एन. रघुरामन का कॉलम: सुबह उठकर आप कैसा इंसान बनना चाहते हैं? h3>
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2 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
पिछले 10 दिनों में, मेरी मुलाकात तीन अलग-अलग व्यक्तियों से हुई, जिनमें कुछ दिलचस्प था। पहला व्यक्ति भारत के सबसे अमीर परिवार से था, दूसरा आईटी दुनिया का सफल एग्जीक्यूटिव था और तीसरे ने हाल ही में बड़ा दुःख झेला था।
लेकिन उनमें एक गुण समान था – वे सुबह उठकर ही तय कर लेते हैं कि उनका दिन कैसे बीतना चाहिए। ये हैं वे तीन लोग।तमाम प्रयासों के बावजूद, प्रयागराज एयरपोर्ट आरामदायक नहीं हो पा रहा। दोपहर तीन बजे, लाऊंज ठसाठस भरा था। दिल्ली की फ्लाइट के प्रस्थान की घोषणा के बाद कुछ सीटें खाली हुईं और मुंबई की फ्लाइट का इंतजार कर रहे लोगों को सीट मिली।
मैं जैसे ही बैठा, पीछे से एक व्यक्ति ने आकर मेरे बगल की दो सीटों पर सामान रख दिया, ताकि अपने लिए सीट बचा सकें। उन्होंने विनम्रता के साथ अभिवादन किया।
खाना खाते हुए, वे और उनका असिस्टेंट, हवाई यात्रा की मुश्किलों पर चर्चा करने लगे। इस मामले में मैं ज़्यादा बोल रहा था। मेरी बातों में शायद एक गर्व झलक रहा था कि मुझे हवाईयात्रा के बारे में ज्यादा जानकारी है। उन व्यक्ति ने प्लेन में अपनी आरामदायक सीट एक बच्चे के पिता को दे दी और मेरे बगल में बीच वाली सीट पर बैठ गए।
दो घंटे के सफर में उन्होंने न तो अतिरिक्त सुविधाएं मांगीं और न ही पैसे देकर खरीदी गई आरामदायक सीट छोड़ने पर अफसोस जताया। वे सभी से विनम्रता से पेश आए। हमने बात जारी रखी और मुंबई में उतरने पर वे मेरे साथ कंवेयर बेल्ट तक आए। उन्होंने मेरे साथ लगेज का धैर्यपूर्वक इंतजार किया और कार पार्किंग तक साथ गए।
पूरी बातचीत में उन्होंने एक बार भी अहसास नहीं होने दिया कि वे देश का सबसे बड़ा बिज़नेस बनाने वाले परिवार से हैं। ऐसी दुनिया में जहां सभी बड़े लोगों से अपने संबंधों को लेकर शेखी बघारते रहते हैं, वहां धीरूभाई अंबानी के छोटे भाई, स्वर्गीय नाटुभाई अंबानी के बेटे और ग्रुप प्रेसिडेंट (सप्लाई चेन), नीरज एन अंबानी, सबसे जुदा थे।
दूसरे थे, एक 6 फुट लंबे, हट्टे-कट्टे व्यक्ति। मैं इंदौर के एक होटल में ब्रेकफास्ट कर रहा था, तभी वे रेस्टोरेंट में आए। आते ही वेटर को कमरे की चाबी दिखाई और आंखों ही आंखों में अंदर आने की अनुमति मांगी। जब वेटर ने स्वागत किया, तो उन्होंने धन्यवाद कहा, जबकि मुफ्त ब्रेकफास्ट हर कमरे के मेहमान का अधिकार होता है।
मैं उनके पास गया और वेटर का सम्मान करके इस खूबसूरत मानवीय व्यवहार को दर्शाने के लिए उनका शुक्रिया अदा किया। तब मुझे पता चला कि वे अलंकार कार्पे हैं, जिनका जन्म उज्जैन में और पढ़ाई इंदौर में हुई। वे अब विप्रो, बैंगलोर में सीनियर आईटी प्रोफेशनल हैं और इंदौर के फुडी कल्चर को मिस करते हैं।
आखिर में, मैं शनिवार रात को 65 वर्षीय रेणु चोरडिया से मिला। वे इंदौर के एक मैदान पर, श्रेया घोषाल की लाइव परफॉर्मेंस पर थिरक रही थीं। उन्होंने कुछ महीने पहले ही अपने पति को खोया था और उनकी बेटी पूर्वी जैन उनका हौसला बनाए रखने के लिए उन्हें यहां लाई थी क्योंकि रेणु संगीतप्रेमी हैं। मां-बेटी पूरे इवेंट में, श्रेया के हर गाने पर नाचती रहीं, भले ही वे स्टेज से काफी दूर थीं। उनके लिए आस-पास के लोग नहीं, बल्कि संगीत मायने रखता था।
फंडा यह है कि हम हर सुबह एक सफल इंसान बनने के बजाय, एक बेहतर इंसान बनने की इच्छा के साथ जागें। फिर देखिए, हमारा दिन कितना खूबसूरत हो जाएगा।
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
पिछले 10 दिनों में, मेरी मुलाकात तीन अलग-अलग व्यक्तियों से हुई, जिनमें कुछ दिलचस्प था। पहला व्यक्ति भारत के सबसे अमीर परिवार से था, दूसरा आईटी दुनिया का सफल एग्जीक्यूटिव था और तीसरे ने हाल ही में बड़ा दुःख झेला था।
लेकिन उनमें एक गुण समान था – वे सुबह उठकर ही तय कर लेते हैं कि उनका दिन कैसे बीतना चाहिए। ये हैं वे तीन लोग।तमाम प्रयासों के बावजूद, प्रयागराज एयरपोर्ट आरामदायक नहीं हो पा रहा। दोपहर तीन बजे, लाऊंज ठसाठस भरा था। दिल्ली की फ्लाइट के प्रस्थान की घोषणा के बाद कुछ सीटें खाली हुईं और मुंबई की फ्लाइट का इंतजार कर रहे लोगों को सीट मिली।
मैं जैसे ही बैठा, पीछे से एक व्यक्ति ने आकर मेरे बगल की दो सीटों पर सामान रख दिया, ताकि अपने लिए सीट बचा सकें। उन्होंने विनम्रता के साथ अभिवादन किया।
खाना खाते हुए, वे और उनका असिस्टेंट, हवाई यात्रा की मुश्किलों पर चर्चा करने लगे। इस मामले में मैं ज़्यादा बोल रहा था। मेरी बातों में शायद एक गर्व झलक रहा था कि मुझे हवाईयात्रा के बारे में ज्यादा जानकारी है। उन व्यक्ति ने प्लेन में अपनी आरामदायक सीट एक बच्चे के पिता को दे दी और मेरे बगल में बीच वाली सीट पर बैठ गए।
दो घंटे के सफर में उन्होंने न तो अतिरिक्त सुविधाएं मांगीं और न ही पैसे देकर खरीदी गई आरामदायक सीट छोड़ने पर अफसोस जताया। वे सभी से विनम्रता से पेश आए। हमने बात जारी रखी और मुंबई में उतरने पर वे मेरे साथ कंवेयर बेल्ट तक आए। उन्होंने मेरे साथ लगेज का धैर्यपूर्वक इंतजार किया और कार पार्किंग तक साथ गए।
पूरी बातचीत में उन्होंने एक बार भी अहसास नहीं होने दिया कि वे देश का सबसे बड़ा बिज़नेस बनाने वाले परिवार से हैं। ऐसी दुनिया में जहां सभी बड़े लोगों से अपने संबंधों को लेकर शेखी बघारते रहते हैं, वहां धीरूभाई अंबानी के छोटे भाई, स्वर्गीय नाटुभाई अंबानी के बेटे और ग्रुप प्रेसिडेंट (सप्लाई चेन), नीरज एन अंबानी, सबसे जुदा थे।
दूसरे थे, एक 6 फुट लंबे, हट्टे-कट्टे व्यक्ति। मैं इंदौर के एक होटल में ब्रेकफास्ट कर रहा था, तभी वे रेस्टोरेंट में आए। आते ही वेटर को कमरे की चाबी दिखाई और आंखों ही आंखों में अंदर आने की अनुमति मांगी। जब वेटर ने स्वागत किया, तो उन्होंने धन्यवाद कहा, जबकि मुफ्त ब्रेकफास्ट हर कमरे के मेहमान का अधिकार होता है।
मैं उनके पास गया और वेटर का सम्मान करके इस खूबसूरत मानवीय व्यवहार को दर्शाने के लिए उनका शुक्रिया अदा किया। तब मुझे पता चला कि वे अलंकार कार्पे हैं, जिनका जन्म उज्जैन में और पढ़ाई इंदौर में हुई। वे अब विप्रो, बैंगलोर में सीनियर आईटी प्रोफेशनल हैं और इंदौर के फुडी कल्चर को मिस करते हैं।
आखिर में, मैं शनिवार रात को 65 वर्षीय रेणु चोरडिया से मिला। वे इंदौर के एक मैदान पर, श्रेया घोषाल की लाइव परफॉर्मेंस पर थिरक रही थीं। उन्होंने कुछ महीने पहले ही अपने पति को खोया था और उनकी बेटी पूर्वी जैन उनका हौसला बनाए रखने के लिए उन्हें यहां लाई थी क्योंकि रेणु संगीतप्रेमी हैं। मां-बेटी पूरे इवेंट में, श्रेया के हर गाने पर नाचती रहीं, भले ही वे स्टेज से काफी दूर थीं। उनके लिए आस-पास के लोग नहीं, बल्कि संगीत मायने रखता था।
फंडा यह है कि हम हर सुबह एक सफल इंसान बनने के बजाय, एक बेहतर इंसान बनने की इच्छा के साथ जागें। फिर देखिए, हमारा दिन कितना खूबसूरत हो जाएगा।
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