर आओ। लक्ष्मण ने कहा- प्रभु यह मुझसे नहीं होगा। आप किसी और को इस प्रकार का आदेश दे दीजिए। रामजी ने कहा- यह मेरी आज्ञा है, तुम्हें ही यह काम करना होगा। लक्ष्मण बहुत दु:खी हुए। सीता को वन में ले गए और महर्षि वाल्मीकि आश्रम के पास छोड़कर रोने लगे। बोले माता रामजी ने आपका त्याग कर दिया है। मैं तो सेवक हूं। सेवक का धर्म बहुत कठिन होता है। महर्षि वाल्मीकि जनकजी के मित्र थे। तमसा नदी के किनारे आश्रम के पास इसीलिए लक्ष्मण जी ने सीताजी को छोड़ा था। लोगों को भगवान राम जैसे आदर्श राजा को भी नहीं छोड़ा, माता सीता को नहीं छोड़ा, फिर इस कलियुग में हम क्या हैं? इसलिए कोई कुछ भी कहे, हमें अपने कर्तव्य का पालन करते रहना चाहिए। इस तरह एक दिन सीता की सच्चाई सामने आई तो सारे अयोध्या के नागरिकों को शर्मिंदा होना पड़ा। यही बताने के लिए रामजी ने त्याग किया था। सत्य तो सत्य ही होता है, किसी के कहने से कुछ नहीं होता है। यदि आप सत्य पर हैं तो आपको डरना नहीं चाहिए। लोग कुछ भी कहें। उसकी परवाह नहीं करना चाहिए।

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