मर्डर, रेप, सजा पर अपील… 65 फैसले एक ही दिन में, रिटायरमेंट से ठीक पहले दिल्ली HC की जज का रेकॉर्ड h3>
जस्टिस गुप्ता के एक करीबी ने हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि वह कानूनी प्रैक्टिस में वापस लौट सकती है। वह सुप्रीम कोर्ट के सामने वकालत कर सकती हैं। हाई कोर्ट जज बनाए जाने से पहले वह हाई कोर्ट में प्रॉसीक्यूटर थीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कई हाई प्रोफाइल मामलों में भी जिरह की थी।
किन-किन मामलों में जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने सुनाया फैसला
सबसे पहले जस्टिस गुप्ता और जस्टिस अनीश दयाल की बेंच ने 12 साल की बच्ची को फिरौती के लिए अगवा करने और हत्या के आरोपी व्यक्ति की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। 20 साल से पहले कैदी की रिहाई नहीं हो सकेगी। जस्टिस गुप्ता ने फैसले में कहा कि यह मामला दुर्लभतम मामलों की श्रेणी में नहीं आता। कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां दोषी में सुधार होने की संभावना नहीं होती। HC ने कहा कि यह नहीं साबित किया जा सकता कि हत्या पूर्व नियोजित थी या समाज की सामूहिक चेतना को झकझोरने के लिहाज से यह काफी पैशाचिक कृत्य था।
इसी बेंच ने हिरासत में प्रताड़ित करने के कारण 26 वर्षीय युवक की मौत के मामले में उत्तर प्रदेश के पांच पुलिसकर्मियों की दोषसिद्ध और उन्हें सुनाई गई 10 साल जेल की सजा को बरकरार रखा। अदालत ने पीड़ित का अपहरण करने के लिए छठे दोषी निरीक्षक कुंअर पाल सिंह को सुनाई गई तीन साल की सजा को भी बरकरार रखा। पीठ ने 60 पन्नों के फैसले में शिकायतकर्ता (पीड़ित के पिता) की उस अर्जी को भी खारिज कर दिया जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के बजाय दोषियों को धारा 302 (हत्या) के तहत दोषसिद्धि का अनुरोध किया गया था।