Happy Holi : आधे बिहार में आज होली है, कल ज्यादा लोग मनाएंगे रंगों का त्योहार; बनगांव में कल ही खेल ली होली

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Happy Holi : आधे बिहार में आज होली है, कल ज्यादा लोग मनाएंगे रंगों का त्योहार; बनगांव में कल ही खेल ली होली

Happy Holi : आधे बिहार में आज होली है, कल ज्यादा लोग मनाएंगे रंगों का त्योहार; बनगांव में कल ही खेल ली होली

देश में होली कब मनाई जा रही है, इससे अलग बिहार में रंगों के त्योहार को लेकर संशय है। आधे इधर और आधे उधर- इसी स्थिति में इस बार होली का त्योहार मनाया जा रहा है। गुरुवार की आधी रात अगजा, यानी हाेलिका दहन के बाद भी यह संशय बना हुआ है, इसकी वजह बड़ी है। बिहार में सूर्य के उदय-अस्त को लेकर लोग बहुत गंभीर होते हैं, इसलिए आधा बिहार आज होली मना रहा है और बड़ी तादाद में लोग शनिवार को होली मनाएंगे। फाल्गुन पूर्णिमा पर गुरुवार की रात 10.47 के बाद होलिका दहन का समय था, इसलिए यह सब हुआ। 

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विश्वविद्यालय पंचांग में शनिवार को होली की बात लिखी गई है। सहरसा जिले के बनगांव को छोड़ कर मिथिलांचल के बड़े हिस्से में होली शुक्रवार को मनाई जाएगी। मिथिला में लोग फगुआ खेलते हैं, जिसका समय शुक्रवार है, क्योंकि यह फाल्गुन पूर्णिमा के अवसर पर खेला जाता है। सहरसा जिले के बनगांव में होली गुरुवार को ही खेली गई, क्याेंकि परंपरा के अनुसार यहां होली शुरू से ही फाल्गुन चतुर्दशी को मनाई जाती है। यहां के लोग होली खेलने के बाद होलिका दहन करते हैं, जबकि बाकी जगह इसके बाद।

होली आज है, इस दावे की वजह समझें

ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान के पंडित तरुण झा ने बताया कि हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है। होलिका दहन का हिंदू पूजा में विशेष महत्व बताया गया है। इस बार फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा 13 मार्च को प्रातः 10:12 से प्रारम्भ हो रहा है और शुक्रवार को प्रातः 11:22 तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। इसलिए होलिका दहन गुरुवार रात्रि 10.47 के बाद शुभ एवं उचित था। 14 मार्च को पूजन एवं कुलदेवता को सिंदूर अर्पण के बाद 14 मार्च को ही होली मनाई जाएगी। विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार होली 15 मार्च को है, लेकिन मिथिला में यह पर्व फाल्गुनी पूर्णिमा को मानाने का विधान है। इसीलिए होली 14 को ही मनेगी। आचार्य डॉ नवनीत कहते हैं कि हर साल फाल्गुन पूर्णिमा की रात होलिका दहन करने की परंपरा है। इस साल होलिका दहन 13 मार्च की रात को हुआ है। मिथिलांचल में फाल्गुन पूर्णिमा के दिन ही रंग-गुलाल खेलते हैं। फिर चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को डोरा पूजन इत्यादि करते हैं।

होली कल है, इस दावे की वजह समझें

ज्योतिष विशेषज्ञ श्रीकांत सौरभ कहते हैं कि 15 मार्च को चैत्र प्रतिपदा होने के कारण शास्त्र सम्मत होली शनिवार को है, लेकिन 14 मार्च को भी मनाने से कोई हानि नहीं। हमारे यहां होली धार्मिक कर्मकांड नहीं, उत्सव के रूप में प्रचलित है। दरअसल, होलिका दहन का समय यानी फाल्गुन पूर्णिमा गुरुवार सूर्योदय के समय नहीं था। यह गुरुवार की रात शुरू हुआ। यह शुक्रवार को सूर्योदय के समय रहेगा। पूर्णिमा काल शुक्रवार को प्रातः 11:22 तक रहना है। चूंकि होलिका दहन रात में होता है, इसलिए यह प्रक्रिया गुरुवार रात ही कर ली गई। शुक्रवार रात यह समय शेष नहीं बचता। जहां होलिका दहन के अगले दिन होली का विधान माना जाता है, वह लोग शुक्रवार सुबह 11:22 तक होलिका दहन की ही तिथि मानते हुए अगले दिन शनिवार को होली मना रहे हैं। 

लेकिन, यहां तो कल ही हो गई होली

बिहार या शायद पूरे देश में एक ही जगह होली कल मना ली गई, वह है सहरसा जिले का बनगांव। आचार्य डॉ कुमुदानन्द झा प्रियवर कहते हैं कि बनगांव की होली परम्परागत होलिका दहन से पहले खेली जाती है। बनगांव वासी सनातन से होलिका दहन के बाद होली नहीं खेलते। इसी तरह चैनपुर के पूर्वजों तथा विद्वानों के द्वारा चैनपुर के होली के संबंध में व्यवहार परम्परा एवं शास्त्र के समन्वय से होलिका दहन के अगले दिन यदि सूर्योदय के समय अथवा उसके बाद तक पूर्णिमा रहे तो होलिका दहनोपरांत चैनपुर में होली होती है। दोनों गांव में एक समन्वय है कि फाल्गुन पूर्णिमा में ही होली होती है। विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार जो होली निर्धारित होती है तो उसमें उदीयमान प्रतिपदा का महत्व देकर उसी दिन होली का निर्णय दिया जाता है।

विश्वविद्यालय पंचांग में इस सिद्धांत को लेकर शनिवार को होली मानी गई है…

“प्रतिपदियमौदयिकी ग्राह्या प्रवृत्ते मधुमासे तु प्रतिपद्युदिते रवौ। कृत्वा चावश्य कार्याणि सन्तर्प्य पितृदेवताः।। वन्देयत् होलिकाभूमिं स्वदुःखोपशान्तये। 

इसका अर्थ यह है कि उदीयमान प्रतिपदा तिथि को मानकर होली खेलना चाहिए। किंतु इससे इतर ग्रंथ में फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा की प्रधानता दी गई है। बहुत जगह इसी सब के बीच व्यवहार एवं परम्परा के अनुसार प्रधानता दी गई है। उदीयमान तिथि को एकादशी व्रत आदि तिथि का महत्व है। पर्व फाल्गुन में मनाना ही उचित है।

(इनपुट- श्रुतिकांत, सहरसा)

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