नेतृत्वहीन होता लोकतंत्र | Group Editor In Chief Of Patrika Gulab Kothari’s Article 30 October 2023 | News 4 Social

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नेतृत्वहीन होता लोकतंत्र | Group Editor In Chief Of Patrika Gulab Kothari’s Article 30 October 2023 | News 4 Social

नेतृत्वहीन होता लोकतंत्र | Group Editor In Chief Of Patrika Gulab Kothari’s Article 30 October 2023 | News 4 Social

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव सिर पर खड़े हैं और अभी तक प्रत्याशियों के नाम तय नहीं हो रहे हैं। दोनों ही प्रमुख दलों के आलाकमान सिर खुजा चुके। देश ही नहीं विश्व के पुराने और बड़े लोकतंत्र की और दयनीय दशा क्या हो सकती है।

गुलाब कोठारी
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव सिर पर खड़े हैं और अभी तक प्रत्याशियों के नाम तय नहीं हो रहे हैं। दोनों ही प्रमुख दलों के आलाकमान सिर खुजा चुके। देश ही नहीं विश्व के पुराने और बड़े लोकतंत्र की और दयनीय दशा क्या हो सकती है। कहीं आनन-फानन में पुराने विधायकों को थोक के भाव टिकिट दिए, कहीं हारे हुओं की किस्मत के ताले खुले, कहीं बाहुबली-माफिया-भ्रष्ट दावेदार टिकट ले उड़े। आलाकमान पहले किसी चुनाव में ऐसे भयभीत भी नहीं होते थे। दावेदार भी कभी ऐसे नहीं गुर्राते थे। बागी लोगों के तेवर, चुनाव में उतरने की तैयारी बता रही है कि उनको अपनी जीत के आगे पार्टी का अस्तित्व बहुत छोटा लग रहा है।

इसका मुख्य कारण है राज्यस्तरीय नेतृत्व का अभाव। ऐसा पहली बार हुआ है कि विधानसभा के लिए टिकट ऊपर वाले बांटने लगे हैं। राजस्थान हो, मध्यप्रदेश हो या अन्य कोई प्रांत, स्थानीय स्तर के नेता ही नहीं हैं। कोई किसी के आदेश की परवाह ही नहीं करता। तीनों हिन्दी राज्यों में नेतृत्व (सर्वमान्य) ही नहीं है। दोनों दलों में धड़ेबाजी, अनुशासनहीनता का ही प्रकोप है। दूर बैठे को लगता होगा कि नेतृत्व तो है। मध्य प्रदेश कांग्रेस में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की अपनी-अपनी सेना है। पीएम-सीएम की चर्चा सार्वजनिक हो चुकी है। राजस्थान में वसुंधरा की लहर भले ही ठंडी दिखाई दे रही है, फुफकार तो सुनाई दे रही है। नीचे राज्य स्तर का नेता दिखाई ही नहीं देता। पायलट के पीछे की शक्ति अशांत है। छत्तीसगढ़ भाजपा में नेता कहां है? बघेल (मुख्यमंत्री) और सिंह देव की सेना पूरे आवेश में है। यह जो खेमाबन्दी है, वह लोगों को जीत के लिए नहीं, हारने/हराने के लिए प्रेरित कर रही है।

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तीनों पायों की सेवानिवृत्ति

भाजपा आलाकमान में दो नेता, कांग्रेस आलाकमान में एक परिवार ही देश के लोकतंत्र को संभाले हुए है। ये शासक वर्ग है, शेष देशवासी शासित हैं। सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहीं नहीं है। नीचे हर जन प्रतिनिधि स्वयं को शासक मान बैठा है। सत्ता उसका अधिकार बन गया है- वही राज करेगा या उसका परिवार। नौकरशाह सूटकेस पहुंचाएंगे। अब दो, किसी अन्य को टिकट। खा जाऊंगा। ज्यादा किया तो बिखेर दूंगा, लेकिन किसी अन्य को खाने नहीं दूंगा। कैसा खून मुंह लगा है। यही भ्रष्टाचार के केन्द्रीकरण का भी मूल कारण बन गया। ऊपर-नीचे न तो नेतृत्व का विकास और न ही नियंत्रक तंत्र है। सरकार का पर्याय भ्रष्टाचार है। राजीव गांधी काल में कहा गया कि 1 रुपए में से नीचे तक सिर्फ 15 पैसे पहुंचते हैं। आज कुछ नहीं पहुंचता। राजस्व तो वेतन-पेंशन-ब्याज में भी कम पड़ता है। इसके लिए भी उधार लेना पड़ता है। विकास में भी उधार की चवन्नी नहीं लगती। इसका एक ही उत्तर है, नीचे तक नेतृत्व का विकास और निर्णयों का विकेन्द्रीकरण।

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भ्रष्टाचार का पर्याय

क्षत्रपों की अनुपस्थिति
इस बार टिकट बटवारे में यही सब सामने है। आज तक सारे नाम तय नहीं हो पाए। जो तय हो चुके उनमें भी आधे तो जीत के लिए आश्वस्त ही नहीं हैं। न जाने सामने कौन खड़ा हो जाए, या किसी को खड़ा कर दे। इस सारे नजारे में यह तो स्पष्ट हो गया कि क्षत्रपों की अनुपस्थिति का भारी नुकसान मतदाता को उठाना होगा। जिनको पिछली बार हराया था, उनको फिर से देख रहे हैं। जो इस बार के भ्रष्ट और नकारा थे, अपराधी थे वे भी पुन: मैदान में आ गए। किसका चुनाव करें, विकल्प ही नहीं छोड़ा। सही अर्थों में यही लोकतंत्र की हार है। जिसकी लाठी उसकी भैंस। क्या यह आलाकमानों की लाचारी है, अनभिज्ञता है अथवा गणतंत्र की अवाज्ञा? उत्तर युवा मतदाता के पाले में है। उसी का भविष्य निकलेगा, यहां से।

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