चल रही तैयारी, अमृत और सर्वार्थसिद्धि योग में 6 को हरितालिका तीज व्रत

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चल रही तैयारी, अमृत और सर्वार्थसिद्धि योग में 6 को हरितालिका तीज व्रत

चल रही तैयारी, अमृत और सर्वार्थसिद्धि योग में 6 को हरितालिका तीज व्रत

चल रही तैयारी, अमृत और सर्वार्थसिद्धि योग में 6 को हरितालिका तीज व्रत महिलाएं निर्जला रह करेंगी पति की लंबी उम्र की कामना बाजारों में बढ़ी चहल-पहले, कपड़े और शृंगार की दुकानों में बढ़ी भीड़ फोटो तीज : बिहारशरीफ के अस्पताल चौक के पास शृंगार की दुकान पर खरीदारी करतीं महिलाएं। बिहारशरीफ, कार्यालय प्रतिनिधि। इसबार हरितालिका तीज व्रत छह सितंबर शुक्रवार को है। शुभ घड़ी में सुहागिन महिलाएं 24 घंटे तक निर्जला रहकर पति की लम्बी उम्र के लिए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करेंगी। कुंवारी लड़कियां अच्छे वर और रिश्ते में प्रेम बढ़ाने के लिए व्रत रखेंगी। खास यह भी कि इस दिन प्रात:काल से लेकर 12.30 बजे तक अमृत योग तो 12.31 से 3.20 बजे तक जयद योग है। साथ ही संध्याकाल तक सर्वार्थसिद्धि योग भी बन रहा है। व्रत की तैयारी में महिलाएं जुटी हैं। बाजारों में चहल-पहल बढ़ गयी है। ज्योतिष के जानकार पं. मोहन कुमार दत्त मिश्र बताते हैं कि यह व्रत भाद्र शुक्ल पक्ष तृतीया संयुक्त चतुर्थी तिथि के साथ उदय व्यापिनी हस्त नक्षत्र मिलने पर किया जाता है। पांच सितंबर को द्वितीय तिथि दिन में 10.06 बजे समाप्त होकर तृतीया तिथि दिन में 10.07 बजे से प्रारंभ हो रहा है। शास्त्रों के अनुसार द्वितीय संयुक्त तृतीया व्रत करना निषेध माना गया है। छह सितंबर को तृतीया तिथि दिन में 12.09 तक है। उसके बाद चतुर्थी तिथि का मिलन हो रहा है। हस्त नक्षत्र प्रात: 8.10 तक है। चूकि, तिथि और नक्षत्र उदय व्यापिनी है। पंचांगों के अनुसार छह सितंबर को तीज की पूजा प्रात: काल से किसी भी समय किया जा सकता है। जबकि, सात सितंबर को व्रत का पारण प्रात: 5.45 बजे के बाद होगा। निर्णय सिंधु के अनुसार तृतीया अगर चतुर्थी के साथ हो तो अखंड सौभाग्य तथा पुत्र-पौत्र की वृद्ध का कारण होता है। क्यों पड़ता हरितालिका नाम: – सोहसराय हनुमान मंदिर के पुजारी पं. सुरेन्द्र कुमार दत्त मिश्र बताते हैं कि यह व्रत भाद्र मास की तृतीया तिथि के साथ चतुर्थी तिथि के मिलने पर मनाया जाता है। तृतीय तिथि होने के कारण इसे ‘तीज नाम पड़ा। ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती के पिता हिमवान भगवान विष्णु के साथ पार्वती जी की शादी करना चाहते थे। यह पार्वती जी को पसंद नहीं था। इसलिए पार्वती जी की सखियां उन्हें भगाकर जंगल में लेकर चली गयीं। इसलिए इस व्रत का हरितालिका नाम पड़ा। चूकि, पार्वती जी ने कुंवारी अवस्था में इस व्रत को किया था। इसलिए इसे कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर के लिए करती हैं। माता पार्वती ने सबसे पहले किया था व्रत:- शिवपुराण के अनुसार इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए रखा था। मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने वाले की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में रखा जाता है। मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 जन्म लिए। उनके कठोर तप के कारण 108वें जन्म में भोले बाबा ने पार्वती जी को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।

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