दिल्ली में 45 साल पहले आई बाढ़ में क्या हुआ था?

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दिल्ली में 45 साल पहले आई बाढ़ में क्या हुआ था?

दिल्ली में 45 साल पहले आई बाढ़ में क्या हुआ था?

विवेक शुक्ला
45 साल बाद दिल्ली फिर से पानी-पानी है। ऐसी बाढ़ 1962 और फिर 1978 में आई थी। नवीन शाहदरा में रहने वाले 75 साल के बिजनेसमैन कुलदीप सिंह चंडोक ने 1962 और 1978 में उफनाई यमुना को करीब से देखा था। वह अब फिर से राजधानी के बहुत से इलाकों को पानी-पानी होते देख रहे हैं। 1962 की बाढ़ में नवीन शाहदरा डूब गया था। लोग दाने-दाने को मोहताज थे। तब केंद्रीय गृह मंत्री गोविंद वल्लभ पंत बाढ़ ग्रस्त इलाकों में घूम-घूमकर राहत कार्यों पर नजर रख रहे थे।

नहीं मिलती चर्चा
दो वजहों से 1962 की बाढ़ को ज्यादा चर्चा नहीं मिल पाती। पहली, तब तक यमुनापार में शाहदरा और नवीन शाहदरा ही बड़ी कॉलोनियां थीं। कृष्णा नगर और गीता कॉलोनी बस ही रही थीं। विवेक विहार और विकास मार्ग के आसपास बसी कॉलोनियां 1970 के बाद बनीं। दूसरी, 1962 तक यमुनापार को बाकी दिल्ली से सिर्फ पुराना लोहे का पुल ही जोड़ता था। इसलिए यमुनापार की तरफ बाकी दिल्ली वालों का आना-जाना कम होता था।

फर्स्ट फ्लोर तक पहुंचा पानी
1978 की बाढ़ में पानी राजधानी की दर्जनों बस्तियों सहित ढेरों गांवों में भी चला गया था। मुखर्जी नगर और हकीकत नगर डूब गए थे। मॉडल टाउन और सिविल लाइंस में पानी फर्स्ट फ्लोर तक आया हुआ था। उधर, साउथ दिल्ली के पॉश एरिया जैसे महारानी बाग, फ्रेंड्स कॉलोनी, जामिया मिल्लिया और ओखला में रहने वालों को कहा गया था कि वे सुरक्षित जगहों पर चले जाएं। हालांकि उधर बाढ़ ने तबाही नहीं मचाई थी।

1978 में आई बाढ़ की तस्वीर (फोटोः BCCL)

1978 की बाढ़ में हालात बेकाबू इसलिए हुए थे क्योंकि हथिनीकुंड बांध से जब पानी तेज रफ्तार से दिल्ली आया तो उसने कई जगहों पर बांधों को तोड़ दिया। नजफगढ़ के पास ढासा बांध टूटने से बाहरी दिल्ली के लगभग 43 किमी इलाके में पानी खेतों में जमा हो गया। तब यहां दो-दो मीटर तक पानी जमा था। इसके चलते बाहरी दिल्ली के गांवों जैसे सुल्तानपुरी, जोंती, लाडपुर, कंझावला, घेवरा वगैरह में खरीफ की खड़ी फसल तबाह हो गई थी। झुग्गियों में रहने वाले लाखों लोग सड़कों पर आ गए थे। बाढ़ का पानी सबसे पहले जहांगीरपुरी में घुसा, फिर उसने सारी उत्तर दिल्ली को अपनी चपेट में ले लिया था। तब यमुना में दो तटबंध टूटने से इंदिरा नगर, मजलिस पार्क, गोपाल नगर, किंग्सवे कैंप, दिल्ली यूनिवर्सिटी, बेला रोड वगैरह में भी पानी आ गया था। जीटी रोड पर करनाल तक पानी भरा हुआ था।

1978 में आई बाढ़ की तस्वीर (फोटोः BCCL)

बांध कमजोर थे
1978 की बाढ़ दिल्ली के लिए पहली भले न रही हो, वह सबसे खराब बाढ़ जरूर थी। तब यमुना पुराने लोहे के पुल से भी 2.66 मीटर ऊपर बह रही थी। मतलब खतरे के निशान से बहुत ऊपर। जब 1866-67 में लोहे का पुल बना, तब खतरे का निशान 205.33 मीटर तय किया गया था। 1978 में यमुना का जल स्तर 207.49 मीटर तक पहुंच गया था। उसके बाद 2010 में जल स्तर 207.11 मीटर और 2013 में 207.32 मीटर तक भी आया था। दिल्ली के बांध 1960 और 1970 के दशक में बने थे। 1978 में जब बाढ़ आई, तो हालात इसलिए खराब हुए क्योंकि उन बांधों को बेहतर और मजबूत नहीं किया गया था। इन बांधों के पहले तो यमुना का पानी यमुनापार या यमुना के आसपास के इलाकों में हर साल ही पहुंच जाया करता था।

बढ़ती आबादी का बोझ
1978 की बाढ़ के बाद दिल्ली में यमुना के दोनों तरफ तटबंध बनाए गए। इरादा था कि हथिनीकुंड से पानी छोड़ा जाए, तो दिल्ली पानी-पानी न हो। इसके बाद माना जा रहा था कि अब फिर से दिल्ली में कभी 1978 वाला भयानक मंजर देखने को नहीं मिलेगा। पर यह सोच गलत साबित हुई। अब फिर से दिल्ली का एक बड़ा भाग बाढ़ की चपेट में है। हजारों दीन-हीन लोग सड़कों पर हैं और लाखों प्रभावित हैं। पर कोई यह नहीं कह रहा कि 1978 से अब तक दिल्ली की आबादी कई गुना बढ़ गई और यहां पानी की निकासी की ठोस व्यवस्था नहीं हुई।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं

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