नीतीश के एक दांव से लालू का सिंडिकेट हुआ तबाह: करप्शन, रंगदारी का अड्डा बताकर एक्ट खत्म किया, 18 साल बाद नए कलेवर में पुराना कानून h3>
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‘कृषि बाजार समितियां भ्रष्टाचार में डूबी हैं। इससे किसानों को फायदा नहीं हो रहा है। इसलिए कृषि उत्पादन बाजार समिति (APMC) एक्ट को खत्म किया जाता है।’
-सुशील मोदी, वित्त मंत्री, बिहार सरकार
3 मार्च 2025
‘बिहार की 21 बाजार समितियों को हाइटेक बनाने के लिए सरकार 1289 करोड़ रुपए खर्च करेगी। साथ ही राज्य के सभी बाजार समिति प्रांगण को कार्यशील बनाया जाएगा।’
सम्राट चौधरी, वित्त मंत्री, बिहार सरकार
इन दो बयानों के बीच 18 साल का वक्त गुजर चुका है। सरकार अपनी पुरानी गलतियों को दुरुस्त करते हुए वापस मंडी व्यवस्था पर लौटने का ऐलान कर चुकी है।
2006 में CM नीतीश कुमार की जिन नीतियों की सबसे ज्यादा आलोचना हुई, उनमें से एक है कृषि उत्पादन बाजार समिति (APMC) एक्ट को समाप्त कर देना। 2005 में सरकार बनने के बाद 2006 में ही सरकार ने इस कानून को भंग कर दिया था।
उस वक्त बिहार देश का पहला ऐसा राज्य था, जहां AMPC एक्ट को समाप्त किया गया। अब लगभग 18 साल बाद वही नीतीश कुमार सरकार एक बार फिर से न केवल इसी कानून को नए कलेवर के साथ लागू कर रही है, बल्कि राज्य भर की कृषि उत्पादन बाजार समिति को हाइटेक भी बना रही है। इस पर लगभग 5,000 करोड़ रुपए खर्च करने की प्लानिंग है।
इस बार मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए, आखिर 18 साल बाद नीतीश कुमार को अपना फैसला क्यों पलटना पड़ा? कानून खत्म करने के पीछे की राजनीति…
सबसे पहले जानिए, कानून खत्म करने के पीछे की राजनीति और तर्क समझिए
कृषि उत्पादन बाजार समिति बिहार में एक पॉलिटिकल अखाड़ा बन गया था। समिति की तरफ से व्यापारियों और किसानों से खरीद-बिक्री के नाम पर एक पर्सेंट का बाजार टैक्स देना होता था लेकिन यहां इस पर खूब मनमानी होने लगी थी। किसान के उत्पादों की जगह जहां-तहां बैरियर लगाकर जबरन वसूली शुरू हो गई थी।
50 साल से चावल का कारोबार करने वाले खाद्यान्न संघ के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र कुमार गुप्ता कहते हैं, ‘हो ये रहा था व्यापारियों से टैक्स तो वसूला जाता था, लेकिन ये सरकार तक नहीं पहुंच रहा था। गुंडे सरकार को टैक्स देने के बजाय अपने पॉकेट में पैसे रख रहे थे। वे 1 पर्सेंट टैक्ट को आधिकारिक रूप से लेने की जगह टैक्स को 50-50 बांट दे रहे थे।’
एक झटके में लालू का सिंडिकेट तबाह हो गया
बाजार समिति से जुड़े एक पुराने अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, ‘ दरअसल हुआ ये था कि ऑटोनोमस बॉडी होने के कारण इसके सदस्य, अध्यक्ष की नियुक्ति सरकार करती थी। वे अपने पसंद के नेताओं को यहां सेट करते थे। इसके बाद ये अपने हिसाब से फैसले लेते थे। ऐसे में 2005-6 तक बाजार समिति में लालू यादव का वर्चस्व था।
पूरे बिहार में इस पर उनका आधिपत्य था। वे बाजार समिति प्रांगण की जगह मार्केट में बैरियर लगाकर बाजार टैक्स वसूलने लगे थे। एक ही गाड़ी को एक शहर से गुजरने पर तीन जगह टैक्स देना पड़ता था। इसका सिंडिकेट इतना बड़ा था कि बिना कानून को भंग किए समाप्त नहीं किया जा सकता था। कानून खत्म होते ही ये पूरा नेटवर्क एक झटके में समाप्त हो गया।’
नए कानून में क्या-क्या होगा…
एक सीनियर ऑफिसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, ‘2006 में केवल मार्केटिंग बोर्ड को भंग किया गया था। मार्केट हमेशा से किसानों के लिए रहा है। अलग बात है कि उस बाजार को देखने वाला कोई नहीं था।
बोर्ड को समाप्त कर उसकी जगह पर 2024 में डायरेक्टरेट ऑफ एग्रीकल्चर मार्केटिंग का गठन किया गया है। इससे हुआ ये कि बोर्ड में जो पावर बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्य के पास होते थे, उसे समाप्त कर सरकार इसे पूरी तरह अपने अधीन ले ली है। यानि कृषि उत्पादन बाजार समिति, जो पहले ऑटोनोमस हुआ करती थी उसका पूरी तरह सरकारीकरण कर दिया गया।’
निदेशालय भी वही करेगा जो काम बोर्ड का था
राज्य के एग्रीकल्चर प्रोडक्ट की बेहतर मार्केटिंग, उत्पादों की उचित कीमत दिलाने के लिए सरकार की तरफ से 2024 में डायरेक्टरेट ऑफ एग्रीकल्चर मार्केटिंग का गठन किया गया। इसका प्रावधान चौथे कृषि रोड मैप के तहत किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी उपज का उचित कीमत दिलवाना, किसानों को बाजार उपलब्ध करवाना, उत्पाद में वैल्यू एडिशन करवाना, फूड प्रोडक्ट्स की पैकेजिंग करना है। लगभग यही काम मार्केटिंग बोर्ड भी करता था।
किसानों को नहीं देना होगा कोई टैक्स
नए कानून में अंतर बस इतना होगा कि अब बाजार समिति प्रांगण में व्यापार करने के लिए किसानों को किसी प्रकार का कोई टैक्स नहीं देना होगा। पहले इसके लिए कुल सेल का एक पर्सेट टैक्स के रूप में देना होता था। पड़ोसी राज्य झारखंड, बंगाल और UP में अभी भी यही व्यवस्था है। बिहार ने ओडिशा और केरल के मॉडल को अपने यहां लागू किया है।
हाईटेक मार्केट में CCTV से लैब तक की सुविधा होगी
एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के एक सीनियर ऑफिसर के मुताबिक, ‘जितनी भी जर्जर बिल्डिंग हैं उसे तोड़कर मॉडर्न मार्केट और बिल्डिंग बनाई जाएगी। सड़क, नाला, चहारदीवारी, मेन गेट, हाईमास्क लाइट, प्रशासनिक भवन, किसानों के लिए रेस्ट रूम और कैफेटेरिया को नए सिरे से तैयार किया जा रहा है।’
इनके अलावा पीने का पानी, शौचालय, वे मशीन (धर्मकांटा) के साथ पूरे मार्केट में सीसीटीवी कैमरे भी इंस्टॉल किए जाएंगे। इसके अलावा अनाजों की ग्रेडिंग और टेस्टिंग के लिए लैब भी बनाए जाएंगे। किसानों का माल खराब ना हो, इसके लिए कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया जाएगा।
राज्य भर की 20 बाजार समितियों को मॉडर्न बनाने का काम पिछले दो साल से किया जा रहा । कई तो बन कर तैयार भी हो गए हैं। इसका 95 प्रतिशत हिस्सा लोन के रूप में नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट) दे रहा है। बाकी की राशि राज्य सरकार की मद से दिया जा रहा है।
बाजार समितियों में बेचे जाएंगे यह आइटम
बाजार समितियों में अनाज मंडी, फल मंडी, फूल मंडी, मछली मंडी, सब्जी मंडी को भी आधुनिक तरीके से मॉडिफाई किया जा रहा है।
APMC एक्ट नहीं होने से किसानों को क्या हो रहा था नुकसान
किसान दाम बढ़ने पर अपने उत्पाद बेचते थे, ये खत्म हो गया
ऑल इंडिया किसान सभा के राष्ट्रीय सचिव अशोक सिंह कहते हैं, ‘पंजाब के हाट की तर्ज पर पर बिहार के मार्केटिंग परिसर को डेवलप किया जाता तो किसानों को लाभ होता। यहां बोर्ड को भंग कर खरीदारी का अधिकार को-ऑपरेटिव के हाथों में दे दिया गया। ये अपने हिसाब से धान की खरीदारी करती है। 30 प्रतिशत भी रियल किसान से खरीदारी नहीं हो पाती है। किसानों को सबसे बड़ा नुकसान उचित रेट नहीं मिलने का हो रहा है।’
इसे सरल भाषा में ऐसे समझिए, अप्रैल में जब गेहूं की कटाई होती है तब इसकी कीमत 1600 रुपए होती है। अक्टूबर-नवंबर में रेट बढ़कर 2300 रुपए हो जाती है। अगर कृषि बाजार समिति की व्यवस्था होती तो किसान अपनी फसल को अप्रैल से नवंबर तक के लिए वहां सुरक्षित रख सकते थे लेकिन नहीं रहने के कारण किसानों को इसका खामियाजा हुआ।
वहीं, बक्सर सांसद सुधाकर सिंह दावा करते हैं, ‘19 वर्षों में प्रति वर्ष 50-60 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। 25 प्रतिशत डिस्ट्रेस सेल एग्री प्रोड्यूस बेचे गए हैं। नुकसान की भरपाई पर बात ही नहीं की गई है। हमारी मान्यता है कि अगले 10 साल तक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तर्ज पर बिहार में भी किसानों को गेहूं और चावल पर 1000 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर बोनस दी जाए।’
केंद्र की ई-मंडी योजना का नहीं मिल रहा था लाभ
केंद्र सरकार की तरफ से 2016 में E-NAM (इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) की शुरुआत की गई थी। इसमें यह सुविधा विकसित की गई है कि बिहार के किसान अपने एग्रीकल्चर प्रोडक्ट देश के किसी भी राज्य के किसानों को ऑनलाइन बेच सकते हैं। ऐसे में किसान को न केवल घर बैठे देश भर का बाजार मिल रहा है बल्कि एग्री प्रोडक्ट्स की ज्यादा कीमत भी मिल रही है।
बिहार में APMC एक्ट नहीं होने के कारण E-NAM बिहार में शुरू नहीं हो पा रहा था। अब नए संशोधन के साथ बिहार की 20 मंडियों में इसकी शुरुआत हो गई है।
सरल भाषा में इसे ऐसे समझिए कि इस सुविधा के माध्यम से किसान फ्लिपकार्ट की तरह अपने कृषि उत्पाद की डिजिटल बिक्री कर सकते हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक, बिहार में हर साल एसेंसियल कमोडिटी में एक करोड़ 80 लाख मिट्रिक टन अनाज का उत्पादन हो रहा है। चावल 700 रुपए प्रति क्विंटल, गेहूं 300 रुपए प्रति क्विंटल, मक्का 800-1000 रुपए प्रति क्विंटल कम मूल्य पर किसान बेच रहे हैं।
18 साल में बिहार ने कई मौके खो दिए – देविन्दर शर्मा
कृषि एक्सपर्ट देविन्दर शर्मा कहते हैं, ‘जो 2006 में हुआ था वो डिजास्टर था। उस दौरान भी इसका विरोध हुआ था लेकिन इंडस्ट्रियलिस्ट के दबाव में सबकुछ बाजार के हवाले कर दिया गया। तब ये कहा गया कि मंडियों की जरूरत नहीं है। 18 साल बाद भी आज बिहार वहीं खड़ा है, कुछ नहीं बदला। ये स्थिति उस राज्य की है, जिसकी पहचान देश भर में वर्कफोर्स सप्लाई करने की है।’
बोर्ड को भंग कर सरकार अपनी मंसा में फेल हुई- अविरल पांडे
एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट और पटना यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर अविरल पांडे कहते हैं, ‘कहा गया था कि कृषि उत्पादन बाजार समिति कानून के समाप्त होने के बाद एग्रीकल्चल मार्केटिंग प्रणाली बेहतर होगी, लेकिन यह पूरी तरह साकार नहीं हो सका।
बिहार में अभी भी किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने, संगठित बाजार उपलब्ध कराने और सरकारी खरीद प्रणाली को ठीक करने के लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत है।’
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‘कृषि बाजार समितियां भ्रष्टाचार में डूबी हैं। इससे किसानों को फायदा नहीं हो रहा है। इसलिए कृषि उत्पादन बाजार समिति (APMC) एक्ट को खत्म किया जाता है।’
-सुशील मोदी, वित्त मंत्री, बिहार सरकार
3 मार्च 2025
‘बिहार की 21 बाजार समितियों को हाइटेक बनाने के लिए सरकार 1289 करोड़ रुपए खर्च करेगी। साथ ही राज्य के सभी बाजार समिति प्रांगण को कार्यशील बनाया जाएगा।’
सम्राट चौधरी, वित्त मंत्री, बिहार सरकार
इन दो बयानों के बीच 18 साल का वक्त गुजर चुका है। सरकार अपनी पुरानी गलतियों को दुरुस्त करते हुए वापस मंडी व्यवस्था पर लौटने का ऐलान कर चुकी है।
2006 में CM नीतीश कुमार की जिन नीतियों की सबसे ज्यादा आलोचना हुई, उनमें से एक है कृषि उत्पादन बाजार समिति (APMC) एक्ट को समाप्त कर देना। 2005 में सरकार बनने के बाद 2006 में ही सरकार ने इस कानून को भंग कर दिया था।
उस वक्त बिहार देश का पहला ऐसा राज्य था, जहां AMPC एक्ट को समाप्त किया गया। अब लगभग 18 साल बाद वही नीतीश कुमार सरकार एक बार फिर से न केवल इसी कानून को नए कलेवर के साथ लागू कर रही है, बल्कि राज्य भर की कृषि उत्पादन बाजार समिति को हाइटेक भी बना रही है। इस पर लगभग 5,000 करोड़ रुपए खर्च करने की प्लानिंग है।
इस बार मंडे स्पेशल स्टोरी में पढ़िए, आखिर 18 साल बाद नीतीश कुमार को अपना फैसला क्यों पलटना पड़ा? कानून खत्म करने के पीछे की राजनीति…
सबसे पहले जानिए, कानून खत्म करने के पीछे की राजनीति और तर्क समझिए
कृषि उत्पादन बाजार समिति बिहार में एक पॉलिटिकल अखाड़ा बन गया था। समिति की तरफ से व्यापारियों और किसानों से खरीद-बिक्री के नाम पर एक पर्सेंट का बाजार टैक्स देना होता था लेकिन यहां इस पर खूब मनमानी होने लगी थी। किसान के उत्पादों की जगह जहां-तहां बैरियर लगाकर जबरन वसूली शुरू हो गई थी।
50 साल से चावल का कारोबार करने वाले खाद्यान्न संघ के पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र कुमार गुप्ता कहते हैं, ‘हो ये रहा था व्यापारियों से टैक्स तो वसूला जाता था, लेकिन ये सरकार तक नहीं पहुंच रहा था। गुंडे सरकार को टैक्स देने के बजाय अपने पॉकेट में पैसे रख रहे थे। वे 1 पर्सेंट टैक्ट को आधिकारिक रूप से लेने की जगह टैक्स को 50-50 बांट दे रहे थे।’
एक झटके में लालू का सिंडिकेट तबाह हो गया
बाजार समिति से जुड़े एक पुराने अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, ‘ दरअसल हुआ ये था कि ऑटोनोमस बॉडी होने के कारण इसके सदस्य, अध्यक्ष की नियुक्ति सरकार करती थी। वे अपने पसंद के नेताओं को यहां सेट करते थे। इसके बाद ये अपने हिसाब से फैसले लेते थे। ऐसे में 2005-6 तक बाजार समिति में लालू यादव का वर्चस्व था।
पूरे बिहार में इस पर उनका आधिपत्य था। वे बाजार समिति प्रांगण की जगह मार्केट में बैरियर लगाकर बाजार टैक्स वसूलने लगे थे। एक ही गाड़ी को एक शहर से गुजरने पर तीन जगह टैक्स देना पड़ता था। इसका सिंडिकेट इतना बड़ा था कि बिना कानून को भंग किए समाप्त नहीं किया जा सकता था। कानून खत्म होते ही ये पूरा नेटवर्क एक झटके में समाप्त हो गया।’
नए कानून में क्या-क्या होगा…
एक सीनियर ऑफिसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, ‘2006 में केवल मार्केटिंग बोर्ड को भंग किया गया था। मार्केट हमेशा से किसानों के लिए रहा है। अलग बात है कि उस बाजार को देखने वाला कोई नहीं था।
बोर्ड को समाप्त कर उसकी जगह पर 2024 में डायरेक्टरेट ऑफ एग्रीकल्चर मार्केटिंग का गठन किया गया है। इससे हुआ ये कि बोर्ड में जो पावर बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्य के पास होते थे, उसे समाप्त कर सरकार इसे पूरी तरह अपने अधीन ले ली है। यानि कृषि उत्पादन बाजार समिति, जो पहले ऑटोनोमस हुआ करती थी उसका पूरी तरह सरकारीकरण कर दिया गया।’
निदेशालय भी वही करेगा जो काम बोर्ड का था
राज्य के एग्रीकल्चर प्रोडक्ट की बेहतर मार्केटिंग, उत्पादों की उचित कीमत दिलाने के लिए सरकार की तरफ से 2024 में डायरेक्टरेट ऑफ एग्रीकल्चर मार्केटिंग का गठन किया गया। इसका प्रावधान चौथे कृषि रोड मैप के तहत किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को उनकी उपज का उचित कीमत दिलवाना, किसानों को बाजार उपलब्ध करवाना, उत्पाद में वैल्यू एडिशन करवाना, फूड प्रोडक्ट्स की पैकेजिंग करना है। लगभग यही काम मार्केटिंग बोर्ड भी करता था।
किसानों को नहीं देना होगा कोई टैक्स
नए कानून में अंतर बस इतना होगा कि अब बाजार समिति प्रांगण में व्यापार करने के लिए किसानों को किसी प्रकार का कोई टैक्स नहीं देना होगा। पहले इसके लिए कुल सेल का एक पर्सेट टैक्स के रूप में देना होता था। पड़ोसी राज्य झारखंड, बंगाल और UP में अभी भी यही व्यवस्था है। बिहार ने ओडिशा और केरल के मॉडल को अपने यहां लागू किया है।
हाईटेक मार्केट में CCTV से लैब तक की सुविधा होगी
एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के एक सीनियर ऑफिसर के मुताबिक, ‘जितनी भी जर्जर बिल्डिंग हैं उसे तोड़कर मॉडर्न मार्केट और बिल्डिंग बनाई जाएगी। सड़क, नाला, चहारदीवारी, मेन गेट, हाईमास्क लाइट, प्रशासनिक भवन, किसानों के लिए रेस्ट रूम और कैफेटेरिया को नए सिरे से तैयार किया जा रहा है।’
इनके अलावा पीने का पानी, शौचालय, वे मशीन (धर्मकांटा) के साथ पूरे मार्केट में सीसीटीवी कैमरे भी इंस्टॉल किए जाएंगे। इसके अलावा अनाजों की ग्रेडिंग और टेस्टिंग के लिए लैब भी बनाए जाएंगे। किसानों का माल खराब ना हो, इसके लिए कोल्ड स्टोरेज का निर्माण किया जाएगा।
राज्य भर की 20 बाजार समितियों को मॉडर्न बनाने का काम पिछले दो साल से किया जा रहा । कई तो बन कर तैयार भी हो गए हैं। इसका 95 प्रतिशत हिस्सा लोन के रूप में नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट) दे रहा है। बाकी की राशि राज्य सरकार की मद से दिया जा रहा है।
बाजार समितियों में बेचे जाएंगे यह आइटम
बाजार समितियों में अनाज मंडी, फल मंडी, फूल मंडी, मछली मंडी, सब्जी मंडी को भी आधुनिक तरीके से मॉडिफाई किया जा रहा है।
APMC एक्ट नहीं होने से किसानों को क्या हो रहा था नुकसान
किसान दाम बढ़ने पर अपने उत्पाद बेचते थे, ये खत्म हो गया
ऑल इंडिया किसान सभा के राष्ट्रीय सचिव अशोक सिंह कहते हैं, ‘पंजाब के हाट की तर्ज पर पर बिहार के मार्केटिंग परिसर को डेवलप किया जाता तो किसानों को लाभ होता। यहां बोर्ड को भंग कर खरीदारी का अधिकार को-ऑपरेटिव के हाथों में दे दिया गया। ये अपने हिसाब से धान की खरीदारी करती है। 30 प्रतिशत भी रियल किसान से खरीदारी नहीं हो पाती है। किसानों को सबसे बड़ा नुकसान उचित रेट नहीं मिलने का हो रहा है।’
इसे सरल भाषा में ऐसे समझिए, अप्रैल में जब गेहूं की कटाई होती है तब इसकी कीमत 1600 रुपए होती है। अक्टूबर-नवंबर में रेट बढ़कर 2300 रुपए हो जाती है। अगर कृषि बाजार समिति की व्यवस्था होती तो किसान अपनी फसल को अप्रैल से नवंबर तक के लिए वहां सुरक्षित रख सकते थे लेकिन नहीं रहने के कारण किसानों को इसका खामियाजा हुआ।
वहीं, बक्सर सांसद सुधाकर सिंह दावा करते हैं, ‘19 वर्षों में प्रति वर्ष 50-60 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। 25 प्रतिशत डिस्ट्रेस सेल एग्री प्रोड्यूस बेचे गए हैं। नुकसान की भरपाई पर बात ही नहीं की गई है। हमारी मान्यता है कि अगले 10 साल तक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तर्ज पर बिहार में भी किसानों को गेहूं और चावल पर 1000 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर बोनस दी जाए।’
केंद्र की ई-मंडी योजना का नहीं मिल रहा था लाभ
केंद्र सरकार की तरफ से 2016 में E-NAM (इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) की शुरुआत की गई थी। इसमें यह सुविधा विकसित की गई है कि बिहार के किसान अपने एग्रीकल्चर प्रोडक्ट देश के किसी भी राज्य के किसानों को ऑनलाइन बेच सकते हैं। ऐसे में किसान को न केवल घर बैठे देश भर का बाजार मिल रहा है बल्कि एग्री प्रोडक्ट्स की ज्यादा कीमत भी मिल रही है।
बिहार में APMC एक्ट नहीं होने के कारण E-NAM बिहार में शुरू नहीं हो पा रहा था। अब नए संशोधन के साथ बिहार की 20 मंडियों में इसकी शुरुआत हो गई है।
सरल भाषा में इसे ऐसे समझिए कि इस सुविधा के माध्यम से किसान फ्लिपकार्ट की तरह अपने कृषि उत्पाद की डिजिटल बिक्री कर सकते हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक, बिहार में हर साल एसेंसियल कमोडिटी में एक करोड़ 80 लाख मिट्रिक टन अनाज का उत्पादन हो रहा है। चावल 700 रुपए प्रति क्विंटल, गेहूं 300 रुपए प्रति क्विंटल, मक्का 800-1000 रुपए प्रति क्विंटल कम मूल्य पर किसान बेच रहे हैं।
18 साल में बिहार ने कई मौके खो दिए – देविन्दर शर्मा
कृषि एक्सपर्ट देविन्दर शर्मा कहते हैं, ‘जो 2006 में हुआ था वो डिजास्टर था। उस दौरान भी इसका विरोध हुआ था लेकिन इंडस्ट्रियलिस्ट के दबाव में सबकुछ बाजार के हवाले कर दिया गया। तब ये कहा गया कि मंडियों की जरूरत नहीं है। 18 साल बाद भी आज बिहार वहीं खड़ा है, कुछ नहीं बदला। ये स्थिति उस राज्य की है, जिसकी पहचान देश भर में वर्कफोर्स सप्लाई करने की है।’
बोर्ड को भंग कर सरकार अपनी मंसा में फेल हुई- अविरल पांडे
एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट और पटना यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर अविरल पांडे कहते हैं, ‘कहा गया था कि कृषि उत्पादन बाजार समिति कानून के समाप्त होने के बाद एग्रीकल्चल मार्केटिंग प्रणाली बेहतर होगी, लेकिन यह पूरी तरह साकार नहीं हो सका।
बिहार में अभी भी किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने, संगठित बाजार उपलब्ध कराने और सरकारी खरीद प्रणाली को ठीक करने के लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत है।’