कांग्रेस और AAP के बीच किन मुद्दों पर तकरार है? आखिर इसकी वजह क्या है h3>
ऑर्डिनेंस पर तकरार
दिल्ली में राज्य सरकार के अधिकार पर कथित तौर पर अंकुश लगाने वाले केंद्र का ऑर्डिनेंस अभी दोनों दलों के बीच तकरार का सबसे बड़ा मुद्दा है। आम आदमी पार्टी का कहना है कि कांग्रेस को छोड़कर तमाम विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर उन्हें समर्थन दिया। ऐसे में पार्टी का आरोप है कि कांग्रेस बीजेपी के साथ दिख रही है। कांग्रेस का कहना है कि बिना सोच समझे किसी बिल पर अपना स्टैंड कैसे साफ कर सकते हैं। साथ ही पार्टी के सीनियर नेताओं ने 23 जून को पटना की मीटिंग में भी कहा था कि किसी केंद्रीय नेता ने अब तक बिल का विरोध या समर्थन करने की बात नहीं कही है। साथ ही जिस दिन केंद्र सरकार ने ऑर्डिनेंस लाया था उस दिन कांग्रेस ने आधिकारिक बयान में जरूर इस कदम की निंदा की थी।
जांच एजेंसियों की कार्रवाई
विपक्षी दलों पर जांच एजेंसियों की दबिश को लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का अलग-अलग रुख रहा है। जब कांग्रेसी नेताओं पर एजेंसियों का दबाव बढ़ा तो AAP इस मुद्दे से दूर रही। इसी तरह जब दिल्ली में शराब नीति मामले में AAP नेताओं पर दबिश बढ़ी तो कांग्रेस ने इसका समर्थन किया। लेकिन अब कमोबेश इस मुद्दे पर दोनों दलों का समान स्टैंड है। जब राहुल गांधी को संसद से अयोग्य घोषित किया गया तो केजरीवाल ने इस फैसले का विरोध किया था।
इन मुद्दों पर एक राय
इन कुछ मुद्दों को छोड़ दिया जाय तो हाल में तमाम दूसरे मुद्दे पर दोनों दलों की राय एक ही रही है। उदाहरण के लिए, चाहे किसान आंदोलन हो या पहलवान का आंदोलन हो या संसद में अडाणी से जुड़ा मसला। पिछले सत्र में तो आम आदमी पार्टी संसद सत्र के दौरान कांग्रेस की ओर से बुलाई गई तमाम मीटिंग में मौजूद भी रही है।
सियासी तकरार अधिक
ऐसे में सियासी स्पेस में साझेदारी या सेंध लगाने की बात ही तकरार का अधिक कारण बनी है। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और बाद में पंजाब में कांग्रेस के स्पेस को हथिया कर ही सत्ता हासिल की। आम आदमी पार्टी की दूसरे राज्यों में पैर पसारने की कवायद में असली टारगेट कांग्रेस ही है। ऐसे में कांग्रेस अब अपने स्पेस को अधिक खोना नहीं चाहती है। साथ ही पार्टी के अंदर एक राय है कि दिल्ली और पंजाब में भी अपनी जगह वापस हासिल करने के लिए आक्रामक पहल करनी चाहिए। कई बार आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच उग्र तकरार के पीछे यही कारण है। हालांकि 2019 में आम चुनाव से ठीक पहले दोनों दलों के बीच दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर साथ लड़ने की सहमति तक बन गई थी, लेकिन अंतिम समय में बात नहीं बन सकी। ऐसे में अधिकतर विपक्षी दलों का मानना है कि कुछ अवरोध होने के बावजूद 2024 आम चुनाव में दोनों दलों के बीच बातचीत का दरवाजा खुला रह सकता है।