शशि थरूर का कॉलम: भारत की इकोनॉमी को बदल देंगे टैरिफ h3>
2 घंटे पहले
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शशि थरूर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद
हाल के समय में ट्रम्प की टैरिफ-धमकियां दुनिया सहित भारत में भी सुर्खियों में रही हैं। इस महीने की शुरुआत में ट्रम्प ने घोषणा की थी कि उनके जैसे-को-तैसा टैरिफ 2 अप्रैल से प्रभावी होंगे। इससे भारतीय निर्यातकों में घबराहट पैदा हो गई थी।
उन्हें अंदेशा था कि भारत ट्रम्प के इस ट्रेड-वॉर में उलझकर रह जाएगा। ट्रम्प का मनमौजी मिजाज चीजों को और जटिल बना देता है। हालांकि उन्होंने हाल ही में मेक्सिको और कनाडा से आयातित कारों और ऑटोमोबाइल पार्ट्स पर टैरिफ को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया है। स्पष्ट है कि वे अमेरिकी वाहन निर्माताओं को घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए समय देना चाहते हैं। लेकिन भारत को भी इसी तरह की छूट मिलने की उम्मीद करना खाम-खयाली ही होगी।
फरवरी में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल किया था- एक नए द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर नौ महीने की वार्ता-प्रक्रिया, जो शरद ऋतु तक चलने वाली है। लेकिन इस समय-सीमा का अगले महीने से लागू होने वाले रैसिप्रोकल टैरिफ पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 4 मार्च को अपने स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन में डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ शब्दों में भारत को टैरिफ का प्रमुख उल्लंघनकर्ता बताते हुए जैसे-को-तैसा शुल्क लगाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।
भारत पर इसका खासा प्रभाव पड़ सकता है। भारत ने 2024 में अमेरिका को लगभग 74 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया और अनुमान है कि ट्रम्प के नए टैरिफ से भारत को सालाना 7 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। लेकिन इसके परिणाम इससे कहीं अधिक दूरगामी हो सकते हैं।
एक विश्लेषण के मुताबिक भारत अमेरिकी वस्तुओं पर प्रभावी रूप से 9.5% टैरिफ लगाता है, जबकि भारतीय आयातों पर अमेरिकी शुल्क केवल 3% है। यदि ट्रम्प अपने वादे पर अमल करते हैं, तो यह असंतुलन समाप्त हो जाएगा।
साथ ही कई भारतीय निर्यातकों को वर्तमान में मिल रहे लागत के लाभ भी समाप्त हो जाएंगे। भारतीय उत्पाद कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे। इससे निर्यात राजस्व में कमी आएगी और नौकरियों पर संकट आएगा, विशेष रूप से श्रम-प्रधान उद्योगों में। केमिकल्स, धातु, आभूषण, ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स, टेक्स्टाइल्स, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य-उत्पाद जैसे महत्वपूर्ण सेक्टरों पर सबसे अधिक असर पड़ने की आशंका है।
रैसिप्रोकल टैरिफ का प्रभाव उनकी संरचना पर भी निर्भर करता है- विशेष रूप से इस पर कि वे किन उत्पादों को लक्षित करते हैं और उन्हें कितने व्यापक रूप से लागू किया जाता है। क्या वस्तुओं की सम्पूर्ण श्रेणियों- जैसे कि फल, या विशिष्ट वस्तुओं- जैसे कि सेब पर टैरिफ लगाया जाएगा, जिन्हें भारत अमेरिका को निर्यात नहीं करता है?
यदि टैरिफ व्यापक श्रेणियों पर लागू होते हैं या आम और संतरे जैसे प्रमुख भारतीय निर्यातों को अलग कर दिया जाता है, तो वे अमेरिकी बाजार में भारत की पहुंच को काफी हद तक सीमित कर सकते हैं। इससे भारत दुविधा में आ जाएगा कि वह छूट के लिए नेगोशिएट करे या तुरंत किसी वैकल्पिक बाजार की तलाश करे। हालांकि भारतीय अधिकारी रैसिप्रोकल टैरिफ लागू होने से पहले ट्रम्प प्रशासन के इरादों को जानने की उम्मीद में वाशिंगटन पहुंचे हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें बहुत कम स्पष्टता मिली है।
ट्रम्प द्वारा ऑटोमोबाइल पार्ट्स पर 25% टैरिफ लगाने से भी भारत जैसे प्रमुख उत्पादक को नुकसान होगा। लेकिन भारतीय निर्यातक मेक्सिको और चीन के अपने समकक्षों की तुलना में अधिक असुरक्षित नहीं हैं। यदि अमेरिकी टैरिफ सभी देशों पर लागू किए जाएंगे तो इससे सभी के लिए लागतें बढ़ जाएंगी।
बड़ा जोखिम अमेरिकी ऑटोमोटिव उद्योग पर संभावित दीर्घकालिक प्रभाव में निहित है, जो इम्पोर्टेड-पार्ट्स पर बहुत निर्भर करता है। यदि डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ से घरेलू मैन्युफैक्चरिंग में भारी उछाल आता है और आयात में तेज गिरावट आती है, तो भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को यकीनन नुकसान होगा। लेकिन इस तरह के बदलाव में समय लगेगा, और मौजूदा वेतन असमानताओं को देखते हुए अमेरिका में निर्मित पुर्जे संभवतः भारतीय आयातों की तुलना में अधिक महंगे बने रहेंगे।
यह अनुमान जताया जा रहा है कि निर्यात में कमी के कारण भारत की जीडीपी में काफी कमी आ सकती है, इसलिए मोदी सरकार ने ट्रम्प प्रशासन को पूर्व-प्रतिबंधात्मक रियायतें देकर संतुष्ट करने का प्रयास किया है। 2025-26 के केंद्रीय बजट में अमेरिका निर्मित बूर्बों, वाइन और इलेक्ट्रिक वाहनों पर शुल्क में कटौती की जाएगी।
यहां तक कि ट्रम्प के लिए अक्सर विवाद का विषय रही हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिल भी अब भारत में सस्ती हो जाएंगी। लेकिन क्या यह ट्रम्प को संतुष्ट करने के लिए काफी होगा? यदि अमेरिका अमेरिकी फार्मास्यूटिकल आयात पर भारत के 10% के बराबर टैरिफ लगाता है, तो इससे भारतीय निर्माताओं का वर्तमान लागत-लाभ समाप्त हो सकता है।
यह कोई छोटी चिंता की बात नहीं है, क्योंकि अमेरिका को फार्मा निर्यात भारत के कुल निर्यात का लगभग 31% है। यह अमेरिकी फार्मेसियों में बेची जाने वाली जेनेरिक दवाओं के उत्पादक के रूप में भारत के महत्व को दर्शाता है।
स्थानीय व्यवसायों और जॉब्स के लिए खतरा हो सकता है भारत लंबे समय से अपने घरेलू उद्योगों- विशेषकर कृषि, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स को संरक्षण देने के लिए टैरिफ का उपयोग कर रहा है। टैरिफ कम करने से इन उद्योगों को खासी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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शशि थरूर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद
हाल के समय में ट्रम्प की टैरिफ-धमकियां दुनिया सहित भारत में भी सुर्खियों में रही हैं। इस महीने की शुरुआत में ट्रम्प ने घोषणा की थी कि उनके जैसे-को-तैसा टैरिफ 2 अप्रैल से प्रभावी होंगे। इससे भारतीय निर्यातकों में घबराहट पैदा हो गई थी।
उन्हें अंदेशा था कि भारत ट्रम्प के इस ट्रेड-वॉर में उलझकर रह जाएगा। ट्रम्प का मनमौजी मिजाज चीजों को और जटिल बना देता है। हालांकि उन्होंने हाल ही में मेक्सिको और कनाडा से आयातित कारों और ऑटोमोबाइल पार्ट्स पर टैरिफ को एक महीने के लिए निलंबित कर दिया है। स्पष्ट है कि वे अमेरिकी वाहन निर्माताओं को घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए समय देना चाहते हैं। लेकिन भारत को भी इसी तरह की छूट मिलने की उम्मीद करना खाम-खयाली ही होगी।
फरवरी में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल किया था- एक नए द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर नौ महीने की वार्ता-प्रक्रिया, जो शरद ऋतु तक चलने वाली है। लेकिन इस समय-सीमा का अगले महीने से लागू होने वाले रैसिप्रोकल टैरिफ पर कोई असर नहीं पड़ेगा। 4 मार्च को अपने स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन में डोनाल्ड ट्रम्प ने साफ शब्दों में भारत को टैरिफ का प्रमुख उल्लंघनकर्ता बताते हुए जैसे-को-तैसा शुल्क लगाने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।
भारत पर इसका खासा प्रभाव पड़ सकता है। भारत ने 2024 में अमेरिका को लगभग 74 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया और अनुमान है कि ट्रम्प के नए टैरिफ से भारत को सालाना 7 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। लेकिन इसके परिणाम इससे कहीं अधिक दूरगामी हो सकते हैं।
एक विश्लेषण के मुताबिक भारत अमेरिकी वस्तुओं पर प्रभावी रूप से 9.5% टैरिफ लगाता है, जबकि भारतीय आयातों पर अमेरिकी शुल्क केवल 3% है। यदि ट्रम्प अपने वादे पर अमल करते हैं, तो यह असंतुलन समाप्त हो जाएगा।
साथ ही कई भारतीय निर्यातकों को वर्तमान में मिल रहे लागत के लाभ भी समाप्त हो जाएंगे। भारतीय उत्पाद कम प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे। इससे निर्यात राजस्व में कमी आएगी और नौकरियों पर संकट आएगा, विशेष रूप से श्रम-प्रधान उद्योगों में। केमिकल्स, धातु, आभूषण, ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स, टेक्स्टाइल्स, फार्मास्यूटिकल्स और खाद्य-उत्पाद जैसे महत्वपूर्ण सेक्टरों पर सबसे अधिक असर पड़ने की आशंका है।
रैसिप्रोकल टैरिफ का प्रभाव उनकी संरचना पर भी निर्भर करता है- विशेष रूप से इस पर कि वे किन उत्पादों को लक्षित करते हैं और उन्हें कितने व्यापक रूप से लागू किया जाता है। क्या वस्तुओं की सम्पूर्ण श्रेणियों- जैसे कि फल, या विशिष्ट वस्तुओं- जैसे कि सेब पर टैरिफ लगाया जाएगा, जिन्हें भारत अमेरिका को निर्यात नहीं करता है?
यदि टैरिफ व्यापक श्रेणियों पर लागू होते हैं या आम और संतरे जैसे प्रमुख भारतीय निर्यातों को अलग कर दिया जाता है, तो वे अमेरिकी बाजार में भारत की पहुंच को काफी हद तक सीमित कर सकते हैं। इससे भारत दुविधा में आ जाएगा कि वह छूट के लिए नेगोशिएट करे या तुरंत किसी वैकल्पिक बाजार की तलाश करे। हालांकि भारतीय अधिकारी रैसिप्रोकल टैरिफ लागू होने से पहले ट्रम्प प्रशासन के इरादों को जानने की उम्मीद में वाशिंगटन पहुंचे हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें बहुत कम स्पष्टता मिली है।
ट्रम्प द्वारा ऑटोमोबाइल पार्ट्स पर 25% टैरिफ लगाने से भी भारत जैसे प्रमुख उत्पादक को नुकसान होगा। लेकिन भारतीय निर्यातक मेक्सिको और चीन के अपने समकक्षों की तुलना में अधिक असुरक्षित नहीं हैं। यदि अमेरिकी टैरिफ सभी देशों पर लागू किए जाएंगे तो इससे सभी के लिए लागतें बढ़ जाएंगी।
बड़ा जोखिम अमेरिकी ऑटोमोटिव उद्योग पर संभावित दीर्घकालिक प्रभाव में निहित है, जो इम्पोर्टेड-पार्ट्स पर बहुत निर्भर करता है। यदि डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ से घरेलू मैन्युफैक्चरिंग में भारी उछाल आता है और आयात में तेज गिरावट आती है, तो भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को यकीनन नुकसान होगा। लेकिन इस तरह के बदलाव में समय लगेगा, और मौजूदा वेतन असमानताओं को देखते हुए अमेरिका में निर्मित पुर्जे संभवतः भारतीय आयातों की तुलना में अधिक महंगे बने रहेंगे।
यह अनुमान जताया जा रहा है कि निर्यात में कमी के कारण भारत की जीडीपी में काफी कमी आ सकती है, इसलिए मोदी सरकार ने ट्रम्प प्रशासन को पूर्व-प्रतिबंधात्मक रियायतें देकर संतुष्ट करने का प्रयास किया है। 2025-26 के केंद्रीय बजट में अमेरिका निर्मित बूर्बों, वाइन और इलेक्ट्रिक वाहनों पर शुल्क में कटौती की जाएगी।
यहां तक कि ट्रम्प के लिए अक्सर विवाद का विषय रही हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिल भी अब भारत में सस्ती हो जाएंगी। लेकिन क्या यह ट्रम्प को संतुष्ट करने के लिए काफी होगा? यदि अमेरिका अमेरिकी फार्मास्यूटिकल आयात पर भारत के 10% के बराबर टैरिफ लगाता है, तो इससे भारतीय निर्माताओं का वर्तमान लागत-लाभ समाप्त हो सकता है।
यह कोई छोटी चिंता की बात नहीं है, क्योंकि अमेरिका को फार्मा निर्यात भारत के कुल निर्यात का लगभग 31% है। यह अमेरिकी फार्मेसियों में बेची जाने वाली जेनेरिक दवाओं के उत्पादक के रूप में भारत के महत्व को दर्शाता है।
स्थानीय व्यवसायों और जॉब्स के लिए खतरा हो सकता है भारत लंबे समय से अपने घरेलू उद्योगों- विशेषकर कृषि, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स को संरक्षण देने के लिए टैरिफ का उपयोग कर रहा है। टैरिफ कम करने से इन उद्योगों को खासी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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