शहीद भगत सिंह का शहीदी दिवस आज: अंग्रेजों ने डरकर तय डेट से एक दिन पहले दी फांसी; एक दिन बाद लोगों को हो सकी जानकारी – Kanpur News

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शहीद भगत सिंह का शहीदी दिवस आज:  अंग्रेजों ने डरकर तय डेट से एक दिन पहले दी फांसी; एक दिन बाद लोगों को हो सकी जानकारी – Kanpur News

शहीद भगत सिंह का शहीदी दिवस आज: अंग्रेजों ने डरकर तय डेट से एक दिन पहले दी फांसी; एक दिन बाद लोगों को हो सकी जानकारी – Kanpur News

शहीद भगत सिंह की फांसी की खबरें 25 मार्च 1931 को अखबारों में पब्लिश हो पाई थी।

अंग्रेजों की जकड़ी गुलामी की बेड़ियों से देश को आजादी दिलाने के लिए भगत सिंह ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। अंग्रेजों ने डरकर तय तारीख 24 मार्च 1931 से एक दिन पहले 23 मार्च को फांसी दे दी थी। एक दिन बाद अखबारों में छपी खबरों के बाद देश को जानकारी

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कानपुर में बिठूर महोत्सव में बीना, मध्य प्रदेश से पहुंचे अथक प्रयास संस्था के राम शर्मा शहीदों और क्रांतिकारियों से जुड़ी यादों को लेकर पहुंचे। दैनिक NEWS4SOCIALएप की टीम ने राम शर्मा से शहीद भगत सिंह को फांसी पर छपे अखबारों के बारे में चर्चा की।

हिंदू पंच अखबार ने इस तरह 25 मार्च 1931 को खबर छापी थी।

आज हम आपको उन अखबारों से रूबरू कराते हैं, तो भगत सिंह की फांसी के बाद छापे गए थे…

1. स्वाधीन भारत 25 मार्च 1931 दिन बुधवार को छपे अखबार स्वाधीन भारत ने लिखा था कि सरकार भगत सिंह की फांसी को देशव्यापारी विरोध। उसी दिन भगत सिंह दिवस मनाया जाने लगा। लोग भूख हड़ताल पर बैठ गए थे।

2. हिंदूपंच साप्ताहिक अखबार 25 मार्च को ही छपे हिंदूपंच साप्ताहिक अखबार ने राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह की फोटो लगाकर हेडिंग लगाई थी कि भगत सिंह की फांसी पर देश में हलचल। इसके बाद हिंदूपंच अखबार ने ही सुखदेव के पत्र को छापा था। जिसमें उन्होंने लिखा था कि शहीदों की चिताओं पर दीपक जलाये जाते हैं।

पहले पढ़िये भगत सिंह को क्यों दी गई फांसी…. आज शहीदी दिवस है। 1931 में आज ही के दिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। कोर्ट ने तीनों को फांसी दिए जाने की तारीख 24 मार्च तय की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार को माहौल बिगड़ने का डर था, इसलिए नियमों को दरकिनार कर एक रात पहले ही तीनों क्रांतिकारियों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। इन तीनों पर अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या का आरोप था।

भगत सिंह की फांसी के रहस्य को लेकर भी खबर छापी गई थी।

अंग्रेजों के खिलाफ भर गया गुस्सा 28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर में बंगा गांव (जो अभी पाकिस्तान में है) में जन्मे भगत सिंह महज 12 साल के थे, जब जलियांवाला बाग कांड हुआ। इस हत्याकांड ने उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया।

काकोरी कांड के बाद क्रांतिकारियों को हुई फांसी से उनका गुस्सा और बढ़ गया। इसके बाद वो चंद्रशेखर आजाद के हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर दिया। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आईं। ये चोटें उनकी मौत का कारण बनीं।

पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट की हत्या इसका बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों ने पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट की हत्या की योजना तैयार की। 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स पर हमला हुआ, जिसमें उसकी मौत हो गई।

8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश भारत की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके। ये बम जानबूझकर सभागार के बीच में फेंके गए, जहां कोई नहीं था।

बम फेंकने के बाद भागने की जगह वो वहीं खड़े रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया। वहीं, बकुटेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली।

चंद्रशेखर आजाद की हाथ घड़ी, इसे वो खुद पहनते थे।

भगत सिंह का कानपुर से रहा गहरा नाता…. कानपुर शहर से शहीद भगत सिहं के क्रांतिकारी जीवन से गहरा रिश्ता रहा है। दिल्ली के बाद कानपुर में उनका बार-बार आना-जाना रहता था। उन्होंने 8 अप्रैल 1929 को सेन्ट्रल असेम्बली में बम फेंका। कानपुर से छपने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी के क्रांतिकारी अखबार प्रताप में नौकरी करते वक्त वे दिल्ली में साम्प्रदायिक दंगा कवर करने आए।

दंगा दरियागंज में हुआ था। वे दिल्ली में सीताराम बाजार की एक धर्मशाला में रहते थे। किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि प्रताप से जुड़ने के चलते उन्हें समझ आया कि कलम की ताकत के बल पर बहुत कुछ किया और बदला जा सकता हैं।

निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की महान पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार प्रताप में भगत सिंह ने सदैव निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की। सुतरखाना स्थित प्रताप प्रेस के पास तहखाने में ही एक पुस्तकालय भी बनाया गया, जिसमें सभी जब्त शुदाक्रान्तिकारी साहित्य एवं पत्र-पत्रिकाएं उपलब्ध थीं। भगत सिंह यहां पर बैठक घंटों ही पढ़ते थे।

भगत ने बलवंत के नाम से लिखा प्रताप प्रेस की बनावट ही कुछ ऐसी थी कि जिसमें छिपकर रहा जा सकता था और फिर सघन बस्ती में तलाशी होने पर एक मकान से दूसरे मकान की छत पर आसानी से जाया जा सकता था। भगत सिंह ने तो प्रताप अखबार में बलवन्त सिंह के छद्म नाम से लगभग ढाई वर्ष तक कार्य किया। चन्द्रशेखर आजाद से भगत सिंह की मुलाकात विद्यार्थी जी ने ही कानपुर में कराई थी।

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