एन. रघुरामन का कॉलम: पढ़ाई के साथ खेलेंगे-कूदेंगे तो बनेंगे कॉर्पोरेट स्टार! h3>
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3 दिन पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
कॉर्पोरेट जगत के किसी भी सीनियर या मैनेजर से पूछिए। वे जेन ज़ी (1997 के बाद पैदा हुए लोग) के बारे में एक साझा राय बताएंगे। उन्हें लगता है कि जेन ज़ी, फ़ीडबैक को लेकर संवेदनशील हैं। वे आलोचना नहीं सह पाते, उनमें लचीलापन नहीं है और शायद उन्हें कामकाजी दुनिया में आने से पहले, कभी नकारात्मक फ़ीडबैक नहीं मिला। ऐसे युवाओं को कैसे संभालें?
अमेरिका में मेरे दोस्त के पास इसका हल है। वे ऐसे ग्रेजुएट और एमबीए वाले लोग तलाशते हैं, जो फुटबॉल या बेसबॉल खेलते थे और इसमें करियर बनाना चाहते थे, लेकिन राज्य या राष्ट्रीय टीम का हिस्सा नहीं बन पाए। ये खिलाड़ी बिजनेस की दुनिया पर अलग असर डालते हैं, जहां बहुत लोग कामचोरी भी करते हैं।
बहुत-सी कंपनियां पूर्व-खिलाड़ियों को मार्केटिंग और सेल्स की नौकरी देती हैं क्योंकि इनमें नेटवर्क बढ़ाने की क्षमता और प्रतिस्पर्धा की स्वाभाविक भावना होती है। उन्हें अक्सर क्लाइंट को प्रभावित करने के लिए ट्रॉफी की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन माइक्रोसॉफ़्ट जैसी कंपनियां ऐसा नहीं सोचतीं।
माइक्रोसॉफ्ट, राष्ट्रीय स्तर के बेसबॉल खिलाड़ियों को तरजीह देती है। वह पूर्व-खिलाड़ियों पर समय खर्च करती है क्योंकि ये वफादार कर्मचारी साबित हो सकते हैं। वह भी ऐसे समय में, जब नौकरी बदलने की दर, पिछले दस सालों के उच्चतम स्तर पर है।
खिलाड़ियों को नियुक्त करने के कुछ फ़ायदे ये रहे:
1. ये ‘हॉल ऑफ़ फे़म’ वाले अमीर खिलाड़ी नहीं हैं। ये अच्छे खिलाड़ी थे लेकिन किस्मत का साथ नहीं मिला और कभी चोट, तो कभी राजनीति वगैरह के कारण खेल छोड़ना पड़ा। इसलिए ये बिजनेस वर्ल्ड में करियर बनाना चाहते हैं। 2. इंटरव्यू के कई दौर और पर्सनलिटी टेस्ट में इनका रवैया सकारात्मक रहता है। 3. चूंकि इन्हें खेल के दौरान, विरोधी टीम के हर खिलाड़ी के आकलन की आदत होती है, इसलिए वे बारीकी से काम करते हैं। 4. वे बिजनेस में जीतने की ललक लाते हैं क्योंकि उनमें हार संभालने का माद्दा होता है। वे जानते हैं कि गिरकर फिर से खड़े हो जाना, बिजनेस का भी अहम हिस्सा है। 5. उन्हें कोच से डांट और भला-बुरा सुनने और खेल के बाद गलतियों के बारे में जानने की आदत होती है। इसलिए वे फीडबैक को समझकर, नतीजे दे सकते हैं। 6. वे रचनात्मक आलोचना से मायूस नहीं होते। इससे मैनेजर सुरक्षित महसूस करते हैं। 7. वे ज्यादा सवाल पूछते हैं और सोच-समझकर सुझाव देते हैं। कार्यस्थल पर, लोगों को शब्दों और विचारों से प्रेरित करना अच्छा होता है और खेलप्रेमी यह आसानी से कर लेते हैं। 8. वे पहले करियर से निकलकर, किसी भी पोर्टफोलियो में काम करने को तैयार रहते हैं। 9. गैर-खिलाड़ी लोग अक्सर आग बुझाने वाले की तरह काम नहीं कर पाते, लेकिन जिन्हें खेल का अनुभव हो, वे ऐसा आसानी से कर लेते हैं। 10. ज्यादातर मैनेजर को एक समस्या है- उत्साह की कमी। लेकिन खिलाड़ी हमेशा उत्साहित रहते हैं।
नौकरी पर रखने के बदलते पैटर्न से बेरोज़गार और कॉलेज जा रहे युवक क्या सीख सकते हैं? आसान है। डिग्री पूरी करने के साथ कोई खेल भी खेलें। टीम और प्रतिभागियों के साथ कॉम्पिटिशन में जाएं क्योंकि विरोधी टीम की क्वालिटी देखकर भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।
ऐसी क्वालिटी ही आपको टीम प्लेयर बनाती है। बुरे कोच से बचे नहीं। वे जितना चिल्लाएंगे, आप उतने मजबूत बनेंगे और जीतने की इच्छाशक्ति बढ़ेगी। यह बिजनेस के लिए जरूरी गुण है।
फंडा यह है कि अक्सर कहा जाता है, पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब। लेकिन अब कॉर्पोरेट जगत का नवाब बनने के लिए, खेल-कूद भी ज़रूरी है। खासतौर पर टीम स्पोर्ट।
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
कॉर्पोरेट जगत के किसी भी सीनियर या मैनेजर से पूछिए। वे जेन ज़ी (1997 के बाद पैदा हुए लोग) के बारे में एक साझा राय बताएंगे। उन्हें लगता है कि जेन ज़ी, फ़ीडबैक को लेकर संवेदनशील हैं। वे आलोचना नहीं सह पाते, उनमें लचीलापन नहीं है और शायद उन्हें कामकाजी दुनिया में आने से पहले, कभी नकारात्मक फ़ीडबैक नहीं मिला। ऐसे युवाओं को कैसे संभालें?
अमेरिका में मेरे दोस्त के पास इसका हल है। वे ऐसे ग्रेजुएट और एमबीए वाले लोग तलाशते हैं, जो फुटबॉल या बेसबॉल खेलते थे और इसमें करियर बनाना चाहते थे, लेकिन राज्य या राष्ट्रीय टीम का हिस्सा नहीं बन पाए। ये खिलाड़ी बिजनेस की दुनिया पर अलग असर डालते हैं, जहां बहुत लोग कामचोरी भी करते हैं।
बहुत-सी कंपनियां पूर्व-खिलाड़ियों को मार्केटिंग और सेल्स की नौकरी देती हैं क्योंकि इनमें नेटवर्क बढ़ाने की क्षमता और प्रतिस्पर्धा की स्वाभाविक भावना होती है। उन्हें अक्सर क्लाइंट को प्रभावित करने के लिए ट्रॉफी की तरह इस्तेमाल किया जाता रहा है। लेकिन माइक्रोसॉफ़्ट जैसी कंपनियां ऐसा नहीं सोचतीं।
माइक्रोसॉफ्ट, राष्ट्रीय स्तर के बेसबॉल खिलाड़ियों को तरजीह देती है। वह पूर्व-खिलाड़ियों पर समय खर्च करती है क्योंकि ये वफादार कर्मचारी साबित हो सकते हैं। वह भी ऐसे समय में, जब नौकरी बदलने की दर, पिछले दस सालों के उच्चतम स्तर पर है।
खिलाड़ियों को नियुक्त करने के कुछ फ़ायदे ये रहे:
1. ये ‘हॉल ऑफ़ फे़म’ वाले अमीर खिलाड़ी नहीं हैं। ये अच्छे खिलाड़ी थे लेकिन किस्मत का साथ नहीं मिला और कभी चोट, तो कभी राजनीति वगैरह के कारण खेल छोड़ना पड़ा। इसलिए ये बिजनेस वर्ल्ड में करियर बनाना चाहते हैं। 2. इंटरव्यू के कई दौर और पर्सनलिटी टेस्ट में इनका रवैया सकारात्मक रहता है। 3. चूंकि इन्हें खेल के दौरान, विरोधी टीम के हर खिलाड़ी के आकलन की आदत होती है, इसलिए वे बारीकी से काम करते हैं। 4. वे बिजनेस में जीतने की ललक लाते हैं क्योंकि उनमें हार संभालने का माद्दा होता है। वे जानते हैं कि गिरकर फिर से खड़े हो जाना, बिजनेस का भी अहम हिस्सा है। 5. उन्हें कोच से डांट और भला-बुरा सुनने और खेल के बाद गलतियों के बारे में जानने की आदत होती है। इसलिए वे फीडबैक को समझकर, नतीजे दे सकते हैं। 6. वे रचनात्मक आलोचना से मायूस नहीं होते। इससे मैनेजर सुरक्षित महसूस करते हैं। 7. वे ज्यादा सवाल पूछते हैं और सोच-समझकर सुझाव देते हैं। कार्यस्थल पर, लोगों को शब्दों और विचारों से प्रेरित करना अच्छा होता है और खेलप्रेमी यह आसानी से कर लेते हैं। 8. वे पहले करियर से निकलकर, किसी भी पोर्टफोलियो में काम करने को तैयार रहते हैं। 9. गैर-खिलाड़ी लोग अक्सर आग बुझाने वाले की तरह काम नहीं कर पाते, लेकिन जिन्हें खेल का अनुभव हो, वे ऐसा आसानी से कर लेते हैं। 10. ज्यादातर मैनेजर को एक समस्या है- उत्साह की कमी। लेकिन खिलाड़ी हमेशा उत्साहित रहते हैं।
नौकरी पर रखने के बदलते पैटर्न से बेरोज़गार और कॉलेज जा रहे युवक क्या सीख सकते हैं? आसान है। डिग्री पूरी करने के साथ कोई खेल भी खेलें। टीम और प्रतिभागियों के साथ कॉम्पिटिशन में जाएं क्योंकि विरोधी टीम की क्वालिटी देखकर भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।
ऐसी क्वालिटी ही आपको टीम प्लेयर बनाती है। बुरे कोच से बचे नहीं। वे जितना चिल्लाएंगे, आप उतने मजबूत बनेंगे और जीतने की इच्छाशक्ति बढ़ेगी। यह बिजनेस के लिए जरूरी गुण है।
फंडा यह है कि अक्सर कहा जाता है, पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब। लेकिन अब कॉर्पोरेट जगत का नवाब बनने के लिए, खेल-कूद भी ज़रूरी है। खासतौर पर टीम स्पोर्ट।
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