मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: क्या जम्मू और कश्मीर राज्य के दर्जे के लिए तैयार है?, इसमें अभी 6 महीने और लग सकते हैं h3>
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4 घंटे पहले
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मिन्हाज मर्चेंट- लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद घटा है और पर्यटन बढ़ रहा है। अक्टूबर में वहां विधानसभा चुनाव भी शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गए। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से सामंजस्यपूर्ण संबंध विकसित किए हैं। वे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गलती को दोहराने से सावधान हैं। दिल्ली के कई उपराज्यपालों के साथ केजरीवाल के संबंध न केवल टकरावपूर्ण, बल्कि वैरपूर्ण भी थे।
अब्दुल्ला ने कहा है कि वे एक केंद्र शासित प्रदेश के संचालन की बदलती चुनौतियों से अवगत हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से चार साल पहले, 2009 से 2015 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में अब्दुल्ला ने राज्य के इतिहास के सबसे अशांत कालखंडों में से एक का सामना किया था। हुर्रियत अलगाववादी अपने पाकिस्तानी आकाओं के निर्देशों पर बेकाबू हो गए थे। घाटी में पथराव आम बात थी। युवा कश्मीरी पत्थरबाजों को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा पैलेट गन का इस्तेमाल किया जाता था।
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद हालात नाटकीय रूप से बदले हैं। केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने हाल ही में गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति को बताया कि 2019 में आतंकी घटनाओं की संख्या 286 थी, जो घटकर 2024 में 40 हो गई। अब्दुल्ला ने 14 मार्च, 2025 को विधानसभा में खुलासा किया कि पर्यटकों की संख्या में उछाल आया है। गत कैलेंडर वर्ष में 2.35 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर आए, जो 2019 में आए पर्यटकों की संख्या (1.09 करोड़) से दोगुने थे। अब्दुल्ला ने बताया कि बुनियादी ढांचे में निवेश भी तेजी से बढ़ा है।
और इसके बावजूद अब्दुल्ला की एनसी पार्टी संतुष्ट नहीं है। वह राज्य का दर्जा चाहती है। वह कहती है कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को खत्म करने से आज भी कई कश्मीरी नाराजगी महसूस करते हैं। जबकि तथ्य यह है कि संविधान में अनुच्छेद 370 स्पष्ट रूप से एक अस्थायी व्यवस्था थी। मोदी और शाह के साथ अब्दुल्ला की बैठकें शांत माहौल में हुई हैं, पर उनमें राज्य के दर्जे का मामला छाया रहता है। अब्दुल्ला को एक ही जवाब दिया जाता है : प्रधानमंत्री ने सदन में जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने का वादा किया है और यह एक अटूट प्रतिज्ञा है।
लेकिन इसके साथ एक शर्त भी है : राज्य का दर्जा तब मिलेगा जब हालात दुरुस्त होंगे। अब्दुल्ला की दलील है कि हालात तो पहले से ही दुरुस्त हैं। मजे की बात यह है कि जब अब्दुल्ला कहते हैं कि हालात अब शांतिपूर्ण हैं तो वे जाने-अनजाने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण का समर्थन कर रहे होते हैं। अब्दुल्ला ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि उनका मानना है छह महीने के भीतर राज्य का दर्जा मिल जाएगा। उन्होंने मोदी को याद दिलाया कि चुनाव और राज्य का दर्जा एक के बाद एक होने वाले थे। एलजी सिन्हा के कंधों का भार अपने पर लेने से पहले उन्हें कितना इंतजार करना होगा? जवाब है, यह इंतजार छह महीने से भी लंबा हो सकता है। क्योंकि पाकिस्तान ने एलओसी के पार तस्करी करने वाले आतंकवादियों की संख्या बढ़ा दी है। जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और सेना के सूत्रों का कहना है कि यूटी में अभी भी 200 से 300 सक्रिय आतंकवादी हैं। पाकिस्तानी ड्रोन घाटी में हथियार गिराते रहते हैं।
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) द्वारा पाकिस्तानी ट्रेन पर किए गए हमले के बाद पाकिस्तान एक साथ तीन लड़ाइयां लड़ रहा है- बीएलए, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और अफगान तालिबान के साथ। ऐसे में इस्लामाबाद को उन आतंकवादियों से ध्यान हटाने की जरूरत है, जिन्हें उसने दशकों से भारत के खिलाफ पाला है। वे अब पाकिस्तान को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। जैसा कि पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने सालों पहले चेतावनी दी थी : आप अपने आंगन में यह सोचकर सांप नहीं पाल सकते कि वे केवल आपके पड़ोसियों को ही काटेंगे। पाकिस्तान के लिए अपने सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ाने का पारंपरिक तरीका कश्मीर में आतंकी हमला करना था। यूटी के केंद्र के नियंत्रण में आने के बाद से उस आतंकी खतरे को कम किया गया है।
ऐसे में यदि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा मिलता है तो क्या गैरकानूनी गतिविधियों पर कड़ा नियंत्रण जारी रहेगा? कश्मीरी युवाओं की नई पीढ़ी अपनी पहचान खोए बिना भारतीय मुख्यधारा में शामिल होना चाहती है। उन्होंने पीओके की बदहाल स्थिति देखी है और वे इसकी तुलना जम्मू-कश्मीर में बुनियादी ढांचे के विकास से करते हैं।
- एलजी सिन्हा के कंधों का भार अपने पर लेने से पहले उमर अब्दुल्ला को कितना इंतजार करना होगा? यह छह महीने से भी लंबा हो सकता है। क्योंकि पाकिस्तान ने एलओसी के पार तस्करी करने वाले आतंकवादियों की संख्या बढ़ा दी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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मिन्हाज मर्चेंट- लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद घटा है और पर्यटन बढ़ रहा है। अक्टूबर में वहां विधानसभा चुनाव भी शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो गए। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से सामंजस्यपूर्ण संबंध विकसित किए हैं। वे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गलती को दोहराने से सावधान हैं। दिल्ली के कई उपराज्यपालों के साथ केजरीवाल के संबंध न केवल टकरावपूर्ण, बल्कि वैरपूर्ण भी थे।
अब्दुल्ला ने कहा है कि वे एक केंद्र शासित प्रदेश के संचालन की बदलती चुनौतियों से अवगत हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से चार साल पहले, 2009 से 2015 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में अब्दुल्ला ने राज्य के इतिहास के सबसे अशांत कालखंडों में से एक का सामना किया था। हुर्रियत अलगाववादी अपने पाकिस्तानी आकाओं के निर्देशों पर बेकाबू हो गए थे। घाटी में पथराव आम बात थी। युवा कश्मीरी पत्थरबाजों को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा पैलेट गन का इस्तेमाल किया जाता था।
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद हालात नाटकीय रूप से बदले हैं। केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन ने हाल ही में गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति को बताया कि 2019 में आतंकी घटनाओं की संख्या 286 थी, जो घटकर 2024 में 40 हो गई। अब्दुल्ला ने 14 मार्च, 2025 को विधानसभा में खुलासा किया कि पर्यटकों की संख्या में उछाल आया है। गत कैलेंडर वर्ष में 2.35 करोड़ पर्यटक जम्मू-कश्मीर आए, जो 2019 में आए पर्यटकों की संख्या (1.09 करोड़) से दोगुने थे। अब्दुल्ला ने बताया कि बुनियादी ढांचे में निवेश भी तेजी से बढ़ा है।
और इसके बावजूद अब्दुल्ला की एनसी पार्टी संतुष्ट नहीं है। वह राज्य का दर्जा चाहती है। वह कहती है कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे को खत्म करने से आज भी कई कश्मीरी नाराजगी महसूस करते हैं। जबकि तथ्य यह है कि संविधान में अनुच्छेद 370 स्पष्ट रूप से एक अस्थायी व्यवस्था थी। मोदी और शाह के साथ अब्दुल्ला की बैठकें शांत माहौल में हुई हैं, पर उनमें राज्य के दर्जे का मामला छाया रहता है। अब्दुल्ला को एक ही जवाब दिया जाता है : प्रधानमंत्री ने सदन में जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने का वादा किया है और यह एक अटूट प्रतिज्ञा है।
लेकिन इसके साथ एक शर्त भी है : राज्य का दर्जा तब मिलेगा जब हालात दुरुस्त होंगे। अब्दुल्ला की दलील है कि हालात तो पहले से ही दुरुस्त हैं। मजे की बात यह है कि जब अब्दुल्ला कहते हैं कि हालात अब शांतिपूर्ण हैं तो वे जाने-अनजाने अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण का समर्थन कर रहे होते हैं। अब्दुल्ला ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि उनका मानना है छह महीने के भीतर राज्य का दर्जा मिल जाएगा। उन्होंने मोदी को याद दिलाया कि चुनाव और राज्य का दर्जा एक के बाद एक होने वाले थे। एलजी सिन्हा के कंधों का भार अपने पर लेने से पहले उन्हें कितना इंतजार करना होगा? जवाब है, यह इंतजार छह महीने से भी लंबा हो सकता है। क्योंकि पाकिस्तान ने एलओसी के पार तस्करी करने वाले आतंकवादियों की संख्या बढ़ा दी है। जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और सेना के सूत्रों का कहना है कि यूटी में अभी भी 200 से 300 सक्रिय आतंकवादी हैं। पाकिस्तानी ड्रोन घाटी में हथियार गिराते रहते हैं।
बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) द्वारा पाकिस्तानी ट्रेन पर किए गए हमले के बाद पाकिस्तान एक साथ तीन लड़ाइयां लड़ रहा है- बीएलए, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और अफगान तालिबान के साथ। ऐसे में इस्लामाबाद को उन आतंकवादियों से ध्यान हटाने की जरूरत है, जिन्हें उसने दशकों से भारत के खिलाफ पाला है। वे अब पाकिस्तान को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। जैसा कि पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने सालों पहले चेतावनी दी थी : आप अपने आंगन में यह सोचकर सांप नहीं पाल सकते कि वे केवल आपके पड़ोसियों को ही काटेंगे। पाकिस्तान के लिए अपने सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ाने का पारंपरिक तरीका कश्मीर में आतंकी हमला करना था। यूटी के केंद्र के नियंत्रण में आने के बाद से उस आतंकी खतरे को कम किया गया है।
ऐसे में यदि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा मिलता है तो क्या गैरकानूनी गतिविधियों पर कड़ा नियंत्रण जारी रहेगा? कश्मीरी युवाओं की नई पीढ़ी अपनी पहचान खोए बिना भारतीय मुख्यधारा में शामिल होना चाहती है। उन्होंने पीओके की बदहाल स्थिति देखी है और वे इसकी तुलना जम्मू-कश्मीर में बुनियादी ढांचे के विकास से करते हैं।
- एलजी सिन्हा के कंधों का भार अपने पर लेने से पहले उमर अब्दुल्ला को कितना इंतजार करना होगा? यह छह महीने से भी लंबा हो सकता है। क्योंकि पाकिस्तान ने एलओसी के पार तस्करी करने वाले आतंकवादियों की संख्या बढ़ा दी है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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