IIT में गब्बर का रोल करते थे केजरीवाल: सरकारी नौकरी छोड़ झुग्गियों में रहे; पार्टी बनाकर सालभर में बने दिल्ली सीएम h3>
2 अक्टूबर 2012 को दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में ‘जनलोकपाल आंदोलन’ से जुड़े लोगों का जमावड़ा लगा था। आधी बांह की ढीली सी शर्ट पहने अरविंद केजरीवाल ने मंच से एक नई राजनीतिक पार्टी का ऐलान कर दिया। इसका मकसद बताते हुए उन्होंने गीत गाया- ‘इंसान का इं
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26 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी ऑफिशियली लॉन्च हुई। महज एक साल बाद 28 दिसंबर 2013 को केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
IIT खड़गपुर में केजरीवाल के क्लासमेट रहे प्राण कुरूप अपनी किताब ‘अरविंद केजरीवाल एंड द आम आदमी पार्टी: एन इनसाइड लुक’ में लिखते हैं, ‘अरविंद ने पहला चुनाव हमारे मेस सेक्रेटरी का लड़ा था। बिना प्रचार और बहुत कम मशक्कत से वे जीत गए थे। एक्टिव पॉलिटिक्स में आए तो इतनी ही आसानी से उन्होंने दिल्ली में शीला दीक्षित का 15 साल का शासन खत्म कर दिया।’
‘मैं दिल्ली का सीएम’ सीरीज के पांचवें एपिसोड में अरविंद केजरीवाल के सीएम बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से…
IIT के बाद 10 साल बेचैन रहे केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल की पैदाइश 16 अगस्त 1968 को हरियाणा के भिवानी जिले में सिवानी कस्बे की है। हिसार के कैंपस स्कूल और सोनीपत के होली चाइल्ड स्कूल से पढ़ाई हुई। शुरू से मेधावी रहे अरविंद की IIT के एंट्रेंस एग्जाम में ऑल इंडिया रैंक 563 आई। उन्होंने IIT खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग स्ट्रीम चुनी।
IIT खड़गपुर में पढ़ाई के दिनों में दोस्तों के साथ एक रेस्टोरेंट में बैठे केजरीवाल। (दाईं तरफ बीच में)
अरविंद IIT खड़गपुर की ड्रामा सोसाइटी के मेंबर थे। उन्होंने कई नाटकों में एक्टिंग की थी। उनके क्लासमेट प्राण कुरूप लिखते हैं,
अरविंद और मेरी दोस्ती पहली बार रैगिंग के समय हुई थी। सीनियर्स हमसे शोले के कुछ सीन प्ले करने को कहते थे। अरविंद को गब्बर और मुझे हेलन का रोल करने के लिए कहा जाता था।
IIT खड़गपुर में दोस्तों के साथ होली खेलते केजरीवाल (आगे बाईं तरफ भूरी टी-शर्ट वाले युवक के पीछे ग्रे शर्ट में मुस्कराते हुए।)
1989 में डिग्री पूरी करने के बाद अरविंद ने जमशेदपुर के टाटा स्टील प्लांट में तीन साल काम किया। 1992 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि सिविल सर्विस की तैयारी करनी थी। इससे पहले अरविंद कुछ समय के लिए कोलकाता में रुके। यहां मदर टेरेसा से मिले। कुछ महीने रामकृष्ण मिशन में भी सेवा की।
1993 में अरविंद का सिलेक्शन UPSC के जरिए जॉइंट इनकम टैक्स ऑफिसर के पद पर हुआ। ये नौकरी उन्हें ज्यादा दिन रास नहीं आई। दिसंबर 1999 में ‘परिवर्तन’ एनजीओ शुरू किया। जनवरी 2000 में उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और फुल टाइम सोशल वर्क करने लगे।
IRS की ट्रेनिंग में सुनीता से मिले और शादी करने का फैसला किया
अरविंद और उनकी पत्नी सुनीता की पहली मुलाकात नागपुर की ‘नेशनल एकेडमी ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज’ में हुई। दोनों इंडियन रेवेन्यू सर्विसेज यानी IRS में सिलेक्ट हुए थे और यहां साथ में ट्रेनिंग कर रहे थे। सुनीता दिल्ली की रहने वाली थीं। एक रोज किसी मुद्दे पर दोनों में डिस्कशन हुआ, इसके बाद दोस्ती हुई और फिर एक-दूसरे को पसंद करने लगे।
दोनों की जाति और प्रोफेशन एक थे, इसलिए घरवालों ने भी कोई विरोध नहीं किया। 15 अगस्त 1994 को दोनों की सगाई और 17 नवंबर को शादी हो गई।
केजरीवाल और सुनीता की शादी की तस्वीर (फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)
सुनीता केजरीवाल बताती हैं, ‘शादी के बाद उन्होंने मुझसे पहला सवाल यही पूछा कि सोशल वर्क मेरा पैशन है, तुम इस बारे में क्या सोचती हो। मैंने कहा मैं हर फैसले में तुम्हारे साथ हूं।’
2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत के बाद केजरीवाल ने पत्नी सुनीता को गले लगाया, उन्होंने X (तब ट्विटर) पर यह तस्वीर साझा करते हुए लिखा, ‘हमेशा मेरा साथ देने के लिए शुक्रिया सुनीता।’
सरकारी नौकरी छोड़ झुग्गियों में रहने लगे थे केजरीवाल
प्राण कुरूप एक इंटरव्यू में बताते हैं, ‘मैं दिल्ली के सुंदर नगरी इलाके में अरविंद से मिलने लगा। ये झुग्गी-झोपड़ियों वाला इलाका था। एक स्थानीय लड़का मुझे गलियों से घुमाते हुए एक झोपड़ी के सामने छोड़कर चला गया।
प्राण कुरूप ने बताया, ‘वहां एक तख्ते पर हम दोनों बैठे हुए थे। मैंने पूछा कि भाई तू ये क्या कर रहा है, उसने कहा- मैं गरीबों के बीच रहकर उनकी तरह जीने की कोशिश कर रहा हूं, ताकि उनकी मुश्किलों का कुछ हल निकाल सकूं।’
‘मैं यकीन नहीं कर पा रहा था कि मेरा आईआईटीयन दोस्त जो इंडियन रेवन्यू सर्विस में था वो झोपड़-पट्टी में रह रहा था।’
अरविंद केजरीवाल के साथ शुरू में काम कर चुके राहुल शर्मा बताते हैं, ‘अरविंद और हमारी टीम सरकारी दफ्तराें के बाहर खड़ी हो जाती थी। हमें पता था कि यहां बिना भेंट चढ़ाए कुछ काम नहीं होता। ’
आरटीआई लगाकर बस्ती के लोगों की मदद करते थे केजरीवाल
एक किस्सा 2005 का है, राहुल के मुताबिक, अरविंद एक बार बिजली कंपनी के दफ्तर के बाहर खड़े थे। बिजली कनेक्शन के लिए एक व्यक्ति रोज दफ्तर आ रहा था। उसे बस्ती में ही गृह उद्योग के लिए ज्यादा लोड वाला कनेक्शन चाहिए था। हर बार बस्ती का पता देखकर उसकी एप्लिकेशन रिजेक्ट कर दी जाती। जब वो हाथ पैर जोड़ने लगता तो क्लर्क कहता कि दस हजार रुपए दे तो काम हो जाएगा।
उसने अपनी परेशानी अरविंद को बताई। अरविंद उसे लेकर क्लर्क के पास गए और पूछा कि किस कानून के तहत आप ये कनेक्शन नहीं कर रहे हैं। क्लर्क अपनी ऐंठ में था। उसने अरविंद को भी चलता कर दिया।
अरविंद क्लर्क के पास दोबारा गए और उसको बताया कि उन्होंने इस मामले पर आरटीआई लगाकर पूछा है कि कनेक्शन क्यों नहीं दिया जा सकता। इसके बाद उस व्यक्ति को कनेक्शन मिल गया।
राहुल शर्मा कहते हैं, ‘अरविंद ऐसे लोगों के लिए मसीहा थे। इसीलिए ऐसे लोग आज भी उनके ब्लाइंड फॉलोअर हैं। उन्हें 2006 में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ सूचना के अधिकार का उपयोग करने के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला था।’
अन्ना आंदोलन के लोग बंट गए, केजरीवाल ने पार्टी बना ली
सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार की जांच के लिए जिले स्तर पर एक लोकपाल नियुक्त करने की मांग दशकों पुरानी है। इसके लिए साल 1968 से 2008 तक 8 बार संसद में ‘जन लोकपाल विधेयक’ पेश किया गया, लेकिन कभी पारित नहीं हो सका।
14 नवंबर 2010 को राष्ट्रमंडल खेलों में हुए कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ पतंजलि के बाबा रामदेव ने दिल्ली में जंतर-मंतर पर धरना दिया और फिर दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बड़ी रैली की। अरविंद केजरीवाल और अन्ना हजारे के अलावा, प्रशांत भूषण, स्वामी अग्निवेश और मेधा पाटकर जैसे लोग इसमें शामिल हुए।
5 अप्रैल 2011 को इस आंदोलन ने तब जोर पकड़ा जब अन्ना हजारे ने संसद से जन लोकपाल विधेयक पारित करने की मांग के साथ जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल शुरू की। अन्ना के आंदोलन के समर्थन में देश-विदेश तक लोग रैलियां निकाल रहे थे। अरविंद इस समय अन्ना के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक थे।
अन्ना के आंदोलन के दौरान उनके साथ केजरीवाल।
बिल का मसौदा तैयार करने वाली कमेटी में सरकार के लोगों के अलावा जनता की तरफ से अरविंद केजरीवाल और प्रशांत भूषण जैसे लोग थे।
इधर 5 जून को रामलीला मैदान में विरोध प्रदर्शन कर रहे बाबा रामदेव को हिरासत में ले लिया गया। 27 अगस्त को जनलोकपाल बिल पर संसद में बहस शुरू हो गई तो अगले दिन अन्ना ने अपना अनशन तोड़ दिया। 27 दिसंबर 2011 से 3 अगस्त तक अन्ना तीन बार फिर अनशन पर बैठे। बिल संसद में पेश तो हुआ, लेकिन पारित नहीं हो सका।
2011 में सरकार द्वारा दिए लोकपाल के मसौदे की कॉपी जलाते हुए केजरीवाल।
सरकार पर दबाव डालने की कोशिश में नाकाम रहने के बाद आंदोलन दो हिस्सों में बंट गया। अन्ना मुख्यधारा की राजनीति से नहीं जुड़ना चाहते थे, वहीं अरविंद ने ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ नाम का एक फ्रंट बना लिया था।
आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल, बाबा रामदेव, गोपाल राय, अन्ना हजारे और मनीष सिसोदिया।
26 नवंबर को केजरीवाल ने पार्टी लॉन्च कर दी। केजरीवाल पर अन्ना के आंदोलन का राजनीतिक फायदा उठाने का आरोप भी लगा, हालांकि पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में जबरदस्त सफलता मिली।
2 अक्टूबर 2012 को पार्टी के ऐलान के समय गीत गाते केजरीवाल।
ऐसी दीवानगी कि सट्टेबाज सुधर गए, बोले बंदा सही है
वरिष्ठ पत्रकार रामेश्वर दयाल बताते हैं कि शीला दीक्षित की कहानी केजरीवाल ने खत्म की। दिल्ली ने अरविंद केजरीवाल पर विश्वास किया।
रामेश्वर कहते हैं, ‘मेरे पिताजी ने कहा था कि मैंने दिल्ली के अंदर लोगों को जन आंदोलन करते तीसरी बार देखा है। पहली बार जब देश आजाद हुआ, दूसरी बार जब इमरजेंसी हटी, तीसरी बार इस आंदोलन में।’
‘दिल्ली में केजरीवाल की जबरदस्त दीवानगी थी। करोल बाग के मेरे जानने वाले एक बहुत बड़े सट्टेबाज थे। वो केलों से भरा टेम्पो लेकर आए थे, ताकि आंदोलन कर रहे लोगों को भूखा न रहना पड़े।’
‘मैंने उनसे कहा कि आप तो सट्टा खिलाते हैं और अब ये पुण्य का काम क्यों? वो बोले- बंदा शानदार काम कर रहा है। काम अपनी जगह है, देश अपनी जगह। हालात ये हो गए थे कि मेट्रो, बस, सड़क, कनॉट प्लेस, इंडिया गेट हर जगह लोग नारे लगा रहे थे और केजरीवाल की बात कर रहे थे।’
27 अगस्त 2012 को पीएम आवास के बाहर प्रदर्शन करते समय केजरीवाल को गिरफ्तार करती हुई पुलिस।
2013 में कांग्रेस से समर्थन लेकर उसी का सफाया कर दिया
2013 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने सीएम शीला दीक्षित को नई दिल्ली सीट से हराया, लेकिन आम आदमी पार्टी को केवल 28 सीटें मिली थीं।
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं कि ये पहली बार था कि समर्थन देने वाली नहीं, समर्थन लेने वाली पार्टी शर्तें रख रही थीं। कांग्रेस मंत्रिमंडल में शामिल हुए बिना समर्थन को तैयार थी।
पूर्व सीएम शीला दीक्षित ने इसका विरोध किया, लेकिन पार्टी आलाकमान के आगे उनकी नहीं चली। कांग्रेस के समर्थन से केजरीवाल ने सरकार बनाई। वे आम आदमी की तरह मेट्रो से सफर कर शपथ लेने पहुंचे।
सिद्धार्थ मिश्रा के मुताबिक, ‘कांग्रेस के लीडर्स को लग रहा था कि ये नया खिलाड़ी है क्या सरकार चलाएगा। 1970 के दशक में जनता पार्टी जैसा ही आम आदमी पार्टी का हाल होगा।’
केजरीवाल ने सरकार बनते ही लोगों से किया मुफ्त बिजली और पानी जैसे वादे पूरे कर दिए। लोगों का भरोसा मजबूत हो गया था, तभी अरविंद केजरीवाल ने 49 दिन बाद 14 फरवरी 2014 को इस्तीफा दे दिया।
2013 में जीत के बाद केजरीवाल।
इस बीच उन्होंने 2014 में वाराणसी से पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा। तीन लाख वोटों से हारे। जब अरविंद समझ गए कि नेशनल पॉलिटिक्स में उनकी पूछ नहीं है, उन्होंने वापस दिल्ली पर फोकस किया। केजरीवाल ने जनता से पूर्ण बहुमत मांगा और नए सिरे से प्रचार किया।
मफलर और स्वेटर पहने केजरीवाल कहीं भी सभा शुरू कर देते। राष्ट्रपति शासन के सालभर बाद दिल्ली में फिर चुनाव हुए और इस बार आप को 70 में से रिकॉर्ड 67 सीटें मिलीं। 14 फरवरी 2015 को दूसरी बार केजरीवाल ने सीएम पद की शपथ ली।
पद पर रहते जेल जाने वाले पहले सीएम बने केजरीवाल
नवंबर 2021 में दिल्ली सरकार ने नई शराब नीति लागू की थी, इसमें घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे। दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना की सिफारिश पर सीबीआई और ईडी ने मामले दर्ज किए। सितंबर 2022 में सरकार ने शराब नीति वापस ले ली। नवंबर 2023 से मार्च 2024 तक ईडी ने केजरीवाल को नौ समन जारी किए, केजरीवाल एक भी बार नहीं पहुंचे।
21 मार्च 2024 को ईडी ने उन्हें उनके घर से गिरफ्तार कर लिया। इसी मामले में उनके मंत्री मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को भी जेल में रहना पड़ा।
28 मार्च को केजरीवाल को दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया। 10 मई को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उन्हें 21 दिन की जमानत मिली। 2 जून को उन्हें फिर दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया गया।
20 जून को केजरीवाल को ट्रायल कोर्ट से तो जमानत मिल गई, लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। सीबीआई के मामले में 13 सितंबर को जमानत मिलने के बाद ही वह जेल से बाहर आ सके।
केजरीवाल को गिरफ्तार कर ले जाते ईडी के लोग।
15 सितंबर को केजरीवाल ने समर्थकों से कहा, ‘मैं सीएम की कुर्सी से इस्तीफ़ा देने जा रहा हूं और मैं तब तक सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठूंगा जब तक जनता अपना फैसला न सुना दे।’
इसके बाद केजरीवाल की सरकार में शिक्षा, पीडब्ल्यूडी जैसे कई विभागों की मंत्री रहीं आतिशी मार्लेना को दिल्ली का सीएम बनाया गया। वह सीएम ऑफिस में केजरीवाल की कुर्सी पर नहीं बैठीं, बल्कि उसके बगल में अपनी कुर्सी लगाई।
नई दिल्ली सीट पर चौथी बार मैदान में केजरीवाल
- अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा सीट से प्रत्याशी हैं। वह इस सीट से तीन बार विधायक रह चुके हैं।
- केजरीवाल के सामने बीजेपी ने पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा और कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को उम्मीदवार बनाया है।
- पिछली बार केजरीवाल को इस सीट पर 64.34% वोट मिले थे, इस बार यहां करीब 1.9 लाख वोटर हैं।
- पत्रकार कहते हैं कि इस बार मुकाबला कड़ा है, आम आदमी पार्टी भी यह बात समझ रही है। पार्टी कार्यकर्ता यहां के वोटरों के घर फोन करके डस्टबिन और बेंच भिजवा रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य, जिनकी केजरीवाल से नहीं बनी
योगेंद्र यादव, 2015: यादव और केजरीवाल के बीच सत्ता और पार्टी की नीतियों को लेकर मतभेद थे। यादव ने पार्टी के अंदर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की कमी और एकतरफा निर्णय लेने पर सवाल उठाए थे।
प्रशांत भूषण, 2015: अन्ना आंदोलन के समय से केजरीवाल के साथ काम कर रहे प्रशांत पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। केजरीवाल की कार्यशैली और पार्टी में लोकतंत्र की कमी को वजह बताते हुए उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
कुमार विश्वास, 2018: पार्टी के प्रमुख नेता और पार्टी के शुरुआती सदस्य थे। केजरीवाल उन्हें छोटा भाई कहते थे, पार्टी के भीतर उनके और केजरीवाल के बीच का विवाद सार्वजनिक हुआ, जिसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया।
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