राजेंद्र बाबू ने बहन का अंतिम संस्कार रोक फहराया तिरंगा: सच्चिदानंद सिन्हा का साइन छूटा तो विशेष विमान से पटना आया संविधान, पढ़ें, रोचक किस्से – Patna News

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राजेंद्र बाबू ने बहन का अंतिम संस्कार रोक फहराया तिरंगा:  सच्चिदानंद सिन्हा का साइन छूटा तो विशेष विमान से पटना आया संविधान, पढ़ें, रोचक किस्से – Patna News

राजेंद्र बाबू ने बहन का अंतिम संस्कार रोक फहराया तिरंगा: सच्चिदानंद सिन्हा का साइन छूटा तो विशेष विमान से पटना आया संविधान, पढ़ें, रोचक किस्से – Patna News

पटना में संविधान की मूल प्रति रखी गई है। आपके लिए NEWS4SOCIALलेकर आया है।

आज देश 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। 2 साल 11 महीने और 18 दिन में तैयार संविधान में बिहार के लोगों का अहम योगदान है।

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299 सदस्यों वाली संविधान सभा में बिहार (उस वक्त झारखंड अलग नहीं था) के 36 लोग थे। इसमें से कुछ चेहरे नामचीन रहे, कुछ गुमनाम रहे। लेकिन इन गुमनाम नायकों ने भी खासकर दलितों और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की पुरजोर वकालत की।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे प्रसिद्ध हस्तियों से लेकर तजामुल हुसैन और बाबू गुप्तनाथ सिंह जैसे कम नामचीन लेकिन बेहद प्रभावशाली लोगों ने संविधान सभा की चर्चा में अपनी अमिट छाप छोड़ी।

पटना के गांधी संग्रहालय में संविधान की मूल प्रति रखी गई है। इसे ताले के अंदर शीशे वाले बॉक्स में रखा गया है। त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल दिवंगत सिद्धेश्वर प्रसाद ने संविधान की मूल प्रति को गांधी संग्रहालय को दी थी।

आज भी पटना के गांधी संग्रहालय में संविधान की मूल प्रति रखी गई है।

संविधान से जुड़े कई किस्से हैं। पढ़िए और देखिए…

विशेष विमान से संविधान की मूल प्रति लेकर पहुंचे राजेंद्र बाबू

26 नवंबर 1949 को संविधान की ड्रॉफ्टिंग का काम पूरा हो गया था। इसके बाद सभी सदस्यों ने उस पर हस्ताक्षर कर दिया। डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा बहुत बीमार थे और पटना में थे। उन्होंने उस पर साइन नहीं किया।

संविधान की मूल प्रति पर सबका हस्ताक्षर जरूरी था। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू करना था उससे पहले उनका हस्ताक्षर जरूरी था, लेकिन दिक्कत थी कि वो चल नहीं सकते थे।

इसको देखते हुए संविधान लागू होने से दो दिन पहले 24 जनवरी को राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में संविधान सभा की टीम विशेष विमान से पटना पहुंची। यहां संविधान की मूल प्रति पर उन्होंने साइन किया। उस वक्त सिन्हा जिस आवास में रहते थे वहां आज बिहार बोर्ड का कार्यालय है।

डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा के कहने पर राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया था। (फाइल फोटो)

राजेंद्र बाबू ने बहन का रोका अंतिम संस्कार

देश में संविधान जब लागू हुआ तो राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति थे। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस था, यानी संविधान लागू करना था। उससे एक दिन पहले राजेंद्र बाबू को दुखद खबर मिली। बताया गया कि बहन का निधन हो गया है।

इस पर उन्होंने कहा- ठीक है। अंतिम संस्कार को रोक दीजिए। पहले तिरंगा फहरा लेंगे तब शामिल होंगे। हुआ भी यही। उन्होंने संविधान लागू होने के बाद ही बहन की अंत्येष्टि की।

बंगाल से बिहार के अलग होने का रोचक किस्सा

डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा वकालत की पढ़ाई पूरी कर देश लौट रहे थे। जहाज में एक व्यक्ति ने उनसे परिचय पूछा। परिचय देते हुए उन्होंने खुद को बिहारी बताया। इस पर सामने वाले ने कहा- कौन सा बिहार? यह बात उन्हें चुभ गई। उस वक्त बिहार अलग राज्य नहीं था। अभी का बिहार बंगाल का हिस्सा हुआ करता था।

उन्होंने ठाना कि बिहार को बंगाल से मुक्त कराया जाए। इसके लिए उन्होंने पत्रकारिता के जरिए अभियान चलाया। उस वक्त उनके दोस्त सर सैयद अली इमाम थे। इमाम भारत के गवर्नर जनरल के एग्जीक्यूटिव काउंसिल के वाइस प्रेसिडेंट भी थे।

सिन्हा ने दोस्त को समझाया कि प्रशासनिक दृष्टि से बिहार, ओडिशा और बंगाल का एक साथ रहना ठीक नहीं है। इसलिए सेंट्रल गवर्निंग काउंसिल को इसका प्रस्ताव दीजिए। अली इमाम समझ नहीं पाए। उन्होंने लेफ्टिनेंट गवर्नर इन काउंसिल का ऐलान करा दिया।

अली इमाम भी बिहार के लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर के पक्ष में थे, लेकिन तकनीकी तौर पर काउंसिल शब्द जोड़ने का सुझाव डॉ. सिन्हा ने दिया था। काउंसिल की घोषणा होने के बाद वह बधाई देने इमाम के पास गए।

उन्होंने पूछा- बधाई क्यों? डॉ. सच्चिदानंद ने कहा, ‘काउंसिल बन जाने से अब बिहार पर बंगाल का वर्चस्व नहीं रह जाएगा। जब काउंसिल बन गई तो अलग राज्य बनाना ही पड़ेगा।’

यह सब सुनने के बाद अली इमाम नाराज हो गए और कहा- यह धोखा है। डॉ. सच्चिदानंद ने कहा- जो बिहार के हित में है मैंने वही किया। 22 मार्च 1912 को बिहार अलग राज्य बन गया।

बिहार के नंदलाल बसु ने भारत की अस्मिता को संविधान के पन्नों पर उतारा

मुंगेर के हवेली खगड़गपुर के आचार्य नंदलाल बसु ने संविधान को भारतीय संस्कृति और धर्म-अध्यात्म के प्रतीकों से सजाया संवारा है। इसमें आजादी के दीवानों की तस्वीरें भी हैं।

बसु ने संविधान के 22 भाग के लिए 22 पेंटिंग बनाई। इसमें राम, लक्ष्मण, सीता के साथ वाली पेटिंग के अलावा झांसी की रानी, टीपू सुल्तान, बुद्ध, महावीर की पेटिंग भी है।

संविधान के हर पन्ने पर हंस और मोर के साथ ही घोड़ा, हाथी भी बनाए गए हैं। कमल के खूबसूरत फूल पन्नों को खूबसूरत बनाते हैं। भारत रत्न और पद्मश्री के प्रतीक चिह्नों को भी इन्होंने ही बनाया था।

उन्होंने गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की कई कविताओं की पेंटिंग बनाई। टैगोर के बुलावे पर वे शांत निकेतन गए। 1922 में शांति निकेतन के कला भवन का प्रथम प्रिंसिपल बनाया गया था।

महात्मा गांधी और राजेंद्र प्रसाद के करीबी थे मुंगेर के नंदलाल बसु। (फाइल फोटो)

बताया जाता है कि शांति निकेतन में भी उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। नंदलाल बसु की गांधी की ब्लैक एंड व्हाइट पेटिंग काफी चर्चित हुई। 1976 में नंदलाल बसु की कलाकृतियों को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने उन 9 कलाकारों में शामिल किया, जिन्हें धरोहर का दर्जा दिया गया है।

पत्रकार राजेश ठाकुर बताते हैं…

आचार्य नंदलाल बसु जब तक रहे, व्यस्त रहने के बावजूद ठंड के मौसम में हवेली खड़गपुर जरूर आते थे। यहां बच्चों के लिए पेटिंग कैंप लगाते थे। हवेली खड़गपुर के पुराना पुल से सूर्यास्त को देर तक निहारते थे। गुरुजी की दही की दुकान जरूर जाते थे। उनके पिता पूर्ण चंद्र बसु खड़गपुर में दरभंगा महाराज के खजांची थे। बाद में उस जमीन पर बस स्टैंड बन गया।

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