पद्श्री उपन्यासकार, डॉक्टर और लोकगीत गायक से बातचीत: किसी ने मिल में झाड़ू लगाई तो किसी ने डकैतों के खौफ के बीच स्वास्थ्य सेवा शुरू की – barwaha News h3>
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर जिन लोगों को पद्मश्री देने की घोषणा की गई है, इनमें मध्यप्रदेश की पांच हस्तियां शामिल हैं। दैनिक NEWS4SOCIALने इनमें से तीन बड़वाह के निमाड़ी उपन्यासकार जगदीश जोशीला, सतना के प्रसिद्ध डॉक्टर बीके जैन और महू के लोकगीत गायक भे
.
मिल में झाड़ू लगाई, राजबाड़ा पर साइकिल सुधारी
जगदीश जोशीला के पिता छज्जूलाल गोगांवा में मकान बनाने का काम करते थे। जगदीश के 4 भाई व एक बहन भी थी। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण 10वीं तक उन्होंने पिता के साथ मकान बनाने का काम किया। जगदीश बताते हैं– पहले कलगी–तुर्रा दल के बीच सर्वश्रेष्ठ निमाड़ी गीत सुनाने की स्पर्धा होती थी। इसी विधा में कलगी दल के भागीरथ चौहान मेरे घर के पास रहते थे। वे तुकबंदी निमाड़ी गीत गाते थे। मेरी पहली रचना के लिए प्रेरणास्रोत वे ही थे। उन्हें देखकर लिखना शुरू किया।
माखनलाल चतुर्वेदी ने दिया जोशीला उपनाम
जोशीला कहते हैं– मैंने छठी कक्षा में पहली रचना की। सातवीं–आठवीं में पढ़ते समय प्रसिद्ध कवि माखनलाल चतुर्वेदी की रचना “मुझे तोड़ लेना वनमाली” से इतने प्रभावित हुए कि माखनलाल जी से मिलने की ठानी। मैं परिवार को बिना बताए खंडवा चला गया। इस दौरान माखनलाल जी अस्वस्थ थे। उन्हें भारत–पाकिस्तान युद्ध को लेकर बनाई कविता सुनाई। उन्होंने प्रसन्न होकर उपनाम के लिए तीन नाम सचेत, जोशीला और मस्ताना सुझाए। मैंने अपना नाम जोशीला चुना।
महेश्वर में ढाई साल पावरलूम का काम किया
जोशीला बताते हैं– 12वीं के बाद बेरोजगार होने पर पावरलूम का काम सीखा। ढाई साल तक महेश्वर में पावरलूम का काम किया। फिर बहन के ससुर के कहने पर इंदौर की हुकमचंद मिल में मजदूरी करते हुए झाड़ू भी लगाई। पार्ट टाइम के रूप में राजबाड़ा के पीछे साइकिल दुकान में काम किया। कुछ साल बाद एक स्कूल में शिक्षक बन गए। सिलाई जानते थे, इसलिए शादी के पहले और बाद में भी मैंने लोगों के कपड़े सिले। इन कामों के बीच भी लेखन कार्य करते रहे।
घरवालों ने निकाला, पुलिस से छिपकर रहे
जोशीला बताते हैं– शुरू से उग्र समाजवादी विचारधारा का रहा। मिल में काम करने के दौरान ही अनशन और सभाओं में जाता था। इंदौर में गरीबों को झुग्गी–झोपड़ी दिलाने के लिए आंदोलन चलाए। आपातकाल के दौरान इंदौर में पत्नी, बच्चे, मां और भाई को छोड़कर अहमदाबाद जाना पड़ा, लेकिन कुछ दिन बाद दुधमुंहे बेटे की याद में इंदौर लौट आया। पहचान छिपाने के लिए दाढ़ी बढ़ा ली थी। इधर, पुलिस ने भाई और मां को धमकी देना शुरू कर दिया। पुलिस से तंग आकर घरवालों ने अलग रहने को कहा। फिर गर्भवती पत्नी व बच्चों के साथ अलग रहने लगा, लेकिन आपातकाल के दौरान पुलिस के डर से कई मकान बदलने पड़े। 1980 से 90 तक तीन बार पैतृक जिले खरगोन से विधानसभा चुनाव भी लड़ा। करीब 35 साल सक्रिय राजनीति में रहने के बाद मैं 1990 से साहित्य सेवा में लग गया।
डकैतों के आतंक के बीच बुनियादी सुविधाएं चुनौती
सद्गुरु नेत्र हॉस्पिटल चित्रकूट के डायरेक्टर व ट्रस्टी डाॅ. बुधेंद्र कुमार जैन के मुताबिक, सामाजिक, आर्थिक विकास में बिजली, पानी, परिवहन, शिक्षा एवं चिकित्सा सेवाओं की अहम भूमिका होती है। गांवों को शहर की ओर ले जाने का यही आदर्श सूत्र है। यही विजन मेरा मिशन बना। डाॅ. जैन ने कहा कि हालात कितनी ही विपरीत क्यों न हों, आत्मानुशासन व आत्मविश्वास के संकल्प पर कायम रहना चाहिए।
70 के दशक में उम्मीद की सिर्फ एक लौ थी
76 वर्षीय डाॅ. बीके जैन बताते हैं– 51 साल पहले जब सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट से जुड़ा, तब चित्रकूट सघन वन क्षेत्र था। बुनियादी सुविधाओं की पहुंच नहीं थी। न बिजली, न स्कूल और न ही परिवहन जैसे बुनियादी संसाधन थे। चिकित्सा जैसी सुविधाएं तो दिवास्वप्न थीं। अंचल में डकैतों का खौफ इस कदर था कि शाम ढलने के बाद लोग घर से निकलने में डरते थे। इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए ट्रस्ट का गठन किया। वर्ष 1953 में गुरुदेव रणछोड़दास जी ने कहा कि इस जगह पर आज नहीं तो कल अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक अस्पताल खुलेगा। मुझे उम्मीद की यही एक लौ थी, जिससे संकल्प बना। आत्मानुशासन आया और आत्म विश्वास भी बढ़ा।
चित्रकूट में सेवा का अवसर ही प्रथम पुरस्कार
पद्मश्री की असाधारण उपलब्धि पर डाॅ. जैन कहते हैं– मेरे जीवन का प्रथम पुरस्कार तो तब मिला, जब मुझे चित्रकूट की कर्मभूमि पर जनसेवा का अवसर मिला। 51 साल से चित्रकूट में ही रहकर निरंतर अंधत्व निवारण एवं नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में सक्रिय हूं। इस उपलब्धि का श्रेय गुरुदेव रणछोड़दास जी महाराज, सद्गुरु सेवा संघ के पहले चेयरमैन स्व. अरिवंद भाई मफतलाल, ट्रस्ट के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को जाता है।
दो डॉक्टरों की डिस्पेंसरी का आज दुनिया में नाम
डॉ. जैन बताते हैं– ट्रस्ट की मदद से बुनियादी सुविधाएं जुटाई गईं। वर्ष 1973 में 12 बेड की जो डिस्पेंसरी दो डॉक्टरों के साथ रघुवीर आश्रम में खोली गई थी। आज उसी अस्पताल का दुनिया में नाम है। चित्रकूट के 300 किलोमीटर के दायरे के 40 जिलों में आई क्लिनिक है। हर वर्ष डेढ़ लाख से ज्यादा आई सर्जरी हो रही है। सालाना 4 हजार आउटरीच कैंप लगते हैं। 60 फीसदी नॉन पेड सुविधाएं हैं। हर ब्लाक में प्राइमरी आई कैंप और पैरामेडिकल स्टाफ है। 25 वर्ष पहले सिर्फ मोतियाबिंद के ऑपरेशन होते थे, मगर अब रेटिना, ग्लूकोमा और काॅर्निया के ऑपरेशन किए जा रहे हैं। आज अस्पताल में 1400 डॉक्टर और 2 हजार से ज्यादा का स्टाफ है।
मिसेज जैन की बात से शिक्षा की ओर बढ़ाया कदम
डॉक्टर बीके जैन ने एक संस्मरण सुनाया कि 1975 में शादी के बाद बड़े बेटे को पंचगिनी (महाराष्ट्र) पढ़ने के लिए भेजना पड़ा। जब दूसरा बीटा इलेश हुआ तो कुछ साल बाद उसे भी बड़े बेटे के पास भेजने का मूड बना ही था कि मिसेज जैन ने कहा– जब मैं चित्रकूट में बेटे के साथ नहीं रह सकती तो मुझे यहां नहीं रहना… उनकी बातों को समझते हुए मैंने अपने साथ जुड़े लोगों की प्रॉब्लम समझी, तभी ट्रस्ट के जरिये पहले हिंदी मीडियम स्कूल की नींव पड़ी। आज के समय में ट्रस्ट के स्कूल एवं कॉलेज शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी हैं।
कलाम ने पूछा था आर्थिक मैनेजमेंट से जुड़ा सवाल
आर्थिक मैनेजमेंट से जुड़े एक सवाल पर डॉक्टर जैन ने बताया कि ऐसा ही सवाल पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी चित्रकूट प्रवास पर मुझसे पूछा था। मैंने कहा था कि ट्रेन का इंजन मेरा आदर्श रहा है। जैसे वह सारी कैटेगरी की बोगियों में बैठे लोगों को बगैर फर्क किए मंजिल तक पहुंचाता है, उसी प्रकार सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट में भी हर तरह के मरीज आते हैं और उनका इलाज ही हमारा अंतिम स्टेशन है।
नौ साल की उम्र से गाते आ रहे, सैकड़ों मंचों से दी प्रस्तुति
बजरंगपुरा के रहने वाले लोक गायक भेरू सिंह बताते हैं– शनिवार सुबह करीब 10 बजे मोबाइल देखा तो एक छूटी हुई कॉल दिखी। उस नंबर पर फोन किया। सामने से बात करने वाले ने खुद को दिल्ली से होना बताया। उसने कहा कि आपका नाम पद्मश्री अवॉर्ड के लिए चुना जा रहा है। यह गोपनीय संदेश था तो लिस्ट जारी होने का इंतजार करने लगा। अपने बेटों और परिवार के साथ टीवी देखने लगा। जैसे ही अवॉर्ड की घोषणा हुई तो परिवार भावुक हो गया। इसके बाद देर रात तक मोबाइल बजता रहा। दिल्ली-भोपाल सहित देशभर से कॉल आने लगे।
80 से ज्यादा मंचों पर प्रस्तुति दे चुके
67 साल के भेरू सिंह बताते हैं– मेरा जन्म 27 जुलाई 1961 को हुआ। पिता माधु सिंह चौहान लोक गीत गाते थे। उनके साथ नौ साल की उम्र में अलाव जलाकर गांव में गीत-संगीत करने लगे। अलाव के उजाले में तंबूरा, करताल और मंजीरा लेकर कबीर, मीरा, दादू दयाल सहित अन्य संतों की निर्गुण धारा में डूबे रहते थे। भेरू सिंह बताते हैं कि मैं अब तक प्रदेश और नेशनल लेवल पर 80 से ज्यादा मंचों पर प्रस्तुति दे चुके हैं।
दोने बेचे, लकड़ी उठाई, 100 किमी साइकिल पर गए
भेरू सिंह अपने बचपन से जुड़ी यादों को ताजा करते हुए भावुक हो उठे। उन्होंने कहा– पहले गैस सिलेंडर नहीं था। मैंने चौका-चूल्हा के लिए लकड़ी उठाई। आमदनी के लिए दोने बेचे। लोकगीत को आवाज देने के लिए पैदल और साइकिल से कई किमी लंबा सफर किया। साइकिल से करीब 80-100 किमी का सफर कर प्रस्तुतियां देने जाते थे।
आकाशवाणी का ऑडिशन दिया, तब मिली पहचान
भेरू सिंह ने बताया– रसलपुरा में एक शिक्षिका ने मेरे लोक गीत सुने। उन्होंने आकाशवाणी में इंटरव्यू देने के लिए कहा। उनके सुझाव के बाद मैं 1991 में आकाशवाणी में बी-ग्रेड के लिए इंटरव्यू देने पहुंचा। कई प्रयास किए। 1994 में हाई ग्रेड में सिलेक्ट हुआ। लंबे समय तक आकाशवाणी में काम करने से मेरी आवाज पहचान बन गई।
शैली ने महिलाओं को दिया रोजगार
महेश्वर की शालिनी देवी (शैली) होलकर रेशम और सूती महेश्वरी साड़ियां बनाने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने महेश्वर के पास गुड़ी मुड़ी के नाम से बुनकर परिवारों को बसाया है। यहां की महेश्वरी साड़ी देश-विदेश में पहुंचती है। महेश्वर के साहित्यकार हरीश दुबे बताते हैं कि 1978 में बाजार मंदी के दौर से गुजर रहा था, तब उन्होंने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए महेश्वरी साड़ी व सूती कपड़ों के उत्पादन के लिए रेवा सोसाइटी स्थापित की और लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया।
2003 में उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए वूमनवीव चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। महेश्वर और डिंडौरी की महिलाओं को अर्ध-स्वचालित चरखों पर खादी कातने की पहल की। इसके बाद 2009 में उन्होंने वूमनवीव के गैर-बुनाई पृष्ठभूमि की महिलाओं के लिए गुड़ी मुडी परियोजना शुरू की, जो बिना आजीविका के परिवारों को स्थानीय कपास से सूत कातने के माध्यम से आर्थिक स्वतंत्र बना रही है। फिलहाल यहां 250 से ज्यादा महिला बुनकर और 110 हथकरघे हैं।
कंटेंट- बड़वाह से अमित जोशी, सतना से प्रशांत द्विवेदी, महू से अंजीत बाथम की रिपोर्ट