एन. रघुरामन का कॉलम: एक गैर-नुकसानदेह झूठ सबसे बड़ा नुकसान कर सकता है h3>
2 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
“मम्मी झूठ बोल रही हैं, मैं तीन साल का हो चुका हूं, हमने अभी-अभी तीन वाली मोमबत्तियां काटी हैं।’ बच्चे ने बड़ी मासूमियत से यह कहा, जब उसकी मां ने एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के एक कर्मचारी से कहा, ‘दो साल।’
एएआई ने इस कर्मचारी को यह सुनिश्चित करने के लिए तैनात किया है कि दो साल से ऊपर के बच्चे उदयपुर एयरपोर्ट के ग्राउंड फ्लोर के प्रस्थान क्षेत्र में निर्धारित प्ले जोन में न खेलें। उसने बच्चे को बाहर जाने को कह दिया, क्योंकि बच्चे ने खुद कह दिया था कि उसकी उम्र तीन साल है। पिता सामने की कॉफी शॉप से दौड़ते हुए आए और पूछा ‘क्या हुआ?’
मां ने कहा, ‘हमारे बच्चे को ईमानदारी की सजा मिली। इस व्यक्ति को कैसे समझाएं कि तीसरे जन्मदिन का मतलब है कि बच्चा अभी सिर्फ दो साल का है।’ पिता कर्मचारी के पास गए और बहस की लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।
बच्चा मां से कहता रहा, ‘मैंने तो कोई झूठ नहीं बोला, फिर उन अंकल ने क्यों कहा कि चले जाओ? मैं दादाजी से कहूंगा उस कौवे को भेज दें जो झूठ बोलने वालों को काटता है।’ दो साल से कम उम्र के बच्चों की कमी के कारण एयरपोर्ट का गेम जोन ज्यादातर समय खाली रहता था और एएआई कर्मचारी दो साल से बड़े सभी बच्चों को उस जोन से खदेड़ने में व्यस्त रहता था। कुछ पैरेंट्स संघर्ष करके अपने बच्चे को वहां प्रवेश दिलाने में जरूर सफल रहते।
इसी मंगलवार को उदयपुर एयरपोर्ट ने आयु सीमा तीन साल से घटाकर दो साल कर दी थी, क्योंकि ज्यादातर अभिभावक बच्चों की उम्र के बारे में झूठ बोलते हैं और बच्चों को जोन में प्रवेश दिला देते हैं। कर्मचारी ने स्वीकारा कि बच्चे खुद ही पैरेंट्स का भंडाफोड़ कर देते हैं और हम उन्हें दूर जाने के लिए कहते हैं, क्योंकि बड़े बच्चे कभी-कभी अनजाने में दो साल से कम उम्र के बच्चों के साथ खेलकर उन्हें चोट पहुंचा देते हैं।
दिलचस्प यह है कि गेम जोन में लगे एक बोर्ड पर अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ रहकर उनका ख्याल रखने की सलाह दी गई है। ऐसे में बड़े बच्चे छोटे बच्चों को कैसे चोट पहुंचा सकते हैं? एक और दिलचस्प बात यह है कि तीनों शिफ्टों में एक पूर्णकालिक कर्मचारी जोन के पास ही रहता है ताकि दो साल से बड़े बच्चों को वहां घुसने से रोक सके।
हालांकि, मुद्दा यह नहीं है कि बच्चे इस जोन में प्रवेश कर रहे हैं। बड़ा मुद्दा यह है कि एक तरफ जब माता-पिता अपने बच्चों को झूठ न बोलने की सलाह देते हैं और दूसरी तरफ खुद सार्वजनिक रूप से अपने बच्चों की उम्र के बारे में झूठ बोलते हैं तो वे ऐसा करके उस युवा मन में पनप रहे विश्वास को मार देते हैं।
धीरे-धीरे बच्चा यह मानने लगता है कि मां के झूठ बोलने पर कौआ नहीं काटता, इसलिए वह मुझे भी नहीं काटेगा। मैं एक उम्र के बाद झूठ बोल सकता हूं। बच्चे को दरवाजे की घंटी या लैंडलाइन फोन कॉल का जवाब देने का निर्देश देना और उससे यह कहना कि कह दो पापा घर पर नहीं हैं, ऊपर से तो एक गैर-नुकसानदेह झूठ लगता है।
लेकिन यह बच्चे के दिमाग में यह आधार बनाता है कि समाज छोटे-मोटे झूठों की परवाह नहीं करता। फिर बच्चा झूठ की श्रेणियां गिनता है। वह अच्छे झूठ को बुरे झूठ से अलग करने की कोशिश करता है लेकिन भ्रमित हो जाता है क्योंकि वह देखता है कि माता-पिता, बस कंडक्टर, वाटर पार्क टिकटिंग स्टाफ और कई अन्य जगहों पर झूठ बोलते हैं और धीरे-धीरे झूठ बोलना उसकी भी आदत बन जाती है।
इसके दूसरे भी नतीजे हैं, जैसे कि उदयपुर एयरपोर्ट पर सभी पैरेंट्स द्वारा सामूहिक रूप से बोले गए झूठ ने उस तीन साल के सच्चाई से भरे बच्चे को गेम जोन से दूर कर दिया था। वह भी यकीनन एक गैर-नुकसानदेह झूठ था, लेकिन इसका असर कई तीन साल के बच्चों के खेलने के अधिकार पर पड़ा। मुझे उनके लिए दु:ख होता है।
फंडा यह है कि कम से कम जब बच्चे आस-पास हों तो झूठ को नुकसानदायक या कम नुकसानदायक में न बांटें। यह उस बच्चे के कोमल मन में एक गलत नींव डालेगा, जो उसके पूरे जीवन के लिए बहुत नुकसानदेह होगा।
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
“मम्मी झूठ बोल रही हैं, मैं तीन साल का हो चुका हूं, हमने अभी-अभी तीन वाली मोमबत्तियां काटी हैं।’ बच्चे ने बड़ी मासूमियत से यह कहा, जब उसकी मां ने एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) के एक कर्मचारी से कहा, ‘दो साल।’
एएआई ने इस कर्मचारी को यह सुनिश्चित करने के लिए तैनात किया है कि दो साल से ऊपर के बच्चे उदयपुर एयरपोर्ट के ग्राउंड फ्लोर के प्रस्थान क्षेत्र में निर्धारित प्ले जोन में न खेलें। उसने बच्चे को बाहर जाने को कह दिया, क्योंकि बच्चे ने खुद कह दिया था कि उसकी उम्र तीन साल है। पिता सामने की कॉफी शॉप से दौड़ते हुए आए और पूछा ‘क्या हुआ?’
मां ने कहा, ‘हमारे बच्चे को ईमानदारी की सजा मिली। इस व्यक्ति को कैसे समझाएं कि तीसरे जन्मदिन का मतलब है कि बच्चा अभी सिर्फ दो साल का है।’ पिता कर्मचारी के पास गए और बहस की लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।
बच्चा मां से कहता रहा, ‘मैंने तो कोई झूठ नहीं बोला, फिर उन अंकल ने क्यों कहा कि चले जाओ? मैं दादाजी से कहूंगा उस कौवे को भेज दें जो झूठ बोलने वालों को काटता है।’ दो साल से कम उम्र के बच्चों की कमी के कारण एयरपोर्ट का गेम जोन ज्यादातर समय खाली रहता था और एएआई कर्मचारी दो साल से बड़े सभी बच्चों को उस जोन से खदेड़ने में व्यस्त रहता था। कुछ पैरेंट्स संघर्ष करके अपने बच्चे को वहां प्रवेश दिलाने में जरूर सफल रहते।
इसी मंगलवार को उदयपुर एयरपोर्ट ने आयु सीमा तीन साल से घटाकर दो साल कर दी थी, क्योंकि ज्यादातर अभिभावक बच्चों की उम्र के बारे में झूठ बोलते हैं और बच्चों को जोन में प्रवेश दिला देते हैं। कर्मचारी ने स्वीकारा कि बच्चे खुद ही पैरेंट्स का भंडाफोड़ कर देते हैं और हम उन्हें दूर जाने के लिए कहते हैं, क्योंकि बड़े बच्चे कभी-कभी अनजाने में दो साल से कम उम्र के बच्चों के साथ खेलकर उन्हें चोट पहुंचा देते हैं।
दिलचस्प यह है कि गेम जोन में लगे एक बोर्ड पर अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ रहकर उनका ख्याल रखने की सलाह दी गई है। ऐसे में बड़े बच्चे छोटे बच्चों को कैसे चोट पहुंचा सकते हैं? एक और दिलचस्प बात यह है कि तीनों शिफ्टों में एक पूर्णकालिक कर्मचारी जोन के पास ही रहता है ताकि दो साल से बड़े बच्चों को वहां घुसने से रोक सके।
हालांकि, मुद्दा यह नहीं है कि बच्चे इस जोन में प्रवेश कर रहे हैं। बड़ा मुद्दा यह है कि एक तरफ जब माता-पिता अपने बच्चों को झूठ न बोलने की सलाह देते हैं और दूसरी तरफ खुद सार्वजनिक रूप से अपने बच्चों की उम्र के बारे में झूठ बोलते हैं तो वे ऐसा करके उस युवा मन में पनप रहे विश्वास को मार देते हैं।
धीरे-धीरे बच्चा यह मानने लगता है कि मां के झूठ बोलने पर कौआ नहीं काटता, इसलिए वह मुझे भी नहीं काटेगा। मैं एक उम्र के बाद झूठ बोल सकता हूं। बच्चे को दरवाजे की घंटी या लैंडलाइन फोन कॉल का जवाब देने का निर्देश देना और उससे यह कहना कि कह दो पापा घर पर नहीं हैं, ऊपर से तो एक गैर-नुकसानदेह झूठ लगता है।
लेकिन यह बच्चे के दिमाग में यह आधार बनाता है कि समाज छोटे-मोटे झूठों की परवाह नहीं करता। फिर बच्चा झूठ की श्रेणियां गिनता है। वह अच्छे झूठ को बुरे झूठ से अलग करने की कोशिश करता है लेकिन भ्रमित हो जाता है क्योंकि वह देखता है कि माता-पिता, बस कंडक्टर, वाटर पार्क टिकटिंग स्टाफ और कई अन्य जगहों पर झूठ बोलते हैं और धीरे-धीरे झूठ बोलना उसकी भी आदत बन जाती है।
इसके दूसरे भी नतीजे हैं, जैसे कि उदयपुर एयरपोर्ट पर सभी पैरेंट्स द्वारा सामूहिक रूप से बोले गए झूठ ने उस तीन साल के सच्चाई से भरे बच्चे को गेम जोन से दूर कर दिया था। वह भी यकीनन एक गैर-नुकसानदेह झूठ था, लेकिन इसका असर कई तीन साल के बच्चों के खेलने के अधिकार पर पड़ा। मुझे उनके लिए दु:ख होता है।
फंडा यह है कि कम से कम जब बच्चे आस-पास हों तो झूठ को नुकसानदायक या कम नुकसानदायक में न बांटें। यह उस बच्चे के कोमल मन में एक गलत नींव डालेगा, जो उसके पूरे जीवन के लिए बहुत नुकसानदेह होगा।
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