UP Assembly: यूपी में गुलदार को मारने की अनुमति मांग रहे सपा विधायक, बोले- मानव जाति का दुश्मन है h3>
लखनऊ: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर गुलदार के हमलों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। ये मामला अब विधानसभा तक पहुंच गया है। बिजनौर की नगीना सीट से विधायक मनोज कुमार पारस से विधानसभा में गुलदार की समस्या को लेकर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि बिजनौर में पिछले चार से पांच महीने में 14 लोगों को गुलदार ने हमला कर मार दिया है। आम लोगों में दहशत है, सिर्फ बिजनौर ही नहीं ये समस्या उत्तराखंड की सीमा से सटे दूसरे जिलों की भी है। उन्होंने मांग की है कि ये संरक्षित तेंदुआ जाति है। लेकिन ये मानव जाति का दुश्मन है। इन्हें मारने की अनुमति दी जाए। अगर इन्हें बचाना ही है, संरक्षित करना है तो कम से कम सिर्फ जनपद बिजनौर में 600 से 700 पिंजरे देने की कृपा करें। इसके अलावा मनोज कुमार पारस ने गुलदार के हमले में मारे गए लोगों के परिजनों को मुआवजा राशि भी बढ़ाकर 25 लाख रुपये करने की मांग की।
विधायक मनोज कुमार पारस ने कहा कि आज जंगल काट दिए गए हैं। जंगली जानवर शेर, गुलदार, तेंदुआ या जंगली सुअर जंगल से बाहर निकल आ रहे हैं। मेरे विधानसभा क्षेत्र में सिकंदरपुर में अभी दो अगस्त को एक किसान ब्रह्मपाल सिंह अपने खेत में काम कर रहे थे, उन पर गुलदार ने हमला किया और शव की स्थित देखकर आप कांप जाएंगे। बिजनौर में ये स्थिति है कि बच्चे स्कूल नहीं जाना चाह रहे हैं। किसान खेती करने जाना चाहता है लेकिन खेतों में पहले से ही गुलदार और जंगली जानवर हैं, इससे वह डरा हुआ है। पहले छुट्टा जानवर की समस्या थी, दूसरी तरफ अब जंगली जानवर समस्या बन गए हैं। स्थिति ये है कि किसी इलाके में बिजली फॉल्ट आती है तो लाइनमैन गुलदार के डर से दो-दो दिन तक ठीक करने नहीं जाते। अखबारों में छपा कि 3 घंटे लाइनमैन खंभे पर बैठे रहे और नीचे गुलदार खड़ा था। इस तरह पिछले चार से पांच महीने में बिजनौर में 14 लोगों को गुलदार ने मारकर खा लिया। आज स्थिति ये है कि किसान अपने खेत में खाद डालने जाता है तो उसे पहले मजदूरी पर गनमैन, ढोल नगाड़े वाले को साथ लेकर जाना पड़ता है।
विधायक ने बिजनौर में गुलदार के हमले में मारे गए 14 लोगों की जानकारी देते हुए कहा ये तो इंसान हैं, पशुओं की तो गिनती ही नहीं है। गुलदार को खाना नहीं मिल रहा है तो वह गांवों की तरफ आ गया है। पालतू जानवरों को उठाकर मार दे रहा है। ये समस्या सिर्फ बिजनौर जनपद की नहीं है, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बलरामपुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी और उत्तराखंड के जिलों में गुलदार का आतंक है। ये मानव जाति का दुश्मन है।
मुआवजा राशि 25 लाख रुपये की जाए
मनोज कुमार पारस ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिजनौर में 300 तेंदुए/गुलदार जीवित हैं। स्थिति ऐसी ही रही तो इनकी बढ़ती तादात से जीना दुस्वार हो जाएगा। मेरी मांग है कि इस तेंदुआ जाति, जो संरक्षित जाति है, इन्हें मारने की अनुमति दी जाए। लेकिन अगर इन्हें बचाना है संरक्षित करना है तो कम से कम सिर्फ जनपद बिजनौर में 600 से 700 पिंजरे देने की कृपा करें। यही नहीं जिस व्यक्ति की जान जाती है, उसके परिवार को सिर्फ 4 से 5 लाख रुपये मुआवजा देते हैं। आज महंगाई के दौर में ये राशि बेहद कम है। मेरी संसदीय कार्यमंत्री जी से मांग है कि मुआवजे की राशि को 25 लाख रुपये किया जाए। वहीं जो घायल हो जाते हैं, अपाहिज हो जाते हैं, उन्हें भी कम से 5 लाख रुपये देकर मदद करें। यही नहीं भले ही गुलदार संरक्षित जाति में आता हो लेकिन अगर किसी पर हमला करता है और जवाब में किसान खुद के बचाव में उसे मार देता है तो कम से कम उस पर मुकदमे न लगाए जाएं।
वन मंत्री ने दिया ये जवाब
इसके जवाब में वन मंत्री अरुण कुमार सक्सेना ने कहा कि बिजनौर जनपद का अमानगढ़ और नजीबाबाद का इलाका उत्तराखंड की तराई के वनों और जिम कॉर्बेट से लगा हुआ है। इन क्षेत्रों में बाघ, तेंदुआ काफी संख्या में हैं। आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण भोजन के लिए तेंदुओं को जंगल से बाहर खेतों में आना पड़ रहा है। अन्य मांसाहारी जीव के न होने के लिए भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा का अभाव है इसलिए वहां गुलदार काफी संख्या में हैं। जनपद में लगभग 60 प्रतिशत कृषि भूमि पर गन्ने की फसल उगाइ जाती है। इन खेतों में गुलदार को गीदड़, सुअर पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। गन्ने के खेत इन वन्य जीवों के छिपने के लिए भी अच्छे रहते हैं। बाढ़ की स्थिति में ये आबादी वाले गांव सड़कों तक पहुंच जाते हैं, जहां मनुष्यों से इनका टकराव हो जाता है। ये बात सही है कि काफी लोगों की जनहानि हुई है।
उन्होंने बताया कि पूरे क्षेत्र को 12 हिस्सों में बांटकर 12 टीमें बनाई गई हैं। ये सघन तलाशी कर तेंदुए पकड़ रहे हैं। इस साल अब तक 12 तेंदुए पकड़े जा चुके हैं, कल एक और पकड़ा गया है, जो पिंजरे में फंसा है। हर टीम में 20 से 25 लोग लगाए गए हैं, जो दिन रात सर्च कर रहे हैं। टीम में डॉक्टर भी हैं, जो ट्रंक्युलाइज कर इन पर काबू करने में सक्षम हैं। इस अभियान में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया का भी सहयोग लिया जा रहा है। दुधवा और कॉर्बेट रिजर्व से भी चार हाथी मंगाए गए हैं, जो इन्हें ट्रेस कर रहे हैं। 40 जगहों पर ट्रैप लगाए गए हैं। साथ ही 33 कैमरा ट्रैप लगाकर इनके मूवमेंट पर नजर रखी जा रही है। कुछ जगहों पर मचान से भी नजर रखी जा रही है। ड्रोन कैमरा का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। समन्वय के लिए उत्तराखंड के वन विभाग से भी संपर्क किया गया है। इसके अलावा तमाम प्रचार के माध्यम से जनता को जागरूक भी किया जा रहा है। जिन गांवों में मौतें हुई हैं, वहां दो सदस्यों की नियमित तैनाती की गई है। कुछ जगहों पर चैनलिंग और सोलर फेंसिंग की भी व्यवस्था की जा रही है ताकि गुलदार आबादी से दूर रहे हैं। आपका कहना सही है कि जंगल पहले से कम हो गए हैं। बाघ भी तेजी से बढ़ रहे हैं, इनकी वजह से तेंदुआ नीचे के इलाकाें में आ रहा है। गुलदार की वजह से लोगों में काफी परेशानी है। हम पूरा प्रयास कर रहे हैं।
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विधायक मनोज कुमार पारस ने कहा कि आज जंगल काट दिए गए हैं। जंगली जानवर शेर, गुलदार, तेंदुआ या जंगली सुअर जंगल से बाहर निकल आ रहे हैं। मेरे विधानसभा क्षेत्र में सिकंदरपुर में अभी दो अगस्त को एक किसान ब्रह्मपाल सिंह अपने खेत में काम कर रहे थे, उन पर गुलदार ने हमला किया और शव की स्थित देखकर आप कांप जाएंगे। बिजनौर में ये स्थिति है कि बच्चे स्कूल नहीं जाना चाह रहे हैं। किसान खेती करने जाना चाहता है लेकिन खेतों में पहले से ही गुलदार और जंगली जानवर हैं, इससे वह डरा हुआ है। पहले छुट्टा जानवर की समस्या थी, दूसरी तरफ अब जंगली जानवर समस्या बन गए हैं। स्थिति ये है कि किसी इलाके में बिजली फॉल्ट आती है तो लाइनमैन गुलदार के डर से दो-दो दिन तक ठीक करने नहीं जाते। अखबारों में छपा कि 3 घंटे लाइनमैन खंभे पर बैठे रहे और नीचे गुलदार खड़ा था। इस तरह पिछले चार से पांच महीने में बिजनौर में 14 लोगों को गुलदार ने मारकर खा लिया। आज स्थिति ये है कि किसान अपने खेत में खाद डालने जाता है तो उसे पहले मजदूरी पर गनमैन, ढोल नगाड़े वाले को साथ लेकर जाना पड़ता है।
विधायक ने बिजनौर में गुलदार के हमले में मारे गए 14 लोगों की जानकारी देते हुए कहा ये तो इंसान हैं, पशुओं की तो गिनती ही नहीं है। गुलदार को खाना नहीं मिल रहा है तो वह गांवों की तरफ आ गया है। पालतू जानवरों को उठाकर मार दे रहा है। ये समस्या सिर्फ बिजनौर जनपद की नहीं है, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बलरामपुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी और उत्तराखंड के जिलों में गुलदार का आतंक है। ये मानव जाति का दुश्मन है।
मुआवजा राशि 25 लाख रुपये की जाए
मनोज कुमार पारस ने कहा कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिजनौर में 300 तेंदुए/गुलदार जीवित हैं। स्थिति ऐसी ही रही तो इनकी बढ़ती तादात से जीना दुस्वार हो जाएगा। मेरी मांग है कि इस तेंदुआ जाति, जो संरक्षित जाति है, इन्हें मारने की अनुमति दी जाए। लेकिन अगर इन्हें बचाना है संरक्षित करना है तो कम से कम सिर्फ जनपद बिजनौर में 600 से 700 पिंजरे देने की कृपा करें। यही नहीं जिस व्यक्ति की जान जाती है, उसके परिवार को सिर्फ 4 से 5 लाख रुपये मुआवजा देते हैं। आज महंगाई के दौर में ये राशि बेहद कम है। मेरी संसदीय कार्यमंत्री जी से मांग है कि मुआवजे की राशि को 25 लाख रुपये किया जाए। वहीं जो घायल हो जाते हैं, अपाहिज हो जाते हैं, उन्हें भी कम से 5 लाख रुपये देकर मदद करें। यही नहीं भले ही गुलदार संरक्षित जाति में आता हो लेकिन अगर किसी पर हमला करता है और जवाब में किसान खुद के बचाव में उसे मार देता है तो कम से कम उस पर मुकदमे न लगाए जाएं।
वन मंत्री ने दिया ये जवाब
इसके जवाब में वन मंत्री अरुण कुमार सक्सेना ने कहा कि बिजनौर जनपद का अमानगढ़ और नजीबाबाद का इलाका उत्तराखंड की तराई के वनों और जिम कॉर्बेट से लगा हुआ है। इन क्षेत्रों में बाघ, तेंदुआ काफी संख्या में हैं। आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण भोजन के लिए तेंदुओं को जंगल से बाहर खेतों में आना पड़ रहा है। अन्य मांसाहारी जीव के न होने के लिए भोजन के लिए प्रतिस्पर्धा का अभाव है इसलिए वहां गुलदार काफी संख्या में हैं। जनपद में लगभग 60 प्रतिशत कृषि भूमि पर गन्ने की फसल उगाइ जाती है। इन खेतों में गुलदार को गीदड़, सुअर पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। गन्ने के खेत इन वन्य जीवों के छिपने के लिए भी अच्छे रहते हैं। बाढ़ की स्थिति में ये आबादी वाले गांव सड़कों तक पहुंच जाते हैं, जहां मनुष्यों से इनका टकराव हो जाता है। ये बात सही है कि काफी लोगों की जनहानि हुई है।
उन्होंने बताया कि पूरे क्षेत्र को 12 हिस्सों में बांटकर 12 टीमें बनाई गई हैं। ये सघन तलाशी कर तेंदुए पकड़ रहे हैं। इस साल अब तक 12 तेंदुए पकड़े जा चुके हैं, कल एक और पकड़ा गया है, जो पिंजरे में फंसा है। हर टीम में 20 से 25 लोग लगाए गए हैं, जो दिन रात सर्च कर रहे हैं। टीम में डॉक्टर भी हैं, जो ट्रंक्युलाइज कर इन पर काबू करने में सक्षम हैं। इस अभियान में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया का भी सहयोग लिया जा रहा है। दुधवा और कॉर्बेट रिजर्व से भी चार हाथी मंगाए गए हैं, जो इन्हें ट्रेस कर रहे हैं। 40 जगहों पर ट्रैप लगाए गए हैं। साथ ही 33 कैमरा ट्रैप लगाकर इनके मूवमेंट पर नजर रखी जा रही है। कुछ जगहों पर मचान से भी नजर रखी जा रही है। ड्रोन कैमरा का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। समन्वय के लिए उत्तराखंड के वन विभाग से भी संपर्क किया गया है। इसके अलावा तमाम प्रचार के माध्यम से जनता को जागरूक भी किया जा रहा है। जिन गांवों में मौतें हुई हैं, वहां दो सदस्यों की नियमित तैनाती की गई है। कुछ जगहों पर चैनलिंग और सोलर फेंसिंग की भी व्यवस्था की जा रही है ताकि गुलदार आबादी से दूर रहे हैं। आपका कहना सही है कि जंगल पहले से कम हो गए हैं। बाघ भी तेजी से बढ़ रहे हैं, इनकी वजह से तेंदुआ नीचे के इलाकाें में आ रहा है। गुलदार की वजह से लोगों में काफी परेशानी है। हम पूरा प्रयास कर रहे हैं।
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