नीरज कौशल का कॉलम: अमेरिका भारत की कमजोरी नहीं उलटे मजबूती चाहता है h3>
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7 घंटे पहले
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नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर
क्या अमेरिका का डीप स्टेट भारत में अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रहा है? यह सवाल इतना हास्यास्पद है कि इसे सिरे से खारिज करने के अलावा और कुछ नहीं किया जाना चाहिए। फिर भी, मीडिया में इसको लेकर अटकलों का दौर है।
डीप स्टेट के बारे में गहरी से गहरी जानकारी रखने का दावा करने वाले विश्लेषक एक-दूसरे से अलग-अलग उदाहरणों को जोड़कर सबूत के तौर पर पेश करते हैं। अलबत्ता यह सब नया नहीं है। पहले डीप स्टेट को विदेशी हाथ कहा जाता था। इंदिरा गांधी अक्सर विदेशी हाथ- मतलब पाकिस्तान या अमेरिका- को असली मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए दोषी ठहराती थीं।
डीप स्टेट शब्द थोड़ा और षड्यंत्रकारी लगता है। लेकिन एक ऐसा देश, जो क्षेत्रीय शक्ति होने का दावा करता है और एक विकसित राष्ट्र बनना चाहता है, उसे ऐसी कांस्पिरेसी थ्योरीज़ को लेकर थोड़ी दृढ़ता का परिचय देना चाहिए।
वास्तव में भारत और अमेरिका के बीच आपसी सहयोग के उदाहरण बताते हैं कि डीप स्टेट षड्यंत्र के सिद्धांत कितने उथले हैं। सच तो यह है कि एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका एक मजबूत भारत चाहता है।
2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों ने रक्षा-सहयोग को मजबूत करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट, संवेदनशील तकनीकों के हस्तांतरण और उन्नत सैन्य-उपकरणों के लिए मिल-जुलकर रिसर्च करने से लेकर तकनीक के लिए समझौते तक शामिल हैं।
रक्षा सहयोग से भारत को खासा लाभ हुआ है। अरुणाचल प्रदेश में चीन से 2022 की सीमा झड़प के दौरान अमेरिका ने भारतीय सेना को चीनी ठिकानों और सैन्य टुकड़ियों के बारे में रियल टाइम सबूत उपलब्ध कराए थे। इसने इसी तरह की पिछली घुसपैठों से हुए बड़े नुकसान को टाला। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसने चीनियों को पीछे हटने के लिए मजबूर किया। चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के चुन्हाओ लो कहते हैं, अमेरिका और भारत के बीच रक्षा सहयोग चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वास्तविक चुनौतियां पैदा कर रहा है।
दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों के प्रमाण तो और भी मजबूत हैं। 2014 से दोनों देशों के बीच होने वाला व्यापार तीन गुना बढ़ गया है और अब यह 200 अरब डॉलर के करीब है। भारतवंशी अमेरिका में सबसे अमीर जातीय समूह हैं और अमेरिकी सरकार में उच्च प्रशासनिक और राजनीतिक पदों पर उनकी उपस्थिति काफी अच्छी है।
बाइडेन प्रशासन में 130 भारतीय-अमेरिकी थे। ट्रम्प ने भी अपने पहले कार्यकाल में 80 से अधिक भारतीय-अमेरिकियों को नियुक्त किया था और हाल ही में उन्होंने जो नियुक्तियां की हैं, उनसे लगता नहीं कि दूसरा कार्यकाल अलग होगा।
महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय और भारतवंशी शीर्ष अमेरिकी कंपनियों के सीईओ हैं। इन कंपनियों की भारत के बाजार में भी अच्छी पकड़ है और वे यहां अपना कारोबार बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं। संक्षेप में, अमेरिका में राजनीतिक और आर्थिक माहौल दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के पक्ष में है, न कि भारत को अस्थिर करने के लिए। वास्तव में, जो मुद्दे दोनों देशों के संबंधों को खराब करते हैं, उन्हें भी भारत अपने पक्ष में हल करने में सक्षम रहा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने ईरान के साथ भारतीय कारोबार और रूस से एनर्जी के आयात पर प्रतिबंधों से भारत को छूट दी है।
अदाणी समूह के खिलाफ 26.5 करोड़ डॉलर की रिश्वतखोरी की योजना का आरोप लगने के बाद भाजपा ने अमेरिकी डीप स्टेट पर भारत को अस्थिर करने की कोशिशों का आरोप लगाया था। लेकिन वैसा आरोप लगाने वाली एसईसी (यूएस सिक्योरिटीज़ एक्सचेंज कमीशन) अमेरिकी सरकार की एक रेगुलेटरी एजेंसी है, न कि डीप स्टेट की कोई छिपी हुई संस्था। उलटे हमें यह सवाल पूछना चाहिए कि भारत सरकार की कोई भी शाखा इन आरोपों की जांच क्यों नहीं कर रही है?
बांग्लादेश में शेख हसीना की हुकूमत को उखाड़ फेंकने में भी डीप स्टेट का हाथ बताया जाता है। जबकि तथ्य यह है कि हसीना एक अलोकप्रिय, तानाशाहीपूर्ण नेता थीं। 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए कोटा के खिलाफ बांग्लादेशी छात्रों ने विद्रोह किया था।
हालांकि, कांस्पिरेसी थ्योरी चलाने वाले चाहते हैं कि आप इन तथ्यों की अनदेखी करके यह मान लें कि मोहम्मद यूनुस एक सीआईए-एजेंट हैं और अमेरिकी डीप स्टेट द्वारा नियुक्त किए गए हैं। इन बातों के झांसे में न आएं!
डीप स्टेट षड्यंत्र के सिद्धांत उथले हैं। सच तो यह है कि एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका एक मजबूत भारत चाहता है। मोदी के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों ने रक्षा-सहयोग को बहुत मजबूत किया है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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नीरज कौशल, कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर
क्या अमेरिका का डीप स्टेट भारत में अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रहा है? यह सवाल इतना हास्यास्पद है कि इसे सिरे से खारिज करने के अलावा और कुछ नहीं किया जाना चाहिए। फिर भी, मीडिया में इसको लेकर अटकलों का दौर है।
डीप स्टेट के बारे में गहरी से गहरी जानकारी रखने का दावा करने वाले विश्लेषक एक-दूसरे से अलग-अलग उदाहरणों को जोड़कर सबूत के तौर पर पेश करते हैं। अलबत्ता यह सब नया नहीं है। पहले डीप स्टेट को विदेशी हाथ कहा जाता था। इंदिरा गांधी अक्सर विदेशी हाथ- मतलब पाकिस्तान या अमेरिका- को असली मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए दोषी ठहराती थीं।
डीप स्टेट शब्द थोड़ा और षड्यंत्रकारी लगता है। लेकिन एक ऐसा देश, जो क्षेत्रीय शक्ति होने का दावा करता है और एक विकसित राष्ट्र बनना चाहता है, उसे ऐसी कांस्पिरेसी थ्योरीज़ को लेकर थोड़ी दृढ़ता का परिचय देना चाहिए।
वास्तव में भारत और अमेरिका के बीच आपसी सहयोग के उदाहरण बताते हैं कि डीप स्टेट षड्यंत्र के सिद्धांत कितने उथले हैं। सच तो यह है कि एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका एक मजबूत भारत चाहता है।
2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों ने रक्षा-सहयोग को मजबूत करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट, संवेदनशील तकनीकों के हस्तांतरण और उन्नत सैन्य-उपकरणों के लिए मिल-जुलकर रिसर्च करने से लेकर तकनीक के लिए समझौते तक शामिल हैं।
रक्षा सहयोग से भारत को खासा लाभ हुआ है। अरुणाचल प्रदेश में चीन से 2022 की सीमा झड़प के दौरान अमेरिका ने भारतीय सेना को चीनी ठिकानों और सैन्य टुकड़ियों के बारे में रियल टाइम सबूत उपलब्ध कराए थे। इसने इसी तरह की पिछली घुसपैठों से हुए बड़े नुकसान को टाला। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसने चीनियों को पीछे हटने के लिए मजबूर किया। चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ कंटेम्पररी इंटरनेशनल रिलेशंस के चुन्हाओ लो कहते हैं, अमेरिका और भारत के बीच रक्षा सहयोग चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वास्तविक चुनौतियां पैदा कर रहा है।
दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों के प्रमाण तो और भी मजबूत हैं। 2014 से दोनों देशों के बीच होने वाला व्यापार तीन गुना बढ़ गया है और अब यह 200 अरब डॉलर के करीब है। भारतवंशी अमेरिका में सबसे अमीर जातीय समूह हैं और अमेरिकी सरकार में उच्च प्रशासनिक और राजनीतिक पदों पर उनकी उपस्थिति काफी अच्छी है।
बाइडेन प्रशासन में 130 भारतीय-अमेरिकी थे। ट्रम्प ने भी अपने पहले कार्यकाल में 80 से अधिक भारतीय-अमेरिकियों को नियुक्त किया था और हाल ही में उन्होंने जो नियुक्तियां की हैं, उनसे लगता नहीं कि दूसरा कार्यकाल अलग होगा।
महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय और भारतवंशी शीर्ष अमेरिकी कंपनियों के सीईओ हैं। इन कंपनियों की भारत के बाजार में भी अच्छी पकड़ है और वे यहां अपना कारोबार बढ़ाने के लिए उत्सुक हैं। संक्षेप में, अमेरिका में राजनीतिक और आर्थिक माहौल दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने के पक्ष में है, न कि भारत को अस्थिर करने के लिए। वास्तव में, जो मुद्दे दोनों देशों के संबंधों को खराब करते हैं, उन्हें भी भारत अपने पक्ष में हल करने में सक्षम रहा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने ईरान के साथ भारतीय कारोबार और रूस से एनर्जी के आयात पर प्रतिबंधों से भारत को छूट दी है।
अदाणी समूह के खिलाफ 26.5 करोड़ डॉलर की रिश्वतखोरी की योजना का आरोप लगने के बाद भाजपा ने अमेरिकी डीप स्टेट पर भारत को अस्थिर करने की कोशिशों का आरोप लगाया था। लेकिन वैसा आरोप लगाने वाली एसईसी (यूएस सिक्योरिटीज़ एक्सचेंज कमीशन) अमेरिकी सरकार की एक रेगुलेटरी एजेंसी है, न कि डीप स्टेट की कोई छिपी हुई संस्था। उलटे हमें यह सवाल पूछना चाहिए कि भारत सरकार की कोई भी शाखा इन आरोपों की जांच क्यों नहीं कर रही है?
बांग्लादेश में शेख हसीना की हुकूमत को उखाड़ फेंकने में भी डीप स्टेट का हाथ बताया जाता है। जबकि तथ्य यह है कि हसीना एक अलोकप्रिय, तानाशाहीपूर्ण नेता थीं। 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए कोटा के खिलाफ बांग्लादेशी छात्रों ने विद्रोह किया था।
हालांकि, कांस्पिरेसी थ्योरी चलाने वाले चाहते हैं कि आप इन तथ्यों की अनदेखी करके यह मान लें कि मोहम्मद यूनुस एक सीआईए-एजेंट हैं और अमेरिकी डीप स्टेट द्वारा नियुक्त किए गए हैं। इन बातों के झांसे में न आएं!
डीप स्टेट षड्यंत्र के सिद्धांत उथले हैं। सच तो यह है कि एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका एक मजबूत भारत चाहता है। मोदी के सत्ता में आने के बाद से दोनों देशों ने रक्षा-सहयोग को बहुत मजबूत किया है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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