आज का एक्सप्लेनर: मुगल बादशाह ने खुद चुनी थी दफन की जगह, वसीयत में कहा था – खाली जगह पर दफनाना, सिर खुला रखना

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आज का एक्सप्लेनर:  मुगल बादशाह ने खुद चुनी थी दफन की जगह, वसीयत में कहा था – खाली जगह पर दफनाना, सिर खुला रखना

आज का एक्सप्लेनर: मुगल बादशाह ने खुद चुनी थी दफन की जगह, वसीयत में कहा था – खाली जगह पर दफनाना, सिर खुला रखना

17 मार्च को शाम करीब साढ़े 7 बजे नागपुर में औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग हिंसा में बदल गई। विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के लोगों ने औरंगजेब की कब्र का प्रतीकात्मक पुतला जला दिया, जिससे दो समुदायों के बीच विवाद हो गया। इस बीच DCP निकेतन कदम पर कुल्ह

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देखते ही देखते घरों पर पथराव और गाड़ियों में आगजनी हो गई। करीब 33 पुलिसकर्मी घायल हुए, जिसमें 3 DCP भी शामिल हैं। 5 आम लोगों के घायल होने की खबर है। इसके बाद पुलिस ने 11 इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया।

आखिर दिल्ली के बादशाह की कब्र महाराष्ट्र में कैसे बनी, औरंगजेब ने अपनी मर्जी से कब्र क्यों बनवाई और अब उस जगह शौचालय बनाने की मांग से विवाद क्यों; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: औरंगजेब की कब्र को हटाने का विवाद क्या है और कैसे शुरू हुआ? जवाब: मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र का मामला 3 मार्च से शुरू हुआ, जब महाराष्ट्र के सपा विधायक अबू आजमी ने फिल्म छावा को गलत बताते हुए औरंगजेब की तारीफ कर दी। अबू आजमी ने कहा, ‘औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए हैं। मैं उसे क्रूर शासक नहीं मानता। छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगजेब के बीच धार्मिक नहीं, बल्कि सत्ता और संपत्ति की लड़ाई थी।’

इस बयान का विरोध हुआ तो आजमी ने माफी तो मांग ली, लेकिन विवाद बढ़ता चला गया…

  • औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग शुरू हो गई। गीतकार मनोज मुंतशिर ने कहा, ‘औरंगजेब की कब्र को हटाना नहीं चाहिए, बल्कि उसके ऊपर शौचालय बना देना चाहिए।’
  • 17 मार्च को महाराष्ट्र में हिंदू संगठनों ने प्रदर्शन किया। नागपुर में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने गोबर के कंडों से भरा एक हरे रंग का कपड़ा जला दिया। VHP के मुताबिक, ये औरंगजेब की प्रतीकात्मक कब्र थी। इस घटना का वीडियो वायरल हो गया।
  • देर शाम 7:30 बजे नागपुर के महाल इलाके में हिंसा भड़क गई। उपद्रवियों ने घरों पर पथराव किया और सड़क पर खड़े दर्जनों वाहनों में तोड़फोड़-आगजनी की। पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। 50 लोगों को हिरासत में लिया गया। रात 10.30 बजे से 11.30 बजे के बीच ओल्ड भंडारा रोड के पास हंसपुरी इलाके में एक और झड़प हुई।
  • पुलिस कमिश्नर रविंद्र सिंघल ने बताया कि 11 इलाकों में कर्फ्यू लगाया गया। इनमें कोतवाली, गणेशपेठ, तहसील, लकड़गंज, पचपावली, शांतिनगर, सक्करदरा, नंदनवन, इमामवाड़ा, यशोधरानगर और कपिलनगर शामिल हैं। इसके अलावा मुंबई में भी पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी गई।

वीडियो वायरल होने के बाद बड़ी संख्या में समुदाय विशेष के लोगों ने नारेबाजी की।

सवाल-2: औरंगजेब की कब्र को गिराकर शौचालय बनाने की मांग क्यों हो रही है? जवाब: एक्सपर्ट्स का कहना है, ‘औरंगजेब की कब्र को गिराकर शौचालय बनाने की मांग हो रही है क्योंकि यह ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक भावनाओं का गठजोड़ बन गया है। अपने शासनकाल में मंदिरों को तोड़ना और सख्त नीतियों की वजह से औरंगजेब की छवि कट्टर शासक की बनी हुई है।’

खासतौर पर छत्रपति संभाजी महाराज की हत्या करने की वजह से मराठा इतिहास और हिंदू संगठनों की नजर में औरंगजेब की कब्र ‘अत्याचार का प्रतीक’ है। इस वजह से इसे अपमानित करने की कोशिश की जा रही है।

हाल ही में 3 बड़े कारणों की वजह से यह मांग तेज हो गई…

  • छावा का असर: इस फिल्म ने संभाजी महाराज और औरंगजेब के बीच संघर्ष को उजागर किया, जिससे लोगों में गुस्सा बढ़ गया। फिल्म के हिट होने के बाद सोशल मीडिया और सार्वजनिक जगहों पर औरंगजेब की कब्र को हटाने या शौचालय बनाने की मांग तेज हुई। गीतकार मनोज मुंतशिर ने एक वीडियो जारी करके कहा कि कब्र को हटाने के बजाय उस पर शौचालय बनाना चाहिए।
  • राजनीतिक और सामाजिक माहौल: इन दिनों भारत में हिंदुत्ववादी भावनाओं का जोर चलन में है। मुगलों की बनाई ऐतिहासिक धरोहरों पर बहस ने औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग बढ़ा दी। कुछ लोग इसे ‘स्वच्छ भारत मिशन’ जैसे अभियानों से जोड़कर पेश कर रहे हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी कब्र हटाने की बात कह दी, जिससे विवाद बढ़ गया।
  • औरंगजेब से बदले की सोच: हिंदू संगठनों और कुछ लोगों का मानना है कि औरंगजेब की कब्र का संरक्षण उनके गौरव को बनाए रखने जैसा है। इसलिए कब्र को अपमानित करके और शौचालय बनाकर औरंगजेब से बदला लिया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश के धार में हिंदराज युवा संगठन ने एक शौचालय का नाम ‘औरंगजेब शौचालय’ रख दिया।

तस्वीर में धार का वह शौचालय, जिसका नाम ‘औरंगजेब शौचालय’ रखा गया है।

सवाल-3: औरंगजेब दिल्ली का बादशाह था, तो कब्र महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में क्यों है? जवाब: इतालवी लेखक निकोलाई मानुची अपनी किताब ‘स्टोरिया दो मोगोर’ में लिखते हैं, ‘1681 में बादशाह बनने के बाद औरंगजेब ने दक्कन की ओर सफर शुरू किया। फिर कभी वापस दिल्ली नहीं लौटा। औरंगजेब मराठाओं पर राज करके गोलकुंडा और बीजापुर सल्तनतों को मुगल साम्राज्य में मिलाना चाहता था। वह एक विशालकाय सेना लेकर दक्कन पहुंचा। उसके साथ मुगल दरबार, परिवार और प्रशासनिक अमला भी था। दक्कन पहुंचने के बाद 1686 में बीजापुर और 1687 में गोलकुंडा किला जीत लिया, लेकिन मराठाओं के खिलाफ उसकी जंग लंबी और थकाऊ रही।’

इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब ‘शिवाजी एंड हिज टाइम्स’ में लिखते हैं, ‘फरवरी 1689 में औरंगजेब ने संभाजी महाराज और उनके साथी कवि कलश को संगमेश्वर में पकड़ लिया। उन्हें अहमदनगर के बहादुरगढ़ ले जाकर औरंगजेब के सामने झुकने को कहा गया। उनकी जीभ काट दी गई और जिंदा रहने के लिए इस्लाम कबूलने की शर्त रखी गई।

स्केच में संभाजी महाराज का खत पढ़ता औरंगजेब। (क्रेडिट- संदीप पाल)

औरंगजेब ने 11 मार्च 1689 को पुणे के पास तुलापुर में उनका सिर कलम करवा दिया। बाद में मराठों ने उनके शरीर को सिलकर उनका अंतिम संस्कार किया।

कहा जाता है औरंगजेब ने हत्या से ठीक पहले संभाजी राजे से कहा था, ‘अगर मेरे चार बेटों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिंदुस्तान कब का मुगल सल्तनत में समा चुका होता।’

1707 तक औरंगजेब 88 साल का हो चुका था। इस दौरान वह अहमदनगर में एक छोटे महल में रहता था। 20 फरवरी 1707 को औरंगजेब की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु स्वाभाविक रूप से हुई।

सवाल-4: औरंगजेब की अपनी कब्र को लेकर आखिरी ख्वाहिश क्या थी? जवाब: साकी मुस्तैद खान अपनी किताब ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ में लिखते हैं, ‘औरंगजेब की कब्र अन्य मुगल बादशाहों के शानदार मकबरों यानी ताजमहल जैसी इमारतों से जुदा बनाई गई। यह एक कच्ची और खुली कब्र है, जिसे औरंगजेब की वसीयत के अनुसार बनाया गया।

औरंगजेब ने अपने बेटे शहजादा आजम शाह को एक चिट्ठी लिखी थी। इसमें औरंगजेब ने अपने दफन की जगह और तरीका बताया था। औरंगजेब ने लिखा, ‘मुझे खाली जगह पर दफनाना और मेरा सिर खुला रहने देना क्योंकि जब कोई गुनहगार नंगे सिर खुदा के पास जाता है, तो उस पर रहम किया जाता है। मेरी लाश को साधारण सफेद खद्दर के कपड़े से ढंका जाए, कोई छतरी या शाही समारोह न हो और न ही गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला जाए।’

औरंगजेब ने लिखा कि जितना पैसा उसने अपनी मेहनत से कमाया है, उससे ही उसका मकबरा बनवाया जाए।

‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ के मुताबिक, औरंगजेब अपने निजी खर्च के लिए टोपियां सिला करता था और हाथ से कुरान शरीफ लिखा करता था। औरंगजेब की मौत के वक्त उसके कमाए 14 रुपए और 12 आने थे। इसी पैसे से औरंगजेब की कब्र बनवाई गई। इसके अलावा औरंगजेब ने पवित्र कुरान शरीफ लिखकर 305 रुपए कमाए थे, जो गरीबों में बांटने की हिदायत दी।

‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ के मुताबिक, औरंगजेब ने खुल्दाबाद चुना क्योंकि यह सूफी संतों का केंद्र था। औरंगजेब की इच्छा थी कि मौत के बाद उसे उसके गुरु सूफी संत सैयद जेनुद्दीन के पास ही दफनाया जाए। औरंगजेब का मकबरा सिर्फ लकड़ी से बना था।

1904-05 में जब लॉर्ड कर्जन यहां आए तो उन्होंने मकबरे के इर्द-गिर्द संगमरमर की ग्रिल बनवाई और इसकी सजावट कराई। औरंगजेब का मकबरा इस समय ASI के संरक्षण में है और एक राष्ट्रीय स्मारक है।

औरंगजेब की कब्र छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) से करीब 25 किमी दूर है।

सवाल-5: छत्रपति शिवाजी महाराज के पौत्र शाहूजी महाराज औरंगजेब की कब्र पर क्यों गए थे? जवाब: साहित्यकार वी. जी. खोबरेकर की किताब ‘मराठा कालखंड’ के मुताबिक, ‘1689 में औरंगजेब ने संभाजी महाराज की हत्या के बाद उनके बेटे और छत्रपति शिवाजी महाराज के पौत्र शाहूजी महाराज को कैद कर लिया। उस समय शाहूजी की उम्र करीब 7 साल थी। वे 18 साल की उम्र तक औरंगजेब की कैद में रहे, लेकिन उनकी देखभाल बहुत अच्छे से की गई।’

वी. जी. खोबरेकर ने ‘मराठा कालखंड’ में लिखा, ‘1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उनके बेटे बहादुरशाह प्रथम ने शाहूजी को रिहा कर दिया। शाहूजी महाराष्ट्र लौटे और मराठा साम्राज्य के नेतृत्व के लिए अपनी चाची ताराबाई के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। इस दौरान शाहूजी महाराज ने खुल्दाबाद में औरंगजेब की कब्र पर जाकर श्रद्धांजलि दी।

छत्रपति शाहूजी महाराज के औरंगजेब की कब्र पर जाने की असल वजह किसी को नहीं पता। इसका कोई ठोस दस्तावेज नहीं कि शाहूजी महाराज श्रद्धा की वजह से कब्र पर गए या कोई रणनीति थी।

इतिहासकार रिचर्ड ईटन अपनी किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ द डेक्कन’ में लिखते हैं, ‘मराठाओं में मुगल स्मारकों के लिए सम्मानजनक रवैया था। शाहूजी महाराज का यह कदम मराठा नीति को दर्शाता है, जिसमें दुश्मनी के बावजूद सांस्कृतिक और राजनीतिक भावनाओं का सम्मान करना जरूरी है।’

छत्रपति शाहूजी महाराज का स्केच।

सवाल-6: औरंगजेब की कब्र का विवाद महाराष्ट्र में ही क्यों हो रहा और इसकी शुरुआत कब हुई थी? जवाब: औरंगजेब के नाम पर राजनीतिक विवाद की शुरुआत 80 के दशक से मानी जाती है, जब शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने औरंगजेब के खिलाफ बयान देने शुरू किए। उनका मकसद महाराष्ट्र में औरंगजेब के खिलाफ माहौल बना कर राजनीतिक ध्रुवीकरण करना था। इस दौरान महाराष्ट्र में 1984, 1985, 1987 और 1988 में दंगे भी हुए। इनमें भिवांडी, औरंगाबाद, मुंबई और भीमा कोरेगांव जैसे शहरों में कई लोगों की जानें गईं।

1980 के दशक में एक रैली के दौरान बाला साहेब ठाकरे।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जितेंद्र दीक्षित ने कहा,

महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद मराठाओं से दुश्मनी है। औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को भरे दरबार में अपमानित किया था और संभाजी महाराज की हत्या कर दी। इस वजह से औरंगजेब को लेकर महाराष्ट्र में भावनात्मक आक्रोश ज्यादा है।

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जितेंद्र दीक्षित कहते हैं, ‘महाराष्ट्र में औरंगजेब का नाम ध्रुवीकरण का माध्यम बन गया है। औरंगजेब की मृत्यु तो 318 साल पहले हो गई, लेकिन आज भी उसके नाम से वोट मांगने का सिलसिला जारी है। राजनीतिक पार्टियों और नेताओं ने नैरेटिव सेट किया है कि मुगलों और मराठाओं के बीच धार्मिक लड़ाई थी। जबकि इतिहासकारों का मानना है कि यह लड़ाई राजनीतिक थी।’

औरंगजेब की पेंटिंग।

JNU में इतिहास के प्रोफेसर नदीम रिजवी के मुताबिक, ‘औरंगजेब ने मजहब के लिए नहीं, बल्कि अपनी ताकत दिखाने और पूरे देश में मुगल साम्राज्य का परचम लहराने के लिए लड़ाई लड़ी। दक्कन पर कब्जा करना भी इसी उद्देश्य में शामिल था। इस कारण छत्रपति शिवाजी और संभाजी महाराज से उसकी दुश्मनी थी।’

इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब ने कहा,

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तलवार की ताकत पर धर्म बदलवाने की बात होती, तो सबसे पहले औरंगजेब अपने सैनिकों का धर्म बदलता, क्योंकि औरंगजेब की सेना और अधिकारियों में सबसे ज्यादा हिंदू थे।

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सवाल-7: क्या महाराष्ट्र सरकार औरंगजेब की कब्र हटा सकती है? जवाब: 10 मार्च को महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने औरंगजेब की कब्र हटाने की इच्छा जाहिर की। सीएम फडणवीस ने कहा, ‘हम सब यही चाहते हैं कि औरंगजेब की कब्र हटा दी जाए। यह कानून के अंतर्गत होना चाहिए क्योंकि कांग्रेस के शासनकाल में कब्र को पुरातत्व विभाग यानी ASI के सरंक्षण में सौंप दिया गया था।’

इलाहाबाद म्यूजियम के पूर्व संग्रहालय अध्यक्ष डॉ. ओंकार वानखेडे का कहना है, ‘अगर कोई धरोहर 100 साल पुरानी है, तो वो एन्शिएंट मॉन्यूमेंट एक्ट के अंतर्गत आती है। इसे हटाने या न हटाने का फैसला केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत भारतीय पुरातत्व विभाग लेता है। महाराष्ट्र की राज्य सरकार औरंगजेब की कब्र हटाने के लिए भारतीय पुरातत्व विभाग से सिर्फ गुजारिश कर सकती है। इसके बाद विभाग ही तय करेगा कि कब्र को हटाया जा सकता है या नहीं।’

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रिसर्च सहयोग- अंकुल कुमार

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