धामी सरकार का UCC कानून लागू, लिव-इन कपल्स परेशान: लिव-इन में रहने वालों का रजिस्ट्रेशन जरूरी, नहीं तो तीन महीने की जेल

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धामी सरकार का UCC कानून लागू, लिव-इन कपल्स परेशान:  लिव-इन में रहने वालों का रजिस्ट्रेशन जरूरी, नहीं तो तीन महीने की जेल

धामी सरकार का UCC कानून लागू, लिव-इन कपल्स परेशान: लिव-इन में रहने वालों का रजिस्ट्रेशन जरूरी, नहीं तो तीन महीने की जेल

33 साल की श्रेया देहरादून में एक प्राइवेट कंपनी में जॉब करती हैं। करीब एक साल पहले समर्थ से मिलीं। समर्थ उनकी कंपनी में ही काम करते हैं। दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। परिवार की बंदिशें थीं, इसलिए तुरंत शादी नहीं कर सकते थे। दोनों ने तय किया कि वे

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सब ठीक चल रहा था कि 27 जनवरी को उत्तराखंड की धामी सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी UCC लागू कर दिया। इसके तहत लिव-इन में रह रहे कपल को अपना नाम रजिस्टर कराना होगा। ऐसा न करने पर तीन महीने तक की जेल हो सकती है।

श्रेया और समर्थ की तरह कई कपल अब परेशान हैं। उन्हें अपनी सिक्योरिटी और प्राइवेट डेटा लीक होने का डर है। UCC लागू होने से पहले ऐसा हो भी चुका है। उधम सिंह नगर में 22 साल के मोहम्मद शानू और 23 साल की आकांक्षा ने 7 जनवरी को शादी के लिए नोटिस दिया था। उनकी डिटेल सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। हिंदूवादी संगठन शादी रुकवाने पहुंच गए। शानू पर लव जिहाद का आरोप लगाया।

UCC लागू होने के बाद लिव-इन में रह रहे लोगों की परेशानी समझने के लिए दैनिक NEWS4SOCIALउत्तराखंड के अलग-अलग शहरों में पहुंचा। तीन कपल से बात की। वे अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहते। इसलिए हमने उनके नाम बदल दिए हैं।

लौटते हैं श्रेया और समर्थ की कहानी पर…

‘पहचान सामने आई, तो आसपास के लोग टारगेट करने लगेंगे’ श्रेया कहती हैं, ‘मैं और समर्थ लिव-इन में रह रहे थे। सोचा था कि हमारे परिवारों और दूसरे लोगों को इस बारे में पता नहीं चलेगा। रजिस्ट्रेशन की प्रोसेस पर सबसे बड़ी चिंता यही है कि अब तो हमें सरकार को बताना होगा। पर्सनल जानकारी देनी पड़ेगी। अगर सरकार उस डेटा की सुरक्षा नहीं कर पाई, तो हमारी सुरक्षा खतरे में आ सकती है।’

श्रेया को लगता है कि लिव-इन को रजिस्टर कराने वाले प्रावधान की जरूरत नहीं थी। वे कहती हैं, ‘मुझे समझ नहीं आता कि अगर कोई लिव-इन में रह रहा है, तो उसे रजिस्ट्रेशन क्यों कराना चाहिए। ऐसे तो आस-पड़ोस में रहने वाले लोग उन्हें टारगेट करने लगेंगे।’

हमने श्रेया से पूछा- क्या आपको लगता कि नया कानून आपके रिश्ते पर असर डालता है, क्या आप अलग रहने के बारे में या फिर शादी के बारे में सोच रहे हैं और आप इसके लिए कितने तैयार हैं?

श्रेया जवाब देती हैं-

रजिस्ट्रेशन वाली शर्त की वजह से हम पर शादी करने का दबाव बढ़ा है। हमारे बीच सब नेचुरली हो रहा था। अब लग रहा है कि हम पर कोई बोझ है।

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‘मैं किससे प्यार करती हूं और किसके साथ रहती हूं, ये मुझे सरकार को बताना पड़ रहा है। ऐसे में मेरी प्राइवेसी कहां है। ये मैं तय करूंगी कि मैं किसके साथ रहती हूं। मैं सरकार को इस बारे में नहीं बताना चाहती। रिलेशनशिप और लिव-इन हमारा निजी मसला है और इसे निजी ही रहने देना चाहिए।’

श्रेया, उम्र- 33 साल

‘दरवाजे पर हुई हर दस्तक अब डराने लगी है’ देहरादून की रहने वालीं श्रेया UCC लागू होने के बाद भी पहले की तरह लिव-इन में रह रही हैं। वे बताती हैं, ‘अब तक तो हमें कोई दिक्कत नहीं हुई है। किसी ने आकर पूछताछ भी नहीं की है। अब हमें लगता रहता है कि कोई आ सकता है। हम डरे हुए हैं क्योंकि अब तो कानून के हिसाब से हमारा रिश्ता गलत की कैटेगरी में आ गया है।’

‘समाज में जो लोग पहले से लिव-इन के खिलाफ थे, अब उन्हें खुलकर बोलने का मौका मिल गया है। हमारा डर यही लोग हैं। दरवाजे पर होने वाली हर दस्तक हमें डराती है कि पता नहीं कौन आ गया।’

कृष्णकांत, उम्र: 63 साल

‘38 साल से लिव-इन में, जवान होता तो मुझे भी डर लगता’ ऐसा नहीं है कि लिव-इन के रजिस्ट्रेशन से नए कपल को ही परेशानी हो रही है। 63 साल के कृष्णकांत 38 साल से लिव-इन में रह रहे हैं। सोशल सेक्टर में काम करते हैं। राजस्थान से हैं, लेकिन काम के लिए देहरादून में बस गए।

देहरादून आने से पहले ही कृष्णकांत अपनी पार्टनर मृणालिनी के साथ लिव-इन में रहने लगे थे। देहरादून में साथ रहते हुए करीब 4 दशक हो चुके हैं। दोनों के बच्चे भी हुए, अब कृष्णकांत और मृणालिनी दादा-दादी बन चुके हैं। दोनों ने शादी नहीं की और आज भी लिव-इन में रहते हैं। कृष्णकांत मृणालिनी को पत्नी नहीं बल्कि पार्टनर बुलाना पसंद करते हैं।

कृष्णकांत कहते हैं, ‘हम जिस समाज में रहते हैं, वहां आसपास बंधनों से घिरे हुए हैं। मैं जब जवान था, मुझे प्यार हुआ और मेरी जिंदगी में पार्टनर आई। जिंदगी पूरी तरह बदल गई। हम जिन हालात में साथ आए, वो हमारे परिवारों को मंजूर नहीं था। हमारा खुद का फैसला था कि हमें गुमनामी में ही जीना है। दोनों को साथ में रहना है। इतना वक्त बीतने के बाद आज हमारी जिंदगी आम लोगों की तरह ही चल रही है।’

‘लिव-इन रजिस्ट्रेशन का प्रावधान बंधन की तरह है। लोग अपनी पसंद से पार्टनर के साथ रह रहे हैं। शादीशुदा लोग भी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कर रहे हैं। मुझे लगता है कि जो लोग इच्छा से अपने पार्टनर के साथ रहना चाहते हैं, उन्हें दिक्कत होगी। मेरी जिंदगी तो निकल गई, लेकिन मुझे नौजवानों की चिंता है। अगर आज मैं जवान होता और लिव-इन में रहता, तो मुझे भी इस कानून से डर लगता।’

‘हमने अपने बच्चों को शुरुआत से अच्छे संस्कार दिए हैं। लिव-इन में रहना संस्कार के खिलाफ नहीं है। ये सिर्फ ऐसी परिस्थिति है, जहां हम अपने रिश्ते के बारे में खुलकर बात नहीं करना चाहते। उसे प्राइवेट रखना चाहते हैं और संविधान हमें निजता का अधिकार देता है।’

‘अगर लिव-इन में रहने वालों को सरकार अपने स्कैनर में रखेगी, उनकी प्राइवेट डिटेल्स मांगेगी, तब ये तो उनकी निजता का हनन है। मेरी जानकारी में ऐसे लोग भी हैं, जो अलग-अलग धर्मों के हैं और लिव-इन में रहते हैं। आज जिस तरह का माहौल बन रहा है, क्या उनकी निजी जानकारी सीक्रेट रह सकेगी।’

डेटा लीक होने का डर, शानू और आकांक्षा के साथ यही हुआ उत्तराखंड के उधम सिंह नगर में रहने वाले 22 साल के मोहम्मद शानू और 23 साल की आकांक्षा शादी करना चाहते थे। उन्होंने 7 जनवरी को SDM को नोटिस दिया। कुछ दिन बाद ही उनकी डिटेल सोशल मीडिया पर आ गई। शानू बताते हैं, ‘नोटिस देने के पांच दिन बाद परिवार को मैसेज मिला। इसमें मेरी वही फोटो थी, जो मैंने SDM को दी नोटिस में लगाई थी। फिर यही मैसेज सोशल मीडिया पर देखा। लोग इसे लव जिहाद कह रहे थे।’

शानू के मुताबिक, हिंदूवादी संगठनों ने हमारी शादी रुकवाने की कोशिश की। हालांकि, आकांक्षा ने SDM ऑफिस में गवाही दी कि मैं मर्जी से शादी कर रही हूं। इसके बाद हमारी शादी हो गई।

UCC में लिव-इन के लिए कानून

2 महीने में नाम रजिस्टर नहीं करवाया, तो जुर्माना या गिरफ्तारी

उत्तराखंड देश का पहला राज्य है, जहां UCC लागू हुआ है। सरकार का दावा है कि हर नागरिक को एक कानून के तहत लाना इसका सबसे बड़ा मकसद है। इसी कानून के तहत लिव-इन रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी कर दिया गया है। अगर लिव-इन में रहने वाला कपल 2 महीने में रजिस्ट्रेशन नहीं करवाता है, तो उस पर 10 हजार रुपए का जुर्माना या तीन महीने की सजा या दोनों हो सकते हैं।

रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से किया जा सकता है। http://ucc.uk.gov.in/ वेबसाइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन की प्रोसेस के लिए अप्लाय किया जा सकता है। पोर्टल पर दोनों पार्टनर को पर्सनल जानकारी जैसे नाम, पता, फोटो देना होगा और फॉर्म भरकर सब्मिट करना होगा। अब तक 10 कपल रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं।

कानून को कोर्ट में चुनौती वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता ने UCC के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। वे कहते हैं, ‘सिर्फ समान नागरिक संहिता नाम देने से कोई कानून सभी नागरिकों के लिए समान नहीं बन जाता। जनजातीय समुदायों को UCC के दायरे से बाहर रखा गया है। लिव-इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी होगा, लेकिन अगर लिव-इन पार्टनर्स में एक ST कैटेगरी से है, तो वो रजिस्ट्रेशन के लिए कैसे अप्लाय करेगा।’

कार्तिकेय आगे कहते हैं, ‘मान लीजिए कोई व्यक्ति सामान्य वर्ग से है। उसके पड़ोस में ST समुदाय का व्यक्ति रहता है। ऐसे में सामान्य वर्ग के व्यक्ति को रजिस्ट्रेशन करवाना होगा, वहीं दूसरे व्यक्ति को नहीं करवाना होगा। ये काफी अटपटा मामला है। इतने अहम कानून में साफ नहीं है कि किसके लिए क्या नियम होंगे।’

गृह सचिव बोले- ‘बिना कपल की इजाजत कोई जानकारी बाहर नहीं जा सकती’ हमने लिव-इन में रहने वाले जिन कपल से बात की, उन सभी की चिंता ये है कि वे UCC के मुताबिक, रजिस्ट्रेशन करवाते हैं तो उनकी जानकारी लीक न हो जाए। हमने इस पर उत्तराखंड के गृह सचिव शैलेश बगौली से सवाल पूछा।

वे कहते हैं-

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लिव-इन में रहने वाले कपल्स का डेटा पूरी तरह सिक्योर है। इसमें जो भी जानकारी दी जाती है, वो कपल की सहमति के बगैर कहीं भी नहीं जा सकती। इसके अलावा कोई और तरीका नहीं है कि डेटा लीक हो सके।

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हमने गृह सचिव से पूछा कि जनजातीय समुदायों पर UCC लागू नहीं होता, क्या लिव-इन में रहने वाले ST कपल को भी लिव-इन रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी होगा? अगर कपल में से कोई एक ST कैटेगरी से है, तब क्या होगा? शैलेश बताते हैं, ‘अगर दोनों पार्टनर जनजातीय समुदाय से हैं, तो उन्हें लिव-इन रजिस्टर करवाना जरूरी नहीं है। अगर एक पार्टनर ST है, तो रजिस्ट्रेशन करवाना होगा।’

पार्टियां इस मुद्दे पर क्या कह रही हैं

BJP: निजता का हवाला देकर अपराध करने की छूट नहीं दी जा सकती उत्तराखंड में BJP काफी पहले से UCC पर बातचीत करती रही है। लिव-इन रजिस्ट्रेशन के मुद्दे पर BJP के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर सिंह चौहान कहते हैं, ‘ये मसला उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए अहम है। इसमें सवाल निजता का नहीं है। पहचान छिपाकर क्राइम करने के कई मामले सामने आएं हैं। मर्डर, रेप, सेक्शुअल हैरेसमेंट और ब्लेकमेलिंग के केस भी हैं।’

‘धर्म छिपाकर, किसी को झांसे में लेकर उत्पीड़न किया जाता है। निजता की बात कर किसी को अपराध करने की छूट नहीं दी जा सकती। आखिर इसमें दिक्कत किसे और क्यों है।’

कांग्रेस: लिव-इन रिलेशनशिप पर कानून बनाकर धामी सरकार ने इसे मान्यता दे दी लिव-इन रिलेशनशिप के रजिस्ट्रेशन के मुद्दे पर कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी कहती हैं, ‘ऐसे रिलेशन को न सनातन की स्वीकार्यता है, न समाज और परिवार इसे अपनाता है। यही वजह है कि जोड़े अपने रिश्ते छिपाते हैं और लिव-इन रिलेशनशिप का नाम देते हैं। सनातन में बिना शादी एक छत के नीचे साथ रहना और संबंध बनाना अपराध है। जोड़ों को भी पता है कि वे गलत कर रहे हैं।’

कांग्रेस नेता आगे कहती हैं, ‘‘धामी सरकार ने लिव-इन रिलेशनशिप पर नियम बनाकर इसे एक तरह से मान्यता दे दी है। सरकार लव जिहाद, थूक जिहाद, लैंड जिहाद जैसे शब्दों का आए दिन इस्तेमाल करती है। अपने संगठनों के जरिए वे कपल्स को बताते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।’

‘UCC का फोकस सिर्फ सिविल केस डील करने में होना चाहिए, लेकिन कोई UCC के तहत रिलेशनशिप रजिस्टर नहीं करवाता है, तो जेल का प्रावधान है। ये तो आपराधिक सजा है। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि लिव-इन रिलेशनशिप को धामी सरकार ने कानूनी वैधता दे दी। सरकार ने साफ कह दिया है कि आप हमारी शर्तें मान लो, बाकी जिसके साथ रहना है रहो।’

…………………………………….. उत्तराखंड से ये ग्राउंड रिपोर्ट भी पढ़ें गांवों में लगे बोर्ड- बाहरी लोग जमीन न खरीदें, गांववाले बोले- हिमाचल जैसा कानून बने

उत्तराखंड में लोगों ने गांव में बोर्ड लगाएं हैं, जिनमें लिखा है कि कोई भी किसान बाहरी व्यक्ति को जमीन न बेचे। ऐसा करने वालों का बहिष्कार किया जाएगा। उनका कहना है कि आज हमारे पहाड़ बिक रहे हैं। हमारे पास पानी, जंगल और जमीन ही है। अगर ये भी हाथ से निकल जाएगा तो हमारे पास अपना क्या बचेगा। हमें हिमाचल जैसा सख्त भूमि कानून चाहिए। पढ़िए पूरी खबर